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पिरूल से बदलेगी उत्तराखंड की तकदीर, रोजगार के साथ लगेगी दावानल पर रोक - पिरूल से बिजली बनाने की योजना

जानकारी के मुताबिक राज्य में हर साल राज्य से करीब 6 लाख मीट्रिक टन चीड़ की पत्तियां एकत्रित होती हैं. 8 मीट्रिक टन अन्य बायोमास जैसे कृषि उपज अवशेष, लैन्टना आदि भी उपलब्ध होता है. बायोमास से लगभग 150 मेगा वाट विद्युत उत्पादन और 2000 मीट्रिक टन तक की ब्रिकेटिंग और बायो आयल का उत्पादन भी किया जा सकता है.

चीड़ के पेड़.
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Published : Jun 7, 2019, 7:06 PM IST

Updated : Jun 7, 2019, 7:52 PM IST

देहरादून: चीड़ के पिरूल से बिजली बनाने की त्रिवेंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना पर काम शुरू हो गया है. बिजली उत्पादन की दिशा में यूनिट भी स्थापित हो गई है. इस योजना से स्थानीय स्तर पर ऊर्जा का उत्पादन होने के साथ ही पहाड़ों में लोगों को रोजगार भी मिलेगा. माना जा रहा है कि उत्तराखंड के जंगलों में धधकती आग पर भी इस योजना की मदद से काफी हद तक कमी आएगी.

पिरूल से बदलेगी उत्तराखंड की तकदीर.

चीड़ के पिरूल से कोयला और बिजली उत्पादन करने की योजना से अधिकतर युवा जुड़े हुए हैं. बीते दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 21 उद्यमियों को प्रशस्ति पत्र देकर भी सम्मानित किया. मुख्यमंत्री ने बताया कि एक ओर इस योजना से रोजगार मिलेगा तो दूसरी ओर वनाग्नि पर भी रोक लगेगी. इस योजना के को लागू करने के साथ ही इसके विस्तार पर भी कार्य किया जा रहा है.

पढ़ें- रुड़की रेलवे स्टेशन में सुविधाओं का टोटा, बूंद-बूंद पानी को तरस रहे यात्री

जानकारी के मुताबिक राज्य में हर साल राज्य से करीब 6 लाख मीट्रिक टन चीड़ की पत्तियां एकत्रित होती हैं. 8 मीट्रिक टन अन्य बायोमास जैसे कृषि उपज अवशेष, लैन्टाना आदि भी उपलब्ध होता है. बायोमास से लगभग 150 मेगावाट विद्युत उत्पादन और 2000 मीट्रिक टन तक की ब्रिकेटिंग और बायो ऑयल का उत्पादन भी किया जा सकता है.

pine leaves will be used to generate electricity in uttarakhand
पिरूल.

पिरूल से बिजली बनाने की योजना धरातल पर सही से लागू होती है तो इससे पलायन को रोकने और बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलाने में काफी मदद मिलेगी. वहीं, उत्तराखंड में फैले करीब 70 फीसदी जंगलों में आग लगने की प्रमुख वजह चीड़ की पत्तियों को माना जाता है. अगर ये योजना धरातल पर उतर जाती है तो पिरूल के उठान से वनागिनी पर भी रोक लगेगी और करीब 150 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी किया जा सकेगा.

पढ़ें- पुलिस पर हमला करने वाले बॉक्सर को 7 साल की सजा, 11 हजार रुपए का भी लगा अर्थदंड

विद्युत नियामक आयोग दो रुपये प्रति किलो की दर से पिरुल का पैसा देगी. इस योजना को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार अपनी ओर से एक रुपये प्रति किलो की दर से सहायता के रूप में दी जाएगी. वहीं, योजना से जुड़े उद्यमियों का कहना है कि राज्य सरकार को नए प्लांट के लिए सब्सिडी देनी चाहिए ताकि उद्योग को बढ़ावा मिलेगा.

देहरादून: चीड़ के पिरूल से बिजली बनाने की त्रिवेंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना पर काम शुरू हो गया है. बिजली उत्पादन की दिशा में यूनिट भी स्थापित हो गई है. इस योजना से स्थानीय स्तर पर ऊर्जा का उत्पादन होने के साथ ही पहाड़ों में लोगों को रोजगार भी मिलेगा. माना जा रहा है कि उत्तराखंड के जंगलों में धधकती आग पर भी इस योजना की मदद से काफी हद तक कमी आएगी.

पिरूल से बदलेगी उत्तराखंड की तकदीर.

चीड़ के पिरूल से कोयला और बिजली उत्पादन करने की योजना से अधिकतर युवा जुड़े हुए हैं. बीते दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 21 उद्यमियों को प्रशस्ति पत्र देकर भी सम्मानित किया. मुख्यमंत्री ने बताया कि एक ओर इस योजना से रोजगार मिलेगा तो दूसरी ओर वनाग्नि पर भी रोक लगेगी. इस योजना के को लागू करने के साथ ही इसके विस्तार पर भी कार्य किया जा रहा है.

पढ़ें- रुड़की रेलवे स्टेशन में सुविधाओं का टोटा, बूंद-बूंद पानी को तरस रहे यात्री

जानकारी के मुताबिक राज्य में हर साल राज्य से करीब 6 लाख मीट्रिक टन चीड़ की पत्तियां एकत्रित होती हैं. 8 मीट्रिक टन अन्य बायोमास जैसे कृषि उपज अवशेष, लैन्टाना आदि भी उपलब्ध होता है. बायोमास से लगभग 150 मेगावाट विद्युत उत्पादन और 2000 मीट्रिक टन तक की ब्रिकेटिंग और बायो ऑयल का उत्पादन भी किया जा सकता है.

pine leaves will be used to generate electricity in uttarakhand
पिरूल.

पिरूल से बिजली बनाने की योजना धरातल पर सही से लागू होती है तो इससे पलायन को रोकने और बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलाने में काफी मदद मिलेगी. वहीं, उत्तराखंड में फैले करीब 70 फीसदी जंगलों में आग लगने की प्रमुख वजह चीड़ की पत्तियों को माना जाता है. अगर ये योजना धरातल पर उतर जाती है तो पिरूल के उठान से वनागिनी पर भी रोक लगेगी और करीब 150 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी किया जा सकेगा.

पढ़ें- पुलिस पर हमला करने वाले बॉक्सर को 7 साल की सजा, 11 हजार रुपए का भी लगा अर्थदंड

विद्युत नियामक आयोग दो रुपये प्रति किलो की दर से पिरुल का पैसा देगी. इस योजना को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार अपनी ओर से एक रुपये प्रति किलो की दर से सहायता के रूप में दी जाएगी. वहीं, योजना से जुड़े उद्यमियों का कहना है कि राज्य सरकार को नए प्लांट के लिए सब्सिडी देनी चाहिए ताकि उद्योग को बढ़ावा मिलेगा.

Intro:सरकार के पिरूल नीति एक तीर दो निशाना, वनाग्नि पर लगयेगा लगाम तो रोजगार के खुलेंगे नए आयाम।

Note- फीड FTP पर (Perlu dubule fayada) नाम से है।

एंकर- पिरूल से बिजली बनाने की टीएसआर सरकार की महत्वकांक्षी योजना पर काम शुरू हो चुका है ग्रामीणों ने पिरूल से बिजली बनाने की यूनिट भी स्थापित कर ली है। इस योजना से रोजगार मिल रहा है तो दूसरी और उत्तराखंड के जंगलों में धधकती आग पर भी काफी हद तक कमी आएगी।


Body:वीओ - वर्षों से पिरूल से बिजली बनाने की लटकी हुई योजना को त्रिवेंद्र सरकार ने धरातल पर उतार दिया है। इस योजना से एक और जहां प्रदेशवासियो के लिए भरपूर बिजली की उपलब्धता होगी तो दूसरी और बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी मिलेगा इसके साथ ही उत्तराखंड के जंगलों में हर साल लगने वाली आग पर भी काबू पाया जा सकेगा इस योजना से युवा भी खासे जुड़ रहे हैं। बीते दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 21 उद्यमियों को प्रशस्ति पत्र देकर भी सम्मानित किया।  मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि एक ओर जहां इस योजना से रोजगार मिलेगा तो दूसरी और वनागिनी पर भी रोक लगेगी तो वहीं आगे सरकार इस योजना के विस्तार पर भी कार्य कर रही है

बाइट- त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री

वीओ - पिरूल से बिजली बनाने की योजना को सही तरीके से जमीन पर लागू करने से एक और जहां पलायन को रोकने पर मदद मिलेगी तो दूसरी ओर बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलेगा इस योजना से जुड़े उद्यमियों का कहना है कि राज्य सरकार नए प्लांट के लिए सब्सिडी भी दे जानकारी के मुताबिक राज्य में हर साल करीब 6 लाख मि टन चिड की पत्तियां उपलब्ध होती है इसके साथ ही 8 मि. टन अन्य बायोमास जैसे कृषि उपज अवशेष, लैन्टना आदि भी उपलब्ध होता है। इससे बायोमास से लगभग 150 मे.गा विद्युत उत्पादन और 2000 मिट्रिक टन तक की ब्रिकेटिंग और बायो आयल का उत्पादन भी किया जा सकता है
बाइट- मदन कौशिक, कैबिनेट मंत्री 
बाइट- शेखर सिंह बिष्ट, उद्यमी





Conclusion:फाइनल वीओ- कुल मिलाकर सरकार की सोच सकारात्मक है। रोजगार के साथ ही उत्तराखंड में फैले करीब 70 फीसदी जंगलों में आग लगने की प्रमुख वजह चिड़ की पत्तियों को माना जाता है। इसके उठान से वनागिनी पर भी रोक लगेगी साथ ही हजारों युवाओँ को रोजगार भी मिल सकेगा वहीं करीब 150 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी किया जा सकेगा। इस योजना को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार अपनी ओर से एक रूपये प्रति किलो की दर से राज सहायता के रूप में भी दे रही है। जबकि विद्युत नियामक आयोग भी दो रूपये प्रति किलो की दर से राशि प्रदान कर रहा है जिससे अधिक से अधिक लोग जुडे कुल मिलाकर इस योजना के अनेकों फायदे हैं जरूरत बस धरातल पर इसे लागू करने की है
Last Updated : Jun 7, 2019, 7:52 PM IST
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