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जम्मू कश्मीर में सत्ता की चाबी किसके हाथ लगेगी, सभी पार्टियां कर रही जीत का दावा! - Jammu Kashmir Assembly Election

Jammu Kashmir Assembly Election 2024: जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान में बुधवार को मतदाताओं में काफी जोश दिखा. वहीं, दूसरी तरफ यहां की तमाम छोटी-बड़ी पार्टियां सत्ता में आने का दावा ठोक रही है. निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका इसमें कितनी अहम रहने वाली है....ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट.

JAMMU KASHMIR ASSEMBLY ELECTION
जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव (ETV Bharat and ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 25, 2024, 8:46 PM IST

उधमपुर: घाटी के चुनाव में मुख्य चार पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ-साथ छोटी पार्टियां भी सत्ता में आने का दावा जनता को करती नजर आ रहीं है.आखिर क्या है इनके विश्वास से लबरेज बयानों का राज. कहीं ना कहीं इस बार के जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में छोटी पार्टियां और निर्दलीय भी अहम भूमिका निभा रहे हैं. सीटें नहीं भी मिले तो भी हवा का रुख बदलने या बड़ी संख्या में वोट काटने में संभव होते नजर आ रहे हैं.

जहां, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस दोनों मिलकर भाजपा के खिलाफ आरोपों की बौछार लगा रहे है. विपक्ष भाजपा के नेताओं को पर्यटक बता रही है. वही ये गठबंधन पीडीपी को लेकर बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं दिख रहा है. इसी तरह पीडीपी जहां केंद्र की नीतियों की आलोचना तो जरूर कर रही है मगर भाजपा को लेकर उसके नेता बहुत ज्यादा आक्रामकता या भड़काऊ बयान देने से बच रहे हैं.

जम्मू कश्मीर चुनाव पर क्या कहती है जनता, ईटीवी भारत की रिपोर्ट (ETV Bharat)

वहीं भाजपा के नेताओं के भाषण अगर बारीकी से सुनी जाए तो बड़े से बड़े नेताओं के निशाने पर मात्र कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन ही है. पीडीपी की आलोचना करना भी ज्यादातर भाजपा नेताओं के भाषण में नहीं शामिल किया जा रहा है. बहरहाल पीडीपी ने घोषणाओं के साथ-साथ कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का भी वादा अपने मैनिफेस्टो में किया है, जो हमेशा से भाजपा का एजेंडा माना जाता रहा है और केंद्र इस योजना पर काम भी कर रही है.

हालांकि 10 साल पहले जो चुनाव हुआ था उसमे जम्मू से सबसे ज्यादा 25 सीटें पाने वाली पार्टी बीजेपी थी और कश्मीर से पीडीपी की झोली में सबसे ज्यादा सीटें आईं थीं. अभी तक जम्मू कश्मीर में 9 बार चुनाव हो चुके हैं जिनमे 6 बार सरकार बनाने के लिए जनता ने पीडीपी को और 3 बार नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को चुना. मगर इस बार भाजपा के चुनावी कैंपेन और रैलियां जिस तरह जम्मू में नजर आ रही है वैसी कश्मीर में नहीं दिख रही है. इन तमाम परिस्थितियों को देखते हुए इस बार सरकार किसकी बनेगी, यह कश्मीर के युवा वोटर्स पर काफी हद तक निर्भर करेगा. जब ईटीवी भारत ने वहां के युवाओं से ये पूछा की चुनावी मुद्दा क्या है तो उधमपुर के कुछ युवकों ने कुछ ऐसा जवाब दिया.

मतलब साफ है कि, इस बार जम्मू की सीटें और कश्मीर की सीटों का बंटवारा काफी हद तक मात्र तुष्टिकरण नहीं बल्कि बुनियादी मुद्दों पर भी आधारित होगा. अब कोई भी पार्टी कश्मीर की जनता को मात्र सब्जबाग दिखाकर बरगला नहीं सकती है. वोटर्स के टर्नआउट दोनों ही फेस में देखकर ऐसा लगता है कि, जिस कश्मीर में कुछ साल पहले कई बूथों पर मतपेटी तक नही खुल पाती थीं, ऐसे मतदान केंद्रों पर भी 48 से 55 और उससे भी ज्यादा मतदान हुए, जो जागरूक मतदाताओं का परिचायक है. ऐसे में जिसकी भी सरकार बनती है ,उसे जनता के आगे खरा उतरना होगा.

ये भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में शाम 5 बजे तक 54 फीसदी हुई वोटिंग

उधमपुर: घाटी के चुनाव में मुख्य चार पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ-साथ छोटी पार्टियां भी सत्ता में आने का दावा जनता को करती नजर आ रहीं है.आखिर क्या है इनके विश्वास से लबरेज बयानों का राज. कहीं ना कहीं इस बार के जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में छोटी पार्टियां और निर्दलीय भी अहम भूमिका निभा रहे हैं. सीटें नहीं भी मिले तो भी हवा का रुख बदलने या बड़ी संख्या में वोट काटने में संभव होते नजर आ रहे हैं.

जहां, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस दोनों मिलकर भाजपा के खिलाफ आरोपों की बौछार लगा रहे है. विपक्ष भाजपा के नेताओं को पर्यटक बता रही है. वही ये गठबंधन पीडीपी को लेकर बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं दिख रहा है. इसी तरह पीडीपी जहां केंद्र की नीतियों की आलोचना तो जरूर कर रही है मगर भाजपा को लेकर उसके नेता बहुत ज्यादा आक्रामकता या भड़काऊ बयान देने से बच रहे हैं.

जम्मू कश्मीर चुनाव पर क्या कहती है जनता, ईटीवी भारत की रिपोर्ट (ETV Bharat)

वहीं भाजपा के नेताओं के भाषण अगर बारीकी से सुनी जाए तो बड़े से बड़े नेताओं के निशाने पर मात्र कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन ही है. पीडीपी की आलोचना करना भी ज्यादातर भाजपा नेताओं के भाषण में नहीं शामिल किया जा रहा है. बहरहाल पीडीपी ने घोषणाओं के साथ-साथ कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का भी वादा अपने मैनिफेस्टो में किया है, जो हमेशा से भाजपा का एजेंडा माना जाता रहा है और केंद्र इस योजना पर काम भी कर रही है.

हालांकि 10 साल पहले जो चुनाव हुआ था उसमे जम्मू से सबसे ज्यादा 25 सीटें पाने वाली पार्टी बीजेपी थी और कश्मीर से पीडीपी की झोली में सबसे ज्यादा सीटें आईं थीं. अभी तक जम्मू कश्मीर में 9 बार चुनाव हो चुके हैं जिनमे 6 बार सरकार बनाने के लिए जनता ने पीडीपी को और 3 बार नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को चुना. मगर इस बार भाजपा के चुनावी कैंपेन और रैलियां जिस तरह जम्मू में नजर आ रही है वैसी कश्मीर में नहीं दिख रही है. इन तमाम परिस्थितियों को देखते हुए इस बार सरकार किसकी बनेगी, यह कश्मीर के युवा वोटर्स पर काफी हद तक निर्भर करेगा. जब ईटीवी भारत ने वहां के युवाओं से ये पूछा की चुनावी मुद्दा क्या है तो उधमपुर के कुछ युवकों ने कुछ ऐसा जवाब दिया.

मतलब साफ है कि, इस बार जम्मू की सीटें और कश्मीर की सीटों का बंटवारा काफी हद तक मात्र तुष्टिकरण नहीं बल्कि बुनियादी मुद्दों पर भी आधारित होगा. अब कोई भी पार्टी कश्मीर की जनता को मात्र सब्जबाग दिखाकर बरगला नहीं सकती है. वोटर्स के टर्नआउट दोनों ही फेस में देखकर ऐसा लगता है कि, जिस कश्मीर में कुछ साल पहले कई बूथों पर मतपेटी तक नही खुल पाती थीं, ऐसे मतदान केंद्रों पर भी 48 से 55 और उससे भी ज्यादा मतदान हुए, जो जागरूक मतदाताओं का परिचायक है. ऐसे में जिसकी भी सरकार बनती है ,उसे जनता के आगे खरा उतरना होगा.

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