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मॉनसून में 'मौत' से घबराए प्रदेश के 369 गांव, आखिर कब होगा विस्थापन

उत्तराखंड में आज भी कई ऐसे गांव हैं जहां के लोग मॉनसून आते ही डर के साए में जीने को मजबूर हो जाते हैं. राज्य गठन से लेकर अबतक कई सरकारें आईं और गईं लेकिन अभी तक इन गांवों का विस्थापन नहीं हो पाया है.

Uttarakhand Displacement News
उत्तराखंड विस्थापन न्यूज
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Published : Jul 15, 2020, 10:10 AM IST

Updated : Jul 15, 2020, 1:27 PM IST

देहरादून: मॉनसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को विस्थापित करने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है. दरअसल, प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में बसे तमाम ऐसे गांव हैं, जो खतरे की जद में हैं, क्योंकि बरसात के मौसम में इन ग्रामीण इलाकों पर खतरा और भी बढ़ जाता है. उत्तराखंड में मॉनसून सीजन ने भी दस्तक दे दी है, जिस वजह से एक बार फिर नदियों, झीलों और संवेदनशील क्षेत्रों में बसे गावों पर खतरा मंडरा रहा है. सरकारी तंत्र इन सभी गांवों को विस्थापित करने के दावे तो खूब कर रहा है, बावजूद इसके धरातल पर हकीकत करीब-करीब शून्य ही नजर आ रही है. ऐसे में सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होना लाजमी है.

मॉनसून में 'मौत' से घबराए प्रदेश के 369 गांव

उत्तराखंड में मॉनसून के दस्तक देते ही संवेदनशील माने जाने वाले कई पहाड़ी क्षेत्रों से विस्थापित किए जाने वाले ग्रामीणों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. सिस्टम के जिम्मेदार आला अधिकारी भले ही ग्रामीणों को विस्थापित किए जाने की कार्य योजना बनाने का दावा कर रहे हों, लेकिन विस्थापन के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं. यही वजह है कि पुनर्वास किए जाने वाले ग्रामीण, खौफ के साए में जीने को मजबूर हो रहे हैं. पहाड़ी क्षेत्रों के ग्रामीणों की जिंदगी से जुड़े इस गंभीर मामले पर अब विपक्ष ने भी सरकार की नीयत पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं.

पढ़ें- चीन सीमा के पास बादल फटने से कुटी-गुंजी रोड ब्लॉक, 3 किमी तक सड़क का मिटा नामोनिशान

गांवों के विस्थापन का मामला बेहद गंभीर होने के चलते कुछ समय पहले मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने भी इस दिशा में उचित कदम उठाने के सम्बंधित अधिकारियों को भी कहा था. वहीं, अब आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण के निदेशक पीयूष रौतेला का कहना है कि कुछ ग्रामीणों को विस्थापित करने की कवायद चल रही है, जो गांव किसी भी प्रकार के रिस्क जोन में आते हैं. ऐसे गांवों की मैपिंग पहले ही कर ली गयी है. लिहाजा, इन गांवों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था गांव वालों की सहमति के आधार पर ही की जायेगी.

प्रदेश के भीतर पुनर्वास की नीति नहीं है व्यवहारिक

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि विस्थापन को लेकर जो सरकार ने नीति बनायी है, वह मानवीय और व्यावहारिक नहीं है. उन्होंने कहा कि विस्थापन की नीति पर पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने भी एतराज जताया था. उनका कहना था कि पुनर्वास नीति को हरियाणा की तर्ज पर बनाया जाना चाहिए.

प्रदेश के 395 गांवों का होना है विस्थापन

उत्तराखंड प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे हैं, जिन जनपदों के कई गांव खतरे की जद में है. आपदा विभाग के आकड़ों की मानें तो जिला हरिद्वार में एक भी गांव ऐसा नहीं है जो खतरे के जद में हो. वहीं, पिथौरागढ़ जनपद में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं, बावजूद इसके यहां सिर्फ एक गांव को ही विस्थापित किया गया है. आकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव खतरे की जद में हैं.

ये भी पढ़ें- हल्द्वानी के इस वाटिका में भगवान राम से जुड़े जंगलों की दिखेगी झलक

विस्थापन के लिए चिन्हित किये गए गांव

जिलाचिन्हित गांव
ऊधम सिंह नगर01
देहरादून 02
नैनीताल 06
अल्मोड़ा 09
चंपावत 10
रुद्रप्रयाग 14 (6 गांव विस्थापित, 60 परिवार)
पौड़ी 26
टिहरी 33
बागेश्वर 42 (4 गांव विस्थापित, 311परिवार)
चमोली 61 (8 गांव विस्थापित, 187 परिवार)
उत्तरकाशी 62
पिथौरागढ़ 129 (1 गांव, 5 परिवार)


अभी तक मात्र 26 गांव ही किये गए विस्थापित

उत्तराखंड राज्य के 12 जिलों में से 395 गांव चिन्हित किए गए हैं, जिन गांवों को विस्थापित करना है. पुनर्वास नीति, 2011 के तहत इन गांव को अन्य जगह विस्थापित किया जाना था, लेकिन अभी तक बीते 5 सालों में मात्र 26 गांवों के 634 परिवारों को विस्थापित किया गया है. जिसमें कुल 26 करोड़ 73 लाख 78 हजार रुपये का खर्च आया है. लिहाजा, अभी प्रदेश के 369 गांव ऐसे हैं जिनका विस्थापन होना अभी बाकी है.

परिवारों के विस्थापन की जानकारी

साल गांवपरिवार
2016-1702 11
2017-1812177
2018-1906151
2019-2006295

विस्थापन को लेकर फिर गरमाई राजनीति

दहशत के साए में जीने को मजबूर हजारों परिवारों के विस्थापन को लेकर एक बार फिर सियासत शुरू हो गयी है. उत्तराखंड में बारी-बारी से सत्ता पर काबिज रही बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियां अब विस्थापन को लेकर हामी भरती नजर आ रही हैं. बीजेपी प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने कहा कि सरकार बहुत संवेदनशील है. इन सभी मुद्दों को गंभीरता से लेने वाली है, अच्छा निर्माण लेने वाली सरकार है. इन गांवों की बेहतरी के लिए राज्य सरकार निर्णय ले रही है.

विस्थापन के लिए लंबा संघर्ष- धस्माना

तो वहीं, कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि जो गांव खतरे की जद में हैं, उनके विस्थापन के लिए लंबा संघर्ष चल रहा है. कई सरकारें आईं लेकिन अभी तक विस्थापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई हैं, इसलिए सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए.

उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न हैं. यही वजह है कि उत्तराखंड राज्य सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां न सिर्फ राज्य की आर्थिकी पर असर डाल रही हैं, बल्कि प्रदेश के तमाम ऐसे गांव भी हैं जहां अमूमन खतरा मंडराता रहता है. ऐसे में इन गांवों का कब तक विस्थापन हो पायेगा, ये तो वक्त ही बताएगा.

देहरादून: मॉनसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को विस्थापित करने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है. दरअसल, प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में बसे तमाम ऐसे गांव हैं, जो खतरे की जद में हैं, क्योंकि बरसात के मौसम में इन ग्रामीण इलाकों पर खतरा और भी बढ़ जाता है. उत्तराखंड में मॉनसून सीजन ने भी दस्तक दे दी है, जिस वजह से एक बार फिर नदियों, झीलों और संवेदनशील क्षेत्रों में बसे गावों पर खतरा मंडरा रहा है. सरकारी तंत्र इन सभी गांवों को विस्थापित करने के दावे तो खूब कर रहा है, बावजूद इसके धरातल पर हकीकत करीब-करीब शून्य ही नजर आ रही है. ऐसे में सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होना लाजमी है.

मॉनसून में 'मौत' से घबराए प्रदेश के 369 गांव

उत्तराखंड में मॉनसून के दस्तक देते ही संवेदनशील माने जाने वाले कई पहाड़ी क्षेत्रों से विस्थापित किए जाने वाले ग्रामीणों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. सिस्टम के जिम्मेदार आला अधिकारी भले ही ग्रामीणों को विस्थापित किए जाने की कार्य योजना बनाने का दावा कर रहे हों, लेकिन विस्थापन के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं. यही वजह है कि पुनर्वास किए जाने वाले ग्रामीण, खौफ के साए में जीने को मजबूर हो रहे हैं. पहाड़ी क्षेत्रों के ग्रामीणों की जिंदगी से जुड़े इस गंभीर मामले पर अब विपक्ष ने भी सरकार की नीयत पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं.

पढ़ें- चीन सीमा के पास बादल फटने से कुटी-गुंजी रोड ब्लॉक, 3 किमी तक सड़क का मिटा नामोनिशान

गांवों के विस्थापन का मामला बेहद गंभीर होने के चलते कुछ समय पहले मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने भी इस दिशा में उचित कदम उठाने के सम्बंधित अधिकारियों को भी कहा था. वहीं, अब आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण के निदेशक पीयूष रौतेला का कहना है कि कुछ ग्रामीणों को विस्थापित करने की कवायद चल रही है, जो गांव किसी भी प्रकार के रिस्क जोन में आते हैं. ऐसे गांवों की मैपिंग पहले ही कर ली गयी है. लिहाजा, इन गांवों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था गांव वालों की सहमति के आधार पर ही की जायेगी.

प्रदेश के भीतर पुनर्वास की नीति नहीं है व्यवहारिक

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि विस्थापन को लेकर जो सरकार ने नीति बनायी है, वह मानवीय और व्यावहारिक नहीं है. उन्होंने कहा कि विस्थापन की नीति पर पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने भी एतराज जताया था. उनका कहना था कि पुनर्वास नीति को हरियाणा की तर्ज पर बनाया जाना चाहिए.

प्रदेश के 395 गांवों का होना है विस्थापन

उत्तराखंड प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे हैं, जिन जनपदों के कई गांव खतरे की जद में है. आपदा विभाग के आकड़ों की मानें तो जिला हरिद्वार में एक भी गांव ऐसा नहीं है जो खतरे के जद में हो. वहीं, पिथौरागढ़ जनपद में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं, बावजूद इसके यहां सिर्फ एक गांव को ही विस्थापित किया गया है. आकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव खतरे की जद में हैं.

ये भी पढ़ें- हल्द्वानी के इस वाटिका में भगवान राम से जुड़े जंगलों की दिखेगी झलक

विस्थापन के लिए चिन्हित किये गए गांव

जिलाचिन्हित गांव
ऊधम सिंह नगर01
देहरादून 02
नैनीताल 06
अल्मोड़ा 09
चंपावत 10
रुद्रप्रयाग 14 (6 गांव विस्थापित, 60 परिवार)
पौड़ी 26
टिहरी 33
बागेश्वर 42 (4 गांव विस्थापित, 311परिवार)
चमोली 61 (8 गांव विस्थापित, 187 परिवार)
उत्तरकाशी 62
पिथौरागढ़ 129 (1 गांव, 5 परिवार)


अभी तक मात्र 26 गांव ही किये गए विस्थापित

उत्तराखंड राज्य के 12 जिलों में से 395 गांव चिन्हित किए गए हैं, जिन गांवों को विस्थापित करना है. पुनर्वास नीति, 2011 के तहत इन गांव को अन्य जगह विस्थापित किया जाना था, लेकिन अभी तक बीते 5 सालों में मात्र 26 गांवों के 634 परिवारों को विस्थापित किया गया है. जिसमें कुल 26 करोड़ 73 लाख 78 हजार रुपये का खर्च आया है. लिहाजा, अभी प्रदेश के 369 गांव ऐसे हैं जिनका विस्थापन होना अभी बाकी है.

परिवारों के विस्थापन की जानकारी

साल गांवपरिवार
2016-1702 11
2017-1812177
2018-1906151
2019-2006295

विस्थापन को लेकर फिर गरमाई राजनीति

दहशत के साए में जीने को मजबूर हजारों परिवारों के विस्थापन को लेकर एक बार फिर सियासत शुरू हो गयी है. उत्तराखंड में बारी-बारी से सत्ता पर काबिज रही बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियां अब विस्थापन को लेकर हामी भरती नजर आ रही हैं. बीजेपी प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने कहा कि सरकार बहुत संवेदनशील है. इन सभी मुद्दों को गंभीरता से लेने वाली है, अच्छा निर्माण लेने वाली सरकार है. इन गांवों की बेहतरी के लिए राज्य सरकार निर्णय ले रही है.

विस्थापन के लिए लंबा संघर्ष- धस्माना

तो वहीं, कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि जो गांव खतरे की जद में हैं, उनके विस्थापन के लिए लंबा संघर्ष चल रहा है. कई सरकारें आईं लेकिन अभी तक विस्थापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई हैं, इसलिए सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए.

उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न हैं. यही वजह है कि उत्तराखंड राज्य सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां न सिर्फ राज्य की आर्थिकी पर असर डाल रही हैं, बल्कि प्रदेश के तमाम ऐसे गांव भी हैं जहां अमूमन खतरा मंडराता रहता है. ऐसे में इन गांवों का कब तक विस्थापन हो पायेगा, ये तो वक्त ही बताएगा.

Last Updated : Jul 15, 2020, 1:27 PM IST
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