देहरादून: यूं तो प्राइवेट अस्पतालों की मुनाफाखोरी की शिकायतें अक्सर आती रहती हैं. लेकिन कोरोना काल में मरीजों और तीमारदारों की जेब से लूट के मामले चिंता बढ़ाने वाले हैं. अस्पतालों में महंगी दवाइयों से लेकर स्वास्थ्य सेवा के बदले मोटी रकम वसूलने की भी शिकायतें आम हैं. इस पर बेलगाम होते अस्पतालों के सामने सरकार शीर्षासन करती दिखाई देती है. हालत यह है कि अस्पतालों से खौफ खाई सरकार महामारी के दौर में इन पर कार्रवाई करने से भी बचती रही है.
यूं तो प्राइवेट अस्पताल मुनाफा कमाने के लिए ही खोले जाते हैं. लेकिन कई बार यह अस्पताल मानवता को भूल कर तय मानकों को भी पार कर देते हैं. इन्हीं हालात में दिक्कतें शुरू हो जाती हैं. दरअसल, प्रदेश में कोरोना के दौरान निजी अस्पतालों कि कुछ ऐसी ही शिकायतें सामने आ रही हैं. देहरादून के अरिहंत और कालिंदी अस्पताल पर भी ऐसे आरोप लगे हैं. यही नहीं कैलाश अस्पताल और मैक्स पर भी आए दिन बेहद ज्यादा पैसे लेने के आरोप लगते रहे हैं.
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खास बात यह है कि मैक्स सरीखे बड़े अस्पताल में तो मरीजों की मौत के बाद उसके सामान तक की चोरी की बात सामने आ चुकी है. कुल मिलाकर निजी अस्पतालों में मरीज और तीमारदारों की जेब ढीली करने की कोशिश होती रही है. यह सब आम लोगों के आरोपों से साबित होता है. उत्तरकाशी से अपने पिता का इलाज कराने आए इस युवा की भी ऐसी ही शिकायत है. इनका कहना है कि यूं तो सरकार ने कोरोना महामारी को लेकर रेट तय किए हैं, इसके बावजूद लाखों रुपए निजी अस्पताल उनसे वसूल रहा है. किसी का 5 लाख तो किसी का 10 लाख का बिल बनाया गया है. जबकि वह उत्तरकाशी में एक किसान परिवार से हैं और खेती बाड़ी पर ही उनका घर चलता. ऐसे हालात में उन्होंने किस तरह अस्पताल में अपने मरीज को भर्ती कराया और कैसे वह खर्चा बहन कर रहे हैं, यह उनका परिवार ही जानता है. युवा कहता है कि संक्रमण के कारण सब कुछ रुक गया है. उनकी आय का जरिया यानी खेती में भी काम खत्म हो गया है. ऐसे में अब वह क्या करें उन्हें समझ में नहीं आ रहा.
वहीं एक अन्य युवक के हालात भी कुछ इसी तरह के हैं. उसने बताया कि अस्पताल की तरफ से मरीजों और तीमारदारों के लिए कई परेशानियां खड़ी की जाती हैं. जांच के नाम पर कोई मनमाना पैसे वसूल रहा है तो कोई एक्स्ट्रा चार्ज कहकर मरीजों की जेब पर डाका डाल रहा है. इन हालात में निजी अस्पतालों पर लगाम लगनी चाहिए और इनके ऊपर सरकार का नियंत्रण भी होना चाहिए.
निजी अस्पतालों की राज्य सरकार को भी खुले रूप में कई शिकायतें नहीं मिलती हैं. इसमें ज्यादा पैसा वसूली की बात तो सामने आई ही है साथ ही मौत के आंकड़े देरी से बताने, सरकार की अटल आयुष्मान योजना का लाभ मरीजों को न देने तक की बात खुद सरकार ने भी कुबूली है. लेकिन इसके बाद भी हैरत की बात यह है कि सरकार की तरफ से न तो ऐसे अस्पतालों के खिलाफ कोई मुकदमा किया गया है न ही कोई ठोस कार्रवाई हुई.
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इस मामले पर सरकार के शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल कहते हैं कि राज्य सरकार ने इलाज के लिए रेट तय किए हैं और इससे अधिक रेट लेने वाले के खिलाफ लोग शिकायत कर सकते हैं. इसके लिए बकायदा टोल फ्री नंबर भी जारी किए गए हैं.
वैसे आपको यह जानना भी जरूरी है कि राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों के लिए क्या रेट तय किए हैं. सरकार ने नाभ (NABH) से संबद्ध अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन बेड के लिए ₹8,000, आईसीयू बिना वेंटिलेटर ₹12,000 और आईसीयू वेंटिलेटर के साथ ₹14,400 का रेट तय किया है.
उधर नाभ से संबंध नहीं होने वाले अस्पतालों के लिए आइसोलेशन बेड ₹6,400, आईसीयू वेंटिलेटर के बिना 10,400 और गंभीर मरीज आईसीयू वेंटिलेटर के साथ ₹12,000 तय किए हैं. इस खर्चे में पीपीई किट की फीस भी शामिल है, जो अक्सर मरीजों से ली जाती है. इन कीमतों के तय होने के बावजूद भी प्राइवेट अस्पतालों की तरफ से लाखों का बिल मरीजों का बनाया जा रहा है. ऐसी शिकायतों के बाद सरकार अब भी सिर्फ अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई का दम भरती है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं कर पाती.