देहरादून: उत्तराखंड में आम लोगों की समस्या का निवारण करने के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जिस हेल्पलाइन का शुभारंभ किया वो आज शहरी क्षेत्रों तक ही सिमट कर रह गई है. इस पहल का फायदा पूरे प्रदेश को न होकर शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को ही हो रहा है. ईटीवी भारत ने मुख्यमंत्री कार्यालय के आधीन इस सेवा को लेकर जब पड़ताल की तो पता चला कि सीएम हेल्पलाइन पर ग्रामीण क्षेत्रों की शिकायतों का आंकड़ा बेहद कम है. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट....
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बता दें कि मुख्यमंत्री हेल्पलाइन डेस्क का शुभारंभ सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसी साल 23 मार्च को किया था. प्रदेश में सरकारी सिस्टम की हीलाहवाली ही रही होगी की आम जनता की शिकायत का निवारण करने के लिए खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को आगे आना पड़ा था. जिसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन डेस्क स्थापित करवाया था.
1905 नबंर जारी किया गया था
इसके लिए करीब 2 महीन पहले 1905 हेल्पलाइन नबंर भी जारी किया था. इस नबंर पर प्रदेश का कोई भी व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता था. यहां आने वाली सभी शिकायतों का निस्तारण हेल्पलाइन डेस्क पर बैठे अधिकारियों द्वारा किया जाता है. खास बात यह है कि इस हेल्पलाइन में शिकायतकर्ता के संतुष्ट न होने तक शिकायत को सॉल्व नहीं माना जाता है, यानि जब तक शिकायतकर्ता खुद अपनी शिकायत के निवारण को लेकर संतोष न जताए तब तक यह शिकायत हेल्पलाइन में रजिस्टर्ड रहती है.
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मुख्यमंत्री कार्यालय से मॉनिटर होने वाले इस पूरे सिस्टम को तैयार तो कर दिया गया, लेकिन हर व्यक्ति तक इसकी पहुंच बनाने में सरकार कुछ खास नहीं कर पाई. इस बात की तस्दीक खुद सीएम हेल्पलाइन के आंकड़े कर रहे हैं.
6500 से ज्यादा शिकायतें दर्ज हुई
दरअसल, सीएम हेल्पलाइन में 6500 से ज्यादा शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं. लेकिन इसमें अधिकतर शिकायतें शहरी क्षेत्र की हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों से 10 प्रतिशत शिकायतें भी रजिस्टर नहीं हो पाईं या दूसरे शब्दों में कहे तो ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने 10 प्रतिशत शिकायत भी नहीं की है. इससे साफ है कि सीएम हेल्पलाइन का प्रचार-प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों तक नहीं हो पाया है. जिस कारण ग्रामीण क्षेत्रों से शिकायत आने की संख्या बेहद कम है.
31000 शिकायती कॉल आई
मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 1905 में अबतक 31000 शिकायती कॉल आ चुकी हैं, जिसमें 6500 शिकायतें महज 2 महीने में रजिस्टर्ड की गई. इसमें 1800 शिकायतों का विभागों द्वारा निस्तारण भी किया जा चुका है. अधिकतर शिकायतों को ब्लॉक या जिलाधिकारी कार्यालय के स्तर पर ही निपटा दिया जाता है. अबतक मिली शिकायतों में अधिकतर शिकायतें मूलभूत जरुरतों से जुड़ी हैं.
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ऐसे होता है शिकायतों का निवारण
हेल्पलाइन में शिकायत के निवारण को लेकर कई चरण बनाए गए हैं. 1905 पर शिकायत मिलते ही फौरन ब्लॉक स्तर के अधिकारी को शिकायत भेज जाती है. पहले चरण को L1 कहा जाता है. यदि ब्लॉक स्तर पर इस समस्या का समाधान नहीं होता तो 7 दिन बाद अपने आप यह शिकायत जिलाधिकारी कार्यालय पहुंच जाती है, यानी L2 के पास अब शिकायत के निस्तारण की जिम्मेदारी होती है.
चार चरणों में होता है शिकायत का निस्तारण
यदि जिलाधिकारी कार्यालय से भी मामला हल नहीं होता तो संबंधित विभाग के एचओडी के पास शिकायत पहुंचती है. जिसे L3 कहा जाता है. इसके बाद शिकायत खुद-ब-खुद सचिवालय पहुंच जाती है. फिर भी एक महीने के अंदर शिकायत का निस्तारण नहीं होता है तो मामला मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंचता है. मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में शिकायत आने के बाद तय सीमा के अंदर इसका निस्तारण निश्चित किया जाता है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद इन शिकायतों की अंत में समीक्षा भी करते हैं.
यह बात सही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी लोग सोशल मीडिया को लेकर ज्यादा जागरुक नहीं है, लेकिन जिस लिहाज से उद्देश्य से साथ मुख्यमंत्री हेल्पलाइन की शुरुआत की गई तो वो सपना साकार होता नहीं दिख रहा है. क्योंकि शहरी क्षेत्र के लोग तो अपनी समस्या आसानी से स्थानीय प्रशासन या फिर मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचा ही देते हैं. लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना दुरुस्थ क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों का करना पड़ता है, जो जिला मुख्यालय तक भी अपनी शिकायत नहीं पहुंचा पाते है. शिकायतों के जो आंकड़े सामने आए हैं उससे एक बात तो साफ है कि मुख्यमंत्री हेल्पलाइन का प्रचार-प्रसार ग्रामीण इलाकों में उस स्तर पर नहीं किया गया. जितना ध्यान शहरी क्षेत्रों में दिया गया है.