देहरादून: देश में ऑक्सीजन की भारी कमी है. केंद्र से लेकर तमाम राज्य सरकारें ऑक्सीजन को लेकर हाथ खड़े कर चुकी हैं. तब देहरादून में स्थापित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पेट्रोलियम ने देश को एक राहत भरी खबर दी है. आईआईपी ने हवा से ऑक्सीजन बनाने की मशीन तैयार कर ली है. अच्छी बात यह है कि प्लांट ने काम करना शुरू भी कर दिया है. आईआईपी के अधिकारियों की मानें तो कम खर्चे में देश के किसी भी अस्पताल में इस प्लांट को लगाया जा सकता है.
कारगर साबित हो रही प्लांट की ऑक्सीजन
आईआईपी इस कार्य को महीनों से अंजाम देने की कोशिश कर रहा था. सफलता ऐसे समय में लगी है, जब ऑक्सीजन की पूरे देश को जरूरत है. आईआईटी के वैज्ञानिकों ने हवा से सस्ती ऑक्सीजन तैयार करने की इस तकनीक को पूरा करके कई दिनों तक टेस्टिंग फॉर्मेट में इसे चला कर रखा. जब यह प्रमाणित हो गया कि इस मशीन से बनने वाली ऑक्सीजन कारगर है, तब जाकर इसका विधिवत शुभारंभ किया गया है. कोविड-19 के दौरान आईआईपी की यह खोज ना केवल उत्तराखंड बल्कि देश के लिए राहत भरी खबर लेकर आई है.
1 मिनट में 500 लीटर ऑक्सीजन बनाने की क्षमता
काउंसलिंग ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (CSIR-IIP) के वैज्ञानिकों की मानें तो फिलहाल आईआईपी में 1 मिनट में 500 लीटर ऑक्सीजन बनाने वाला प्लांट बनाया गया है. इस ऑक्सीजन से लगभग 40 से 60 बेड वाले अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई की जा सकती है. आईआईपी के डायरेक्टर अंजनरे के मुताबिक लगभग 100 लीटर प्रति मिनट यूनिट वाले प्लांट में 17 लाख रुपए का खर्चा आएगा.
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मात्र चार हफ्ते में लगाया जा सकता है प्लांट
अगर इस प्लांट को कहीं पर लगाना है, तो मात्र 4 हफ्ते में इसे लगाया जा सकता है. इस प्लांट के लगने से सीधे अस्पताल में पाइपों में ऑक्सीजन दी जा सकती है. ऐसे में किसी भी सिलेंडर या अन्य उपकरण की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे अस्पतालों और मरीजों को भी काफी राहत मिलेगी.
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क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस से बनती है ऑक्सीजन
सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह की कंपनियां ऑक्सीजन प्लांट लगा सकती हैं. ऑक्सीजन गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस के जरिए बनती है. यानी हवा में मौजूद विभिन्न गैसों को अलग-अलग किया जाता है, जिनमें से एक ऑक्सीजन भी है. क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस में हवा को फिल्टर किया जाता है, ताकि धूल-मिट्टी को हटाया जा सके. उसके बाद कई चरणों में हवा को कंप्रेस किया जाता है. उसके बाद कंप्रेस हो चुकी हवा को मॉलीक्यूलर छलनी एडजॉर्बर से ट्रीट किया जाता है, ताकि हवा में मौजूद पानी के कण, कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन को अलग किया जा सके.
ऐसे मिलता है लिक्विड ऑक्सीजन
इस पूरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद कंप्रेस हो चुकी हवा डिस्टिलेशन कॉलम में जाती है, जहां पहले इसे ठंडा किया जाता है. यह प्रक्रिया एक प्लेट फिन हीट एक्सचेंजर और टरबाइन के जरिए होती है. उसके बाद 185 डिग्री सेंटीग्रेट (ऑक्सीजन का उबलने का स्तर) पर उसे गर्म किया जाता है, जिससे उसे डिस्टिल्ड किया जाता है.
बता दें, डिस्टिल्ड की प्रक्रिया में पानी को उबाला जाता है और उसकी भाप को कंडेंस कर के जमा कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया को अलग-अलग स्टेज में कई बार किया जाता है, जिससे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और अर्गन जैसी गैसें अलग-अलग हो जाती हैं. इसी प्रक्रिया के बाद लिक्विड ऑक्सीजन और गैस ऑक्सीजन मिलती है.