देहरादून: उत्तराखंड देश-दुनिया में देवभूमि के नाम से जाना जाता है. इस पावन धरा पर कई धार्मिक स्थल ऐसे है जहां साक्षात देवी-देवताओं का वास है. लेकिन बदलते परिवेश से देवभूमि भी अछूती नहीं है. यहां आपराधिक घटनाओं का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. जिसमें दलित उत्पीड़न की घटनाएं भी शामिल है. साल-दर-साल दलित उत्पीड़न के मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. वहीं, अभीतक सिर्फ 50 फीसदी मामलों का की निस्तारण हो पाया है. ईटीवी भारत आपको प्रदेश में बीते 2 सालों में बताने जा रहा है कि किन-किन विभागों में सबसे ज्यादा दलितों के उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए हैं.
राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक दलित उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिए कई कड़े कानून बना चुकी है. बावजूद इसके दलितों पर हो रहे उत्पीड़न के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे है. ताजा मामला टिहरी में दलित युवक की मौत के रूप में सामने आया है. जिसमें सवर्ण जाति के कुछ लोगों ने शादी में छोटे से विवाद के चलते दलित युवक जितेंद्र को मौत के घाट उतार दिया. हालांकि, इस पूरे मामले में पुलिस आरोपियों को गिरफ्तारी दावे कर रही है. वहीं, अगर उत्तराखंड में साल 2018-19 के बीच हुए दलित उत्पीड़न के मामलों की बात करें तो इस अवधि में करीब 357 मामले दर्ज किए गए हैं.
साल 2016- 17 में दलित उत्पीड़न के मामले
पिछले 2 साल में हुए दलित उत्पीड़न के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2016-17 में कुल 377 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें मात्र 159 मामले ही निस्तारित हो पाए है. अगर इसी साल में प्राप्त शिकायतों को विभाग वार देखें तो सबसे ज्यादा 130 मामले राजस्व विभाग से जुड़े हैं. जिसमें से मात्र 57 मामलों का निस्तारण हो पाया है. तो वहीं 115 मामले पुलिस विभाग से जुड़े हुए हैं. जिसमें से 77 मामलों का निस्तारण हो पाया है. इसके साथ ही अन्य 54 विभागों से भी 132 दलित उत्पीड़न के मामले आये थे. जिसमें से मात्र 25 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है.
साल 2017-18 में दलित उत्पीड़न के मामले
साल 2017-18 में दलित उत्पीड़न के मामलों की बात करें तो साल 2017-18 में कुल 311 मामले सामने आए थे. जिसमें से मात्र 162 मामले ही निस्तारित हो पाए है. वहीं, इसी साल प्राप्त शिकायतों को विभाग वार देखें तो सबसे ज्यादा 107 मामले पुलिस विभाग से जुड़े हैं. जिसमें से मात्र 58 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है. वहीं, इसके बाद सबसे ज्यादा 85 मामले राजस्व विभाग से जुड़े हैं. जिसमें से 43 मामलों का निस्तारण हो पाया है. इसके साथ ही अन्य 47 विभागों से भी 119 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे. जिसमें से 61 मामलों के ही निस्तारण हो पाया है.
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राजधानी से जुड़े है सबसे ज्यादा मामले
प्रदेश में सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के मामले राजधानी देहरादून में देखें गए है. ये बात हम नहीं बल्कि सरकारी आंकड़े कह रहे हैं. साल 2016-17 की बात करें तो सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न के कुल 82 मामले देहरादून में दर्ज किए गए थे. जिसमें से मात्र 42 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है. अगर साल 2017-18 की बात करें तो इस साल भी दलित उत्पीड़न से जुड़े सबसे ज्यादा 115 मामले सिर्फ देहरादून से प्राप्त हुए हैं. जिसमें से मात्र 62 मामलों का ही निस्तारण हो पाया है.
- जिला देहरादून में साल 2016-17 में 82 मामले और साल 2017-18 में 115 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला हरिद्वार में साल 2016-17 में 67 मामले और साल 2017-18 में 37 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला उधमसिंह नगर में साल 2016-17 में 54 मामले और साल 2017-18 में 38 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला पौड़ी गढ़वाल में साल 2016-17 में 29 मामले और साल 2017-18 में 20 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला नैनीताल में साल 2016-17 में 28 मामले और साल 2017-18 में 20 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला उत्तरकाशी में साल 2016-17 में 21 मामले और साल 2017-18 में 18 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला अल्मोड़ा में साल 2016-17 में 19 मामले और साल 2017-18 में 08 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला पिथौरागढ़ में साल 2016-17 में 18 मामले और साल 2017-18 में 09 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला चमोली में साल 2016-17 में 16 मामले और साल 2017-18 में 15 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला बागेश्वर में साल 2016-17 में 12 मामले और साल 2017-18 में 08 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला टिहरी गढ़वाल में साल 2016-17 में 11 मामले और साल 2017-18 में 10 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला रुद्रप्रयाग में साल 2016-17 में 10 मामले और साल 2017-18 में 10 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
- जिला चंपावत में साल 2016-17 में 10 मामले और साल 2017-18 में 03 दलित उत्पीड़न के मामले सामने आए थे.
वहीं, इस मामले में उत्तराखंड अनुसूचित जाति आयोग के सचिव जीआर नौटियाल ने बताया कि आयोग को विभाग से जो शिकायतें प्राप्त होती हैं. इसमें कर्मचारी अपने प्रमोशन, भत्ते को लेकर आयोग को शिकायत करते हैं. इस अलावा कुछ लोगों को जिसको कोई व्यक्तिगत समस्या या फिर जमीन जायदाद से जुड़े मामले आदि की शिकायत आती है. जिसमें संबंधित विभाग से उस मामले की पूरी जानकारी मांगी जाती है कि इसमें क्या दिक्कत है. जिसके बाद जब हमें विभाग से जवाब मिलता है और यह देखा जाता है कि शिकायतकर्ता विभाग के जवाब से संतुष्ट है या नहीं. अगर शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होता है तो संबंधित विभाग के उच्चाधिकारी को बुलाया जाता है और उनसे लिखित रूप में सबूत लिया जाता है.