देहरादून: सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के धारचूला क्षेत्र में आने वाले भूकंप के कारणों को लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने शोध किया था. वाडिया के वैज्ञानिकों का यह शोध मई 2021 में ‘जियोफिजिकल जर्नल इंटरनेशनल’ व टेक्टोनोफिजिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ था.
क्रस्ट की मोटाई है, सूक्ष्म भूकंप आने की वजह
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के अनुसार उत्तर पश्चिमी हिमालय के मुकाबले कुमाऊं हिमालय में क्रस्ट लगभग 38-42 किमी मोटा है. यही क्रस्ट इस क्षेत्र में सूक्ष्म और मध्यम तीव्रता के भूकंपों के लिए जिम्मेदार है. हालांकि, इस तरह का शोध वाडिया इंस्टीट्यूट पिछले कई सालों से करता रहा है.
रिसर्च के लिए 15 भूकंपीय स्टेशनों की मदद
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. देवजीत हजारिका के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई. टीम ने धारचूला और कुमाऊं हिमालय के आसपास के क्षेत्र में भूकंप के कारणों को जानने के लिए काली नदी के किनारे 15 भूकंपीय स्टेशन स्थापित किए थे. ये उस क्षेत्र के भूमि की संरचना को मॉनिटर कर रही थी.
धारचूला क्षेत्र में भूगर्भीय संरचना है भूकंप का कारण
पिछले 3 सालों से चल रहे अध्ययन में यह जानकारी मिली कि उस क्षेत्र के भूमि की संरचना की वजह से ही धारचूला क्षेत्र में भूकंप आते रहे हैं. वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि धारचूला क्षेत्र में आने वाले भूकंप की वजह को जानने के लिए धारचूला क्षेत्र के भूगर्भीय संरचना का पता लगाया गया है जो उस क्षेत्र में भूकंप आने की मुख्य वजह है.
हालांकि इसके लिए वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. देवजीत हजारिका ने धारचूला क्षेत्र में कई यंत्र लगाए थे. इससे यह जानकारी मिली की कुमाऊं हिमालय में क्रस्ट लगभग 38-42 किमी मोटा है, जो सूक्ष्म और मध्यम तीव्रता के भूकंप के लिए जिम्मेदार है. हालांकि इस तरह स्टडी वर्ल्ड इंस्टिट्यूट लगातार कर रहा है.
क्रस्ट को समझने के लिए भूमि संरचना स्टडी आवश्यक
डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि क्रस्ट को समझना बहुत मुश्किल है, इसकी संरचना को समझने की कोशिश की जा रही है, लेकिन भूकंप की भविष्यवाणी करना अभी फिलहाल विश्व भर में संभव नहीं है.
इसके लिए भूमि की संरचना का स्टडी करना बहुत जरूरी है. इसके लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ने 52 इंस्ट्रूमेंट लगाए हैं, जो एक्टिव है और सारा डाटा कलेक्ट कर रहे हैं. यहां 1905 और 1934 के बाद कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है.
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ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि एक बड़ी एनर्जी एकत्र हो चुकी होगी ऐसे में भविष्य में बड़ा भूकंप आने की आशंका है. डॉ. सुशील कुमार बताते हैं कि बीते सालों में आए भूकंप से कितनी एनर्जी रिलीज हुई है और अभी पृथ्वी के अंदर कितनी एनर्जी बची हुई है इसका आकलन तो किया जा सकता है. लेकिन, यह कहना संभव नहीं है कि किसी क्षेत्र में अगर लगातार भूकंप आ रहे हैं तो वहां बड़ा भूकंप आने की संभावना है.
वाडिया इंस्टीट्यूट के पास 10 सालों का जीपीएस और 15 सालों का ब्रॉडबैंड डाटा उपलब्ध
वाडिया इंस्टीट्यूट के पास जो डाटा एकत्र है, उसके अनुसार धारचूला क्षेत्र में 1950 से लेकर अभी तक कई बार भूकंप आ चुके हैं. वाडिया इंस्टिट्यूट लगातार इस पर रिसर्च कर रही है. वर्तमान समय में वाडिया इंस्टीट्यूट के पास पिछले 10 सालों का जीपीएस डाटा, 15 सालों का ब्रॉडबैंड डाटा उपलब्ध है.
वैज्ञानिक सुशील कुमार के अनुसार जब इंडियन प्लेट हर साल 20 से 50 मिलीमीटर तक मूव कर रहा है तो उससे उत्पन्न होने वाली एनर्जी, किसी न किसी माध्यम से रिलीज होगी. ऐसे में अब वो साल 1897 से 1950 तक यानी इन 53 सालों में चार बड़े भूकंप की स्टडी कर रहे हैं.
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इसमें 1897 में असम, 1905 में कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल और 1950 में असम में 8 मैग्निट्यूड से अधिक तीव्रता का भूकंप आया था. लेकिन 1950 के बाद 2021 यानी इन 71 सालों में एक भी बड़ा भूकंप नहीं आया है. ऐसे में एक आशंका यह भी है कि बड़ा भूकंप आ सकता है. दूसरी तरफ इस बात की भी संभावना है कि इन 71 सालों के भीतर स्लो भूकंप के माध्यम से एनर्जी रिलीज होती रही हो.
स्लो भूकंप के माध्यम से रिलीज एनर्जी के कारण, पिछले 71 सालों में नहीं आया बड़ा भूकंप
इन 71 सालों के भीतर कई जगहों पर भूकंप आए, लेकिन वह सभी भूकंप पांच मैग्निट्यूड से भी कम तीव्रता के रहे हैं. यह भूकंप सैलो एनर्जी भूकंप में काउंट किये जाते हैं. ऐसे में यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि स्लो भूकंप के माध्यम से एनर्जी रिलीज हो जाती है. एनर्जी दो तरीके से ही रिलीज होती है, जिसमें तेज भूकंप और स्लो भूकंप शामिल है. सुशील कुमार के अनुसार पिछले 71 सालों में बड़ा भूकंप ना आना इस बात की ओर भी इशारा करता है कि इन 71 सालों में स्लो भूकंप के माध्यम से एनर्जी रिलीज हो रही हो.