देहरादूनः थाना राजपुर पुलिस ने बेशकीमती कीड़ा जड़ी के साथ एक तस्कर को गिरफ्तार किया है. मौके पर आरोपी के पास से 320 ग्राम कीड़ा जड़ी बरामद की गई है. इसकी कीमत 3 लाख रुपए आंकी जा रही है. आरोपी चमोली से कीड़ा जड़ी लाकर देहरादून में बेचने निकला था. यहां ग्राहक मिलने की जगह उसे पुलिस ने दबोच लिया. वहीं, पुलिस ने आरोपी को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है.
जानकारी के मुताबिक, पुलिस की टीम सोमवार सुबह आईटी पार्क क्षेत्र में चेकिंग अभियान चला रही थी. चेकिंग के दौरान टीम ने एक युवक की तलाशी ली. तलाशी लेने पर आरोपी के कब्जे से 320 ग्राम कीड़ा जड़ी बरामद हुई. पुलिस ने आरोपी को तत्काल गिरफ्तार किया और बरामद कीड़ा जड़ी को अपने कब्जे में लिया. साथ ही आरोपी के खिलाफ थाना राजपुर में संबंधित धाराओं में मुकदमा पंजीकृत किया. जहां से आरोपी को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.
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थाना राजपुर प्रभारी राकेश शाह ने बताया कि आरोपी का नाम आलोक मिश्रा है. वो कीड़ा जड़ी चमोली से लेकर आया था. जिन्हें वो देहरादून में महंगे दामों में बेचने जा रहा था, लेकिन उसे कोई ग्राहक नहीं मिल रहे थे. इसी बीच आरोपी पुलिस के हत्थे चढ़ गया है. उन्होंने बताया कि प्रतिबंधित कीड़ा जड़ी समेत मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ कार्रवाई के लिए थाना स्तर पर टीम गठित की गई है. जो समय-समय पर चेकिंग अभियान चलाती है.
क्या है कीड़ा जड़ी? कीड़ा जड़ी एक तरह की फफूंद है. ये जड़ी पहाड़ों के लगभग 3,500 से 5000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है. जहां ट्रीलाइन खत्म हो जाती है, यानी जहां पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. एक कीट का प्यूपा लगभग 5 साल पहले हिमालय और तिब्बत के पठारों में भूमिगत रहता है. इसके बाद यह फफूंदी (मशरूम) सूंडी के माथे से निकलती है.
कीड़ा जड़ी को यारशागुंबा या फिर हिमालयन वियाग्रा के नाम से भी जाना जाता है. इस जड़ी बूटी का साइंटिफिक नाम कोर्डिसेप्स साइनेसिस (Caterpillar fungus) है. कीड़ा जड़ी कई गंभीर बीमारियों के काम आती है. इसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में लाखों में हैं. कीड़ा जड़ी को फेफड़ों और गुर्दे को मजबूत करने, ऊर्जा और जीवन शक्ति को बढ़ाने, रक्तचाप को कम करने के लिए माना जाता है.
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प्रदेश में इन जिलों मिलती है कीड़ा जड़ीः कीड़ा जड़ी उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर जिलों के उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाई जाती है. मई से जुलाई माह के बीच पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के दौरान बर्फ से निकलने वाले इस फंगस का स्थानीय लोग बड़े स्तर पर कारोबार करते हैं. इससे उनकी आजीविका चलाती है. वहीं, इसके बेतरतीब दोहन और ऊंचे इलाकों में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप ने पर्यावरण को भी खासा प्रभावित किया है.