देहरादून: वक्त के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियां चुनाव में जीत के लिए नए-नए पैंतरे आजमाती रही हैं. फिलहाल पार्टियों के लिए सबसे भरोसेमंद वह सर्वे बने हुए हैं जो पार्टियों को उनके हालातों को लेकर लोगों की राय से रूबरू करवाते हैं. उत्तराखंड में भी राजनीतिक पार्टियों के साथ ही प्रत्याशी भी निजी तौर पर सर्वे करवा रहे हैं. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि पार्टियों के लिए यह सर्वे कितने जरूरी हैं और इनका क्या फायदा हो सकता है.
प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अब कुछ महीने ही रह गए हैं. चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक पार्टियों के कार्यक्रम भी बढ़ने लगे हैं, लेकिन पार्टियों की ये तमाम गतिविधियां बिना रणनीति की नहीं हैं. दरअसल राजनीतिक दल उन पूर्व निर्धारित एजेंडों पर काम करते हैं, जो उन्हें जनता की राय या सुझाव के तौर पर मिलते हैं. यह सब मुमकिन होता है उन तमाम सर्वे एजेंसी और अभियान के माध्यम से जिसे राजनीतिक पार्टियां या तो हायर करती हैं या फिर पार्टी संगठन स्तर पर चलाती हैं. किसी भी राजनीतिक दल के लिए सर्वे क्यों जरूरी है, इसका किस तरह से फायदा मिल सकता है, इसे जानना बेहद जरूरी है. इससे पहले आपको बताते हैं कि आखिरकार सर्वे किस-किस तरह के होते हैं.
क्यों जरूरी हैं सर्वे
कैसे होता है सर्वे: उम्मीदवारों की जीत या हार का सर्वे बेहद सघन स्तर पर किया जाता है. इसके लिए किसी भी विधानसभा क्षेत्र में जितने वार्ड होते हैं, हर वार्ड से न्यूनतम एक हजार लोगों से बातचीत की जाती है. सर्वे कंपनियां किसी भी उम्मीदवार की जीत या हार के लिए उस विधानसभा क्षेत्र से न्यूनतम पांच हजार लोगों से पूछताछ कर उनकी राय जानने की कोशिश करती हैं, जिससे सर्वे का परिणाम सच के ज्यादा से ज्यादा निकट हो सके. जानकारी जुटाने का ये आंकड़ा कम या ज्यादा भी हो सकता है.
इसके अलावा हर विधानसभा क्षेत्र में जितने भी धार्मिक, जातीय या वर्ग हैं, उन सबसे बातचीत करके उनकी राय ली जाती है. इससे अंदाजा मिलता है कि किसकी किस वर्ग में पैठ है. किस वर्ग के वोट कहां जा सकते हैं. इस तरह के सर्वे से सियासी समीकरण बनाने में मदद मिलती है.
पार्टियों को परखने में मिलती है मदद: राजनीतिक दलों के लिए सर्वे बेहद महत्वपूर्ण होता जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीतिक दल बेहद आसानी से उन तमाम चीजों को सर्वे के जरिए समझ पाते हैं, जो चुनाव जीतने के लिए बेहद जरूरी होते हैं. सर्वे की मदद से पार्टी को राज्य में अपनी स्थिति का पता चलता है, यही नहीं पार्टियां अपनी कमजोर सीटों की स्थितियों को जानकर उस पर और बेहतर तरीके से काम कर सकती हैं. पार्टियों को लोगों की पसंद और नापसंद का पता चलता है. इसी आधार पर राजनीतिक पार्टियों को चुनाव में अपने मुद्दों को रखने का फायदा मिल जाता है.
पढ़ें-शाह बोले- राज्य सरकार ने आपदा में किया अच्छा काम, 3500 लोगों को किया रेस्क्यू
अब तक दो सर्वे करवा चुकी है कांग्रेस: राज्य भर में अपनी सीटों को लेकर स्थिति सर्वे के माध्यम से जानने के बाद अपना राजनीतिक एजेंडा भी पार्टियां सेट कर सकती हैं. चुनाव से पहले मजबूत प्रत्याशी को अपने पाले में लाने के लिए सर्वे एक बेहतर माध्यम बन जाता है. यही नहीं जीत-हार की स्थिति जानने के बाद राजनीतिक पार्टियां कई बार डमी कैंडिडेट उतारने और मुद्दों से जनता को भ्रमित करने तक का काम भी करती हैं. कुल मिलाकर सर्वे के माध्यम से पार्टियां माहौल बनाने की कोशिश करती हैं. उत्तराखंड कांग्रेस की मानें तो पार्टी अब तक दो सर्वे करवा चुकी है. इन सर्वे में कांग्रेस को फुल बहुमत मिलता हुआ दिखाई दे रहा है.
पढ़ें- हिमालय में लापता 11 पर्वतारोहियों के लिए सर्च अभियान जारी, एयरफोर्स चला रहा ऑपरेशन
सर्वे में आम आदमी पार्टी मजबूत: राज्य में चुनाव के दौरान नई तकनीक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल या तो भाजपा करती हुई दिखाई देती है या फिर आम आदमी पार्टी. आम आदमी पार्टी पहली बार में ही प्रदेश में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है. सबसे बड़ी बात यह है कि आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड में चुनाव लड़ने के लिए 70 सीटों पर घोषणा भी तब की थी जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड में सर्वे करवाकर तीसरे विकल्प की जरूरत होने को महसूस किया. इस बात को खुद आम आदमी पार्टी के नेता भी मानते हैं. उनका कहना है कि अब तक कई दौर के सर्वे पार्टी कर चुकी है. जिसमें आम आदमी पार्टी बेहतर स्थिति में दिखाई दे रही है.
पढ़ें- ट्रैक्टर पर बैठकर CM धामी ने किया बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा, हर संभव मदद का दिया आश्वासन
सर्वे से होते हैं नुकसान: सर्वे के दौरान यूं तो कई फायदे होते हैं लेकिन कुछ नुकसान भी हैं जो राजनीतिक पार्टियों को उठाने पड़ सकते हैं. दरअसल कई बार सर्वे सीमित संख्या में लोगों की राय के जरिए कर दिए जाते हैं जो कि प्रदेशभर के स्तर पर सही आकलन को नहीं कर पाते. इस आधार पर पार्टियां कई बार गलत आकलन का नुकसान झेलती हैं. देशभर के विभिन्न राज्यों में चुनाव के दौरान टीवी चैनलों के सर्वे कई बार फेल हुए हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कई बार समीकरण एक दिन में ही बदल जाते हैं. सर्वे की रिपोर्ट तैयार होने तक धरातल पर स्थिति कुछ और बन जाती है.
पढ़ें- लखमा पास पर SDRF को दिखे 5 शव, 11 लापता ट्रैकर्स के लिए चल रहा है रेस्क्यू
सर्वे के मामले में भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि पार्टी के स्तर पर कार्यकर्ताओं पर सबसे ज्यादा भरोसा किया जाता है. संगठन स्तर पर लोगों से राय ली जाती है. देखा जाए तो निजी स्तर पर सर्वे का सबसे बड़ा काम भारतीय जनता पार्टी में ही होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी के पास पर्याप्त कार्यकर्ताओं समेत एक मजबूत संगठन भी है जो कि साल भर तमाम गतिविधियों के जरिए जनता के करीब रहता है. लिहाजा संगठन स्तर पर सर्वे करवाकर भारतीय जनता पार्टी अपनी स्थितियों को बेहतर तरीके से जान पाती है. इसके बावजूद भी निजी संस्थाओं से सर्वे करवाकर आम लोगों की इच्छा को करीब से जानने की कोशिश की जाती है.