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पड़ताल: राजस्व और पुलिस विभाग से जुड़े हैं सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के मामले

पिछले 2 साल में हुए दलित उत्पीड़न के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2016-17 में कुल 377 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें मात्र 159 मामले ही निस्तारित हो पाए है. अगर इसी साल में प्राप्त शिकायतों को विभाग वार देखें तो सबसे ज्यादा 130 मामले राजस्व विभाग से जुड़े हैं.

दलित उत्पीड़न
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Published : May 11, 2019, 8:19 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड देश-दुनिया में देवभूमि के नाम से जाना जाता है. इस पावन धरा पर कई धार्मिक स्थल ऐसे है जहां साक्षात देवी-देवताओं का वास है. लेकिन बदलते परिवेश से देवभूमि भी अछूती नहीं है. यहां आपराधिक घटनाओं का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. जिसमें दलित उत्पीड़न की घटनाएं भी शामिल है. साल-दर-साल दलित उत्पीड़न के मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. वहीं, अभीतक सिर्फ 50 फीसदी मामलों का की निस्तारण हो पाया है. ईटीवी भारत आपको प्रदेश में बीते 2 सालों में बताने जा रहा है कि किन-किन विभागों में सबसे ज्यादा दलितों के उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए हैं.

देवभूमि में बढ़ रहे दलित उत्पीड़न के मामले.

राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक दलित उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिए कई कड़े कानून बना चुकी है. बावजूद इसके दलितों पर हो रहे उत्पीड़न के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे है. ताजा मामला टिहरी में दलित युवक की मौत के रूप में सामने आया है. जिसमें सवर्ण जाति के कुछ लोगों ने शादी में छोटे से विवाद के चलते दलित युवक जितेंद्र को मौत के घाट उतार दिया. हालांकि, इस पूरे मामले में पुलिस आरोपियों को गिरफ्तारी दावे कर रही है. वहीं, अगर उत्तराखंड में साल 2018-19 के बीच हुए दलित उत्पीड़न के मामलों की बात करें तो इस अवधि में करीब 357 मामले दर्ज किए गए हैं.


साल 2016- 17 में दलित उत्पीड़न के मामले
पिछले 2 साल में हुए दलित उत्पीड़न के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2016-17 में कुल 377 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें मात्र 159 मामले ही निस्तारित हो पाए है. अगर इसी साल में प्राप्त शिकायतों को विभाग वार देखें तो सबसे ज्यादा 130 मामले राजस्व विभाग से जुड़े हैं. जिसमें से मात्र 57 मामलों का निस्तारण हो पाया है. तो वहीं 115 मामले पुलिस विभाग से जुड़े हुए हैं. जिसमें से 77 मामलों का निस्तारण हो पाया है. इसके साथ ही अन्य 54 विभागों से भी 132 दलित उत्पीड़न के मामले आये थे. जिसमें से मात्र 25 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है.

साल 2017-18 में दलित उत्पीड़न के मामले
साल 2017-18 में दलित उत्पीड़न के मामलों की बात करें तो साल 2017-18 में कुल 311 मामले सामने आए थे. जिसमें से मात्र 162 मामले ही निस्तारित हो पाए है. वहीं, इसी साल प्राप्त शिकायतों को विभाग वार देखें तो सबसे ज्यादा 107 मामले पुलिस विभाग से जुड़े हैं. जिसमें से मात्र 58 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है. वहीं, इसके बाद सबसे ज्यादा 85 मामले राजस्व विभाग से जुड़े हैं. जिसमें से 43 मामलों का निस्तारण हो पाया है. इसके साथ ही अन्य 47 विभागों से भी 119 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे. जिसमें से 61 मामलों के ही निस्तारण हो पाया है.

पढ़ें- वासु हत्याकांड: धर्मांतरण के खिलाफ हिंदू संगठनों में उबाल, आंदोलन की चेतावनी

राजधानी से जुड़े है सबसे ज्यादा मामले

प्रदेश में सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के मामले राजधानी देहरादून में देखें गए है. ये बात हम नहीं बल्कि सरकारी आंकड़े कह रहे हैं. साल 2016-17 की बात करें तो सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के कुल 82 मामले देहरादून में दर्ज किए गए थे. जिसमें से मात्र 42 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है. अगर साल 2017-18 की बात करें तो इस साल भी दलित उत्पीड़न से जुड़े सबसे ज्यादा 115 मामले सिर्फ देहरादून से प्राप्त हुए हैं. जिसमें से मात्र 62 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है.

  • जिला देहरादून में साल 2016-17 में 82 मामले और साल 2017-18 में 115 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला हरिद्वार में साल 2016-17 में 67 मामले और साल 2017-18 में 37 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला उधमसिंह नगर में साल 2016-17 में 54 मामले और साल 2017-18 में 38 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला पौड़ी गढ़वाल में साल 2016-17 में 29 मामले और साल 2017-18 में 20 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला नैनीताल में साल 2016-17 में 28 मामले और साल 2017-18 में 20 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला उत्तरकाशी में साल 2016-17 में 21 मामले और साल 2017-18 में 18 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला अल्मोड़ा में साल 2016-17 में 19 मामले और साल 2017-18 में 08 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला पिथौरागढ़ में साल 2016-17 में 18 मामले और साल 2017-18 में 09 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला चमोली में साल 2016-17 में 16 मामले और साल 2017-18 में 15 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला बागेश्वर में साल 2016-17 में 12 मामले और साल 2017-18 में 08 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला टिहरी गढ़वाल में साल 2016-17 में 11 मामले और साल 2017-18 में 10 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला रुद्रप्रयाग में साल 2016-17 में 10 मामले और साल 2017-18 में 10 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला चंपावत में साल 2016-17 में 10 मामले और साल 2017-18 में 03 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.

वहीं, इस मामले में उत्तराखंड अनुसूचित जाति आयोग के सचिव जीआर नौटियाल ने बताया कि आयोग को विभाग से जो शिकायतें प्राप्त होती हैं. इसमें कर्मचारी अपने प्रमोशन, भत्ते को लेकर आयोग को शिकायत करते हैं. इस अलावा कुछ लोगों को जिसको कोई व्यक्तिगत समस्या या फिर जमीन जायदाद से जुड़े मामले आदि की शिकायत आती है. जिसमें संबंधित विभाग से उस मामले की पूरी जानकारी मांगी जाती है कि इसमें क्या दिक्कत है. जिसके बाद जब हमें विभाग से जवाब मिलता है और यह देखा जाता है कि शिकायतकर्ता विभाग के जवाब से संतुष्ट है या नहीं. अगर शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होता है तो संबंधित विभाग के उच्चाधिकारी को बुलाया जाता है और उनसे लिखित रूप में सबूत लिया जाता है.

देहरादून: उत्तराखंड देश-दुनिया में देवभूमि के नाम से जाना जाता है. इस पावन धरा पर कई धार्मिक स्थल ऐसे है जहां साक्षात देवी-देवताओं का वास है. लेकिन बदलते परिवेश से देवभूमि भी अछूती नहीं है. यहां आपराधिक घटनाओं का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. जिसमें दलित उत्पीड़न की घटनाएं भी शामिल है. साल-दर-साल दलित उत्पीड़न के मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. वहीं, अभीतक सिर्फ 50 फीसदी मामलों का की निस्तारण हो पाया है. ईटीवी भारत आपको प्रदेश में बीते 2 सालों में बताने जा रहा है कि किन-किन विभागों में सबसे ज्यादा दलितों के उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए हैं.

देवभूमि में बढ़ रहे दलित उत्पीड़न के मामले.

राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक दलित उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिए कई कड़े कानून बना चुकी है. बावजूद इसके दलितों पर हो रहे उत्पीड़न के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे है. ताजा मामला टिहरी में दलित युवक की मौत के रूप में सामने आया है. जिसमें सवर्ण जाति के कुछ लोगों ने शादी में छोटे से विवाद के चलते दलित युवक जितेंद्र को मौत के घाट उतार दिया. हालांकि, इस पूरे मामले में पुलिस आरोपियों को गिरफ्तारी दावे कर रही है. वहीं, अगर उत्तराखंड में साल 2018-19 के बीच हुए दलित उत्पीड़न के मामलों की बात करें तो इस अवधि में करीब 357 मामले दर्ज किए गए हैं.


साल 2016- 17 में दलित उत्पीड़न के मामले
पिछले 2 साल में हुए दलित उत्पीड़न के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2016-17 में कुल 377 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें मात्र 159 मामले ही निस्तारित हो पाए है. अगर इसी साल में प्राप्त शिकायतों को विभाग वार देखें तो सबसे ज्यादा 130 मामले राजस्व विभाग से जुड़े हैं. जिसमें से मात्र 57 मामलों का निस्तारण हो पाया है. तो वहीं 115 मामले पुलिस विभाग से जुड़े हुए हैं. जिसमें से 77 मामलों का निस्तारण हो पाया है. इसके साथ ही अन्य 54 विभागों से भी 132 दलित उत्पीड़न के मामले आये थे. जिसमें से मात्र 25 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है.

साल 2017-18 में दलित उत्पीड़न के मामले
साल 2017-18 में दलित उत्पीड़न के मामलों की बात करें तो साल 2017-18 में कुल 311 मामले सामने आए थे. जिसमें से मात्र 162 मामले ही निस्तारित हो पाए है. वहीं, इसी साल प्राप्त शिकायतों को विभाग वार देखें तो सबसे ज्यादा 107 मामले पुलिस विभाग से जुड़े हैं. जिसमें से मात्र 58 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है. वहीं, इसके बाद सबसे ज्यादा 85 मामले राजस्व विभाग से जुड़े हैं. जिसमें से 43 मामलों का निस्तारण हो पाया है. इसके साथ ही अन्य 47 विभागों से भी 119 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे. जिसमें से 61 मामलों के ही निस्तारण हो पाया है.

पढ़ें- वासु हत्याकांड: धर्मांतरण के खिलाफ हिंदू संगठनों में उबाल, आंदोलन की चेतावनी

राजधानी से जुड़े है सबसे ज्यादा मामले

प्रदेश में सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के मामले राजधानी देहरादून में देखें गए है. ये बात हम नहीं बल्कि सरकारी आंकड़े कह रहे हैं. साल 2016-17 की बात करें तो सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के कुल 82 मामले देहरादून में दर्ज किए गए थे. जिसमें से मात्र 42 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है. अगर साल 2017-18 की बात करें तो इस साल भी दलित उत्पीड़न से जुड़े सबसे ज्यादा 115 मामले सिर्फ देहरादून से प्राप्त हुए हैं. जिसमें से मात्र 62 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है.

  • जिला देहरादून में साल 2016-17 में 82 मामले और साल 2017-18 में 115 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला हरिद्वार में साल 2016-17 में 67 मामले और साल 2017-18 में 37 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला उधमसिंह नगर में साल 2016-17 में 54 मामले और साल 2017-18 में 38 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला पौड़ी गढ़वाल में साल 2016-17 में 29 मामले और साल 2017-18 में 20 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला नैनीताल में साल 2016-17 में 28 मामले और साल 2017-18 में 20 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला उत्तरकाशी में साल 2016-17 में 21 मामले और साल 2017-18 में 18 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला अल्मोड़ा में साल 2016-17 में 19 मामले और साल 2017-18 में 08 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला पिथौरागढ़ में साल 2016-17 में 18 मामले और साल 2017-18 में 09 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला चमोली में साल 2016-17 में 16 मामले और साल 2017-18 में 15 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला बागेश्वर में साल 2016-17 में 12 मामले और साल 2017-18 में 08 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला टिहरी गढ़वाल में साल 2016-17 में 11 मामले और साल 2017-18 में 10 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला रुद्रप्रयाग में साल 2016-17 में 10 मामले और साल 2017-18 में 10 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
  • जिला चंपावत में साल 2016-17 में 10 मामले और साल 2017-18 में 03 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.

वहीं, इस मामले में उत्तराखंड अनुसूचित जाति आयोग के सचिव जीआर नौटियाल ने बताया कि आयोग को विभाग से जो शिकायतें प्राप्त होती हैं. इसमें कर्मचारी अपने प्रमोशन, भत्ते को लेकर आयोग को शिकायत करते हैं. इस अलावा कुछ लोगों को जिसको कोई व्यक्तिगत समस्या या फिर जमीन जायदाद से जुड़े मामले आदि की शिकायत आती है. जिसमें संबंधित विभाग से उस मामले की पूरी जानकारी मांगी जाती है कि इसमें क्या दिक्कत है. जिसके बाद जब हमें विभाग से जवाब मिलता है और यह देखा जाता है कि शिकायतकर्ता विभाग के जवाब से संतुष्ट है या नहीं. अगर शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होता है तो संबंधित विभाग के उच्चाधिकारी को बुलाया जाता है और उनसे लिखित रूप में सबूत लिया जाता है.

Intro:उत्तराखंड राज्य देश-दुनिया मे देवो की भूमि, देवभूमि के नाम से जाना जाता हैं। क्योकि उत्तराखंड राज्य में कई धार्मिक स्थल ऐसे है जहाँ देवी देवता निवास करते है। और माना जाता है कि जहा देवी देवता निवास करते है वहा कोई ऊँच-नीच, जाति-पाती नही होता है। लेकिन अब इस छोटे देवभूमि को शर्मसार करने वाली तमाम घटनाएं सामने आ रही है। जिसमे दलितों का उत्पीड़न भी शामिल है। और हर साल सैकड़ो दलित उत्पीड़न के मामले सामने आ रहे है लेकिन अभी तक सिर्फ 50 फीसदी मामलों का की निस्तारण हो पाया है। ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है कि प्रदेश में बीते 2 सालों में किन किन विभागों में सबसे ज्यादा दलितों के उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए हैं।



Body:राज्य से लेकर केंद्र तक दलितों के उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिए कई कड़े कानून बनाये जा चुके है बावजूद इसके दलितों पर हो रहे उत्पीड़न के मामले आये दिन सामने आते रहते है। जिसका ताजा मामला टिहरी में हुई दलित युवक की मौत का सामने आया है। जिसमे सवर्ण जाति के कुछ लोगो ने शादी में छोटी सी विवाद के चलते दलित युवक जितेंद्र को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि इस पूरे मामले पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार कर जांच के दावे कर रही है। अगर उत्तराखंड में साल 2018 से 19 के बीच हुए दलितों पर उत्पीड़न के मामलों की बात करें तो करीब 357 मामले दलित उत्पीड़न के दर्ज किए गए हैं। 


साल 2016- 17 में दलित उत्पीड़न के मामले....

अगर पिछले 2 साल में हुए दलित उत्पीड़न के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2016-17 में कुल 377 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें मात्र 159 मामले ही निस्तारित हो पाए है। और अगर इस वर्ष के भीतर प्राप्त शिकायतों को विभागीय वार देखें तो सबसे ज्यादा 130 मामला राजस्व विभाग से जुड़ा हुआ है जिसमे से मात्र 57 मामलो का निस्तारण हो पाया है। तो वही दूसरा सबसे ज्यादा 115 मामला रक्षक विभाग यानी पुलिस विभाग से जुड़ा हुआ है जिसमे से 77 मामलो का निस्तारण हो पाया है। इसके साथ ही अन्य 54 विभागों से भी 132 दलित उत्पीडन के मामले आये थे। जिसमे से मात्र 25 मामलो का ही निस्तारण हो पाया है। 


साल 2017-18 में दलित उत्पीड़न के मामले.....

अगर साल 2017-18 में दलित उत्पीडन मामलों की बात करें तो साल 2017-18 में कुल 311 मामले सामने आए थे। जिसमें से मात्र 162 मामले ही निस्तारित हो पाए हैं। और इस वर्ष के भीतर प्राप्त शिकायतों को विभागवार देखें तो सबसे ज्यादा 107 मामले रक्षक विभाग यानी पुलिस विभाग से जुड़ा हुआ है जिसमे मात्र 58 मामलो का ही निस्तारण हो पाया है। तो वहीं दूसरा सबसे ज्यादा 85 मामला राजस्व विभाग से जुड़ा हुआ है जिसमे 43 मामलो का निस्तारण हो पाया है। इसके साथ ही अन्य 47 विभागों से भी 119 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे जिसमें से 61 मामलो के ही निस्तान हो पाए है।


राजधानी से जुड़े है सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के मामले......

प्रदेश में सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के मामले राजधानी देहरादून में देखे गए है। ये बात हम नही बल्कि सरकारी आकड़े कह रहे है। साल 2016-17 की बात करे तो सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के मामले राजधानी देहरादून में कुल 82 मामले दर्ज किए गए थे। जिसमें से मात्र 42 मामलो का ही निस्तारण हो पाया। और अगर साल 2017-18 की बात करे तो इस साल भी दलित उत्पीड़न से जुड़े सबसे ज्यादा 115 मामले सिर्फ देहरादून से प्राप्त हुए है। जिसमे से मात्र 62 मामलो का ही निस्तारण हो पाया है।

- जिला देहरादून में साल 2016-17 में 82 मामले और साल 2017-18 में 115 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला हरिद्वार में साल 2016-17 में 67 मामले और साल 2017-18 में 37 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला उधमसिंह नगर में साल 2016-17 में 54 मामले और साल 2017-18 में 38 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला पौड़ी गढ़वाल में साल 2016-17 में 29 मामले और साल 2017-18 में 20 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला नैनीताल में साल 2016-17 में 28 मामले और साल 2017-18 में 20 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला उत्तरकाशी में साल 2016-17 में 21 मामले और साल 2017-18 में 18 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला अल्मोड़ा में साल 2016-17 में 19 मामले और साल 2017-18 में 08 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला पिथौरागढ़ में साल 2016-17 में 18 मामले और साल 2017-18 में 09 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला चमोली में साल 2016-17 में 16 मामले और साल 2017-18 में 15 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला बागेश्वर में साल 2016-17 में 12 मामले और साल 2017-18 में 08 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला टिहरी गढ़वाल में साल 2016-17 में 11 मामले और साल 2017-18 में 10 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे।

- जिला रुद्रप्रयाग में साल 2016-17 में 10 मामले और साल 2017-18 में 10 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 

- जिला चंपावत में साल 2016-17 में 10 मामले और साल 2017-18 में 03 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। 


ज्यादा जानकारी देते हुए उत्तराखंड अनुसूचित जाति आयोग के सचिव जी आर नौटियाल ने बताया कि आयोग को विभाग से जो शिकायतें प्राप्त होती हैं। इसमें कर्मचारी अपने प्रमोशन,भत्ते को लेकर आयोग को शिकायत करता है, और कुछ लोगो को जिसको कोई व्यक्तिगत समस्या, या फिर जमीन जायजाद से जुड़े मामले आदि की शिकायत आती है। जिसमे संबंधित विभाग से उस मामले की पूरी जानकारी मांगी जाती हैं कि इसमें क्या दिक्कत है। जिसके बाद जब हमें विभाग पूरा जवाब दे देता है तो शिकायत करता को वो जवाब दिखाया जाता है कि शिकायतकर्ता, विभाग के जवाब से संतुष्ट है या नही। और अगर शिकायतकर्ता संतुष्ट नही होता है तो संबंधित विभाग के उच्च लेवल के अधिकारी को बुलाया जाता है, और उनसे लिखित रूप में सबूत ले लिया जाता हैं।

बाइट - जी आर नौटियाल (सचिव, उत्तराखंड अनुसूचित आयोग)


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