देहरादून: कोरोना काल में जब स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से व्यवस्थाओं की कमी दिखाई दे रही थी, उस दौरान एंबुलेंस जैसी अति आवश्यक सेवा पर भी भारी दबाव बन गया था. हालत यह रही कि कोरोना मामले बढ़ने के साथ कई बार सभी इमरजेंसी वाले मरीजों को भी समय से एंबुलेंस नहीं मिल पाई. उत्तराखंड में आपातकालीन सेवा का क्या है हाल और क्यों महामारी में एंबुलेंस की कमी ने मरीजों की परेशानी बढ़ाई ? जानिए...
आपात स्थिति में लोगों को अस्पताल पहुंचने के लिए एंबुलेंस ही एकमात्र सहारा होती है. ऐसे में अगर एंबुलेंस की कमी के कारण मरीज को अस्पताल पहुंचने में देरी हो जाए या एंबुलेंस ना मिले, तो मरीज या उनके तीमारदार के लिए दिक्कतें कितनी बढ़ सकती हैं ? यह सब जानते हैं.
महामारी के दौरान मरीजों के लिए एंबुलेंस ना मिलना या देरी से मिलना एक बड़ी परेशानी बनकर उभरी. यूं तो पहाड़ी जनपदों में दुर्गम क्षेत्रों तक एंबुलेंस की पहुंच पहले ही कम है, लेकिन महामारी के समय मैदानी जनपदों में भी एंबुलेंस की कमी दिखाई देने लगी थी. उत्तराखंड में 108 आपातकालीन सेवा के तहत 140 एंबुलेंस संचालित की जा रही थी. कोरोना 2020 की पहली लहर के दौरान फरवरी में 132 नई एंबुलेंस 108 आपातकालीन सेवा के बेड़े में जोड़ी गईं. अब राज्य में 272 एंबुलेंस इस समय मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने का काम कर रही हैं.
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राज्य में एंबुलेंस को दो हिस्सों में बांटा गया
108 आपातकालीन सेवा का संचालन करने वाली कंपनी ने एंबुलेंस की संख्या के हिसाब से दो हिस्सों में डिवाइड कर दिया, ताकि कोविड-19 के लिए अलग एंबुलेंस रहे और अन्य बीमारियों के लिए अलग. राज्य में 50 फीसदी तक मरीज अकेले देहरादून में ही संक्रमित हुए हैं. इस लिहाज से देहरादून में मौजूद एंबुलेंस के आंकड़ों को जानना भी जरूरी है.
देहरादून जनपद में 108 की 31 एंबुलेंस
देहरादून जिले में 108 आपातकालीन सेवा ने कुल 31 एंबुलेंस लगाई हैं, जिसमें से 13 एंबुलेंस कोरोना मरीजों के लिए और बाकी 18 सामान्य मरीजों के लिए चिह्नित की गई थी. अंदाजा लगाइए कि देहरादून जिले में अब तक 1,10,003 लोग संक्रमित हो चुके हैं. यही नहीं, हजारों की संख्या में संदिग्ध मरीज भी रहे हैं. यानी करीब डेढ़ लाख मरीजों को देहरादून जिले में मात्र 13 एंबुलेंस के भरोसे रखा गया था.
जरूरत के समय मरीजों को नहीं मिली एंबुलेंस
वैसे कई मरीज ऐसे थे जो निजी अस्पतालों की प्राइवेट एंबुलेंस से भी आए और कई मरीजों को अस्पताल लाने की जरूरत भी नहीं पड़ी. लेकिन इसके बावजूद भी अगर 20 फीसदी मरीजों को भी अस्पताल में आने की एक बार भी जरूरत पड़ी, तो उस लिहाज से भी 20 हजार से ज्यादा मरीजों ने एंबुलेंस की सेवा ली. इस आंकड़े पर भी सभी मरीजों को एंबुलेंस की सुविधा मिलना मुश्किल है.
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निजी एंबुलेंस सेवा से जुड़े लोगों पर लगे जेब काटने के आरोप
108 आपातकालीन सेवा से तो लोगों को मुफ्त अस्पतालों तक पहुंचने की सुविधा मिली लेकिन निजी एंबुलेंस के जरिए मरीजों की जेब काटने के कई मामले सुनाई देते रहे. एंबुलेंस चालकों ने कुछ किलोमीटर तक जाने के ही हजारों रुपए मरीजों से लिए. एक तरफ जहां बीमारी से परेशान मरीज और तीमारदार अस्पतालों के चक्कर लगा रहे थे, तो वहीं निजी एंबुलेंस इस्तेमाल करने पर उन्हें मोटी रकम अदा करनी पड़ रही थी. इस लिहाज से भी प्रदेश में एंबुलेंस को लेकर मरीजों को खासी परेशानी उठानी पड़ी.
108 एंबुलेंस सेवा कर्मियों ने बेहतर काम किया- अनिल शर्मा
इन सब परेशानियों के बाद भी निजी एंबुलेंस संचालकों की तुलना में 108 आपातकालीन सेवा ने बेहतर काम किया. 108 आपातकालीन सेवा के जनरल मैनेजर प्रोजेक्ट अनिल शर्मा बताते हैं कि कोविड-19 के दौरान मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए कई तरह की दिक्कत सामने आईं. इन दिक्कतों से पार पाने के लिए सभी कर्मियों ने पूरी मेहनत के साथ काम किया.
एंबुलेंस की कमी को किया जा रहा दूर- सुबोध उनियाल
एंबुलेंस की इसी कमी को लेकर जब सरकार के शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने ईटीवी भारत को बताया कि एंबुलेंस की कमी को दूर किया जा रहा है. इस दिशा में एक तरफ सीएसआर फंड के जरिए एंबुलेंस लाई जा रही है. वहीं, कोरोना काल में राज्य के सभी विधायकों को एक-एक करोड़ रुपये जारी किये गए. उस फंड से तमाम विधायक अपने-अपने क्षेत्रों के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था कर रहे हैं.