पैनिक अटैक ऐसा साइकेट्री है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति डर हो जाता है. पैनिक अटैक डर और चिंता की एक इंटेंस फीलिंग है. यह अक्सर तब होता है जब लोग अपने जीवन में होने वाली किसी घटना को लेकर चिंतित होते हैं या किसी कठिन या तनावपूर्ण स्थिति का सामना करते हैं. पैनिक अटैक बहुत भयानक लग सकता है, खासकर बच्चों के लिए, लेकिन आमतौर पर इलाज से इसे रोका जा सकता है. यह जानना महत्वपूर्ण है कि पैनिक अटैक से कोई नुकसान नहीं होगा और भले ही अटैक के दौरान ऐसा महसूस न हो, लेकिन यह एहसास खत्म हो जाएगा.
पैनिक अटैक अक्सर किशोरावस्था के दौरान शुरू होते हैं, हालांकि ये बचपन में भी शुरू हो सकते हैं. अटैक से गंभीर चिंता हो सकती है, साथ ही बच्चे के मूड या कामकाज के अन्य हिस्सों पर भी असर पड़ सकता है.
पैनिक होने पर जो लक्षण आमतौर पर नजर आते हैं जो इस प्रकार हैं...
- दिल का तेजी से धड़कना तथा सांसे तेज हो जाना
- हद से ज्यादा और लगातार पसीना आना
- सीने में दर्द और असहजता महसूस करना
- शरीर में थरथराहट या कंपन होना
- शरीर में ठिठुरन महसूस होना
- पेट खराब होना और मितली आना
- चक्कर आना
- सांस लेने में समस्या होना
- सुन्न पड़ जाना
- मृत्यु का डर महसूस होना
- सच्चाई और वर्तमान परिस्थिति को स्वीकार ना कर पाना
- श्वसन मार्ग में अवरोध महसूस करना
- फोबिया (भय): किसी भी चीज या परिस्थिति को लेकर डर यानी उसका फोबिया होने पर लोगों को घबड़ाहट के दौरे पड़ सकते हैं.
- परिस्तिथि जन्य (situational): कोई महत्वपूर्ण व्यक्तिगत क्षति या किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से दूर हो जाना तथा रोग या दुर्घटना जैसी विशेष परिस्तिथियतां पैनिक के लिए ट्रिगर के रूप में कार्य कर सकती हैं.
- विचारों में दृढ़ता व आत्मविश्वास की कमी – ऐसे व्यक्ति जिनमें आत्मविश्वास में कमी हो आमतौर पर घबड़ाहट के दौरों का शिकार बन सकते हैं.
- आनुवंशिकता: घबराहट संबंधी विकारो के लिए कई बार वंश-परंपरा को भी जिम्मेदार माना जाता है. यदि परिवार में इसका इतिहास है तो नई पीढ़ी में इस अवस्था के लेकर आशंका बढ़ जाती है.
- बायोलॉजिकल कारण: ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर, किसी भयानक परिस्थितियों के कारण उत्पन्न तनाव , हाइपोग्लाइसेमिया, हाइपरथायराइडिज्म, विल्सन्स डिजीज, मिट्रल वाल्व प्रोलैप्स, फियोक्रोमोसाइटोमा और पोषण में कमी के कारण भी यह समस्या हो सकती है.
- दवाइयां :घबराहट के दौरे कभी-कभी दवाइयों के दुष्प्रभाव से भी हो सकते है.
- हाइपरवेंटिलेशन सिंड्रोम : हाइपरवेंटिलेशन सिंड्रोम श्वसन संबंधी क्षारमयता और हाइपोकैप्निया का कारण बन सकता है. इस सिंड्रोम में अक्सर प्रमुखता से मुंह से सांस लेना भी शामिल होता है. यह तेजी से दिल का धड़कना, चक्कर आना और सिर में हल्कापन महसूस होना सहित कई तरह के लक्षणों का कारण बनता है जो घबड़ाहट के दौरों को बढ़ा सकता है.
कैसे बचे पैनिक अटैक से
नियमित व्यायाम करें
नियमित रूप से व्यायाम करें क्योंकि व्यायाम से ना सिर्फ तनाव और बेचैनी से राहत मिलती है बल्कि दिल और दिमाग दोनों को शांति महसूस होती है. जिसके चलते पैनिक अटैक होने की आशंका कम हो जाती है.
गहरी सांसे लेने का अभ्यास करें
यदि आप पैनिक महसूस कर रहे हैं तो ऐसे में गहरी सांसे लेना फायदेमंद हो सकता है. विपरीत परिस्थितियों में नाक से धीरे-धीरे गहरी सांस को लेना और ना तथा मुंह दोनों से सांस को छोड़ने से बेचैनी तथा अन्य मानसिक अवस्थाओं में राहत मिलती है. आप नियमित तौर पर प्राणायाम को भी अपने व्यायाम का हिस्सा बना सकते हैं.
आपका आहार
बहुत जरूरी है कि अपने रोजमर्रा के खान-पान पर ध्यान दिया जाए. शराब तथा तंबाकू के अलावा ऐसा भोजन जिसमें कैफीन, रिफाइंड शुगर तथा मोनोसोडियम ग्लूटामैट यानी एमएसजी जैसे तत्व शामिल हों उन से परहेज करना चाहिए. इस तरह का आहार घबराहट को बढ़ा सकता है.
पर्याप्त मात्रा में नींद जरूरी है
शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि भरपूर मात्रा में नींद ली जाए. चिकित्सक बताते हैं कि अच्छी गुणवत्ता वाली नींद दिमाग और शरीर दोनों को तनाव मुक्त करती है जिससे पैनिक अटैक आने की आशंका कम हो जाती है.