देहरादून: उत्तराखंड में लोकयुक्त को लेकर अक्सर सवाल खड़े होते रहे है. साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपने दृष्टिपत्र में 100 दिन के भीतर लोकायुक्त के गठन की बात कही थी, लेकिन करीब 6 साल का वक्त बीत जाने के बाद भी अभी तक लोकायुक्त का गठन नहीं हो पाया. अब लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर अब धामी सरकार पर दबाव बढ़ने लगा है. हाईकोर्ट ने सरकार से 8 सप्ताह के भीतर लोकायुक्त नियुक्त करने के निर्देश दिए हैं. ऐसे अब धामी सरकार ने लोकायुक्त को लेकर गेंद विधानसभा की प्रवर समिति के पाले में डाल दी है. आखिर क्या है प्रदेश में लोकायुक्त की स्तिथि? आइये आपको बताते हैं.
उत्तराखंड में लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 8 हफ्तों में लोकायुक्त की नियुक्ति के आदेश दिए हैं. कोर्ट के आदेश का अनुपालन ना होने पर लोकायुक्त भवन पर होने वावे खर्च पर भी रोक लगा दी गई है. हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने लोकायुक्त की नियुक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से शपथ पत्र पर जवाब मांगा है कि लोकायुक्त कार्यालय बनाने के बाद लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर सरकार ने क्या किया है?
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इससे पहले हाईकोर्ट ने सरकार से 31 मार्च 2023 तक लोकायुक्त की नियुक्ति और लोकायुक्त का कार्यालय को लेकर किए गए खर्च ब्यौरा भी मांगा था. जिसके जवाब में सरकार की तरफ से बताया गया की 2010 से अब तक आवंटित 38 करोड़ 44 लाख रुपए में से 30 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं. इसी बीच, मुख्यमंत्री ने एक बार फिर साफ किया है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है. साथ ही प्रदेश में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है. सीएम धामी ने लोकायुक्त के मुद्दे पर अपना पलड़ा झाड़ते हुए, विधानसभा की प्रवर समिति के पाले में गेंद डाल दी है.
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मुख्यमंत्री धामी ने लोकायुक्त के मामले पर कहा लोकायुक्त को लेकर नया एक्ट बनना था. एक्ट बनने के बाद विधानसभा की प्रवर समिति, कार्य कर रही है. हालांकि, प्रवर समिति की अभी रिपोर्ट नहीं आई है. ऐसे में जब प्रवर समिति की रिपोर्ट आयेगी उसके बाद ही सरकार आगे की कार्रवाई करेगी. भाजपा सरकार शुरू से ही जीरो टॉलरेंस और भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड की बात करती है. सीएम धामी ने कहा राज्य की सरकार कोर्ट के हर फैसले का सम्मान करती है. कोर्ट का जो भी निर्णय है उसके सभी पहलुओं को देखने के बाद सरकार कार्यवाही करेगी.
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वहीं, लोकायुक्त के मामले पर भाजपा भी प्रवर समिति के पाले में गेंद डालती नजर आ रही है. 6 साल बीत जाने के बाद भी लोकायुक्त को लेकर सरकार कोई फैसला नहीं ले पाई है. लोकायुक्त की नियुक्ति के सवाल पर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता विपिन कैथौला ने कहा लोकायुक्त को लेकर विधानसभा में समिति गठित की गई है. ऐसे में समिति की रिपोर्ट के आधार पर सरकार काम करेगी. भाजपा हाईकोर्ट के आदेशों का सम्मान करती है.
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जहां एक ओर भाजपा, लोकायुक्त मामले की गेंद को विधानसभा की प्रवर समिति के पाले में डालती नज़र आ रही है, तो वही, दूसरी ओर कांग्रेस सरकार पर हमलावर नज़र आ रही है.पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा अगल लोकायुक्त की बेंच का गठन होगा तो जो भ्रष्टाचार उत्तराखंड में घर-घर में शिष्टाचार बन गया है, उस पर अंकुश लगेगा. उन्होंने कहा यदि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट को याद दिलाते कि 2016 में तत्कालीन सरकार ने हाईकोर्ट की देखरेख में लोकायुक्त की बेंच के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन कर फाइल तत्कालीन राज्यपाल को भेजी थी, लेकिन वह फाइल कभी वापस ही नहीं आई. जब फाइल आई तो कई आपत्तियों के साथ आई. उसके बाद जब आपत्तियों का निराकरण हो गया, तब भी एक के बाद एक राज्यपाल उस पर कुंडली मारकर बैठ गए.
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा सरकार का एक बड़ा मजाक है ये कि सीएम कह रहे है कि सरकार लोकायुक्त चाहती है लेकिन लाने नहीं दे रहे हैं. साथ ही कहा उन्होंने कहा उत्तराखंड भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है. कोई भी विभाग या संस्थान इससे अछूता नहीं है. इस भ्रष्टाचार में धामी सरकार के विधायक, मंत्री समेत सभी की संलिप्त हैं. हर साल तीन करोड़ रुपए लोकायुक्त के दफ्तर पर सरकार खर्च कर रही है. इसके बाद भी इसे लेकर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.
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इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि सरकारें नहीं चाहती हैं कि लोकायुक्त का गठन हो. अगर लोकायुक्त का गठन होता है तो इसमें बड़े-बड़े नेता भी फंस सकते हैं. इसीलिए लोकायुक्त का गठन नहीं होता है. उन्होंने कहा पिछली बार भी कोर्ट ने सरकार को तीन महीने का समय दिया था, उस दौरान ने प्रवर समिति में मामला होने की बात कही गई थी. दरअसल, कोर्ट सरकार को आदेश दे सकती है लेकिन विधानसभा को आदेश नहीं दे सकती. यही वजह है कि बड़ी चालाकी से इसे विधानसभा की फाइलों में बंद कर दिया गया है.