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सेना दिवस: अधर में है उत्तराखंड का सैनिक धाम, कब मिलेगा शहीदों को सम्मान ?

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Published : Jan 15, 2021, 2:07 PM IST

आज सेना दिवस है. सरहद पर अपनी जान न्यौछावर करने वाले उत्तराखंड से लालों के लिए घोषणा के बावजूद शौर्य स्मारक नहीं बनाया जा सका है. पीएम मोदी की घोषणा के बावजूद आज तक देवभूमि में सैन्य धाम नहीं बन पाया है.

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अधर में लटका उत्तराखंड का सैनिक धाम

देहरादून: आज पूरा देश सेना दिवस मना रहा है. देश की सीमा पर अपने अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान को लेकर सैनिक बाहुल्य राज्य उत्तराखंड का इतिहास देश की आजादी से भी पुराना है. लेकिन सरकारों द्वारा उत्तराखंड में पांचवें धाम के रूप में सैनिक धाम के नाम पर अभी भी कोई शौर्य स्मारक धरातल पर देखने को नहीं मिला है.

क्यों मनाया जाता है 'आर्मी डे'

15 जनवरी को आर्मी डे मनाने के पीछे दो बड़े कारण हैं. पहला ये कि 15 जनवरी 1949 के दिन से ही भारतीय सेना पूरी तरह ब्रिटिश थल सेना से मुक्त हुई थी. दूसरी बात इसी दिन जनरल केएम करियप्पा को भारतीय थल सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया था. इस तरह लेफ्टिनेंट करियप्पा लोकतांत्रिक भारत के पहले सेना प्रमुख बने थे. केएम करियप्पा 'किप्पर' नाम से काफी मशहूर रहे.

सैन्य बाहुल्य उत्तराखंड का इतिहास

कहा जाता है कि उत्तराखंड में औसतन हर एक परिवार से एक व्यक्ति सेना में है, जो अपने देश की सेवा कर रहा है. इसी के चलते उत्तराखंड को सैनिक बाहुल्य राज्य भी कहा जाता है. उत्तराखंड का यह इतिहास आज का नहीं, बल्कि आजादी से पुराना है. पूर्व सैनिक नंदन सिंह बुटोला बताते हैं कि देवभूमि के जवानों में अदम्य साहस को देखते हुए उत्तराखंड में 200 किलोमीटर के भीतर रानीखेत ओर लैंसडाउन में दो छावनियां ब्रिटिश सेना द्वारा स्थापित की गईं. वहीं, राज्य की यह परंपरा आजादी के बाद भी लगातार जारी है. यही वजह है कि 1999 में हुए कारगिल युद्ध में 526 जवानों में से 75 जवान उत्तराखंड के शहीद हुए थे.

शौर्य स्मारक बनाने की कोरी घोषणा

उत्तराखंड के इस शौर्य और बलिदान को लेकर राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा समय-समय पर कई घोषणाएं की गईं. इनमें से सबसे बड़ी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी. उत्तराखंड में चार धाम के साथ-साथ पांचवें धाम के रूप में सैनिक धाम बनाने घोषणा की. उन्होंने कहा था कि उत्तराखंड के वीर शहीदों के इस बलिदान को नजर में रखते हुए एक भव्य शौर्य स्मारक का निर्माण किया जाएगा. लेकिन यह घोषणा केवल कागजी ही साबित हुई है. धरातल पर आज भी कोई शौर्य स्मारक नहीं बन पाया है.

ये भी पढ़ें: किसानों के समर्थन में कांग्रेस का राजभवन कूच, केंद्र सरकार को बताया किसान विरोधी

पूर्व सैनिकों की सरकार से शिकायत

पूर्व सैनिक ऑर्डिनरी कैप्टन नंदन सिंह बुटोला ने बताया कि सरकारों द्वारा समय-समय पर केवल वोट बैंक के लिए उत्तराखंड के सैनिक बाहुल्य होने के चलते सैनिक धाम बनाने की बात की गई. लेकिन इस दिशा में धरातल पर कोई काम नहीं हो पाया है. उन्होंने कहा कि सरकार को जल्द से जल्द उत्तराखंड की जन भावनाओं के अनुरूप एक भव्य शौर्य स्मारक बनाना होगा.

अभी तक नहीं बना शौर्य स्मारक

उत्तराखंड में गढ़ी कैंट चीड़ बाग में एक शौर्य स्मारक बनाने की कवायद कांग्रेस सरकार में शुरू जरूर की गई, लेकिन सरकार बदलते ही यह योजना भी धराशायी हो गई. कांग्रेस प्रवक्ता आरती रतूड़ी ने बताया कि कांग्रेस सरकार में उत्तराखंड में भव्य शौर्य स्मारक बनाने का प्रयास शुरू किया गया, लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद ना तो उत्तराखंड को शौर्य स्मारक मिल पाया और ना ही इस दिशा में कुछ आगे काम हो पाया.

जल्द बनेगा शौर्य स्मारक: मदन कौशिक

वहीं, शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना है कि राज्य सरकार शौर्य स्मारक को लेकर लगातार गंभीर है. इस दिशा में प्रयासरत है. जल्द ही शौर्य स्मारक के लिए जगह का चिन्हीकरण किया जाएगा. उत्तराखंड को एक भव्य शौर्य स्मारक दिया जाएगा. हालांकि यह कब होगा, यह कोई नहीं जानता है.

देहरादून: आज पूरा देश सेना दिवस मना रहा है. देश की सीमा पर अपने अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान को लेकर सैनिक बाहुल्य राज्य उत्तराखंड का इतिहास देश की आजादी से भी पुराना है. लेकिन सरकारों द्वारा उत्तराखंड में पांचवें धाम के रूप में सैनिक धाम के नाम पर अभी भी कोई शौर्य स्मारक धरातल पर देखने को नहीं मिला है.

क्यों मनाया जाता है 'आर्मी डे'

15 जनवरी को आर्मी डे मनाने के पीछे दो बड़े कारण हैं. पहला ये कि 15 जनवरी 1949 के दिन से ही भारतीय सेना पूरी तरह ब्रिटिश थल सेना से मुक्त हुई थी. दूसरी बात इसी दिन जनरल केएम करियप्पा को भारतीय थल सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया था. इस तरह लेफ्टिनेंट करियप्पा लोकतांत्रिक भारत के पहले सेना प्रमुख बने थे. केएम करियप्पा 'किप्पर' नाम से काफी मशहूर रहे.

सैन्य बाहुल्य उत्तराखंड का इतिहास

कहा जाता है कि उत्तराखंड में औसतन हर एक परिवार से एक व्यक्ति सेना में है, जो अपने देश की सेवा कर रहा है. इसी के चलते उत्तराखंड को सैनिक बाहुल्य राज्य भी कहा जाता है. उत्तराखंड का यह इतिहास आज का नहीं, बल्कि आजादी से पुराना है. पूर्व सैनिक नंदन सिंह बुटोला बताते हैं कि देवभूमि के जवानों में अदम्य साहस को देखते हुए उत्तराखंड में 200 किलोमीटर के भीतर रानीखेत ओर लैंसडाउन में दो छावनियां ब्रिटिश सेना द्वारा स्थापित की गईं. वहीं, राज्य की यह परंपरा आजादी के बाद भी लगातार जारी है. यही वजह है कि 1999 में हुए कारगिल युद्ध में 526 जवानों में से 75 जवान उत्तराखंड के शहीद हुए थे.

शौर्य स्मारक बनाने की कोरी घोषणा

उत्तराखंड के इस शौर्य और बलिदान को लेकर राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा समय-समय पर कई घोषणाएं की गईं. इनमें से सबसे बड़ी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी. उत्तराखंड में चार धाम के साथ-साथ पांचवें धाम के रूप में सैनिक धाम बनाने घोषणा की. उन्होंने कहा था कि उत्तराखंड के वीर शहीदों के इस बलिदान को नजर में रखते हुए एक भव्य शौर्य स्मारक का निर्माण किया जाएगा. लेकिन यह घोषणा केवल कागजी ही साबित हुई है. धरातल पर आज भी कोई शौर्य स्मारक नहीं बन पाया है.

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पूर्व सैनिकों की सरकार से शिकायत

पूर्व सैनिक ऑर्डिनरी कैप्टन नंदन सिंह बुटोला ने बताया कि सरकारों द्वारा समय-समय पर केवल वोट बैंक के लिए उत्तराखंड के सैनिक बाहुल्य होने के चलते सैनिक धाम बनाने की बात की गई. लेकिन इस दिशा में धरातल पर कोई काम नहीं हो पाया है. उन्होंने कहा कि सरकार को जल्द से जल्द उत्तराखंड की जन भावनाओं के अनुरूप एक भव्य शौर्य स्मारक बनाना होगा.

अभी तक नहीं बना शौर्य स्मारक

उत्तराखंड में गढ़ी कैंट चीड़ बाग में एक शौर्य स्मारक बनाने की कवायद कांग्रेस सरकार में शुरू जरूर की गई, लेकिन सरकार बदलते ही यह योजना भी धराशायी हो गई. कांग्रेस प्रवक्ता आरती रतूड़ी ने बताया कि कांग्रेस सरकार में उत्तराखंड में भव्य शौर्य स्मारक बनाने का प्रयास शुरू किया गया, लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद ना तो उत्तराखंड को शौर्य स्मारक मिल पाया और ना ही इस दिशा में कुछ आगे काम हो पाया.

जल्द बनेगा शौर्य स्मारक: मदन कौशिक

वहीं, शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना है कि राज्य सरकार शौर्य स्मारक को लेकर लगातार गंभीर है. इस दिशा में प्रयासरत है. जल्द ही शौर्य स्मारक के लिए जगह का चिन्हीकरण किया जाएगा. उत्तराखंड को एक भव्य शौर्य स्मारक दिया जाएगा. हालांकि यह कब होगा, यह कोई नहीं जानता है.

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