नैनीताल: श्वेता मासीवाल, एक ऐसा नाम जो हजारों लोगों के दिलों में बसता है. उत्तराखंड की ये बेटी सालों से स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही है. श्वेता मासीवाल 2011 से लगातार उत्तराखंड में बदहाल हो रही शिक्षा के स्तर को सुधारने में लगी हैं. श्वेता हर साल 25 दिसंबर को अपने भाई की याद में उन क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों को गोद लेती हैं, जिन गांवों की जनसंख्या 100 से कम होती है. ऐसे स्कूलों का कायाकल्प करने का काम करती हैं श्वेता और उनकी टीम.
स्कूलों में ला रही हैं सुधार
श्वेता स्कूल के गरीब छात्र-छात्राओं को निशुल्क किताबें, यूनिफॉर्म, स्कूल का स्ट्रक्चर सही करने समेत शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने का काम करती हैं. एक साल के लिए वे हर चीज जैसे फर्नीचर, स्टेशनरी, किताबें और बच्चों के लिए यूनिफॉर्म, पानी फिल्टर, खेल किट, शौचालय की मरम्मत और अन्य व्यवस्थाएं प्रदान करती हैं. श्वेता बताती हैं कि उनके भाई एक समाजसेवी थे, जो निस्वार्थ भाव से समाज सेवा में लगे रहते थे.
2011 में हुई 'वत्सल' फाउंडेशन की शुरुआत
2011 में एक दुर्घटना के दौरान उनके भाई संदीप की मौत हो गई. उस दुर्घटना बाद श्वेता ने अपने भाई के अधूरे काम को पूरा करने का मकसद बना लिया. श्वेता के द्वारा एक सेल्फ फाइनेंस संगठन वत्सल की शुरुआत की गई. श्वेता ने 2018 में अपनी मां को भी खो दिया, जिसके बाद वो काफी लंबे समय तक मानसिक रूप से परेशान रहीं.
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लेकिन एक दिन अचानक उनके मन में भाई के अधूरे काम को पूरा करने का ख्याल आया. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. वे आज उत्तराखण्ड में बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, नशे की रोकथाम के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं.
श्वेता एक सामान्य परिवार से आती हैं. उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे, जबकि उनके परिवार में कई प्रशासनिक अधिकारी भी रह चुके हैं. उनके पिता भी समाज सेवा से जुड़े थे. वे भी जरूतमंदों को नियमित रूप से भोजन उपलब्ध कराते थे. कई बार नशे पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में उन्होंने जनहित याचिका तक दायर की.
जुलाई 2011 में आयोजित किया था पहला मेडिकल कैंप
श्वेता ने ईटीवी भारत से टेलीफोनिक बातचीत में बताया कि उन्होंने अपने इकलौते भाई को अपने फार्महाउस के ठीक बाहर हुई एक कार दुर्घटना में खो दिया था. अपने भाई को खोने के पांच महीने बाद जुलाई 2011 में उनकी टीम ने एक ऑपरेशन शुरू किया. जहां उनके भाई चिकित्सा शिविर शुरू करना चाहते थे, वहां बाढ़ आ गई. उनकी टीम ने मरीजों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए हाथियों का इस्तेमाल किया.
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उनके यहां हर तरफ से मदद के लिए लोग संपर्क करते हैं. विशेषकर उनके गृह जनपद नैनीताल, राममगर के लोग उनसे आए दिन मदद मांगते हैं. एक साल के अंदर उन्होंने जिले के कई क्षेत्रों में 12 से अधिक मेडिकल कैंप लगाए. उनके इस कैंप से कई लोगों को फायदा हुआ.
स्थानीय नेताओं के विरोध का करना पड़ा सामना
श्वेता बताती हैं कि जैसे-जैसे उनका काम बढ़ने लगा तो स्थानीय नेताओं ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया, क्योंकि स्थानीय नेता सोचते थे कि वो विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती हैं. विरोध के बाद भी वो निरंतर अपने काम की तरफ बढ़ती रहीं.
श्वेता बताती हैं कि वो लोगों की मदद करने के लिए काम कर रही हैं. उनकी टीम इस विषम परिस्थिति में जरूरतमंद लोगों को राशन, दवाइयां, ऑक्सीमीटर और ऑक्सीजन सिलेंडर वितरित कर रही हैं. इतना ही नहीं वह लोगों के लिए एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों से टेलीमेडिसिन के माध्यम से परामर्श की व्यवस्था भी करवा रही हैं.