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उत्तराखंड आपदा: कुदरत के कहर का खौफनाक मंजर, जल विभीषिका लील गई थी सैकड़ों जिंदगियां

केदारनाथ आपदा को 6 साल गुजर चुके हैं लेकिन साल 2013 की 16-17 जून की वो काली रात आज भी जब याद आती है तो रूह कांप उठती है. इन 6 सालों में केंद्र व राज्य सरकार ने केदारघाटी की तस्वीर पहले से भी खूबसूरत तो बना दी है लेकिन जिन लोगों ने अपनों को खो दिया वो आज भी सिसक रहे हैं.

केदारनाथ आपदा
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Published : Jun 16, 2019, 10:09 AM IST

Updated : Jun 16, 2019, 10:15 AM IST

देहरादून: विश्व विख्यात केदारनाथ धाम में साल 2013 के 16 व 17 जून को आयी विनाशकारी त्रासदी को आज 6 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज भी उस प्रलयंकारी प्राकृतिक आपदा के खौफनाक मंजर को कोई नहीं भूल सका है. आपदा के 6 साल बीत जाने के बाद जो स्वरूप आज केदारनाथ धाम का है उसे देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यह वही केदारघाटी है, जिसे भीषण जल विभीषिका लील गई थी. देखिए खास रिपोर्ट...

केदारनाथ आपदा के 6 साल

साल 2013 के 14 और 15 जून से दिन-रात आठों पहर बादल ऐसे गरजे कि चारों ओर जलभराव अपने अधिकतम स्तर पर बढ़ता चला गया. जिसके चलते 16 जून की रात, जब हजारों की संख्या में श्रद्धालु घाटी के अंतिम पड़ाव रामबाड़ा से लेकर केदारनाथ मंदिर परिसर तक मौजूद थे तभी मंदिर के ऊपर पहाड़ी में स्थित गांधी सरोवर (चोराबाड़ी) झील का पानी खतरे के स्तर को पार कर गया और बाढ़ का रौद्र रूप लेते हुए पहाड़ियों को चीरता हुआ 18 से 20 फीट ज्वार-भाटे की अक्श में केदारनाथ मंदिर परिसर में प्रवेश कर गया. इसके बाद सोनप्रयाग, चंद्रापुरी, अगस्त्यमुनि, फाटा व श्रीनगर जैसे इलाकों में ऐसी भयावह बर्बादी करते हुए निकाला कि, सब कुछ धरती में दफन होता गया.

केदारनाथ धाम में आपदा के सूचना मिलने के बाद जो सबसे पहले मरने वालों का आंकड़ा सामने आया वह लगभग 3 से 5 हजार से ज्यादा लोगों का था. हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि पांच हजार से ज्यादा लोग सिर्फ केदारनाथ परिसर में ही मौजूद थे जबकि रामबाड़ा तक 10 हजार से ज्यादा लोग शुरुआती सूचना आने पर काल की गाल में समा गए. आज तक मरने वालों का आंकड़ा पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है. आज भी प्रशासन और एसडीआरएफ को खोजबीन के दौरान कई नर कंकाल मिलते रहते हैं. ऐसे में केदारनाथ त्रासदी में कितने हजार लोग धरती की गोद में समा गए यह कहना मुश्किल है.

पढ़ें- उत्तराखंड त्रासदी से जानिए क्या सबक लिया सरकार ने, आपदा प्रबंधन तंत्र में कितना किया सुधार

उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी 2013 आपदा में मरने वालों का आंकड़ा

लापता नर कंकाल बरामद लापता
3,886 साल 2013 545
साल 2014 63
साल 2015 3
साल 2016 60
साल 2017 7
साल 2018 21
कुल 699

पुलिस ने अब तक बरामद नर कंकालों के कुल 908 सैंपल डीएनए परीक्षण के लिए भेजे गए हैं, जिसमें परिजनों के भी सैंपल शामिल हैं. अभी तक 33 डीएनए सैंपल का परिजनों के साथ मिलान हो चुका है. हालांकि, केदारनाथ त्रासदी में मरने वालों का आंकड़ा पुलिस के आंकड़े से कहीं अधिक ज्यादा है.

केदारनाथ त्रासदी में अलग अलग दर्दनाक तरीके से अनगिनत लोगों की मौत हुई

16 जून 2013 की शाम करीब 6:30 बजे केदारनाथ त्रासदी में देश-विदेश के हजारों लोग दर्दनाक तरीके से काल के गाल में समा गये, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. सबसे ज्यादा लोग घाटी के ऊपर से आये भीषण बालू-कंक्रीट वाली बाढ़ की चपेट में आकर धरती में समाते गए. कुछ लोग प्रलयंकारी आपदा से इतने हताहत हुए कि वह लोग अनजान पहाड़ियों में चले गए जहां उनको किसी भी तरह से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला. जिसके चलते वह दिन रात हाड़ कंपा देने वाली ठंड और खौफ से तड़प-तड़प कर अपनी जांन गंवाते रहे.

काल का ये तांडव एक-दो दिन नहीं बल्कि कई दिनों तक चला. केदारनाथ सहित गढ़वाल के कई इलाके पूरी तरह से मुख्यधारा से टूट गए. इस आपदा में निरंतर 3 दिनों तक आसमान से इतना पानी बरसा जो शायद ही पहले कभी नहीं देखा गया था. आसमान से आफत भरी बारिश से 16 जून की सुबह भैरवनाथ मंदिर जाने वाला पहाड़ी टूटने लगा. इसके बाद तो जगह-जगह ऐसा भूस्खलन होने लगा, जिससे बाहर निकलने के रास्ते बंद हो गया.

लगातार मूसलाधार बारिश के कारण केदारनाथ घाटी से लेकर नीचे रामबाड़ा, गौरीकुंड, सोनप्रयाग, चंद्रापुरी, अगस्त्यमुनि व श्रीनगर जैसे गेस्ट हाउस और होटलों के अंदर लोग रुके हुए थे. ऐसे में किसी का भी बाहर निकलना नामुमकिन था. केदारनाथ में पहली बार 16 जून की शाम 6:30 बजे लगभग 20 फीट की ऐसी कीचड़-बालू भरी बाढ़ आई जिसमें इंसानी जिंदगी से लेकर सब कुछ दफन हो गया. अगर कुछ बचा था वह था केदारनाथ मंदिर. बाबा केदार के मंदिर के सामने एक ऐसा विशाल पत्थर आकर रुक गया, जिसने पहाड़ से आ रहे मलबे को मंदिर के टकराने से रोक दिया.

मंदाकिनी और सरस्वती नदी के रौद्र स्वरूप ने रामबाड़ा नामोनिशान मिटा दिया.
16 जून 2013 की काली रात इतनी भयानक गुजरी कि केदारनाथ धाम से लेकर श्रीनगर तक अनगिनत भवन, होटल व रेस्त्रां में सिर छुपाने की हर जगह पानी में डूबती रही. मोबाइल नेटवर्क, बिजली, पानी जैसी तमाम व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी थी. केदारघाटी में मंदाकिनी नदी ने ऐसी गदर मचाई है कि केदारनाथ मंदिर को छोड़कर सब कुछ खत्म हो गया. रामबाड़ा नाम का रियासी इलाका जहां होटल गेस्टहाउस जैसे भवन थे. उसका नामोनिशान घाटी के नक्शे से पूरी तरह से मिट चुका था. खौफनाक त्रासदी के चलते लोग जहां-तहां भागते रहे और मौत की कोख में समाते रहे.

त्रासदी के दिन घोड़ा खच्चर वालों की हड़ताल को खत्म करने गए एसडीएम और सीओ ने मंदिर में स्थित नंदी बैल मूर्ति के सहारे बचाई अपनी जान

इस त्रासदी के दिन केदारघाटी में चलने वाले घोड़े-खच्चर हड़ताल पर थे. ऐसे में हड़ताल को खत्म करने की दिशा में वार्ता करने उखीमठ के एसडीएम राकेश तिवारी और पुलिस सीओ आरपी डिमरी उस दिन केदारनाथ मंदिर पर ही थे. गनीमत रही कि यह लोग तबाही के दौरान मंदिर के सामने नंदी की मूर्ति पर चढ़े और मुख्य द्वार पर लगी विशाल घंटी को पकड़ कर अपनी जान बचाने में सफल रहे. केदारनाथ से लेकर रामबाड़ा, फटा, गौरीकुंड सहित कई जगहों पर सिर्फ लाशें ही लाशें बिखरी थी.

विश्व में इतनी ऊंचाई में शायद ही कभी इतनी बड़ी त्रासदी आई हो, जिसमें अब तक सबसे बड़ा एयर रेस्क्यू हुआ: आईजी एसडीआरएफ

उत्तराखंड पुलिस टीम की तरफ से राहत बचाव कार्य में फोर्स का नेतृत्व करने वाले एसडीआरएफ आईजी संजय गुंज्याल ने अपने आंखों देखे हाल को बयां करते हुए बताया कि शायद ही दुनिया में इतनी ऊंचाई वाले स्थान में इस तरह की तबाही मची हो और इतनी बड़ी संख्या में लोगों को रेक्स्यू किया गया हो.

उन्होंने बताया कि त्रासदी के दौरान बद्रीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री और सबसे ज्यादा केदारनाथ में फंसे डेढ़ से दो लाख लोगों को एयर रेस्क्यू किया गया. हालांकि, त्रासदी के बाद सभी तरह के मार्ग और बेहद खराब मौसम विषम परिस्थितियों के चलते आपदा के 2 दिन तक घाटी में हेलीकॉप्टर द्वारा जाना भी संभव नहीं था. ऐसे में केदारनाथ सहित तमाम पर्वतीय इलाकों में राहत बचाव कार्य बहुत ही विषम परिस्थितियों में चुनौतीपूर्ण तरीके से किया गया.

भारतीय सेना ने रेस्क्यू में सबसे बड़ी भूमिका निभाई

आईजी गुंज्याल के मुताबिक केदारनाथ धाम सहित अन्य स्थलों में ड्यूटी में तैनात रहने वाले कई पुलिसकर्मी भी इस त्रासदी में अपना बलिदान दे चुके हैं. उन दिनों रुद्रप्रयाग जिले में तैनात अधिकारियों और कर्मियों ने उस दौरान रेस्क्यू में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. केदारनाथ त्रासदी इतनी बड़ी थी कि सब कुछ मुख्यधारा से टूट चुका था. इसके बावजूद भारतीय सेना, एयरफोर्स, आईटीबीपी, एनडीआरएफ व उत्तराखंड पुलिस ने फौरी तौर सीमित संसाधनों के बीच अधिक से अधिक लोगों की जानें बचाने का काम किया.

2013 केदारनाथ आपदा के बाद एसडीआरएफ का गठन

उत्तराखंड सरकार ने उस आपदा के बाद राहत बचाव कार्य के लिए उत्तराखंड पुलिस में एसडीआरएफ फोर्स का गठन किया. वर्तमान में एसडीआरएफ की 4 कंपनियां एक बटालियन के रूप उत्तराखंड में है. जो उसके बाद कई बार प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ अन्य आपातकाल घटनाओं में संकटमोचक बनकर जिंदगी बचाने का काम कर रहे हैं.

देहरादून: विश्व विख्यात केदारनाथ धाम में साल 2013 के 16 व 17 जून को आयी विनाशकारी त्रासदी को आज 6 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज भी उस प्रलयंकारी प्राकृतिक आपदा के खौफनाक मंजर को कोई नहीं भूल सका है. आपदा के 6 साल बीत जाने के बाद जो स्वरूप आज केदारनाथ धाम का है उसे देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यह वही केदारघाटी है, जिसे भीषण जल विभीषिका लील गई थी. देखिए खास रिपोर्ट...

केदारनाथ आपदा के 6 साल

साल 2013 के 14 और 15 जून से दिन-रात आठों पहर बादल ऐसे गरजे कि चारों ओर जलभराव अपने अधिकतम स्तर पर बढ़ता चला गया. जिसके चलते 16 जून की रात, जब हजारों की संख्या में श्रद्धालु घाटी के अंतिम पड़ाव रामबाड़ा से लेकर केदारनाथ मंदिर परिसर तक मौजूद थे तभी मंदिर के ऊपर पहाड़ी में स्थित गांधी सरोवर (चोराबाड़ी) झील का पानी खतरे के स्तर को पार कर गया और बाढ़ का रौद्र रूप लेते हुए पहाड़ियों को चीरता हुआ 18 से 20 फीट ज्वार-भाटे की अक्श में केदारनाथ मंदिर परिसर में प्रवेश कर गया. इसके बाद सोनप्रयाग, चंद्रापुरी, अगस्त्यमुनि, फाटा व श्रीनगर जैसे इलाकों में ऐसी भयावह बर्बादी करते हुए निकाला कि, सब कुछ धरती में दफन होता गया.

केदारनाथ धाम में आपदा के सूचना मिलने के बाद जो सबसे पहले मरने वालों का आंकड़ा सामने आया वह लगभग 3 से 5 हजार से ज्यादा लोगों का था. हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि पांच हजार से ज्यादा लोग सिर्फ केदारनाथ परिसर में ही मौजूद थे जबकि रामबाड़ा तक 10 हजार से ज्यादा लोग शुरुआती सूचना आने पर काल की गाल में समा गए. आज तक मरने वालों का आंकड़ा पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है. आज भी प्रशासन और एसडीआरएफ को खोजबीन के दौरान कई नर कंकाल मिलते रहते हैं. ऐसे में केदारनाथ त्रासदी में कितने हजार लोग धरती की गोद में समा गए यह कहना मुश्किल है.

पढ़ें- उत्तराखंड त्रासदी से जानिए क्या सबक लिया सरकार ने, आपदा प्रबंधन तंत्र में कितना किया सुधार

उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी 2013 आपदा में मरने वालों का आंकड़ा

लापता नर कंकाल बरामद लापता
3,886 साल 2013 545
साल 2014 63
साल 2015 3
साल 2016 60
साल 2017 7
साल 2018 21
कुल 699

पुलिस ने अब तक बरामद नर कंकालों के कुल 908 सैंपल डीएनए परीक्षण के लिए भेजे गए हैं, जिसमें परिजनों के भी सैंपल शामिल हैं. अभी तक 33 डीएनए सैंपल का परिजनों के साथ मिलान हो चुका है. हालांकि, केदारनाथ त्रासदी में मरने वालों का आंकड़ा पुलिस के आंकड़े से कहीं अधिक ज्यादा है.

केदारनाथ त्रासदी में अलग अलग दर्दनाक तरीके से अनगिनत लोगों की मौत हुई

16 जून 2013 की शाम करीब 6:30 बजे केदारनाथ त्रासदी में देश-विदेश के हजारों लोग दर्दनाक तरीके से काल के गाल में समा गये, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. सबसे ज्यादा लोग घाटी के ऊपर से आये भीषण बालू-कंक्रीट वाली बाढ़ की चपेट में आकर धरती में समाते गए. कुछ लोग प्रलयंकारी आपदा से इतने हताहत हुए कि वह लोग अनजान पहाड़ियों में चले गए जहां उनको किसी भी तरह से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला. जिसके चलते वह दिन रात हाड़ कंपा देने वाली ठंड और खौफ से तड़प-तड़प कर अपनी जांन गंवाते रहे.

काल का ये तांडव एक-दो दिन नहीं बल्कि कई दिनों तक चला. केदारनाथ सहित गढ़वाल के कई इलाके पूरी तरह से मुख्यधारा से टूट गए. इस आपदा में निरंतर 3 दिनों तक आसमान से इतना पानी बरसा जो शायद ही पहले कभी नहीं देखा गया था. आसमान से आफत भरी बारिश से 16 जून की सुबह भैरवनाथ मंदिर जाने वाला पहाड़ी टूटने लगा. इसके बाद तो जगह-जगह ऐसा भूस्खलन होने लगा, जिससे बाहर निकलने के रास्ते बंद हो गया.

लगातार मूसलाधार बारिश के कारण केदारनाथ घाटी से लेकर नीचे रामबाड़ा, गौरीकुंड, सोनप्रयाग, चंद्रापुरी, अगस्त्यमुनि व श्रीनगर जैसे गेस्ट हाउस और होटलों के अंदर लोग रुके हुए थे. ऐसे में किसी का भी बाहर निकलना नामुमकिन था. केदारनाथ में पहली बार 16 जून की शाम 6:30 बजे लगभग 20 फीट की ऐसी कीचड़-बालू भरी बाढ़ आई जिसमें इंसानी जिंदगी से लेकर सब कुछ दफन हो गया. अगर कुछ बचा था वह था केदारनाथ मंदिर. बाबा केदार के मंदिर के सामने एक ऐसा विशाल पत्थर आकर रुक गया, जिसने पहाड़ से आ रहे मलबे को मंदिर के टकराने से रोक दिया.

मंदाकिनी और सरस्वती नदी के रौद्र स्वरूप ने रामबाड़ा नामोनिशान मिटा दिया.
16 जून 2013 की काली रात इतनी भयानक गुजरी कि केदारनाथ धाम से लेकर श्रीनगर तक अनगिनत भवन, होटल व रेस्त्रां में सिर छुपाने की हर जगह पानी में डूबती रही. मोबाइल नेटवर्क, बिजली, पानी जैसी तमाम व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी थी. केदारघाटी में मंदाकिनी नदी ने ऐसी गदर मचाई है कि केदारनाथ मंदिर को छोड़कर सब कुछ खत्म हो गया. रामबाड़ा नाम का रियासी इलाका जहां होटल गेस्टहाउस जैसे भवन थे. उसका नामोनिशान घाटी के नक्शे से पूरी तरह से मिट चुका था. खौफनाक त्रासदी के चलते लोग जहां-तहां भागते रहे और मौत की कोख में समाते रहे.

त्रासदी के दिन घोड़ा खच्चर वालों की हड़ताल को खत्म करने गए एसडीएम और सीओ ने मंदिर में स्थित नंदी बैल मूर्ति के सहारे बचाई अपनी जान

इस त्रासदी के दिन केदारघाटी में चलने वाले घोड़े-खच्चर हड़ताल पर थे. ऐसे में हड़ताल को खत्म करने की दिशा में वार्ता करने उखीमठ के एसडीएम राकेश तिवारी और पुलिस सीओ आरपी डिमरी उस दिन केदारनाथ मंदिर पर ही थे. गनीमत रही कि यह लोग तबाही के दौरान मंदिर के सामने नंदी की मूर्ति पर चढ़े और मुख्य द्वार पर लगी विशाल घंटी को पकड़ कर अपनी जान बचाने में सफल रहे. केदारनाथ से लेकर रामबाड़ा, फटा, गौरीकुंड सहित कई जगहों पर सिर्फ लाशें ही लाशें बिखरी थी.

विश्व में इतनी ऊंचाई में शायद ही कभी इतनी बड़ी त्रासदी आई हो, जिसमें अब तक सबसे बड़ा एयर रेस्क्यू हुआ: आईजी एसडीआरएफ

उत्तराखंड पुलिस टीम की तरफ से राहत बचाव कार्य में फोर्स का नेतृत्व करने वाले एसडीआरएफ आईजी संजय गुंज्याल ने अपने आंखों देखे हाल को बयां करते हुए बताया कि शायद ही दुनिया में इतनी ऊंचाई वाले स्थान में इस तरह की तबाही मची हो और इतनी बड़ी संख्या में लोगों को रेक्स्यू किया गया हो.

उन्होंने बताया कि त्रासदी के दौरान बद्रीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री और सबसे ज्यादा केदारनाथ में फंसे डेढ़ से दो लाख लोगों को एयर रेस्क्यू किया गया. हालांकि, त्रासदी के बाद सभी तरह के मार्ग और बेहद खराब मौसम विषम परिस्थितियों के चलते आपदा के 2 दिन तक घाटी में हेलीकॉप्टर द्वारा जाना भी संभव नहीं था. ऐसे में केदारनाथ सहित तमाम पर्वतीय इलाकों में राहत बचाव कार्य बहुत ही विषम परिस्थितियों में चुनौतीपूर्ण तरीके से किया गया.

भारतीय सेना ने रेस्क्यू में सबसे बड़ी भूमिका निभाई

आईजी गुंज्याल के मुताबिक केदारनाथ धाम सहित अन्य स्थलों में ड्यूटी में तैनात रहने वाले कई पुलिसकर्मी भी इस त्रासदी में अपना बलिदान दे चुके हैं. उन दिनों रुद्रप्रयाग जिले में तैनात अधिकारियों और कर्मियों ने उस दौरान रेस्क्यू में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. केदारनाथ त्रासदी इतनी बड़ी थी कि सब कुछ मुख्यधारा से टूट चुका था. इसके बावजूद भारतीय सेना, एयरफोर्स, आईटीबीपी, एनडीआरएफ व उत्तराखंड पुलिस ने फौरी तौर सीमित संसाधनों के बीच अधिक से अधिक लोगों की जानें बचाने का काम किया.

2013 केदारनाथ आपदा के बाद एसडीआरएफ का गठन

उत्तराखंड सरकार ने उस आपदा के बाद राहत बचाव कार्य के लिए उत्तराखंड पुलिस में एसडीआरएफ फोर्स का गठन किया. वर्तमान में एसडीआरएफ की 4 कंपनियां एक बटालियन के रूप उत्तराखंड में है. जो उसके बाद कई बार प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ अन्य आपातकाल घटनाओं में संकटमोचक बनकर जिंदगी बचाने का काम कर रहे हैं.

Intro:देहरादून-विश्व विख्यात केदारनाथ धाम में वर्ष 2013 के 16 व 17 जून को आयी विनाशकारी त्रासदी को आज 6 वर्ष हो चुके है, लेकिन आज भी उस प्रलयकारी प्राकृतिक आपदा के ख़ौफ़नाक मंजर को कोई नहीं भूल सका हैं। 14 और 15 जून से दिन-रात आठो पहर बादल निरंतर ऐसे गरजे की चारों ओर जलभराव अपने अधिकतम स्तर पर बढ़ता चला गया, जिसके चलते 16 जून की रात जब हजारों की संख्या में श्रद्धालु घाटी के अंतिम पड़ाव रामबाड़ा से लेकर केदारनाथ मंदिर परिसर तक मौजूद थे तभी मन्दिर के ऊपर पहाड़ी में स्थित गांधी सरोवर (चोराबाड़ी) झील का पानी खतरे के स्तर को पार करता हुआ बाढ़ एक ज्वालमुखी वाले रौद्र रूप में पहाड़ियों को चीरता हुआ 18 से 20 फीट ज्वार-भाटे की अक्श में केदारनाथ मंदिर परिसर से होती हुई सोनप्रयाग चंद्रपुरी अगस्तमुनि फाटा व श्रीनगर जैसे इलाकों में ऐसी भयावह बर्बादी करते हुए निकाला कि, जिसमें सब कुछ धरती में दफ़न होता गया... 16 जून रात से शुरू हुई विनाशकारी त्रासदी 17 जून तक एक के बाद एक घाटी से लेकर पूरे गढ़वाल रीजन में जगह-जगह में रौद्र रूप इख़्तियार करती हुई चारों ओर ऐसे प्रलय मचाती निकली कि,केदारनाथ घाटी जाने वाले ज्यादातर नक़्शे की तस्वीर ज़मीन से पूरी तरह गायब थी।




Body:केदारनाथ धाम में आपदा के सूचना मिलने के बाद जो सबसे पहले मरने वालों का आंकड़ा सामने आया वह लगभग 3 से 5 हज़ार से ज्यादा लोगों का था। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि पांच हजार से ज्यादा लोग सिर्फ केदारनाथ परिसर में ही मौजूद थे जबकि रामबाड़ा तक दस हजार से ज्यादा लोग शुरुआती सूचना आने पर काल की गाल में समा गए । हालांकि आज तक मरने वालों का आंकड़ा पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है जबकि आज भी कई नर कंकाल समय-समय पर प्रशासन और एसडीआरएफ को खोजबीन के दौरान मिलते रहते हैं. ऐसे में केदारनाथ त्रासदी में कितने हजार लोग धरती की गोद मे समा गए यह कहना मुश्किल हैं।

उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी 2013 आपदा में मरने वालों का आंकड़ा

कुल लापता 3886
कुल प्राप्त नर कंकाल 699

वर्ष 2013-- 545 नर कंकाल बरामद
वर्ष 2014 - 63
वर्ष 2015 - 3
वर्ष 2016 -60
वर्ष 2017 - 7
वर्ष 2018 - 21

कुल 699

पुलिस द्वारा अब तक आपदा में बरामद नर कंकालों के कुल 908 सैंपल डीएनए परीक्षण के लिए भेजे गए हैं जिसमें परिजनों के भी सैंपल शामिल हैं। अभी तक 33 डीएनए सैंपल का परिजनों के साथ मिलान हो चुका है। हालांकि केदारनाथ त्रासदी में मरने वालों का आंकड़ा पुलिस के आंकड़े से कहीं अधिक ज्यादा है।

केदारनाथ त्रासदी में अलग अलग दर्दनाक तरीके से अनगिनत लोगों की मौत हुई:

16 जून की शाम लगभग 6:30 बजे केदारनाथ त्रासदी में देश-विदेश के हजारों लोग कई तरह से दर्दनाक रूप में काल के गाल में समाये इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। सबसे ज्यादा लोग घाटी के ऊपर से आये भीषण बालू-कंक्रीट वाले बाढ़ के चपेट में आकर धरती में समाते गए, इसके अलावा कुछ लोग प्रलय काली आपदा से इतने हताहत हुए कि वह लोग अनजान पहाड़ियों में चले गए जहां उनको किसी भी तरह से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला जिसके चलते वह दिन रात वहाँ हाड़ कंपकंपा देने वाली ठंड और ख़ौफ़ तड़प तड़प कर रात के अंधेरे में बच्चें बूढ़े जवान सब लोग पहाड़ियों से गिरते हुए मरते रहे। यह तबाही एक दिन नहीं बल्कि कई दिनों तक चलती रही जिसके चलते पूरे राज्य के पहाड़ियों में तबाही का तांडव चलता रहा। केदारनाथ सहित गढ़वाल के कई इलाके पूरी तरह से मुख्यधारा से टूट गए। इस आपदा में निरंतर 3 दिनों तक आसमान से इतना पानी बरसा जो शायद ही पहले कभी नहीं देखा गया था। आसमान से आफ़त भरी बारिश से 16 जून कि शुभा भैरवनाथ मंदिर जाने वाला पहाड़ी टूटने लगा,इसके बाद तो जगह-जगह ऐसा भूस्खलन होने लगा जिससे कहीं से भी बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया।


हालत बद से बदतर हो गए लोग जाता हंसते हुए अपनी जान मजबूरन जान गवाते रहे:


लगातार मूसलाधार बारिश के कारण केदारनाथ घाटी से लेकर नीचे रामबाड़ा गौरीकुंड सोनप्रयाग चंद्रा पुरी अगस्त मुनि व श्रीनगर जैसे गेस्ट हाउस और होटलों के अंदर लोग रुके हुए थे ऐसे में किसी का भी बाहर निकलना बिल्कुल नामुमकिन था केदारनाथ में पहली बार 16 जून की शाम 6:30 बजे लगभग 20 फीट की ऐसी कीचड़ बालू भरी बाढ़ आई जिसमें इंसानी जिंदगी से लेकर सब कुछ दफन हो गया अगर कुछ बचा था वह था केदारनाथ का मंदिर जिसके आगे विशाल पत्थर का बोल्डर आकर सामने रुक गया जिसने बाढ़ को मंदिर के टकराने से रोक दिया। हालांकि मंदिर के इर्द-गिर्द दर्जनों दुकाने गेस्ट हाउस सराय जैसे सभी कुछ बाढ़ की गोद में समा गया। वही केदारनाथ मंदिर के अंदर मुख्य स्थल पर कुछेक लोगों ने शरण लेकर किसी तरह अपनी जान बचाई।



Conclusion:मंदाकिनी और सरस्वती नदी गदर मचाने वाली ऑफ आन से कुछ तबाह करते हुए रामबाड़ा जैसे बड़े जगह का नामोनिशान मिटा गई:


16 जून की काली रात ऐसी भयानक गुजरी की जिसमें केदारनाथ धाम से लेकर श्रीनगर तक अनगिनत भवन होटल रेस्त्रां सर छुपाने की हर जगह पानी में डूबती रही मोबाइल के नेटवर्क बिजली पानी जैसी सारी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी थी। केदारघाटी में मंदाकिनी नदीने ऐसा गदर मचा है कि वह अपने साथ सब कुछ निकलती रही केदारनाथ मंदिर को छोड़कर सब कुछ खत्म हो चुका था रामबाड़ा नाम का रियासी इलाक़ा जहाँ होटल गेस्टहाउस जैसे भवन थे उसका नामोनिशान घाटी के नक्शे से पूरी तरह से मिट चुका था। खौफनाक त्रासदी के चलते लोग जहां-तहां भागते रहे और मौत की कोख में समाते रहे। मंदाकिनी नदी के साथ सरस्वती नदी की धारावी इस तरह के उफान में थी कि वह भी अनगिनत लोगों को भाकर अपने साथ ले गई।

त्रासदी के दिन घोड़ा खच्चर वालों की हड़ताल को खत्म करने गए एसडीएम और सीओ ने मंदिर में स्थित नंदी बैल मूर्ति के सहारे बचाई अपनी जान

इस विनाशकारी त्रासदी के दिन केदारघाटी में चलने वाले घोड़े खच्चर हड़ताल पर चल रहे थे ऐसे में हड़ताल को खत्म करने की दिशा में वार्ता करने उखीमठ के एसडीएम राकेश तिवारी और पुलिस सीओ आर पी डिमरी उस दिन केदारनाथ मंदिर पर ही थे गनीमत रही कि यह लोग तबाही के दौरान मंदिर के सामने नंदी की मूर्ति पर चढ़े और मुख्य द्वार पर लगी विशाल घंटी को पकड़
कर अपनी जान बचाने में सफल रहे। केदारनाथ से लेकर रामबाड़ा फटा गौरीकुंड सहित कई जगह में चारों ओर लाशें ही लाशें बिखरी हुई थी और अनगिनत लोग काल के गाल में धरती और नदियों में समा गए थे।

विश्व में इतनी ऊंचाई में शायद ही कभी इतनी बड़ी त्रासदी आई हो, जिसमें अब तक सबसे बड़ा एयर रेस्क्यू हुआ: आईजी एसडीआरएफ

2013 में आयी केदारनाथ त्रासदी के दौरान उत्तराखंड पुलिस टीम की तरफ से राहत बचाव कार्य में फोर्स का नेतृत्व करने वाले एसडीआरएफ आईजी संजय गुंज्याल ने अपने आंखों देखे हाल को बयां करते हुए बताया कि शायद ही दुनिया में इतनी ऊंचाई वाले स्थान में इस तरह की तबाही मची हो और साथ ही भारी संख्या में लोगों इतनी ऊंचाई वाले स्थान से खतरों को मात देते हुए एसक्यू किया गया। त्रासदी के दौरान बद्रीनाथ यमुनोत्री गंगोत्री और सबसे अधिक केदारनाथ में फंसे डेढ़ से दो लाख लोगों को एयर रेस्क्यू किया गया। हालांकि त्रासदी के बाद सभी तरह के मार्ग और बेहद खराब मौसम विषम परिस्थितियों के चलते आपदा के 2 दिन तक घाटी में हेलीकॉप्टर द्वारा जाना भी संभव नहीं था। ऐसे में केदारनाथ सहित तमाम पर्वतीय इलाकों में राहत बचाव कार्य बहुत ही विषम परिस्थितियों में चुनौतीपूर्ण तरीके से किया गया।

बाइट संजय गुंज्याल आईजी एसडीआरएफ उत्तराखंड

केदारनाथ त्रासदी के दौरान कई पुलिसकर्मी भी आपदा के भेट चढ गए:

भारतीय सेना ने रेस्क्यू में सबसे बड़ी भूमिका निभाई:

आईजी गुंज्याल के मुताबिक केदारनाथ धाम सहित अन्य स्थलों में ड्यूटी में तैनात रहने वाले कई पुलिसकर्मी भी इस त्रासदी में अपनी जिंदगी को बलिदान दे चुके हैं। इसके साथ उन दिनों रुद्रप्रयाग जिले में तैनात अधिकारियों और कर्मियों ने उस दौरान रेस्क्यू में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। केदारनाथ त्रासदी इतनी बड़ी थी कि सब कुछ मुख्यधारा से टूट चुका था इसके बावजूद भारतीय सेना, एयरफोर्स ,आईटीबीपी एनडीआरएफ व उत्तराखंड पुलिस ने फौरी तौर सीमित संसाधनों के बीच अधिक से अधिक लोगों की जानें बचाने का काम।

बाइट -संजय गुंज्याल ,आईजी, एसडीआरएफ उत्तराखंड


2013 केदारनाथ आपदा के बाद एसडीआरएफ का हुआ गठन

केदारनाथ में आयी विनाशकारी त्रासदी के बाद जिस तरह से पहाड़ों में अनगिनत लोगों की जिंदगी मौत के काल में समा गई उसको देखते हुए उत्तराखंड सरकार द्वारा उस आपदा के बाद राहत बचाव कार्य के लिए उत्तराखंड पुलिस में एसडीआरएफ फोर्स का गठन किया गया वर्तमान में एसडीआरएफ की 4 कंपनियां एक बटालियन के रूप उत्तराखंड में है जो उसके बाद कई बार प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ अन्य आपातकाल घटनाओं में संकटमोचक बनकर जिंदगी बचाने का काम कर रहे हैं।

बाइट -संजय गुंज्याल ,आईजी, एसडीआरएफ उत्तराखंड



pls note_input_महोदय, यह किरण कांत शर्मा का मोजो मोबाइल हैं,जिसे मैं (परमजीत सिंह )इसे इस्तेमाल कर रहा हूं। मेरा मोजो मोबाइल खराब हो गया हैं, ऐसे मेरी स्टोरी इस मोजो से भेजी जा रही हैं.. ID 7200628
Last Updated : Jun 16, 2019, 10:15 AM IST
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