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सपनों की मेट्रो: हर महीने खर्च हो रहे 50 लाख, काम के नाम पर नहीं लगी एक भी 'कील' - uttarakhand metro corporation latest news

उत्तराखंडवासियों के लिए मेट्रो का सपना अभी दूर की कौड़ी ही लग रहा है. सालों से हो रहे प्रेजेंटेशन, दौरों के बाद भी अभी तक इस मामले में कुछ ज्यादा हो नहीं पाया है. सरकार कर्मचारियों के वेतन और अन्य चीजों पर हर महीने जनता के टैक्स के 50 लाख रुपए खर्च कर रही है. लेकिन मेट्रो के काम के नाम पर अभी तक एक कील तक नहीं ठोंकी गई है.

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उत्तराखंड के सपनों को कब लगेंगे पंख?
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Published : Sep 3, 2021, 4:26 PM IST

Updated : Sep 4, 2021, 1:16 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में मेट्रो की बात अब एक सुनहरे सपने जैसी हो चुकी है. पिछले कई सालों से उत्तराखंड में मेट्रो के नाम पर केवल बातें ही की जा रही हैं. मगर आज तक इस बारे में कुछ भी धरातल पर देखने को नहीं मिला है. बीते सालों में तमाम विदेश दौरों और लाखों के खर्च के बाद भी मंत्री, सचिव और मेट्रो कॉर्पोरेशन एक फाइनल प्लान तैयार नहीं कर पाए हैं. पहले मेट्रो की बात हुई, फिर लाइट रेल ट्रांजिट की, फिर रोप वे और अब नियो मेट्रो की बात हो रही है. मेट्रो के बहाने हर महीने सरकार कर्मचारियों पर वेतन के नाम पर 50 लाख रुपए खर्च कर रही है. आश्चर्य की बात है कि अभी तक उत्तराखंड में सपनों की मेट्रो के काम के नाम पर एक कील तक नहीं ठोंकी गई है. उत्तराखंड में मेट्रो परियोजना को लेकर अब तक क्या कुछ हुआ है, आइये जानते हैं.

हर साल सड़क पर उतरती हैं 50 हजार नई गाड़ियां: उत्तराखंड के सबसे व्यस्ततम शहर देहरादून में जाम की समस्या किसी से छिपी नहीं है. जब शहर अपनी पूरी रफ्तार पर होता है तब सड़कें चौक-चौराहे सभी जाम हो जाते हैं. देहरादून आरटीओ के मुताबिक हर साल सड़क पर 50 हजार नये वाहन उतरते हैं. जिससे इस छोटे से शहर पर ट्रैफिक का दबाव बढ़ जाता है. इन्हीं सारी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए उत्तराखंड में मेट्रो की जरुरत महसूस हुई.

उत्तराखंड के सपनों को कब लगेंगे पंख?

खास तौर से देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश में बढ़ते ट्रैफिक के दबाव को देखते हुए इन शहरों को नवंबर 2017 में मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र घोषित किया गया. उसके बाद उत्तराखंड के लोगों ने मेट्रो के सपने देखने शुरू किये. मगर तब से लेकर आजतक जाम से जूझते हुए लोगों के लिए मेट्रो से सफर बस एक सपना बनकर ही रह गया है.

पढ़ें- पंजाब कांग्रेस घमासान : कैप्टन से पीछे रह गए सिद्धू ?

तीन विदेश यात्रा सहित करोड़ों हो चुके हैं खर्च: साल 2017 में जब उत्तराखंड में मेट्रो की घोषणा हुई तो उत्तराखंड के लोगों के सपनों को मानो पंख लग गये. मगर आज 4 साल बीतने के बाद भी मेट्रो के नाम पर एक ईंट भी नहीं लगाई जा सकी है. बता दें 2017 में उत्तराखंड में मेट्रो कॉरपोरेशन का गठन हुआ. मौजूदा समय में इस कार्यालय में 28 लोग काम कर रहे हैं.

खर्च की बात करें तो हर महीने इस कार्यालय और इन कर्मचारियों की तनख्वाह और अन्य खर्चे मिला कर 45 से ₹50 लाख का व्यय होता है. इस हिसाब से 2017 से अब तक इस पर करोड़ों खर्च हो चुके हैं. मगर हासिल अब तक कुछ नहीं हो पाया है. बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है इसके अलावा मेट्रो के नाम पर और अलग अलग लेटेस्ट टेक्नोलॉजी की आड़ में मंत्री और अधिकारी कई विदेश यात्राएं भी कर चुके हैं.

पढ़ें- मसूरी गोलीकांड के 27 साल पूरे, नहीं भूल पाए दो सितंबर को मिला वह जख्म

शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक और तत्कालीन मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह द्वारा आखिरी दौरा कोलम्बिया के मेडलिन शहर का किया गया था. जहां से रोपवे का कांसेप्ट लाया गया, लेकिन वो भी आखिर में बदल दिया गया. हर बार इसी तरह नये-नये प्लान लाये और बदले जाते हैं.

पढ़ें- नवजोत सिंह सिद्धू: क्रिकेट, कमेंट्री, कॉमेडी और कॉन्ट्रोवर्सी

बार बार चेंज हो रहे प्लान: उत्तराखंड में मेट्रो को लेकर जबसे काम शुरू हुआ है, उसके बाद से यहां किस तरह की मेट्रो होगी, क्या टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की जाएगी, इसको लेकर मंथन किया गया. मगर बार-बार यह प्लान भी चेंज होते रहे. जिसके पीछे राजनीतिक लोगों की कमजोर इच्छा शक्ति और अधिकारियों में दूरदर्शिता की कमी साफ तौर पर जाहिर होती है. पहली बार जब मेट्रो देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार में प्लान की गई तो पाया गया कि दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में चलने वाली मेट्रो यहां पर व्यवहारिक नहीं होगी.

इसके बाद विदेशों के दौरे किए गए. तब यह सुनिश्चित किया गया कि देहरादून में रोपवे और हरिद्वार में एलआरटी सिस्टम लगाया जाएगा. उस समय तकनीकी एजेंसियों द्वारा आगाह भी किया गया था कि यह प्लान यहा सक्सेसफुल नहीं होगा. उसके बाद भी तकनीकी परामर्श को दरकिनार करते हुए इस पर आगे काम किया गया. आखिर में यह प्लान भी फेल हो गया. अब नियो मेट्रो पर काम किया जा रहा है.

पढ़ें- बीजेपी नेताओं के अजीब बयानों से हुई उत्तराखंड की किरकिरी, लंबी फेहरिस्त पर डालें एक नजर

रोप वे का प्लान क्यों हुआ कैंसिल: तकनीकी जानकारों के अनुसार देहरादून शहर के लिए रोपवे एक बेहतर विकल्प नहीं है, क्योंकि रोपवे की रफ्तार 20 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. मेट्रो की रफ्तार 80 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. वहीं रोपवे में स्टेशन सीमित संख्या में बेहद कम और दूर-दूर होते हैं, जबकि मेट्रो में आवश्यकता अनुसार स्टेशनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है. वहीं इसके अलावा रोपवे एक पर्यटन दृष्टिकोण का विकल्प है. शहरों में व्यवसायिक आवागमन के लिए यह एक व्यवहारिक विकल्प नहीं है.

सीधी लाइन में जाने वाली रोड पर कई घरों के ऊपर से निकलती है जो कि आने वाले समय में एक और समस्या का कारण बन सकता है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए इस प्लान को कैंसिल किया गया.

पढ़ें- उत्तराखंड चुनाव से पहले BJP नेताओं के जहरीले बोल, लोकतंत्र की साख पर बट्टा

उत्तराखंड में मेट्रो की स्थिति: बहरहाल, उत्तराखंड में अब फिलहाल मेट्रो को लेकर जो आखिरी और निर्णायक फैसला है वह नियो मेट्रो के रूप में है. जिस पर डीपीआर सहित सभी औपचारिकताएं पूरी कर मेट्रो बोर्ड ने प्रस्ताव पास कर उत्तराखंड शासन को भेजा है. उत्तराखंड मेट्रो कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी ने बताया कि उत्तराखंड मेट्रो कारपोरेशन बोर्ड में नियो मेट्रो को लेकर पूरी तरह से प्रेजेंटेशन तैयार कर प्रस्ताव तैयार करके शासन को भेज दिया है. उम्मीद है कि जल्द ही कैबिनेट में इस निर्णायक प्रस्ताव पर मुहर लगेगी. उसके बाद देहरादून में पहले चरण का काम शुरू हो पाएगा. अगर समय से काम को मंजूरी देकर शुरू किया जाता है तो 2024 तक उत्तराखंड में मेट्रो का काम पूरा हो जाएगा.

पढ़ें- मंत्री गणेश जोशी के 'चोर-डकैत' बयान पर बवाल, हरदा बोले- क्या प्रतिद्वंदी कीड़े-मकोड़े हैं?

जानें कैसी होगी मेट्रो, कितना होगा किराया: पहले चरण में देहरादून शहर में नियो मेट्रो का निर्माण किया जाएगा. यह पूरी तरह से तकरीबन 23 किलोमीटर के एलिवेटेड ट्रैक होगा. नियो मेट्रो एक तरह की लाइट मेट्रो सिस्टम है जो कि रबड़ के टायर पर चलती है. छोटे शहरों में मेट्रो के लिए यह एक बेहद आधुनिक और नया प्रयोग है. एशिया और यूरोप के कई शहरों में ऐसे तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है. जहां मेट्रो स्टील टायर पर चलती है, तो वहीं नियो मेट्रो रबर टायर पर चलती है. इसमें बस की तरह सेंट्रल गाइड या फिर साइट गाइड सिस्टम भी मौजूद होता है. नियो मेट्रो एक तरह से बड़ी बस के डिब्बों जैसी होती है. जिसे जरूरत पड़ने पर सड़क पर भी चलाया जा सकता है.

पढ़ें-उत्तराखंड मेट्रो में बंपर भर्ती

देहरादून शहर में नियो मेट्रो का संचालन टोटल 22.4 यानी तकरीबन 23 किलोमीटर के ट्रैक पर होगा. इसमें अलग अगल 25 स्टेशन होंगे. देहरादून में नियो मेट्रो के दो नॉर्थ-साउथ और ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर होंगे. पहला कॉरिडोर ISBT से गांधी पार्क और दूसरा रायपुर से FRI तक होगा. दर्शन लाल चौक इंटर चेंज स्टेशन रहेगा. एक अनुमान के अनुसार 2026 तक देहरादून में मेट्रो में रोजाना सफर करने वाले लोगों की संख्या 20 लाख होगी.

किराये की बात करें तो मेट्रो का उद्देश्य लोगों से पैसा कमाने का नहीं बल्कि शहर में ट्रैफिक की समस्या को कम करने का होता है. लिहाजा इसे पीपीपी मोड पर नहीं बनाया जा सकता है. वहीं देहरादून शहर में मेट्रो के निर्माण के बाद किराये को लेकर भी कई अलग-अलग मानकों पर सर्वे किया जाता है. किराया निर्धारण के लिए शहर के औसत पेईंग कैपेसिटी, टाइम सेविंग, कम्फर्ट कॉस्ट, एक्सिडेंट सेफ्टी इत्यादि कई मानकों को ध्यान में रखकर किराए का निर्धारण किया गया है.

पढ़ें-अब प्रदेश में बहादराबाद और मुनिकीरेती के बीच दौड़ेगी मेट्रो, डीपीआर तैयार


एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2026 के बाद मेट्रो का किराया प्रति 2 किलोमीटर पर 15 रुपये, प्रति 5 किलोमीटर पर 25 रुपये, प्रति 12 किलोमीटर पर 40 रुपये, प्रति 12 किलोमीटर से ऊपर 50 रुपये होगा.

क्या होंगे चैलेंज?
आज के आधुनिक दौर में मेट्रो एक बेहद लेटेस्ट टेक्नोलॉजी है जो कि समय की जरूरत के अनुसार बेहद महत्वपूर्ण है. वहीं इसके निर्माण, निर्माण की कार्यशैली और गुणवत्ता को अन्य निर्माणों से बेहतर बनाने लिए कई सख्त और खर्चीले मानकों पर खरा उतरना पड़ता है. यही वजह है कि मेट्रो में खर्च बहुत ज्यादा होता है. उत्तराखंड में पहले चरण में देहरादून में बनाई जाने वाली मेट्रो का बजट 1700 करोड़ है. ऐसा अनुमान है कि मेट्रो का काम पूरा होते होते यह लागत 1,700 करोड़ से बढ़ कर 1,850 करोड़ तक पहुंच जाएगी.

पढ़ें- देहरादून में मेट्रो नियो चलाने पर बनी सहमति, जल्द प्रस्ताव भेजेगा यूकेएमआरसी

उत्तराखंड मेट्रो कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी के अनुसार मेट्रो के निर्माण में कुछ पैरामीटर बिल्कुल सेट होते हैं. जिन पर समझौता नहीं किया जा सकता है. पुराना अनुभव साझा करते हुए जितेंद्र त्यागी बताते हैं कि दिल्ली मेट्रो के निर्माण में दिल्ली साउथ एक्स में सबसे व्यस्ततम बाजार में मेट्रो के निर्माण के आगे बाजार के व्यापारियों के विरोध का सामना करना पड़ा था. इस दौरान उनके द्वारा व्यापारियों की समस्या और उसके समाधान के लिए वैकल्पिक विकल्पों को ध्यान में रखकर निर्माण में खर्च के साथ साथ निर्माण की रफ्तार को भी बढ़ाया गया.

पढ़ें- उत्तराखंड में मेट्रो नहीं अब PRT पर होगा काम, सरकार ने तेज की कवायद

मेट्रो कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी का कहना है कि उनका उद्देश्य लोगों को सुविधा देने का है. इसी वजह से कि मेट्रो निर्माण अपने आप में एक अलग स्टेटस रखता है. उनके अनुसार निर्माण कार्य में लगने वाला समय और लोगों को होने वाली असुविधा को न्यूनतम रखना निर्माण का पहला उद्देश्य होता है. इसके लिए सभी विकल्पों पर काम किया जाता है. भले ही उसमें लागत कितनी भी आए. इसमें गुणवत्ता से किसी भी तरह का समझौता नहीं होता है.

पढ़ें-मेट्रो प्रोजेक्ट पर सरकार ने खड़े किये हाथ, अब CM त्रिवेंद्र ने रोप-वे का अलापा राग


देहरादून के बाद हरिद्वार में शुरू होगा मेट्रो का काम: अगर सब कुछ ठीक रहा तो पहले चरण में देहरादून में नियो मेट्रो के निर्माण के बाद हरिद्वार में ऋषिकेश से हरिद्वार 35 किलोमीटर के नियो मेट्रो पर काम शुरू किया जाएगा. यहां पर रिंग रोड बनने के बाद मेट्रो की आवश्यकता कितनी रह जाएगी, जिस पर विचार विमर्श कर यह निष्कर्ष निकाला गया कि रिंग रोड के बनने से मेट्रो की आवश्यकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा. मेट्रो की आवश्यकता बरकरार रहेगी. देहरादून में मेट्रो निर्माण के बाद दूसरे चरण में हरिद्वार से ऋषिकेश और तीसरे चरण में रायवाला से देहरादून मेट्रो का निर्माण किया जाएगा. हरिद्वार-देहरादून हाइवे के सुधार के बाद रायवाला से देहरादून मेट्रो की जरूरतों पर असर पड़ सकता है.

देहरादून: उत्तराखंड में मेट्रो की बात अब एक सुनहरे सपने जैसी हो चुकी है. पिछले कई सालों से उत्तराखंड में मेट्रो के नाम पर केवल बातें ही की जा रही हैं. मगर आज तक इस बारे में कुछ भी धरातल पर देखने को नहीं मिला है. बीते सालों में तमाम विदेश दौरों और लाखों के खर्च के बाद भी मंत्री, सचिव और मेट्रो कॉर्पोरेशन एक फाइनल प्लान तैयार नहीं कर पाए हैं. पहले मेट्रो की बात हुई, फिर लाइट रेल ट्रांजिट की, फिर रोप वे और अब नियो मेट्रो की बात हो रही है. मेट्रो के बहाने हर महीने सरकार कर्मचारियों पर वेतन के नाम पर 50 लाख रुपए खर्च कर रही है. आश्चर्य की बात है कि अभी तक उत्तराखंड में सपनों की मेट्रो के काम के नाम पर एक कील तक नहीं ठोंकी गई है. उत्तराखंड में मेट्रो परियोजना को लेकर अब तक क्या कुछ हुआ है, आइये जानते हैं.

हर साल सड़क पर उतरती हैं 50 हजार नई गाड़ियां: उत्तराखंड के सबसे व्यस्ततम शहर देहरादून में जाम की समस्या किसी से छिपी नहीं है. जब शहर अपनी पूरी रफ्तार पर होता है तब सड़कें चौक-चौराहे सभी जाम हो जाते हैं. देहरादून आरटीओ के मुताबिक हर साल सड़क पर 50 हजार नये वाहन उतरते हैं. जिससे इस छोटे से शहर पर ट्रैफिक का दबाव बढ़ जाता है. इन्हीं सारी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए उत्तराखंड में मेट्रो की जरुरत महसूस हुई.

उत्तराखंड के सपनों को कब लगेंगे पंख?

खास तौर से देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश में बढ़ते ट्रैफिक के दबाव को देखते हुए इन शहरों को नवंबर 2017 में मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र घोषित किया गया. उसके बाद उत्तराखंड के लोगों ने मेट्रो के सपने देखने शुरू किये. मगर तब से लेकर आजतक जाम से जूझते हुए लोगों के लिए मेट्रो से सफर बस एक सपना बनकर ही रह गया है.

पढ़ें- पंजाब कांग्रेस घमासान : कैप्टन से पीछे रह गए सिद्धू ?

तीन विदेश यात्रा सहित करोड़ों हो चुके हैं खर्च: साल 2017 में जब उत्तराखंड में मेट्रो की घोषणा हुई तो उत्तराखंड के लोगों के सपनों को मानो पंख लग गये. मगर आज 4 साल बीतने के बाद भी मेट्रो के नाम पर एक ईंट भी नहीं लगाई जा सकी है. बता दें 2017 में उत्तराखंड में मेट्रो कॉरपोरेशन का गठन हुआ. मौजूदा समय में इस कार्यालय में 28 लोग काम कर रहे हैं.

खर्च की बात करें तो हर महीने इस कार्यालय और इन कर्मचारियों की तनख्वाह और अन्य खर्चे मिला कर 45 से ₹50 लाख का व्यय होता है. इस हिसाब से 2017 से अब तक इस पर करोड़ों खर्च हो चुके हैं. मगर हासिल अब तक कुछ नहीं हो पाया है. बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है इसके अलावा मेट्रो के नाम पर और अलग अलग लेटेस्ट टेक्नोलॉजी की आड़ में मंत्री और अधिकारी कई विदेश यात्राएं भी कर चुके हैं.

पढ़ें- मसूरी गोलीकांड के 27 साल पूरे, नहीं भूल पाए दो सितंबर को मिला वह जख्म

शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक और तत्कालीन मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह द्वारा आखिरी दौरा कोलम्बिया के मेडलिन शहर का किया गया था. जहां से रोपवे का कांसेप्ट लाया गया, लेकिन वो भी आखिर में बदल दिया गया. हर बार इसी तरह नये-नये प्लान लाये और बदले जाते हैं.

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बार बार चेंज हो रहे प्लान: उत्तराखंड में मेट्रो को लेकर जबसे काम शुरू हुआ है, उसके बाद से यहां किस तरह की मेट्रो होगी, क्या टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की जाएगी, इसको लेकर मंथन किया गया. मगर बार-बार यह प्लान भी चेंज होते रहे. जिसके पीछे राजनीतिक लोगों की कमजोर इच्छा शक्ति और अधिकारियों में दूरदर्शिता की कमी साफ तौर पर जाहिर होती है. पहली बार जब मेट्रो देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार में प्लान की गई तो पाया गया कि दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में चलने वाली मेट्रो यहां पर व्यवहारिक नहीं होगी.

इसके बाद विदेशों के दौरे किए गए. तब यह सुनिश्चित किया गया कि देहरादून में रोपवे और हरिद्वार में एलआरटी सिस्टम लगाया जाएगा. उस समय तकनीकी एजेंसियों द्वारा आगाह भी किया गया था कि यह प्लान यहा सक्सेसफुल नहीं होगा. उसके बाद भी तकनीकी परामर्श को दरकिनार करते हुए इस पर आगे काम किया गया. आखिर में यह प्लान भी फेल हो गया. अब नियो मेट्रो पर काम किया जा रहा है.

पढ़ें- बीजेपी नेताओं के अजीब बयानों से हुई उत्तराखंड की किरकिरी, लंबी फेहरिस्त पर डालें एक नजर

रोप वे का प्लान क्यों हुआ कैंसिल: तकनीकी जानकारों के अनुसार देहरादून शहर के लिए रोपवे एक बेहतर विकल्प नहीं है, क्योंकि रोपवे की रफ्तार 20 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. मेट्रो की रफ्तार 80 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. वहीं रोपवे में स्टेशन सीमित संख्या में बेहद कम और दूर-दूर होते हैं, जबकि मेट्रो में आवश्यकता अनुसार स्टेशनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है. वहीं इसके अलावा रोपवे एक पर्यटन दृष्टिकोण का विकल्प है. शहरों में व्यवसायिक आवागमन के लिए यह एक व्यवहारिक विकल्प नहीं है.

सीधी लाइन में जाने वाली रोड पर कई घरों के ऊपर से निकलती है जो कि आने वाले समय में एक और समस्या का कारण बन सकता है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए इस प्लान को कैंसिल किया गया.

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उत्तराखंड में मेट्रो की स्थिति: बहरहाल, उत्तराखंड में अब फिलहाल मेट्रो को लेकर जो आखिरी और निर्णायक फैसला है वह नियो मेट्रो के रूप में है. जिस पर डीपीआर सहित सभी औपचारिकताएं पूरी कर मेट्रो बोर्ड ने प्रस्ताव पास कर उत्तराखंड शासन को भेजा है. उत्तराखंड मेट्रो कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी ने बताया कि उत्तराखंड मेट्रो कारपोरेशन बोर्ड में नियो मेट्रो को लेकर पूरी तरह से प्रेजेंटेशन तैयार कर प्रस्ताव तैयार करके शासन को भेज दिया है. उम्मीद है कि जल्द ही कैबिनेट में इस निर्णायक प्रस्ताव पर मुहर लगेगी. उसके बाद देहरादून में पहले चरण का काम शुरू हो पाएगा. अगर समय से काम को मंजूरी देकर शुरू किया जाता है तो 2024 तक उत्तराखंड में मेट्रो का काम पूरा हो जाएगा.

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जानें कैसी होगी मेट्रो, कितना होगा किराया: पहले चरण में देहरादून शहर में नियो मेट्रो का निर्माण किया जाएगा. यह पूरी तरह से तकरीबन 23 किलोमीटर के एलिवेटेड ट्रैक होगा. नियो मेट्रो एक तरह की लाइट मेट्रो सिस्टम है जो कि रबड़ के टायर पर चलती है. छोटे शहरों में मेट्रो के लिए यह एक बेहद आधुनिक और नया प्रयोग है. एशिया और यूरोप के कई शहरों में ऐसे तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है. जहां मेट्रो स्टील टायर पर चलती है, तो वहीं नियो मेट्रो रबर टायर पर चलती है. इसमें बस की तरह सेंट्रल गाइड या फिर साइट गाइड सिस्टम भी मौजूद होता है. नियो मेट्रो एक तरह से बड़ी बस के डिब्बों जैसी होती है. जिसे जरूरत पड़ने पर सड़क पर भी चलाया जा सकता है.

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देहरादून शहर में नियो मेट्रो का संचालन टोटल 22.4 यानी तकरीबन 23 किलोमीटर के ट्रैक पर होगा. इसमें अलग अगल 25 स्टेशन होंगे. देहरादून में नियो मेट्रो के दो नॉर्थ-साउथ और ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर होंगे. पहला कॉरिडोर ISBT से गांधी पार्क और दूसरा रायपुर से FRI तक होगा. दर्शन लाल चौक इंटर चेंज स्टेशन रहेगा. एक अनुमान के अनुसार 2026 तक देहरादून में मेट्रो में रोजाना सफर करने वाले लोगों की संख्या 20 लाख होगी.

किराये की बात करें तो मेट्रो का उद्देश्य लोगों से पैसा कमाने का नहीं बल्कि शहर में ट्रैफिक की समस्या को कम करने का होता है. लिहाजा इसे पीपीपी मोड पर नहीं बनाया जा सकता है. वहीं देहरादून शहर में मेट्रो के निर्माण के बाद किराये को लेकर भी कई अलग-अलग मानकों पर सर्वे किया जाता है. किराया निर्धारण के लिए शहर के औसत पेईंग कैपेसिटी, टाइम सेविंग, कम्फर्ट कॉस्ट, एक्सिडेंट सेफ्टी इत्यादि कई मानकों को ध्यान में रखकर किराए का निर्धारण किया गया है.

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एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2026 के बाद मेट्रो का किराया प्रति 2 किलोमीटर पर 15 रुपये, प्रति 5 किलोमीटर पर 25 रुपये, प्रति 12 किलोमीटर पर 40 रुपये, प्रति 12 किलोमीटर से ऊपर 50 रुपये होगा.

क्या होंगे चैलेंज?
आज के आधुनिक दौर में मेट्रो एक बेहद लेटेस्ट टेक्नोलॉजी है जो कि समय की जरूरत के अनुसार बेहद महत्वपूर्ण है. वहीं इसके निर्माण, निर्माण की कार्यशैली और गुणवत्ता को अन्य निर्माणों से बेहतर बनाने लिए कई सख्त और खर्चीले मानकों पर खरा उतरना पड़ता है. यही वजह है कि मेट्रो में खर्च बहुत ज्यादा होता है. उत्तराखंड में पहले चरण में देहरादून में बनाई जाने वाली मेट्रो का बजट 1700 करोड़ है. ऐसा अनुमान है कि मेट्रो का काम पूरा होते होते यह लागत 1,700 करोड़ से बढ़ कर 1,850 करोड़ तक पहुंच जाएगी.

पढ़ें- देहरादून में मेट्रो नियो चलाने पर बनी सहमति, जल्द प्रस्ताव भेजेगा यूकेएमआरसी

उत्तराखंड मेट्रो कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी के अनुसार मेट्रो के निर्माण में कुछ पैरामीटर बिल्कुल सेट होते हैं. जिन पर समझौता नहीं किया जा सकता है. पुराना अनुभव साझा करते हुए जितेंद्र त्यागी बताते हैं कि दिल्ली मेट्रो के निर्माण में दिल्ली साउथ एक्स में सबसे व्यस्ततम बाजार में मेट्रो के निर्माण के आगे बाजार के व्यापारियों के विरोध का सामना करना पड़ा था. इस दौरान उनके द्वारा व्यापारियों की समस्या और उसके समाधान के लिए वैकल्पिक विकल्पों को ध्यान में रखकर निर्माण में खर्च के साथ साथ निर्माण की रफ्तार को भी बढ़ाया गया.

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मेट्रो कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी का कहना है कि उनका उद्देश्य लोगों को सुविधा देने का है. इसी वजह से कि मेट्रो निर्माण अपने आप में एक अलग स्टेटस रखता है. उनके अनुसार निर्माण कार्य में लगने वाला समय और लोगों को होने वाली असुविधा को न्यूनतम रखना निर्माण का पहला उद्देश्य होता है. इसके लिए सभी विकल्पों पर काम किया जाता है. भले ही उसमें लागत कितनी भी आए. इसमें गुणवत्ता से किसी भी तरह का समझौता नहीं होता है.

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देहरादून के बाद हरिद्वार में शुरू होगा मेट्रो का काम: अगर सब कुछ ठीक रहा तो पहले चरण में देहरादून में नियो मेट्रो के निर्माण के बाद हरिद्वार में ऋषिकेश से हरिद्वार 35 किलोमीटर के नियो मेट्रो पर काम शुरू किया जाएगा. यहां पर रिंग रोड बनने के बाद मेट्रो की आवश्यकता कितनी रह जाएगी, जिस पर विचार विमर्श कर यह निष्कर्ष निकाला गया कि रिंग रोड के बनने से मेट्रो की आवश्यकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा. मेट्रो की आवश्यकता बरकरार रहेगी. देहरादून में मेट्रो निर्माण के बाद दूसरे चरण में हरिद्वार से ऋषिकेश और तीसरे चरण में रायवाला से देहरादून मेट्रो का निर्माण किया जाएगा. हरिद्वार-देहरादून हाइवे के सुधार के बाद रायवाला से देहरादून मेट्रो की जरूरतों पर असर पड़ सकता है.

Last Updated : Sep 4, 2021, 1:16 PM IST
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