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19 साल के युवा प्रदेश की राजनीति में क्षेत्र और जातिवाद हावी, पढ़ें पूरी रिपोर्ट - उत्तराखंड कांग्रेस

उत्तराखंड में जब भी लोकसभा या विधानसभा के चुनाव आते हैं तो सबसे पहले जातिगत समीकरण पर ध्यान दिया जाता है. सबसे पहले क्षेत्र के आधार पर ब्राह्मण और राजपूतों के आंकडे़ निकाले जाते हैं, उसके बाद क्षेत्रवाद और जातिवाद का समीकरण बनाया जाता है.

उत्तराखंड
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Published : Oct 3, 2019, 8:46 PM IST

Updated : Oct 4, 2019, 11:34 PM IST

देहरादून: 19 साल बाद भी उत्तराखंड क्षेत्रवाद और जातिवाद के दंश से बाहर नहीं निकल पाया है. उत्तराखंड हर तरह से दो भागों में बंटा हुआ नजर आता है. चाहे भौगोलिक परिस्थियां हों या फिर राजनीति समीकरण. प्रदेश में जातिवाद और क्षेत्रवाद इस कदर हावी है कि इसका असर वर्तमान राजनीति में भी देखने को मिल रहा है. इसी पर ईटीवी भारत की एक स्पेशल रिपोर्ट...

उत्तराखंड में जब भी लोकसभा या विधानसभा के चुनाव आते हैं सबसे पहले जातिगत समीकरण पर ध्यान दिया जाता है. क्षेत्र के आधार पर ब्राह्मण और राजपूतों के आंकडे़ निकाल जाते हैं, उसके बाद क्षेत्रवाद और जातिवाद का समीकरण बनाया जाता है. क्योंकि जब राजनीति में जाति और क्षेत्रवाद दोनों हावी होते हैं तो कुछ अलग निकलकर आना मुश्किल होता है.

प्रदेश की राजनीति में क्षेत्र और जातिवाद हावी

राजनीतिक समीकरणों पर एक नजर
पहला विधानसभा चुनाव:
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे और कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई थी. हालांकि उस दौरान मात्र एक अपवाद ही हुआ कि कुमाऊं रीजन के नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया गया था. वहीं राज्य गठन के बाद से कांग्रेस सरकार के सत्ता पर काबिज रहने यानि साल 2007 तक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हरीश रावत काबिज रहे. पहली बार उत्तराखंड राज्य में पूर्ण रूप से सरकार बनने के बाद क्षेत्रवाद विहीन यानि योग्यता के आधार पर प्रदेश के मुखिया और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाये गए थे.

पढ़ें- अभिमन्यु एकेडमी लूट कांडः RTO और आयकर विभाग भी एकाएक हुए सक्रिय, पूछताछ में चौंकाने वाला खुलासा

दूसरा विधानसभा चुनाव:
प्रदेश में दूसरी बार 2007 में विधानसभा चुनाव हुए थे. इस चुनाव में बीजेपी के अंदर क्षेत्र और जातिवाद हावी नजर आया. इस साल बीजेपी सत्ता में आई. बीजेपी ने गढ़वाल रीजन के भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया था. वहीं बीजेपी ने सगंठन की कमान बच्ची सिंह रावत को सौंपी. बच्ची रावत की बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके बाद बीजेपी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री खंडूरी को हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया. वहीं प्रदेश संगठन की कमान कुमाऊं रीजन के विशन सिंह चुफाल को सौंपी गई. इसके साथ ही साल 2011 में एक बार फिर निशंक को हटाकर गढ़वाल रीजन के खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया. लिहाजा क्षेत्रवाद का समीकरण सटीक होने के चलते विशन सिंह चुफाल प्रदेश अध्यक्ष बन रहे.

तीसरा विधानसभा चुनाव:
उत्तराखंड में तीसरी बार 2012 में विधानसभा चुनाव हुए. इस बार कांग्रेस ने वापसी की. कांग्रेस में भी क्षेत्र और जातिवाद का समीकरण देखने को मिला. इस बार कांग्रेस ने गढ़वाल रीजन के विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया. वहीं कुमाऊं रीजन से यशपाल आर्य को प्रदेश संगठन की कमान दी गई. आर्य को कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया. हालांकि 2 साल बाद 2014 में तात्कालिक मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की जगह कुमाऊं क्षेत्र के हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. वहीं क्षेत्र की समीकरणों को सही रखने के लिए कांग्रेस ने यशपाल आर्य को हटाकर गढ़वाल क्षेत्र से किशोर उपाध्याय को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी.

पढ़ें- वन्य जीव और मानव संघर्ष रोकने की कवायद, अफवाहों पर ध्यान नहीं देने की अपील

चौथा विधानसभा चुनाव:
2017 में चौथी बार उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हुए. इस बार भी बीजेपी ने क्षेत्र और जाति का संतुलन बनाने की कोशिश की. साल 2015 से कुमाऊं रीजन के अजय भट्ट को जहां संगठन की कमान दी गई तो वहीं 2017 के विधानसभा के बाद बीजेपी ने गढ़वाल क्षेत्र के त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया. हालांकि वर्तमान समय में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने वाले हैं. क्योंकि अजय भट्ट साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट से जीतकर सांसद बन गए हैं. लिहाजा इसी साल अंत तक बीजेपी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर देगी.

उत्तराखंड की दो मुख्य पार्टी कांग्रेस और बीजेपी के इतिहास और समीकरण पर नजर डालें तो कहा जा सकता है कि प्रदेश की राजनीति में हमेशा क्षेत्र और जातिवाद का समीकरण हावी रहा है.

पढ़ें- MDDA के नियमों में बदलाव, अब कमर्शियल भवन बनाने के लिए चाहिए पड़ोसियों की सहमति

हालांकि बीजेपी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती है. बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन इसे सिर्फ एक संयोग ही मानते हैं. बीजेपी का मानना है कि ब्राह्मण और ठाकुर की सोच रखकर बीजेपी कुछ नहीं करती हैं. पार्टी जाति के आधार पर राजनीति नहीं करती है. बीजेपी सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास लेकर चलने वाली है. यही कारण है कि समाज का हर वर्ग बीजेपी से जुड़ा है.

इस बारे में कांग्रेस, बीजेपी से थोड़ा अलग सोचती है. कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि राजनीति में संतुलन जरूर होना चाहिए. क्योंकि उत्तराखंड गढ़वाल, कुमाऊं और तराई क्षेत्र में बंटा हुआ है. इसलिए क्षेत्रों को संतुलित करना सभी राजनीतिक पार्टियों का काम है. लेकिन इसका आधार केवल और केवल क्षेत्र और जाति नहीं होना चाहिए. साथ ही कहा कि अगर दो योग्य लोग एक ही क्षेत्र से हों तो जरूरी नहीं है कि एक को पद दिया जाए और दूसरे को छोड़ दिया जाए. योग्यता बड़ा आधार होना चाहिए, लेकिन क्षेत्रीय संतुलन भी बहुत जरूरी है.

उत्तरखंड की राजनीति पर नजदीक से नजरे रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा का कहना है कि प्रदेश में ऐसी परंपरा विकसित नहीं होनी चाहिए. जिससे आगे प्रदेश और यहां जनता को नुकसान हो. इसलिए स्वच्छ और निष्कपट भाव से ऐसे व्यक्ति का चयन करना चाहिए, जो संगठन को दिशा दे और सरकार के माध्यम से विकास के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाये.

देहरादून: 19 साल बाद भी उत्तराखंड क्षेत्रवाद और जातिवाद के दंश से बाहर नहीं निकल पाया है. उत्तराखंड हर तरह से दो भागों में बंटा हुआ नजर आता है. चाहे भौगोलिक परिस्थियां हों या फिर राजनीति समीकरण. प्रदेश में जातिवाद और क्षेत्रवाद इस कदर हावी है कि इसका असर वर्तमान राजनीति में भी देखने को मिल रहा है. इसी पर ईटीवी भारत की एक स्पेशल रिपोर्ट...

उत्तराखंड में जब भी लोकसभा या विधानसभा के चुनाव आते हैं सबसे पहले जातिगत समीकरण पर ध्यान दिया जाता है. क्षेत्र के आधार पर ब्राह्मण और राजपूतों के आंकडे़ निकाल जाते हैं, उसके बाद क्षेत्रवाद और जातिवाद का समीकरण बनाया जाता है. क्योंकि जब राजनीति में जाति और क्षेत्रवाद दोनों हावी होते हैं तो कुछ अलग निकलकर आना मुश्किल होता है.

प्रदेश की राजनीति में क्षेत्र और जातिवाद हावी

राजनीतिक समीकरणों पर एक नजर
पहला विधानसभा चुनाव:
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे और कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई थी. हालांकि उस दौरान मात्र एक अपवाद ही हुआ कि कुमाऊं रीजन के नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया गया था. वहीं राज्य गठन के बाद से कांग्रेस सरकार के सत्ता पर काबिज रहने यानि साल 2007 तक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हरीश रावत काबिज रहे. पहली बार उत्तराखंड राज्य में पूर्ण रूप से सरकार बनने के बाद क्षेत्रवाद विहीन यानि योग्यता के आधार पर प्रदेश के मुखिया और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाये गए थे.

पढ़ें- अभिमन्यु एकेडमी लूट कांडः RTO और आयकर विभाग भी एकाएक हुए सक्रिय, पूछताछ में चौंकाने वाला खुलासा

दूसरा विधानसभा चुनाव:
प्रदेश में दूसरी बार 2007 में विधानसभा चुनाव हुए थे. इस चुनाव में बीजेपी के अंदर क्षेत्र और जातिवाद हावी नजर आया. इस साल बीजेपी सत्ता में आई. बीजेपी ने गढ़वाल रीजन के भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया था. वहीं बीजेपी ने सगंठन की कमान बच्ची सिंह रावत को सौंपी. बच्ची रावत की बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके बाद बीजेपी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री खंडूरी को हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया. वहीं प्रदेश संगठन की कमान कुमाऊं रीजन के विशन सिंह चुफाल को सौंपी गई. इसके साथ ही साल 2011 में एक बार फिर निशंक को हटाकर गढ़वाल रीजन के खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया. लिहाजा क्षेत्रवाद का समीकरण सटीक होने के चलते विशन सिंह चुफाल प्रदेश अध्यक्ष बन रहे.

तीसरा विधानसभा चुनाव:
उत्तराखंड में तीसरी बार 2012 में विधानसभा चुनाव हुए. इस बार कांग्रेस ने वापसी की. कांग्रेस में भी क्षेत्र और जातिवाद का समीकरण देखने को मिला. इस बार कांग्रेस ने गढ़वाल रीजन के विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया. वहीं कुमाऊं रीजन से यशपाल आर्य को प्रदेश संगठन की कमान दी गई. आर्य को कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया. हालांकि 2 साल बाद 2014 में तात्कालिक मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की जगह कुमाऊं क्षेत्र के हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. वहीं क्षेत्र की समीकरणों को सही रखने के लिए कांग्रेस ने यशपाल आर्य को हटाकर गढ़वाल क्षेत्र से किशोर उपाध्याय को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी.

पढ़ें- वन्य जीव और मानव संघर्ष रोकने की कवायद, अफवाहों पर ध्यान नहीं देने की अपील

चौथा विधानसभा चुनाव:
2017 में चौथी बार उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हुए. इस बार भी बीजेपी ने क्षेत्र और जाति का संतुलन बनाने की कोशिश की. साल 2015 से कुमाऊं रीजन के अजय भट्ट को जहां संगठन की कमान दी गई तो वहीं 2017 के विधानसभा के बाद बीजेपी ने गढ़वाल क्षेत्र के त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया. हालांकि वर्तमान समय में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने वाले हैं. क्योंकि अजय भट्ट साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट से जीतकर सांसद बन गए हैं. लिहाजा इसी साल अंत तक बीजेपी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर देगी.

उत्तराखंड की दो मुख्य पार्टी कांग्रेस और बीजेपी के इतिहास और समीकरण पर नजर डालें तो कहा जा सकता है कि प्रदेश की राजनीति में हमेशा क्षेत्र और जातिवाद का समीकरण हावी रहा है.

पढ़ें- MDDA के नियमों में बदलाव, अब कमर्शियल भवन बनाने के लिए चाहिए पड़ोसियों की सहमति

हालांकि बीजेपी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती है. बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन इसे सिर्फ एक संयोग ही मानते हैं. बीजेपी का मानना है कि ब्राह्मण और ठाकुर की सोच रखकर बीजेपी कुछ नहीं करती हैं. पार्टी जाति के आधार पर राजनीति नहीं करती है. बीजेपी सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास लेकर चलने वाली है. यही कारण है कि समाज का हर वर्ग बीजेपी से जुड़ा है.

इस बारे में कांग्रेस, बीजेपी से थोड़ा अलग सोचती है. कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि राजनीति में संतुलन जरूर होना चाहिए. क्योंकि उत्तराखंड गढ़वाल, कुमाऊं और तराई क्षेत्र में बंटा हुआ है. इसलिए क्षेत्रों को संतुलित करना सभी राजनीतिक पार्टियों का काम है. लेकिन इसका आधार केवल और केवल क्षेत्र और जाति नहीं होना चाहिए. साथ ही कहा कि अगर दो योग्य लोग एक ही क्षेत्र से हों तो जरूरी नहीं है कि एक को पद दिया जाए और दूसरे को छोड़ दिया जाए. योग्यता बड़ा आधार होना चाहिए, लेकिन क्षेत्रीय संतुलन भी बहुत जरूरी है.

उत्तरखंड की राजनीति पर नजदीक से नजरे रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा का कहना है कि प्रदेश में ऐसी परंपरा विकसित नहीं होनी चाहिए. जिससे आगे प्रदेश और यहां जनता को नुकसान हो. इसलिए स्वच्छ और निष्कपट भाव से ऐसे व्यक्ति का चयन करना चाहिए, जो संगठन को दिशा दे और सरकार के माध्यम से विकास के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाये.

Intro:नोट - फाइल फुटेज ftp से भी भेजी गयी है।
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उत्तराखंड में जब भी क्षेत्रवाद या फिर जातिवाद के समीकरणों की बात आती हैं तो नजर आता है कि यह छोटा सा राज्य अभी तक क्षेत्रवाद और जातिवाद के दंश से बाहर नहीं निकल पाया है। उत्तराखंड राज्य को बने 19 साल का वक्त हो चला है लेकिन उत्तराखंड राज्य अभी भी कई दंशो को झेल रहा है।उत्तराखंड राज्य की जब हम बात करते हैं तो हर दृष्टि से उत्तराखंड राज्य दो भागो में बटा हुआ दिखाई देता है, चाहे राज्य के भौगोलिक परिस्थियों की बात करे या फिर राजनीतिक समीकरणों की बात करे। लेकिन प्रदेश में जातिवाद और क्षेत्रवाद इस कदर हाबी है कि मौजूदा समय में, यह दंश सबसे पहले प्रदेश की राजनीती पर दिखाई दे रही है। आखिर क्या है उत्तराखड के राजनितिक समीकरण का इतिहास, देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट......... 


Body:उत्तराखंड में जब राजनेता अपने चुनाव की तैयारी करता है तो सबसे पहले वह जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश करता है, और सबसे पहले यह देखता है कि ब्राह्मण और राजपूत किस क्षेत्र में कितने हैं। यही नहीं बल्कि जब नेताओ को पद से नवाजा जाता है तो सबसे पहले क्षेत्रवाद और जातिवाद का समीकरण बनाया जाता है। क्योकि उत्तराखंड में ब्राह्मण और क्षत्रियो का ही वर्चस्व रहा है। और इसी वजह से आज उत्तराखंड में जातिवाद के समीकरणों से अछूती नहीं रह पाई है, क्योंकि जब राजनीति में जाति और क्षेत्रवाद दोनों हावी होते है तो कुछ अलग निकलकर आना मुश्किल होता है। 


राजनीतिक विशेषज्ञ भागीरथ शर्मा ने बताया कि पार्टियां संगठन स्तर पर ऐसा सोचे लगती हैं, लेकिन इसी संगठन में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो ऐसा सोचते हैं और उनका प्रयास सफल भी हो जाता है। लेकिन यह संगठन हित में नहीं होता है। और यह जरूरी है कि जब प्रदेश में संगठन को चलाना होता है तो किसी को जातीय क्षेत्र के आधार पर ले आते हैं, लेकिन उसमें नेतृत्व क्षमता या सांगठनिक क्षमता ना हो और वह जनता के मनोभावों को समझने वाला ना हो तो, इससे संगठन का नुकसान होता है। इसलिए जातिवाद और क्षेत्रवाद देखा ही नही जाना चाहिए। 

बाइट - भगीरथ शर्मा, राजनितिक विशेषज्ञ   


साथ ही भगीरथ शर्मा ने बताया कि ऐसी परंपरा विकसित नहीं करना चाहिए जिससे आगे प्रदेश और प्रदेश की जनता को नुकसान हो। इसलिए स्वक्ष्य और निष्कपट भाव से ऐसे व्यक्ति का चयन करना चाहिए, जो संगठन को दिशा दे और सरकार के माध्यम से विकास के कार्यक्रमो को आगे बढ़ाये। लेकिन जब बात सरकार की होती है तो सरकार को जनता के प्रति उत्तरदायी होना होता है काम करना होता है। और जब इन चुनौतीयो की सामना करने की बात होती है, तो ये उम्मीद जरूर की जाती है, की वो अपने विधानसभा क्षेत्र और जनपद के मंत्री बनकर न रह जाए। लेकिन पिछले 19 सालों में अनुभव किया जाता रहा है उसमें कतिपाय लोग जो सरकार का हिस्सा रहे है, उनको देखा गया कि वो अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर एक मंत्री के रूप में पहचाने नही गए।  

बाइट - भगीरथ शर्मा, राजनितिक विशेषज्ञ 


वही भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने बताया कि यह बातें संयोग भी तो हो सकती हैं लेकिन यह जानबूझकर किया जाए कि यहां ब्राह्मण है और ठाकुर हैं ऐसी सोच भाजपा में नहीं है। भाजपा, सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास लेकर चलने वाली है और यही कारण है कि समाज का हर वर्ग भाजपा से जुड़ा हुआ है और हमारे नेतृत्व का भी यही आव्हान है जिसे हम पालन करते हैं। साथ ही बताया कि भाजपा जाति को दृष्टिगत लेकर की राजनीति नही करती है लेकिन अगर कहीं ऐसे दिखाई दे रहा है। तो वह व्यक्ति की योग्यता पर आधारित हो सकती है। लेकिन अगर किसी समीकरण के अंदर हो यह संभव नहीं है। और भाजपा जनहित के मामलों में फोकस करती है राष्ट्र की सेवा भाजपा का लक्ष्य है और राजनीति तो सिर्फ एक माध्यम है।

बाइट - देवेंद्र भसीन, प्रदेश मीडिया प्रभारी, भाजपा


वहीं कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि राजनीति में संतुलन जरूर होना चाहिए क्योंकि उत्तराखंड में गढ़वाल संभाग, कुमाऊँ संभाग और तराई है। इसलिए सभी क्षेत्रों को संतुलित करना सभी राजनीतिक पार्टियों का काम है, लेकिन केवल और केवल क्षेत्रीय आधार, जाति आधार नहीं होना चाहिए। साथ ही कहा कि अगर दो योग्य लोग एक ही क्षेत्र से हो, तो जरूरी नहीं है कि एक को पद दिया जाए और दूसरे को छोड़ दिया जाए। हालांकि योग्यता बड़ा आधार होना चाहिए लेकिन क्षेत्रीय संतुलन भी बहुत जरूरी है।

बाइट - सूर्यकांत धस्माना, प्रदेश उपाध्यक्ष, कांग्रेस



................ उत्तराखंड के राजनितिक समीकरण................. 

पहला विधानसभा चुनाव - उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पहली बार 2002 में हुई विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज कर सत्ता पर काबिज हुई थी। हालांकि उस दौरान मात्र एक अपवाद ही हुआ कि कुमाऊ रीजन के नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री चयनित किया गया। तो वही राज्य गठन के बाद से कांग्रेस सरकार के सत्ता काबिज रहने यानि साल 2007 तक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हरीश रावत काबिज रहे। यानि पहली बार उत्तराखंड राज्य में पूर्ण रूप से सरकार बनने के बाद क्षेत्रवाद बिहीन यानि योग्यता के आधार पर प्रदेश के मुखिया और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाये गए थे। 


दूसरा विधानसभा चुनाव - उत्तराखंड राज्य में हुई दूसरे विधानसभा चुनाव, 2007 में भाजपा के भीतर क्षेत्रवाद और जातिवाद हबी नज़र आया, क्योकि साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव को जीतकर सत्ता में आयी भाजपा ने गढ़वाल रीजन के भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया था, तो वही भाजपा ने कुमाऊ रीजन से बच्ची सिंह रावत को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौपी गयी थी। यही नहीं साल 2009 जब प्रदेश के तात्कालिक मुखिया भुवन चंद्र खंडूरी को हटाकर गढ़वाल रीजन के रमेश पोखरियाल को प्रदेश की कमान सौपी गयी तो वही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को भी बदलकर कुमाऊ रीजन के विशन सिंह चुफाल को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौपी गयी। इसके साथ ही साल 2011 में एक बार फिर प्रदेश मुखिया में बदलाव कर गढ़वाल रीजन के भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया था, लिहाजा क्षेत्रवाद का समीकरण सटीक होने के चलते विशन सिंह चुफाल ही प्रदेश अध्यक्ष पद पर तैनात थे।  


तीसरा विधानसभा चुनाव - उत्तराखंड राज्य में हुई तीसरी विधानसभा चुनाव, 2012 में कांग्रेस पार्टी के भीतर क्षेत्रवाद और जातिवाद हावी नज़र आया, क्योकि साल 2012 में विधानसभा चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस पार्टी में उस दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर तैनात कुमाऊ रेंज के यशपाल आर्य के बाद समीकरण बनते हुए गढ़वाल रेंज के विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के रूप में चयनित किया गया था। इसके साथ ही साल 2014 में तात्कालिक मुख्यमत्री विजय बहुगुणा की जगह कुमाऊ क्षेत्र के हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया तो वही क्षेत्रवाद की समीकरण को बनाने को लेकर कांग्रेस पार्टी ने यशपाल आर्य को हटाकर गढ़वाल क्षेत्र के किशोर उपाध्याय को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को कमान सौपी गयी।  


चौथा विधानसभा चुनाव - उत्तराखंड राज्य में हुई चौथे  विधानसभा चुनाव, 2017 में भी भाजपा के भीतर क्षेत्रवाद और जातिवाद हबी नज़र आया, क्योकि साल 2015 से प्रदेश अध्यक्ष पद पर तैनात कुमाऊ रीजन के अजय भट्ट के बाद जब साल 2017 में भारी बहुमत से जीतकर सत्ता पर काबिज हुई भाजपा सरकार में गढ़वाल रीजन के त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रदेश के मुखिया की कमान सौपी गयी। हालांकि वर्तमान समय में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने है क्योकि साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट से जीतकर  सांसद बन गए है, लिहाजा इसी साल अंत तक भाजपा नया प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर देगी। भाजपा के क्षेत्रवाद और जातिवाद समीकरणों पर गौर करे तो ये कहना गलत नहीं होगा।




Conclusion:
Last Updated : Oct 4, 2019, 11:34 PM IST
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