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उत्तराखंड: स्टाफ और मेडिकल सुविधाओं से जूझ रहे अस्पताल, कैसे पाएंगे कोरोना से 'पार' - सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी

उत्तराखंड के सरकारी अस्पताल डॉक्टरों और कर्मचारियों कमी का खामाजिया मरीजों और उनके तीमारदारों को भुगतान पड़ता है. डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है.

सरकारी दावों की हकीकत
सरकारी दावों की हकीकत
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Published : Sep 2, 2020, 8:22 PM IST

Updated : Sep 14, 2020, 5:41 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड को बने हुए 20 साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है, लेकिन आजतक राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का वो प्रदेश नहीं बना पाया, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना की थी. आज प्रदेश के आम लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. इसी में से एक है स्वास्थ्य सुविधा, जिसको बेहतर बनाने के सिर्फ सरकार दावे ही करती आई है, लेकिन हकीकत में किया कुछ नहीं.

प्रदेश के सरकारी अस्पताल जहां जरूरी उपकरणों और स्वास्थ्य सुविधाओं से तो पहले ही महरूम हैं. वहीं, इन अस्पतालों में डॉक्टरों से लेकर फोर्थ क्लास तक के कर्मचारियों की भी कमी है. यानी सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर आजतक सिर्फ दावे ही किए हैं. ऐसे में सरकार के इन दावों का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है.

पढ़ें- पिथौरागढ़: 17,000 फीट की ऊंचाई पर कोरोना की दस्तक, सेना के 28 जवान पॉजिटिव

उत्तराखंड में सरकारी अस्पतालों पर प्रदेश की एक बड़ी आबादी निर्भर रहती है. प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज काफी महंगा होने के कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को सरकारी अस्पतालों का ही सहारा है, लेकिन इन अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था देखकर आम लोगों की उम्मीदें जवाब दे जाती है. सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है.

कैसे पाएंगे कोरोना से 'पार'.

सामान्य एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड जैसी सुविधा भी प्रदेश के गिने-चुने अस्पतालों में ही मौजूद है. सुविधाओं का टोटा केवल उपकरणों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सरकारी हॉस्पिटलों में स्टाफ की कमी भी मरीजों और तीमारदारों को खूब ठोकर खिलाती है.

अस्पतालों में डॉक्टर और कर्मचारियों की कमी का खामियाजा केवल मरीजों को ही नहीं भुगतना पड़ता है, बल्कि वहां तैनात पैरामेडिकल स्टाफ समेत दूसरे स्वास्थ्य कर्मियों को भी इस समस्या से रोज दो-चार होना पड़ता है. मरीजों की संख्या ज्यादा होने पर स्टाफ को सबसे ज्यादा समस्या होती है.

पढ़ें-CORONA: उत्तराखंड सचिवालय में बाहरी लोगों के प्रवेश पर बैन

चिकित्सक संघ के अध्यक्ष डॉ. नरेश नपलच्याल कहते है कि ऐसे हालात में अस्पतालों पर बढ़ रहे दबाव को स्वास्थ्य कर्मियों को झेलना पड़ता है. कर्मचारियों की ये कमी कई बार इलाज में भी परेशानी खड़ी कर देती है. अस्पतालों में डॉक्टरों या फिर दूसरे स्वास्थ्य कर्मियों की कमी मामूली बात नहीं है.

जानें कहां कितने पद हैं खाली-

  • राज्य में कुल 2737 डॉक्टर के पद सृजित है, इन पर 2000 चिकित्सकों की ही तैनाती हो पाई है. यानी 737 पद प्रदेश भर में खाली पड़े हैं.
  • प्रदेश में आईपीएचएस मानकों के अनुसार 5568 पद नर्सेज के होने चाहिए, लेकिन पद सृजित हुए मात्र 4000.
  • इस से भी बुरे हाल यह है कि राज्य में केवल 1561 पदों पर ही स्थायी स्टाफ नर्सों की नियुक्ति हो पाई है.
  • राज्य में लैब टेक्नीशियन की बात करें तो इसके कुल 651 पद भरे होने चाहिए, लेकिन मात्र 335 पद पर ही लैब टेक्नीशियन की नियुक्ति हो पाई है.
  • उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं में महत्वपूर्ण काम करने वाले वार्ड ब्वाय के भी पद बड़ी संख्या में खाली हैं, राज्य में कुल 3000 वार्ड ब्वाय के पद सृजित हैं. जिसमें मात्र 2100 पदों पर ही नियुक्ति दी जा सकती है.

स्वास्थ्य विभाग की ये हालात तब है जब खुद स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास है. राज्य के स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के कई क्षेत्रों में डॉक्टरों की तैनाती तक नहीं हो सकी है. हालांकि, अभी भी विभागीय अधिकारी दावे करने से पीछे नहीं हट रहे हैं. स्वास्थ्य महानिदेशक अमिता उप्रेती ने दावा किया है कि जल्द से जल्द इन पदों को भरने की तैयारी की जा रही है. स्वास्थ्य महानिदेशक की मानें तो चिकित्सकों और नर्सों के कुछ नए पदों के लिए जल्द ही अधियाचन भेजे जाने की भी तैयारी है. इसके बाद स्वास्थ्य सेवा चयन आयोग इस पर भर्ती प्रक्रिया शुरू कर देगा.

पढ़ें- विधायकों की नाराजगी पर इंदिरा हृदयेश का बयान- सत्ता दल के हालात ठीक नहीं

बता दें कि कोरोना काल में केंद्रीय फंड से स्वास्थ्य उपकरणों की जमकर खरीद की गई है. यही नहीं चिकित्सकों और नर्सों की तैनाती के लिए भी नए पदों पर भर्तियां की जा रही हैं. इन सबके बावजूद भी स्वास्थ्य विभाग कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है और इन्हीं अस्पतालों के सहारे कोविड-19 को मात देने की कोशिश कर रहा है. लेकिन सवाल अभी भी वही है, आखिर इन अधूरी स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ क्या हम कोरोना से 'जंग' जीत पाएंगे.

देहरादून: उत्तराखंड को बने हुए 20 साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है, लेकिन आजतक राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का वो प्रदेश नहीं बना पाया, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना की थी. आज प्रदेश के आम लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. इसी में से एक है स्वास्थ्य सुविधा, जिसको बेहतर बनाने के सिर्फ सरकार दावे ही करती आई है, लेकिन हकीकत में किया कुछ नहीं.

प्रदेश के सरकारी अस्पताल जहां जरूरी उपकरणों और स्वास्थ्य सुविधाओं से तो पहले ही महरूम हैं. वहीं, इन अस्पतालों में डॉक्टरों से लेकर फोर्थ क्लास तक के कर्मचारियों की भी कमी है. यानी सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर आजतक सिर्फ दावे ही किए हैं. ऐसे में सरकार के इन दावों का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है.

पढ़ें- पिथौरागढ़: 17,000 फीट की ऊंचाई पर कोरोना की दस्तक, सेना के 28 जवान पॉजिटिव

उत्तराखंड में सरकारी अस्पतालों पर प्रदेश की एक बड़ी आबादी निर्भर रहती है. प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज काफी महंगा होने के कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को सरकारी अस्पतालों का ही सहारा है, लेकिन इन अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था देखकर आम लोगों की उम्मीदें जवाब दे जाती है. सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है.

कैसे पाएंगे कोरोना से 'पार'.

सामान्य एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड जैसी सुविधा भी प्रदेश के गिने-चुने अस्पतालों में ही मौजूद है. सुविधाओं का टोटा केवल उपकरणों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सरकारी हॉस्पिटलों में स्टाफ की कमी भी मरीजों और तीमारदारों को खूब ठोकर खिलाती है.

अस्पतालों में डॉक्टर और कर्मचारियों की कमी का खामियाजा केवल मरीजों को ही नहीं भुगतना पड़ता है, बल्कि वहां तैनात पैरामेडिकल स्टाफ समेत दूसरे स्वास्थ्य कर्मियों को भी इस समस्या से रोज दो-चार होना पड़ता है. मरीजों की संख्या ज्यादा होने पर स्टाफ को सबसे ज्यादा समस्या होती है.

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चिकित्सक संघ के अध्यक्ष डॉ. नरेश नपलच्याल कहते है कि ऐसे हालात में अस्पतालों पर बढ़ रहे दबाव को स्वास्थ्य कर्मियों को झेलना पड़ता है. कर्मचारियों की ये कमी कई बार इलाज में भी परेशानी खड़ी कर देती है. अस्पतालों में डॉक्टरों या फिर दूसरे स्वास्थ्य कर्मियों की कमी मामूली बात नहीं है.

जानें कहां कितने पद हैं खाली-

  • राज्य में कुल 2737 डॉक्टर के पद सृजित है, इन पर 2000 चिकित्सकों की ही तैनाती हो पाई है. यानी 737 पद प्रदेश भर में खाली पड़े हैं.
  • प्रदेश में आईपीएचएस मानकों के अनुसार 5568 पद नर्सेज के होने चाहिए, लेकिन पद सृजित हुए मात्र 4000.
  • इस से भी बुरे हाल यह है कि राज्य में केवल 1561 पदों पर ही स्थायी स्टाफ नर्सों की नियुक्ति हो पाई है.
  • राज्य में लैब टेक्नीशियन की बात करें तो इसके कुल 651 पद भरे होने चाहिए, लेकिन मात्र 335 पद पर ही लैब टेक्नीशियन की नियुक्ति हो पाई है.
  • उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं में महत्वपूर्ण काम करने वाले वार्ड ब्वाय के भी पद बड़ी संख्या में खाली हैं, राज्य में कुल 3000 वार्ड ब्वाय के पद सृजित हैं. जिसमें मात्र 2100 पदों पर ही नियुक्ति दी जा सकती है.

स्वास्थ्य विभाग की ये हालात तब है जब खुद स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास है. राज्य के स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के कई क्षेत्रों में डॉक्टरों की तैनाती तक नहीं हो सकी है. हालांकि, अभी भी विभागीय अधिकारी दावे करने से पीछे नहीं हट रहे हैं. स्वास्थ्य महानिदेशक अमिता उप्रेती ने दावा किया है कि जल्द से जल्द इन पदों को भरने की तैयारी की जा रही है. स्वास्थ्य महानिदेशक की मानें तो चिकित्सकों और नर्सों के कुछ नए पदों के लिए जल्द ही अधियाचन भेजे जाने की भी तैयारी है. इसके बाद स्वास्थ्य सेवा चयन आयोग इस पर भर्ती प्रक्रिया शुरू कर देगा.

पढ़ें- विधायकों की नाराजगी पर इंदिरा हृदयेश का बयान- सत्ता दल के हालात ठीक नहीं

बता दें कि कोरोना काल में केंद्रीय फंड से स्वास्थ्य उपकरणों की जमकर खरीद की गई है. यही नहीं चिकित्सकों और नर्सों की तैनाती के लिए भी नए पदों पर भर्तियां की जा रही हैं. इन सबके बावजूद भी स्वास्थ्य विभाग कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है और इन्हीं अस्पतालों के सहारे कोविड-19 को मात देने की कोशिश कर रहा है. लेकिन सवाल अभी भी वही है, आखिर इन अधूरी स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ क्या हम कोरोना से 'जंग' जीत पाएंगे.

Last Updated : Sep 14, 2020, 5:41 PM IST
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