देहरादून: चीड़ के पिरूल से बिजली बनाने की त्रिवेंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना पर काम शुरू हो गया है. बिजली उत्पादन की दिशा में यूनिट भी स्थापित हो गई है. इस योजना से स्थानीय स्तर पर ऊर्जा का उत्पादन होने के साथ ही पहाड़ों में लोगों को रोजगार भी मिलेगा. माना जा रहा है कि उत्तराखंड के जंगलों में धधकती आग पर भी इस योजना की मदद से काफी हद तक कमी आएगी.
चीड़ के पिरूल से कोयला और बिजली उत्पादन करने की योजना से अधिकतर युवा जुड़े हुए हैं. बीते दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 21 उद्यमियों को प्रशस्ति पत्र देकर भी सम्मानित किया. मुख्यमंत्री ने बताया कि एक ओर इस योजना से रोजगार मिलेगा तो दूसरी ओर वनाग्नि पर भी रोक लगेगी. इस योजना के को लागू करने के साथ ही इसके विस्तार पर भी कार्य किया जा रहा है.
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जानकारी के मुताबिक राज्य में हर साल राज्य से करीब 6 लाख मीट्रिक टन चीड़ की पत्तियां एकत्रित होती हैं. 8 मीट्रिक टन अन्य बायोमास जैसे कृषि उपज अवशेष, लैन्टाना आदि भी उपलब्ध होता है. बायोमास से लगभग 150 मेगावाट विद्युत उत्पादन और 2000 मीट्रिक टन तक की ब्रिकेटिंग और बायो ऑयल का उत्पादन भी किया जा सकता है.
पिरूल से बिजली बनाने की योजना धरातल पर सही से लागू होती है तो इससे पलायन को रोकने और बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलाने में काफी मदद मिलेगी. वहीं, उत्तराखंड में फैले करीब 70 फीसदी जंगलों में आग लगने की प्रमुख वजह चीड़ की पत्तियों को माना जाता है. अगर ये योजना धरातल पर उतर जाती है तो पिरूल के उठान से वनागिनी पर भी रोक लगेगी और करीब 150 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी किया जा सकेगा.
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विद्युत नियामक आयोग दो रुपये प्रति किलो की दर से पिरुल का पैसा देगी. इस योजना को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार अपनी ओर से एक रुपये प्रति किलो की दर से सहायता के रूप में दी जाएगी. वहीं, योजना से जुड़े उद्यमियों का कहना है कि राज्य सरकार को नए प्लांट के लिए सब्सिडी देनी चाहिए ताकि उद्योग को बढ़ावा मिलेगा.