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आपदा की घड़ी में कारगर साबित होगा अर्ली वार्निंग सिस्टम? मौसम निदेशक ने उठाए सवाल

हिमालय क्षेत्र में बसे होने के कारण पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में हमेशा आपदा का खतरा बना रहा है. ऐसे में सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग आपदा कोई ऐसा सिस्टम इजाद करना चाहती है, जिसकी मदद से आपदा की घड़ी में वक्त रहते लोगों को वहां से हटाया जा सके और कम से कम नुकसान हो. इसको लेकर आपदा विभाग अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम की रणनीति पर कार्य कर रहा है. लेकिन क्या विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले उत्तराखंड में यह सिस्टम कारगर साबित होगा, ये बड़ा सवाल है.

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कारगर साबित होगा अर्ली वार्निंग सिस्टम?
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Published : Apr 15, 2023, 8:15 PM IST

Updated : Apr 15, 2023, 10:46 PM IST

कारगर साबित होगा अर्ली वार्निंग सिस्टम?

देहरादून: हिमालयी राज्य उत्तराखंड आपदा के लिहाज से बेहद ही संवेदनशील क्षेत्र है. उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं पर बेहतर रिस्पॉन्स और लोगों को जागरूक करने के लिए एक बेहतर अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम पर काम किया जा रहा है. ताकि वक्त रहते लोगों को बचाया जा सके और आपदा की स्थिति में कम से कम नुकसान हो. पिछले दिनों आपने सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों में रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ी वीडियो जरूर देखी होगी. जिसमें यूक्रेन पर हमले से पहले पूरे शहर में सायरन बजने शुरू हो जाते थे, ठीक उसी तरह से उत्तराखंड में अलार्मिंग सिस्टम को आपदा संभावित क्षेत्रों में लगाने की प्लानिंग की जा रही है, लेकिन आपदा के दृष्टिगत अलार्मिंग सिस्टम विकसित करना एक टेढ़ी खीर है. क्योंकि उत्तराखंड मौसम विभाग इस सिस्टम पर पहले ही सवाल खड़े कर रहा है.

उत्तराखंड में आपदाओं का इतिहास: विषम भौगोलिक वाले हिमालयी राज्य उत्तराखंड में आपदाओं का पुराना इतिहास रहा है. वहीं, लगातार बढ़ रहे अवस्थापना विकास के साथ-साथ आपदा का और भी रिस्क बढ़ता ही जा रहा है. ऐसा नहीं है कि आपदाएं अब ज्यादा आ रही हैं, बल्कि अब होने वाला नुकसान पहले की तुलना में ज्यादा हो रहा है. उत्तराखंड में पिछले कुछ दशको में हुए अनियंत्रित और अव्यवस्थित विकास के चलते अब आने वाली आपदाओं में ज्यादा जान-माल का नुकसान दर्ज किया जा रहा है.

मानवीय दखल और बेलगाम विकास बनी मुसबीत: उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में लगातार बढ़ रही मानवीय दखल और बेलगाम विकास के चलते देवभूमि में अब पहले की तुलना में आपदाओं से होने वाले नुकसान का रिस्क बहुत अधिक बढ़ हो गया है. वहीं, आपदा आने के पीछे वेदर पैटर्न में बदलाव का भी एक बड़ा रोल है. ऐसे में मानसून सीजन के बाद भी उत्तराखंड में आपदाएं देखी जा रही है. मानसून सीजन न होने के बावजूद भी पिछले कुछ सालों में कई ऐसी बड़ी आपदाएं दर्ज हुई है, जिसने उत्तराखंड के शासन प्रशासन को चिंता बेहद बढ़ा दी है.

मानसून सीजन के बिना भी आपदा का खतरा: आपको 9 फरवरी 2021 का तारीख याद होगा. इस दिन बिना मानसून सीजन के ही रैणी आपदा आई थी. इसी साल अक्टूबर में मैदानी इलाकों में आई भीषण बाढ़ ने भी तबाही मचाई थी. दोनों घटनाएं बताती है कि उत्तराखंड में केवल मानसून सीजन में ही आपदाओं का रिस्क नहीं है, बल्कि अब साल भर और प्रदेश के किसी भी हिस्से में किसी वक्त भी कोई बड़ी आपदा आ सकती है, लेकिन अब तक जान माल के नुकसान को कम करने के लिए अब तक उत्तराखंड में कोई अलार्म सिस्टम नहीं लगाया गया है. हालांकि, आप आपदा प्रबंधन विभाग प्रदेश भर में एक मजबूत अलार्म सिस्टम को लेकर रणनीति बना रहा है.

क्या होता है वार्निंग अलार्म सिस्टम: आपदा के समय अलार्म सिस्टम बेहद ही कारगर साबित होता है. इसकी मदद से आपदा से पहले जोखिम से बचने के लिए बड़े स्तर पर लोगों को अलर्ट किया जाता है. अलार्म सिस्टम कई प्रकार के जोखिम से संबंधित होते हैं. यह भूकंप, बाढ़ और तूफान सहित अन्य प्राकृतिक आपदा से संबंधित हो सकते हैं. इसके अलावा दुश्मन देश से होने वाले आक्रमण को लेकर भी अलार्म सिस्टम काम करता है. हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी कई चैनलों पर यूक्रेन में मिसाइल अटैक होने से पहले बजने वाले अलार्म इसका एक उदाहरण है. इसी तरह से इजरायल में भी इस तरह की टेक्नोलॉजी का विकास किया गया है, जो दुश्मन देश से होने वाले मिसाइल अटैक से पहले एक बड़ी बसावट को अलग करता है. प्राकृतिक आपदाओं के मामले में या अलार्म सिस्टम तमाम मौसम संबंधी सेंसर और आपदा से जुड़े उपकरणों से मिलने वाली त्वरित सूचनाओं पर काम करते हैं.

अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम को लेकर रणनीति: उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग नेचुरल डिजास्टर से संबंधित अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम को लेकर रणनीति तैयार कर रहा है. आपदा प्रबंधन विभाग के अपर सचिव सबीन बंसल ने बताया आपदा प्रबंधन विभाग जल्द ही मल्टी हजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम को लेकर काम शुरू करने जा रहा है. इस सिस्टम के तहत बड़ी हैबिटेशन और वेनरेबल यानी जोखिम वाले इलाकों के आसपास इस सिस्टम को लगाए जाएगा. खासतौर से बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने के जोखिम वाले क्षेत्रों में इस तरह के अलार्म सिस्टम को स्थापित किया जाएगा. ताकि उस इलाके में जोखिम होने पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को अलर्ट किया जा सके.

अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम से होगा फायदा: आपदा अपर सचिव ने कहा इस सिस्टम के तहत ज्यादा से ज्यादा लोगों को रियल टाइम अलार्म के जरिए अलर्ट किया जाएगा. जिसकी मदद से समय रहते संभावित आपदा क्षेत्र से लोगों को निकाला जा सकेगा. यह पूरी तरह से मौसम और आपदा संबंधित उपकरणों से डायरेक्ट इंटीग्रेटेड होने की वजह से ऑटोमेटेड रहेगा. इसका कंट्रोल DEOC और SEOC के पास रहेगा. इस तरह की चेतावनी को संशोधित भी किया जा सकता है और मैनुअली भी चेतावनी दी जा सकती है, जो अन्य सभी तरह के परिस्थितियों में काम आएंगे.

मौसम विभाग के निदेशक ने उठाए सवाल: भले ही उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग प्रदेश में अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम को लेकर तैयारी में जुटा हो, लेकिन उत्तराखंड मौसम विभाग ने इस सिस्टम के कारगर साबित होने पर सवाल खड़ा कर दिया है. मौसम निदेशक विक्रम सिंह का कहना है कि यह सिस्टम कितना काम करेगा, यह देखने वाली बात होगी. क्योंकि खासतौर से रात्रि के समय इस तरह के अलार्म सिस्टम से किस तरह से लोगों को फायदा होगा, यह सोचने वाली बात है. मौसम निदेशक का यह भी कहना है कि आपदाओं में होने वाला नुकसान ज्यादातर रात के समय आने वाली आपदा से होता है और उस समय क्या या अलार्म सिस्टम लोगों की जान बचा पाएगा यह बड़ा सवाल है.

आरएफ ब्रॉडकास्ट टेक्नोलॉजी होगी कारगर साबित: मौसम वैज्ञानिक विक्रम सिंह का कहना है कि आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा किस टेक्नोलॉजी के जरिए ब्रॉडकास्टिंग की रणनीति बनाई जा रही है, वह भी बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि सेल ब्रॉडकास्टिंग में ज्यादातर दुर्गम इलाकों में कनेक्टिविटी की समस्या हो सकती है. आपदा के समय कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती बन सकती है. वहीं, इसके अलावा यदि आरएफ ब्रॉडकास्ट टेक्नोलॉजी के बारे में सोचा जाए तो, वह एक बेहतर विकल्प हो सकता है.

कारगर साबित होगा अर्ली वार्निंग सिस्टम?

देहरादून: हिमालयी राज्य उत्तराखंड आपदा के लिहाज से बेहद ही संवेदनशील क्षेत्र है. उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं पर बेहतर रिस्पॉन्स और लोगों को जागरूक करने के लिए एक बेहतर अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम पर काम किया जा रहा है. ताकि वक्त रहते लोगों को बचाया जा सके और आपदा की स्थिति में कम से कम नुकसान हो. पिछले दिनों आपने सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों में रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ी वीडियो जरूर देखी होगी. जिसमें यूक्रेन पर हमले से पहले पूरे शहर में सायरन बजने शुरू हो जाते थे, ठीक उसी तरह से उत्तराखंड में अलार्मिंग सिस्टम को आपदा संभावित क्षेत्रों में लगाने की प्लानिंग की जा रही है, लेकिन आपदा के दृष्टिगत अलार्मिंग सिस्टम विकसित करना एक टेढ़ी खीर है. क्योंकि उत्तराखंड मौसम विभाग इस सिस्टम पर पहले ही सवाल खड़े कर रहा है.

उत्तराखंड में आपदाओं का इतिहास: विषम भौगोलिक वाले हिमालयी राज्य उत्तराखंड में आपदाओं का पुराना इतिहास रहा है. वहीं, लगातार बढ़ रहे अवस्थापना विकास के साथ-साथ आपदा का और भी रिस्क बढ़ता ही जा रहा है. ऐसा नहीं है कि आपदाएं अब ज्यादा आ रही हैं, बल्कि अब होने वाला नुकसान पहले की तुलना में ज्यादा हो रहा है. उत्तराखंड में पिछले कुछ दशको में हुए अनियंत्रित और अव्यवस्थित विकास के चलते अब आने वाली आपदाओं में ज्यादा जान-माल का नुकसान दर्ज किया जा रहा है.

मानवीय दखल और बेलगाम विकास बनी मुसबीत: उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में लगातार बढ़ रही मानवीय दखल और बेलगाम विकास के चलते देवभूमि में अब पहले की तुलना में आपदाओं से होने वाले नुकसान का रिस्क बहुत अधिक बढ़ हो गया है. वहीं, आपदा आने के पीछे वेदर पैटर्न में बदलाव का भी एक बड़ा रोल है. ऐसे में मानसून सीजन के बाद भी उत्तराखंड में आपदाएं देखी जा रही है. मानसून सीजन न होने के बावजूद भी पिछले कुछ सालों में कई ऐसी बड़ी आपदाएं दर्ज हुई है, जिसने उत्तराखंड के शासन प्रशासन को चिंता बेहद बढ़ा दी है.

मानसून सीजन के बिना भी आपदा का खतरा: आपको 9 फरवरी 2021 का तारीख याद होगा. इस दिन बिना मानसून सीजन के ही रैणी आपदा आई थी. इसी साल अक्टूबर में मैदानी इलाकों में आई भीषण बाढ़ ने भी तबाही मचाई थी. दोनों घटनाएं बताती है कि उत्तराखंड में केवल मानसून सीजन में ही आपदाओं का रिस्क नहीं है, बल्कि अब साल भर और प्रदेश के किसी भी हिस्से में किसी वक्त भी कोई बड़ी आपदा आ सकती है, लेकिन अब तक जान माल के नुकसान को कम करने के लिए अब तक उत्तराखंड में कोई अलार्म सिस्टम नहीं लगाया गया है. हालांकि, आप आपदा प्रबंधन विभाग प्रदेश भर में एक मजबूत अलार्म सिस्टम को लेकर रणनीति बना रहा है.

क्या होता है वार्निंग अलार्म सिस्टम: आपदा के समय अलार्म सिस्टम बेहद ही कारगर साबित होता है. इसकी मदद से आपदा से पहले जोखिम से बचने के लिए बड़े स्तर पर लोगों को अलर्ट किया जाता है. अलार्म सिस्टम कई प्रकार के जोखिम से संबंधित होते हैं. यह भूकंप, बाढ़ और तूफान सहित अन्य प्राकृतिक आपदा से संबंधित हो सकते हैं. इसके अलावा दुश्मन देश से होने वाले आक्रमण को लेकर भी अलार्म सिस्टम काम करता है. हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी कई चैनलों पर यूक्रेन में मिसाइल अटैक होने से पहले बजने वाले अलार्म इसका एक उदाहरण है. इसी तरह से इजरायल में भी इस तरह की टेक्नोलॉजी का विकास किया गया है, जो दुश्मन देश से होने वाले मिसाइल अटैक से पहले एक बड़ी बसावट को अलग करता है. प्राकृतिक आपदाओं के मामले में या अलार्म सिस्टम तमाम मौसम संबंधी सेंसर और आपदा से जुड़े उपकरणों से मिलने वाली त्वरित सूचनाओं पर काम करते हैं.

अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम को लेकर रणनीति: उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग नेचुरल डिजास्टर से संबंधित अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम को लेकर रणनीति तैयार कर रहा है. आपदा प्रबंधन विभाग के अपर सचिव सबीन बंसल ने बताया आपदा प्रबंधन विभाग जल्द ही मल्टी हजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम को लेकर काम शुरू करने जा रहा है. इस सिस्टम के तहत बड़ी हैबिटेशन और वेनरेबल यानी जोखिम वाले इलाकों के आसपास इस सिस्टम को लगाए जाएगा. खासतौर से बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने के जोखिम वाले क्षेत्रों में इस तरह के अलार्म सिस्टम को स्थापित किया जाएगा. ताकि उस इलाके में जोखिम होने पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को अलर्ट किया जा सके.

अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम से होगा फायदा: आपदा अपर सचिव ने कहा इस सिस्टम के तहत ज्यादा से ज्यादा लोगों को रियल टाइम अलार्म के जरिए अलर्ट किया जाएगा. जिसकी मदद से समय रहते संभावित आपदा क्षेत्र से लोगों को निकाला जा सकेगा. यह पूरी तरह से मौसम और आपदा संबंधित उपकरणों से डायरेक्ट इंटीग्रेटेड होने की वजह से ऑटोमेटेड रहेगा. इसका कंट्रोल DEOC और SEOC के पास रहेगा. इस तरह की चेतावनी को संशोधित भी किया जा सकता है और मैनुअली भी चेतावनी दी जा सकती है, जो अन्य सभी तरह के परिस्थितियों में काम आएंगे.

मौसम विभाग के निदेशक ने उठाए सवाल: भले ही उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग प्रदेश में अर्ली वार्निंग अलार्म सिस्टम को लेकर तैयारी में जुटा हो, लेकिन उत्तराखंड मौसम विभाग ने इस सिस्टम के कारगर साबित होने पर सवाल खड़ा कर दिया है. मौसम निदेशक विक्रम सिंह का कहना है कि यह सिस्टम कितना काम करेगा, यह देखने वाली बात होगी. क्योंकि खासतौर से रात्रि के समय इस तरह के अलार्म सिस्टम से किस तरह से लोगों को फायदा होगा, यह सोचने वाली बात है. मौसम निदेशक का यह भी कहना है कि आपदाओं में होने वाला नुकसान ज्यादातर रात के समय आने वाली आपदा से होता है और उस समय क्या या अलार्म सिस्टम लोगों की जान बचा पाएगा यह बड़ा सवाल है.

आरएफ ब्रॉडकास्ट टेक्नोलॉजी होगी कारगर साबित: मौसम वैज्ञानिक विक्रम सिंह का कहना है कि आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा किस टेक्नोलॉजी के जरिए ब्रॉडकास्टिंग की रणनीति बनाई जा रही है, वह भी बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि सेल ब्रॉडकास्टिंग में ज्यादातर दुर्गम इलाकों में कनेक्टिविटी की समस्या हो सकती है. आपदा के समय कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती बन सकती है. वहीं, इसके अलावा यदि आरएफ ब्रॉडकास्ट टेक्नोलॉजी के बारे में सोचा जाए तो, वह एक बेहतर विकल्प हो सकता है.

Last Updated : Apr 15, 2023, 10:46 PM IST
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