देहरादून: साल 2021 जल्द ही अलविदा कहने वाला है. इस साल उत्तराखंड हाईकोर्ट की तरफ से कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए गए हैं. इन फैसलों ने किसी को जेल भिजवा दिया तो कई बरी हो गए. मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान ने अपने एक साल से कम समय के कार्यकाल में कई अहम निर्णय दिए हैं.
बाहुबली डीपी यादव को किया बरी: 10 नवंबर 2021 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता डीपी यादव को हत्याकांड में बरी कर दिया. हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट के 2015 के फैसले को पलटते हुए यादव को बरी किया है. सीबीआई कोर्ट ने छह साल पहले यादव को यूपी में दादरी के विधायक रहे महेंद्र भाटी की हत्या के केस में दोषी करार देकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. इस मामले में नैनीताल स्थित हाईकोर्ट में लगातार सुनवाई चल रही थी. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट द्वारा दोषी माने गए अन्य तीन करण यादव, पाल सिंह और परनीत भाटी को भी निर्दोष करार दिया था.
चारधाम यात्रा को मंजूरी: साल 2021 में कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए 18 सितंबर से नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड की चारधाम यात्रा को सशर्त मंजूरी दी थी. इसके साथ ही कोर्ट ने चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों को 72 घंटे पहले कराए गए कोविड टेस्ट की निगेटिव रिपोर्ट लाने की अनिवार्यता रखी थी.
वहीं, 5 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने प्रतिदिन सीमित संख्या में यात्रियों को धामों में प्रवेश दिए जाने के फैसले में संशोधन के बाद केदारनाथ और बदरीनाथ धाम में यात्रियों की संख्या को बढ़ाने की अनुमति दी थी. हालांकि कोर्ट ने अपने आदेश में उत्तराखंड सरकार से कहा कि सभी यात्रियों के लिए मेडिकल संबंधी तमाम इंतजाम पर्याप्त और त्वरित होने चाहिए. साथ ही मेडिकल सुविधाओं के लिए एक हेलीकॉप्टर भी तैयार रखने का निर्देश दिया था.
कोरोना संकट पर सुनवाई: मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान ने कोरोना के समय प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर सरकार को महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे. उन्होंने सरकार से कहा था कि वे प्रदेश के नागरिकों को इस हाल में मरता नहीं देख सकते. सभी नागरिकों को जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराएं.
रोडवेज कर्मचारियों को बड़ी राहत: मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान ने दूसरा निर्णय रोडवेज कर्मचारियों को कोरोना के समय का वेतन नहीं दिए जाने पर दिया था. रोडवेज कर्मचारियों के वेतन मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वो परिसंपत्तियों के मामले में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दोनों राज्यों की बैठक कर निर्णय ले. कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि जितना पैसा सरकार ने दिया है, उससे दो महीने का ही वेतन मिल पा रहा है. अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव से कहा कि जल्द कैबिनेट में निर्णय लेकर हाईकोर्ट को इसकी जानकारी दें. सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने सैलरी (Salary) को कर्मचारियों का संवैधानिक अधिकार बताते हुए आर्टिकल 23 का हवाला देते हुए कहा कि बिना पैसे के मजदूरी या बेगारी नहीं कराई जा सकती है.
रोडवेज की परिसंपत्तियों पर बंटवारा: रोडवेज की परिसम्पतियों का बंटवारा नहीं किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान ने उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को बैठ कर परिसंपत्तियों के बंटवारे का निर्देश देते हुए जल्द निर्णय लेने को कहा था. दरअसल, उत्तर प्रदेश से परिवहन निगम की परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन ने वर्ष 2019 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट नैनीताल ने केंद्रीय परिवहन सचिव को तलब किया था. दोनों की बैठक कराई गई थी.
हाईकोर्ट ने यूपी को आदेश दिए थे कि वह बंटवारे के तहत 28 करोड़ रुपये की किश्त के हिसाब से भुगतान करें. इसके खिलाफ यूपी परिवहन निगम के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट चले गए थे. हालांकि सीएम पुष्कर सिंह धामी और योगी आदित्यनाथ की मुलाकात के बाद यूपी और उत्तराखंड के बीच परिसंपत्ति विवाद खत्म हो गया है और दोनों प्रदेश सहमति से बंटवारे का फॉर्मूला तय कर चुके हैं.
डीजीपी को मुकदमा दर्ज करने के निर्देश: मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान ने पांचवां बड़ा निर्णय लेते हुए डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (DGP) को निर्देश दिए हैं कि जो भी फरियादी या प्रेमी जोड़े शिकायत लेकर आते हैं तो पुलिस बिना देरी किए तत्काल मुकदमा दर्ज करे. वहीं, हाईकोर्ट ने उत्तराखंड डीजीपी को इस संबंध में प्रदेश के सभी थानों के लिए एक सर्कुलर जारी करने को कहा है.
जेलों की दुर्दशा पर हाईकोर्ट की टिप्पणी: हाईकोर्ट ने जेलों की दुर्दशा पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सुधार के संबंध में दिशा निर्देश दिए थे. दिसंबर में कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि अधिकारी अपने बच्चों को 24 घंटे ऐसे हालत में वहां रखकर देखें. अभी हम 21वीं सदी में हैं, लेकिन जेलों की दशा देखकर ऐसा नहीं लगता. जेलों की हालत सेलुलर या अहमदनगर जेल से कम नहीं है. नैनीताल जेल एवं सब जेल हल्द्वानी हाईकोर्ट की नाक के नीचे हैं, वहां की स्थिति भी वैसी ही है. मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खण्डपीठ ने चेरापल्ली तेलगांना जेल का उदाहरण भी दिया, जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं.
खंडपीठ ने कहा कि छोटे अपराध में शामिल कैदियों को पैरोल पर क्यों नहीं छोड़ा जा रहा है? जिनकी सजा आधी से अधिक हो चुकी है और जिनका आचरण अच्छा है, उन्हें भी पैरोल पर छोड़ने का विचार करें. हाईकोर्ट ने प्रदेश की जेलों में सीसीटीवी कैमरे एवं अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बातें कहीं. कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए कि जेलों की सुविधाओं को लेकर एक कमेटी का गठन कर सुझावों पर अमल करें.
हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति: उत्तराखंड हाइकोर्ट में 9 नवंबर 2000 से अब तक 11 मुख्य न्यायाधीश और छह बार कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई.
- हाईकोर्ट के प्रथम मुख्य न्यायाधीश अशोक देसाई थे. जिनका कार्यकाल 9 नवंबर 2000 से 31 मार्च 2003 तक रहा. उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के पद पर 2 साल 142 दिन कार्य किया. 31 मार्च 2003 को उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के पद से इस्तीफा दे दिया.
- दूसरे मुख्य न्यायाधीश एचएस कपाड़िया थे. उन्होंने 5 अगस्त 2003 को मुख्य न्यायाधीश की शपथ ग्रहण की. 17 दिसंबर 2003 तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर कार्य किया. उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहते हुए 134 दिन तक कार्य किया. उसके बाद उनका सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किया गया और बाद में वे सुप्रीम कोर्ट के 38वें चीफ जस्टिस बने.
- तीसरे मुख्य न्यायाधीश वीएस सिरपुरकर थे. जिन्होंने 25 जुलाई 2004 को मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली थी. 19 मार्च 2005 तक 237 दिन तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर कार्य किया. उसके बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट भेज दिया गया.
- चौथे मुख्य न्यायाधीश एस जोसेफ ने 20 मार्च 2005 को मुख्य न्यायाधीश की शपथ ली. 7 जनवरी 2006 तक कुल 293 दिन मुख्य न्यायाधीश के पद पर कार्य किया.
- पांचवें मुख्य न्यायाधीश राजीव गुप्ता थे. जिन्होंने 14 जनवरी 2006 को मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली और 1 फरवरी 2008 तक 2 साल 18 दिन तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहे.
- छठे मुख्य न्यायाधीश वीके गुप्ता थे, जिन्होंने 2 फरवरी 2008 को शपथ ली और 9 सितंबर 2009 तक मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला.
- सातवें मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर थे. जिनका कार्यकाल 29 नवंबर 2009 से 7 अगस्त 2010 तक रहा. उन्होंने इस पद पर 251 दिन तक कार्य किया. इसके साथ ही जस्टिस खेहर प्रमोशन पाकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने.
- आठवें मुख्य न्यायाधीश बरिन घोष थे, जिन्होंने 8 अगस्त 2010 को मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली और 4 जून 2014 तक 3 साल 300 दिन तक कार्य किया.
- नौवे मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ थे, जिनका कार्यकाल 31 जुलाई 2014 से 6 अगस्त 2018 तक रहा. इन्होंने कुल 4 साल से ज्यादा मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला. बाद में इनका सुप्रीम कोर्ट के जज पद पर प्रमोशन हुआ.
- दसवें मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन रहे, जिन्होंने 2 नवंबर 2018 को इस पद की शपथ ली और 27 जुलाई 2020 तक इस पद रहे.
- ग्यारहवें मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान थे. जिन्होंने 7 जनवरी 2021 को मुख्य न्यायाधीश के पद का कार्यभार संभाला और 23 दिसम्बर 2021 को इसी पद से 344 दिन कार्य करते हुए रिटायर हुए. बीते हफ्ते ही मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा किया गया था. जिसमें उनके द्वारा हर घर तक न्याय उपलब्ध कराने के लिए सचल न्याय एम्बुलेंस की शुरुआत की गई थी.
कार्यवाहक न्यायाधीश: इसके अलावा 6 बार कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई. जिनमें पीसी वर्मा तीन बार, बीसी कांडपाल, सुधांशु धुलिया एवं राजीव शर्मा को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया गया.