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Uttarakhand Recruitment Scam: खतरे में है इन मंत्रियों की कुर्सी! किसकी लगेगी लॉटरी ? - Uttarakhand Recruitment Scam

बीते कुछ दिनों से उत्तराखंड के राजनीतिक गलियारों में हो रही सुगबुगाहट को देखकर यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों भारतीय जनता पार्टी मंत्रियों को लेकर बड़ा फैसला ले सकती है. ऐसे में राजनीतिक जानकार कयास लगा रहे हैं कि UKSSSC पेपर लीक और विधानसभा भर्ती मामला सामने आने के बाद उत्तराखंड के मंत्रियों के प्रति दिल्ली में बैठे बड़े नेताओं में अच्छा संदेश नहीं गया है. ऐसे में उत्तराखंड कैबिनेट में बड़ा फेरबदल की संभावना है.

Uttarakhand recruitment scam
उत्तराखंड भर्ती घोटाला
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Published : Sep 10, 2022, 10:28 AM IST

देहरादून: बीते दिनों में उत्तराखंड में जिस तरह के हालात पैदा हुए हैं, उसके बाद बीजेपी के लिए निर्ण लेने का संकट सामने आ गया है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो पार्टी कुछ मंत्रियों को हटा सकती है और कुछ विधायकों को कैबिनेट में जगह दे सकती है. पेपर लीक मामले से लेकर विधानसभा भर्ती मामले में जिस तरह से नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं. उसके बाद ना केवल युवाओं की भीड़ सड़कों पर है, बल्कि विपक्ष भी आक्रमण की मुद्रा में है. कहा जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकता है.

अगर सीधे तौर पर किसी मंत्री को बीजेपी हटाती है, तो यह संदेश पार्टी के लिए सही नहीं जाएगा. ऐसे में हो सकता है कि कैबिनेट में मंत्रियों को इधर से उधर किया जा सकता है. तो आखिरकार कौन हैं कैबिनेट में कमजोर कड़ी और किसकी लग सकती है लॉटरी. चलिए हम आपको बताते हैं.

निशाने पर प्रेमचंद अग्रवाल: विधानसभा नियुक्ति मामले में जिस तरह से मामला बाहर आने के बाद प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने तेवर दिखाए थे, उससे पार्टी को तो नुकसान हुआ ही है, साथ ही पार्टी के बड़े नेताओं में भी प्रेमचंद अग्रवाल को लेकर अच्छा मैसेज नहीं गया है. प्रेमचंद अग्रवाल के समय पर हुई भर्तियों में (Uttarakhand Assembly Recruitment Scam) जिस तरह से भाई भतीजावाद बीजेपी नेताओं के लिए देखा गया, उससे दिल्ली में बैठे पार्टी के नेता बेहद नाराज हैं. इतना ही नहीं उत्तराखंड के बीजेपी के वरिष्ठ नेता भी प्रेमचंद अग्रवाल के उन बयानों को शुरू से ही गलत बताते हैं.
पढ़ें- Exclusive: PM मोदी से लंबी मुलाकात के बाद त्रिवेंद्र के फूट रहे लड्डू, कुछ लोग क्यों हैं परेशान ?

पहले पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत (Former CM Trivendra Singh Rawat) ने प्रेमचंद अग्रवाल के उस बयान की निंदा करते हुए कहा था कि अगर आप संवैधानिक पदों पर बैठे हैं, तो आपको इन सब बातों का ध्यान रखना होता है. किसी भी परिस्थितियों में इस तरह के कार्य नहीं होने चाहिए, जो बीते दिनों हुए हैं. इससे न केवल पार्टी को नुकसान हो रहा है, बल्कि जनता में भी नेताओं को लेकर अच्छा संदेश नहीं जाता है. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तो यह तक कह दिया था कि इस मामले में जो भी दोषी हो उसे कड़ी सजा दी जाए.

त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान के बाद प्रेमचंद अग्रवाल पर पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का भी गुस्सा फूटा था. तीरथ सिंह रावत ने भी सीधे तौर पर यह कह दिया था कि जो कांग्रेस ने किया है, अगर बीजेपी के नेता भी वही काम करेंगे, तो फिर कांग्रेस और बीजेपी में क्या अंतर रह जाएगा ? ऐसे में अगर कोई भी मंत्री इसमें दोषी है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए. इन बयानों से पहले ही पार्टी ने प्रेमचंद अग्रवाल के ऊपर यह कहकर अंकुश लगा दिया कि वह फिलहाल मीडिया कर्मियों से बात नहीं करेंगे.

प्रेमचंद अग्रवाल की दो बार दिल्ली दरबार में हुई पेशी भी इस बात की तस्दीक कर रही है कि अगर विधानसभा नियुक्ति मामले में कोई भी पक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ जाता है तो उनकी कुर्सी पर संकट सौ फीसदी तय है. विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भी अपने बयान में साफ कह चुकी हैं कि इस मामले में किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा. पार्टी की हुई किरकिरी और जनता में गया संदेश इन सभी को शांत करने का प्रयास में बीजेपी प्रेमचंद की छुट्टी करके कर सकती है. बताया जा रहा है कि अगर किसी मंत्री को इधर से उधर किया जाता है, तो उनमें सबसे पहला नाम प्रेमचंद अग्रवाल का हो सकता है.
पढ़ें- Uttarakhand Cabinet: धामी कैबिनेट का बड़ा फैसला, UKSSSC की 5 परीक्षाएं निरस्त, UKPSC के हवाले 7000 पदों की भर्तियां

चंदन रामदास की तबीयत बन सकती है वजह: दूसरा नाम है चंदन रामदास का. बताया जा रहा है कि चंदन रामदास की तबीयत को देखते हुए पार्टी उनके मंत्रालय और मंत्री पद को लेकर भी कोई फैसला ले सकती है. चंदन रामदास इस समय उत्तराखंड परिवहन मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे हैं. चंदन राम दास मौजूदा सरकार में पहली बार मंत्री बने हैं. वह चार बार के विधायक हैं.

उनका राजनीतिक कैरियर साल 1980 में शुरू हुआ था. उसके बाद साल 1997 में वह पहली बार बागेश्वर से नगर पालिका के निर्दलीय अध्यक्ष बने थे. उन्होंने साल 2007, 2012 और 2017 के साथ साथ 2022 में भी भारतीय जनता पार्टी के टिकट से विजय हासिल की. बेहद सौम्य स्वभाव के चंदन रामदास को इस बार पहली बार मंत्रालय मिला था लेकिन बीते दिनों से उनकी तबीयत बेहद खराब चल रही है. ऐसे में पार्टी उन्हें आराम दे सकती है.

रेखा आर्य के बीते दिनों के विवाद: चर्चाएं रेखा आर्य को लेकर भी हैं. अगर बीजेपी अपनी कैबिनेट में बदलाव करती है तो रेखा आर्य का भी नाम बताया जा रहा है. हालांकि धामी कैबिनेट में रेखा आर्य एकमात्र महिला चेहरा हैं. उनको हटाए जाने की उम्मीद कम ही लगती है, लेकिन बीते दिनों जिस तरह से उनके द्वारा पत्र जारी किए गए हैं वो भी विपक्ष के निशाने पर हैं. इतना ही नहीं आईएएस लॉबी से उनका मनमुटाव इसकी एक बड़ी वजह माना जा रहा है.

जानकारों का कहना है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के पास रेखा आर्य को लेकर भी फीडबैक पहुंचा है, जिसके बाद रेखा आर्य के मंत्रालय में भी कुछ फेरबदल हो सकता है. रेखा आर्य कई बार अजीब-ओ-गरीब आदेश जारी कर चुकी हैं. वह लगातार अपने आदेशों को लेकर चर्चा में रहती हैं. ऐसे में पार्टी इन सभी बिंदुओं पर भी जनता से मंथन कर रही है. रेखा आर्य उत्तराखंड की सोमेश्वर विधानसभा सीट से विधायक हैं. इससे पहले भी वह मंत्री रह चुकी हैं. त्रिवेंद्र सरकार में भी वह महिला एवं बाल विकास मंत्री थीं.

विपक्ष बोलेगा समय पर हमला: बीजेपी को पता है कि अभी अगर जरा भी चूक हुई तो आने वाले समय में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. प्रदेश से लेकर दिल्ली में बैठे नेताओं को ही भी मालूम है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जैसे ही हिंदी बेल्ट में पहुंचेगी. वैसे ही उत्तराखंड को लेकर राहुल जनता के बीच बात करेंगे. इतना ही नहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता भी इस मुद्दे को आने वाले समय में खूब भुनाने का काम करेंगे. अगर ऐसा होता है तो पार्टी को गुजरात और हिमाचल सहित अन्य राज्यों में जवाब देना मुश्किल होगा. पीएम मोदी पहले ही परिवारवाद के खिलाफ रहे हैं. ऐसे में बीजेपी कुछ मंत्रियों को जोर का झटका धीरे से दे सकती है.

इनकी लग सकती है लॉटरी: बताया जा रहा है कि मदन कौशिक को एक बार फिर से पार्टी कैबिनेट में लेने पर विचार कर रही है. अगर किसी मंत्री को हटाया जाता है तो मदन कौशिक एक बार फिर से कैबिनेट में हो सकते हैं. हांलाकि, उन्हें अध्यक्ष पद से अचानक क्यों हटाया ? ये बात आज भी अबूझ पहेली बनी हुई है. कहा जा रहा है कि कुछ समय से पार्टी उन्हें संगठन में कहीं फिट करने की सोच रही थी, लेकिन ये समीकरण उन्हें मंत्री पद दिला सकते हैं.

कौशिक के पास मंत्रालयों का लंबा अनुभव है. साथ ही हरिद्वार से कोई कैबिनेट मंत्री भी फिलहाल नहीं है. शहरी क्षेत्र से विधायक होने के साथ साथ मदन कौशिक के लिए बैटिंग उत्तराखंड के कुछ बड़े नेता भी कर रहे हैं. साल 2024 में लोकसभा चुनाव और पंचायत चुनाव के साथ साथ हरिद्वार में कमजोर पड़ती भाजपा के लिए ये जरूरी भी है कि उन्हें कैबिनेट में लाया जाए.

ये विधायक भी लाइन में: अगर मदन कौशिक को कैबिनेट में जगह नहीं मिली तो हरिद्वार जिले से ही दो नाम और हैं, जिनमें एक नाम आदेश चौहान का है. आदेश चौहान हरिद्वार की रानीपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं और 3 बार के विधायक हैं. अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ और ग्रामीण क्षेत्र से लगती उनकी विधानसभा सीट उन्हें मजबूत दावेदार बना रही है. संघ और बीजेपी के बड़े नेता भी उनके कामों और उनके स्वभाव से बेहद प्रभावित हैं. इसलिए माना जा रहा है कि आदेश चौहान की लॉटरी लग सकती है.

हरिद्वार से तीसरे और अंतिम विधायक हैं प्रदीप बत्रा. उनके बारे में कहा जा रहा है रुड़की के विधायक होने के साथ साथ पंजाबी समाज से आने वाले प्रदीप बत्रा भी लाइन में हैं. उधम सिंह नगर और हरिद्वार के साथ साथ देहरादून में भी पंजाबियों का अच्छा खासा वोट है. ऐसे में उनके नाम की भी खूब चर्चा है. लेकिन इनके मंत्री बनने पर ये बात आड़े आ सकती है कि कांग्रेस से बीजेपी में आए हैं.

कैबिनेट में पहले ही सुबोध उनियाल और सतपाल महाराज कांग्रेस से आए नेता हैं. ऐसे में अगर इतने मंत्री कांग्रेसी हो जायेंगे तो पार्टी के नेता भी उनका विरोध करेंगे. इसी तरह से एक नाम और सुर्खियों में आ रहा है, वो है देहरादून की राजपुर विधानसभा सीट से खजानदास का. खजान दास पहले भी मंत्री रहे हैं. इस लिस्ट में बंशीधर भगत का नाम भी लिया जा रहा है कि पार्टी उनकी तरफ भी देख रही है. हो सकता है कि कुमाऊं से आने वाले नेताओं की लिस्ट बने तो उसमें बंशीधर भगत भी शामिल हों.

बताया जा रहा है कि तमाम घपले और मंत्रालयों से उठ रही अनियमिताओं की आवाज के बाद आलाकमान ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी अपनी तरफ से एक रिपोर्ट मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट दिल्ली भेजी है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा है ? ये तो नहीं मालूम लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि धामी भी मौजूदा समय में चल रहे घटनाक्रम को अपने लिए सही नहीं मान रहे हैं. इसलिए वो भी कुछ मंत्रियों के कार्य से खुश नहीं हैं.

देहरादून: बीते दिनों में उत्तराखंड में जिस तरह के हालात पैदा हुए हैं, उसके बाद बीजेपी के लिए निर्ण लेने का संकट सामने आ गया है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो पार्टी कुछ मंत्रियों को हटा सकती है और कुछ विधायकों को कैबिनेट में जगह दे सकती है. पेपर लीक मामले से लेकर विधानसभा भर्ती मामले में जिस तरह से नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं. उसके बाद ना केवल युवाओं की भीड़ सड़कों पर है, बल्कि विपक्ष भी आक्रमण की मुद्रा में है. कहा जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकता है.

अगर सीधे तौर पर किसी मंत्री को बीजेपी हटाती है, तो यह संदेश पार्टी के लिए सही नहीं जाएगा. ऐसे में हो सकता है कि कैबिनेट में मंत्रियों को इधर से उधर किया जा सकता है. तो आखिरकार कौन हैं कैबिनेट में कमजोर कड़ी और किसकी लग सकती है लॉटरी. चलिए हम आपको बताते हैं.

निशाने पर प्रेमचंद अग्रवाल: विधानसभा नियुक्ति मामले में जिस तरह से मामला बाहर आने के बाद प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने तेवर दिखाए थे, उससे पार्टी को तो नुकसान हुआ ही है, साथ ही पार्टी के बड़े नेताओं में भी प्रेमचंद अग्रवाल को लेकर अच्छा मैसेज नहीं गया है. प्रेमचंद अग्रवाल के समय पर हुई भर्तियों में (Uttarakhand Assembly Recruitment Scam) जिस तरह से भाई भतीजावाद बीजेपी नेताओं के लिए देखा गया, उससे दिल्ली में बैठे पार्टी के नेता बेहद नाराज हैं. इतना ही नहीं उत्तराखंड के बीजेपी के वरिष्ठ नेता भी प्रेमचंद अग्रवाल के उन बयानों को शुरू से ही गलत बताते हैं.
पढ़ें- Exclusive: PM मोदी से लंबी मुलाकात के बाद त्रिवेंद्र के फूट रहे लड्डू, कुछ लोग क्यों हैं परेशान ?

पहले पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत (Former CM Trivendra Singh Rawat) ने प्रेमचंद अग्रवाल के उस बयान की निंदा करते हुए कहा था कि अगर आप संवैधानिक पदों पर बैठे हैं, तो आपको इन सब बातों का ध्यान रखना होता है. किसी भी परिस्थितियों में इस तरह के कार्य नहीं होने चाहिए, जो बीते दिनों हुए हैं. इससे न केवल पार्टी को नुकसान हो रहा है, बल्कि जनता में भी नेताओं को लेकर अच्छा संदेश नहीं जाता है. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तो यह तक कह दिया था कि इस मामले में जो भी दोषी हो उसे कड़ी सजा दी जाए.

त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान के बाद प्रेमचंद अग्रवाल पर पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का भी गुस्सा फूटा था. तीरथ सिंह रावत ने भी सीधे तौर पर यह कह दिया था कि जो कांग्रेस ने किया है, अगर बीजेपी के नेता भी वही काम करेंगे, तो फिर कांग्रेस और बीजेपी में क्या अंतर रह जाएगा ? ऐसे में अगर कोई भी मंत्री इसमें दोषी है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए. इन बयानों से पहले ही पार्टी ने प्रेमचंद अग्रवाल के ऊपर यह कहकर अंकुश लगा दिया कि वह फिलहाल मीडिया कर्मियों से बात नहीं करेंगे.

प्रेमचंद अग्रवाल की दो बार दिल्ली दरबार में हुई पेशी भी इस बात की तस्दीक कर रही है कि अगर विधानसभा नियुक्ति मामले में कोई भी पक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ जाता है तो उनकी कुर्सी पर संकट सौ फीसदी तय है. विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भी अपने बयान में साफ कह चुकी हैं कि इस मामले में किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा. पार्टी की हुई किरकिरी और जनता में गया संदेश इन सभी को शांत करने का प्रयास में बीजेपी प्रेमचंद की छुट्टी करके कर सकती है. बताया जा रहा है कि अगर किसी मंत्री को इधर से उधर किया जाता है, तो उनमें सबसे पहला नाम प्रेमचंद अग्रवाल का हो सकता है.
पढ़ें- Uttarakhand Cabinet: धामी कैबिनेट का बड़ा फैसला, UKSSSC की 5 परीक्षाएं निरस्त, UKPSC के हवाले 7000 पदों की भर्तियां

चंदन रामदास की तबीयत बन सकती है वजह: दूसरा नाम है चंदन रामदास का. बताया जा रहा है कि चंदन रामदास की तबीयत को देखते हुए पार्टी उनके मंत्रालय और मंत्री पद को लेकर भी कोई फैसला ले सकती है. चंदन रामदास इस समय उत्तराखंड परिवहन मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे हैं. चंदन राम दास मौजूदा सरकार में पहली बार मंत्री बने हैं. वह चार बार के विधायक हैं.

उनका राजनीतिक कैरियर साल 1980 में शुरू हुआ था. उसके बाद साल 1997 में वह पहली बार बागेश्वर से नगर पालिका के निर्दलीय अध्यक्ष बने थे. उन्होंने साल 2007, 2012 और 2017 के साथ साथ 2022 में भी भारतीय जनता पार्टी के टिकट से विजय हासिल की. बेहद सौम्य स्वभाव के चंदन रामदास को इस बार पहली बार मंत्रालय मिला था लेकिन बीते दिनों से उनकी तबीयत बेहद खराब चल रही है. ऐसे में पार्टी उन्हें आराम दे सकती है.

रेखा आर्य के बीते दिनों के विवाद: चर्चाएं रेखा आर्य को लेकर भी हैं. अगर बीजेपी अपनी कैबिनेट में बदलाव करती है तो रेखा आर्य का भी नाम बताया जा रहा है. हालांकि धामी कैबिनेट में रेखा आर्य एकमात्र महिला चेहरा हैं. उनको हटाए जाने की उम्मीद कम ही लगती है, लेकिन बीते दिनों जिस तरह से उनके द्वारा पत्र जारी किए गए हैं वो भी विपक्ष के निशाने पर हैं. इतना ही नहीं आईएएस लॉबी से उनका मनमुटाव इसकी एक बड़ी वजह माना जा रहा है.

जानकारों का कहना है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के पास रेखा आर्य को लेकर भी फीडबैक पहुंचा है, जिसके बाद रेखा आर्य के मंत्रालय में भी कुछ फेरबदल हो सकता है. रेखा आर्य कई बार अजीब-ओ-गरीब आदेश जारी कर चुकी हैं. वह लगातार अपने आदेशों को लेकर चर्चा में रहती हैं. ऐसे में पार्टी इन सभी बिंदुओं पर भी जनता से मंथन कर रही है. रेखा आर्य उत्तराखंड की सोमेश्वर विधानसभा सीट से विधायक हैं. इससे पहले भी वह मंत्री रह चुकी हैं. त्रिवेंद्र सरकार में भी वह महिला एवं बाल विकास मंत्री थीं.

विपक्ष बोलेगा समय पर हमला: बीजेपी को पता है कि अभी अगर जरा भी चूक हुई तो आने वाले समय में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. प्रदेश से लेकर दिल्ली में बैठे नेताओं को ही भी मालूम है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जैसे ही हिंदी बेल्ट में पहुंचेगी. वैसे ही उत्तराखंड को लेकर राहुल जनता के बीच बात करेंगे. इतना ही नहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता भी इस मुद्दे को आने वाले समय में खूब भुनाने का काम करेंगे. अगर ऐसा होता है तो पार्टी को गुजरात और हिमाचल सहित अन्य राज्यों में जवाब देना मुश्किल होगा. पीएम मोदी पहले ही परिवारवाद के खिलाफ रहे हैं. ऐसे में बीजेपी कुछ मंत्रियों को जोर का झटका धीरे से दे सकती है.

इनकी लग सकती है लॉटरी: बताया जा रहा है कि मदन कौशिक को एक बार फिर से पार्टी कैबिनेट में लेने पर विचार कर रही है. अगर किसी मंत्री को हटाया जाता है तो मदन कौशिक एक बार फिर से कैबिनेट में हो सकते हैं. हांलाकि, उन्हें अध्यक्ष पद से अचानक क्यों हटाया ? ये बात आज भी अबूझ पहेली बनी हुई है. कहा जा रहा है कि कुछ समय से पार्टी उन्हें संगठन में कहीं फिट करने की सोच रही थी, लेकिन ये समीकरण उन्हें मंत्री पद दिला सकते हैं.

कौशिक के पास मंत्रालयों का लंबा अनुभव है. साथ ही हरिद्वार से कोई कैबिनेट मंत्री भी फिलहाल नहीं है. शहरी क्षेत्र से विधायक होने के साथ साथ मदन कौशिक के लिए बैटिंग उत्तराखंड के कुछ बड़े नेता भी कर रहे हैं. साल 2024 में लोकसभा चुनाव और पंचायत चुनाव के साथ साथ हरिद्वार में कमजोर पड़ती भाजपा के लिए ये जरूरी भी है कि उन्हें कैबिनेट में लाया जाए.

ये विधायक भी लाइन में: अगर मदन कौशिक को कैबिनेट में जगह नहीं मिली तो हरिद्वार जिले से ही दो नाम और हैं, जिनमें एक नाम आदेश चौहान का है. आदेश चौहान हरिद्वार की रानीपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं और 3 बार के विधायक हैं. अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ और ग्रामीण क्षेत्र से लगती उनकी विधानसभा सीट उन्हें मजबूत दावेदार बना रही है. संघ और बीजेपी के बड़े नेता भी उनके कामों और उनके स्वभाव से बेहद प्रभावित हैं. इसलिए माना जा रहा है कि आदेश चौहान की लॉटरी लग सकती है.

हरिद्वार से तीसरे और अंतिम विधायक हैं प्रदीप बत्रा. उनके बारे में कहा जा रहा है रुड़की के विधायक होने के साथ साथ पंजाबी समाज से आने वाले प्रदीप बत्रा भी लाइन में हैं. उधम सिंह नगर और हरिद्वार के साथ साथ देहरादून में भी पंजाबियों का अच्छा खासा वोट है. ऐसे में उनके नाम की भी खूब चर्चा है. लेकिन इनके मंत्री बनने पर ये बात आड़े आ सकती है कि कांग्रेस से बीजेपी में आए हैं.

कैबिनेट में पहले ही सुबोध उनियाल और सतपाल महाराज कांग्रेस से आए नेता हैं. ऐसे में अगर इतने मंत्री कांग्रेसी हो जायेंगे तो पार्टी के नेता भी उनका विरोध करेंगे. इसी तरह से एक नाम और सुर्खियों में आ रहा है, वो है देहरादून की राजपुर विधानसभा सीट से खजानदास का. खजान दास पहले भी मंत्री रहे हैं. इस लिस्ट में बंशीधर भगत का नाम भी लिया जा रहा है कि पार्टी उनकी तरफ भी देख रही है. हो सकता है कि कुमाऊं से आने वाले नेताओं की लिस्ट बने तो उसमें बंशीधर भगत भी शामिल हों.

बताया जा रहा है कि तमाम घपले और मंत्रालयों से उठ रही अनियमिताओं की आवाज के बाद आलाकमान ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी अपनी तरफ से एक रिपोर्ट मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट दिल्ली भेजी है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा है ? ये तो नहीं मालूम लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि धामी भी मौजूदा समय में चल रहे घटनाक्रम को अपने लिए सही नहीं मान रहे हैं. इसलिए वो भी कुछ मंत्रियों के कार्य से खुश नहीं हैं.

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