देहरादून: उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने साल 2013 में केदारघाटी में आयी आपदा को लेकर हरीश रावत से माफी मांगने का सवाल खड़ा कर रहे हैं. सतपाल महाराज ने कहा कि केदारनाथ धाम पर चौराबाड़ी ग्लेशियर, बम की तरह फटकर कभी भी कहर बरपा सकता है. इसकी भविष्यवाणी साल 2004 में चौराबाड़ी ग्लेशियर का सर्वेक्षण पूरा कर लौटे देश के प्रसिद्ध हिम वैज्ञानिकों ने कर दी थी, लेकिन साल 2012-14 के दौरान केंद्रीय जल संसाधन मंत्री रहते हुए हरीश रावत ने उक्त बात का समय रहते संज्ञान क्यों नहीं लिया, तो क्या अब हरीश रावत अपनी इस भूल के लिए भी माफी मागेंगे.
सतपाल महाराज ने कांग्रेस नेता एवं तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत से सवाल किया कि जब चौराबाड़ी ग्लेशियर के आस पास बर्फीली झीलों की संख्या में वृद्धि हो रही थी और हिम वैज्ञानिकों ने उस दौरान किसी बड़ी त्रासदी की चेतावनी दे रहे थे, तो उस समय केंद्रीय जल संसाधन मंत्री रहते हुए हरीश रावत ने इन चेतावनियों को अनदेखा क्यों किया. महाराज ने कहा कि 2012-2014 में जल संसाधन मंत्री रहते हरीश रावत को चौराबाड़ी के साथ-साथ, ऐसे तमाम ग्लेशियरों जिनके विषय में हिम वैज्ञानिक और पर्यावरणविद्, बार-बार चेतावनी दे रहे थे उस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की?
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महाराज ने कहा कि यदि वह इस विषय पर काम करते तो 2013 की त्रासदी के खतरनाक प्रभाव को रोका जा सकता था, लेकिन हरीश रावत ने वैज्ञानिकों की चेतावनी को अनदेखा कर दिया, ऐसे में अब क्या हरीश रावत को देश से अपनी इस बड़ी गलती की माफी नहीं मांगनी चाहिए?
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सतपाल महाराज ने कहा कि डब्ल्यूआईएचडी के वरिष्ठ ग्लेशियोलॉजिस्ट द्वारिका प्रसाद डोभाल ने उस समय बताया था कि पिछले 100 वर्षों में अफगानिस्तान से म्यांमार तक हिंदुकुश हिमालय में कई स्थानों पर कम से कम 50 ग्लेशियर झील का प्रकोप देखा गया है. अगस्त 1929 में सबसे पहले दर्ज की गई घटनाओं में एक शामिल जब काराकोरम पहाडों में चोंग कुमदन ग्लेशियर के आधार पर एक झील ने सिंधु घाटी में बाढ़ के लिए 15 बिलियन क्यूबिक पानी छोड़ने के लिए अपने मार्जिन को तोड़ दिया.