देहरादूनः उत्तराखंड के वित्त और आबकारी मंत्री का इलाज के दौरान अमेरिका के टेक्सास में निधन हो गया है. उनके निधन से उत्तराखंड राजनीति में बड़ी क्षति पहुंची हैं. उनके राजनीति करियर की बात करें तो प्रकाश पंत के सामने एक मौका ऐसा भी आया था, जब वह मुख्यमंत्री की कुर्सी के बेहद करीब थे. यहां तक कि बीजेपी नेतृत्व में मंथन के दौरान उनके नाम पर सहमति तक की खबरें भी सामने आईं, लेकिन पार्टी हाईकमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के नाम पर मोहर लगाई. जिससे पंत मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे.
बता दें कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के चुनाव परिणाम आने के बाद सभी की नजरें मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी हाईकमान पर थी. तब एक चर्चा ऐसी आई कि प्रकाश पंत के समर्थक खुशी से झूम उठे. इतना ही नहीं इस खबर के बाद इंटेलिजेंस के साथ मुख्यमंत्री की सुरक्षा से जुड़े अधिकारी भी प्रकाश पंत के आवास की तरफ दौड़ पड़े थे.
दरअसल, मुख्यमंत्री पद को लेकर तमाम कयासों के बीच एक ओर त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम चल रहा था, तो दूसरी ओर प्रकाश पंत भी लगातार इस पद के लिए दौड़ में बने हुए थे. इस दौरान खबर आई कि पार्टी हाईकमान ने प्रकाश पंत के नाम पर मोहर लगा दी है. ये खबर फैलते ही प्रकाश पंत के समर्थक उनके आवास पर जुटना शुरू हो गए थे. उधर, सुरक्षा एजेंसी के तमाम अधिकारी भी प्रकाश पंत की आवास की ओर दौड़ गए थे, लेकिन कुछ देर के इंतजार के बाद आखिरकार हाईकमान ने अपना निर्णय त्रिवेंद्र सिंह रावत के पक्ष में सुनाया. जिससे प्रकाश पंत मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए.
अनुभवी, ईमानदार छवि और कार्यकुशलता के चलते मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हुए थे पंत
बीजेपी में कई बड़े चेहरों के बीच प्रकाश पंत का नाम लगातार मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे रहा है. पंत उत्तराखंड के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक थे. उनकी ईमानदार छवि को लेकर बीजेपी हाईकमान के सामने उनके नाम को आगे रखने की मजबूरी बनी हुई थी. प्रकाश पंत कार्य कुशल होने के साथ राजनीति के जानकार भी थे. इतना ही नहीं उनकी RSS में मजबूत पकड़ ना होने के बावजूद भी पार्टी हाईकमान उनके नाम को नकार नहीं सकी, इसीलिए उनका नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आखिरी समय तक बना रहा.
ये भी पढ़ेंः आबकारी विभाग को नई ऊंचाई तक ले जाने में प्रकाश पंत का था अहम योगदान, किया था ये काम
वहीं, त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाने के बाद भी प्रकाश पंत ने एक बार भी इस पर गिला शिकवा नहीं जताया और वह पार्टी हाईकमान के इस निर्णय के साथ खड़े दिखाई दिए. प्रकाश पंत कुर्सी के पीछे भागने वाले नेताओं में नहीं थे. बताया जाता है कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए ज्यादा प्रयास भी नहीं किया था. हालांकि उनके शुभचिंतक और उन्हें जानने वाले दिल्ली में बैठे बीजेपी के बड़े नेता उनका नाम लेते रहे और उनकी पैरवी करते रहे. बावजूद इसके यह पैरवी ज्यादा काम नहीं आ सकी. अंत में आरएसएस की पसंद यानी त्रिवेंद्र सिंह रावत पर ही मोहर लगाई गई.