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उत्तराखंड के इन दो गांवों को कन्याओं ने दिया था श्राप, पश्चाताप के लिए ग्रामीणों में होता है गागली युद्ध

Kurauli And Udpalta Village Gagali War जौनसार बावर के कुरौली और उदपाल्टा गांव में सदियों से पाइंता पर्व के तहत गागली युद्ध की परंपरा निभाई जा रहा है. यह पर्व दो कन्याओं के श्राप के पश्चाताप में मनाया जाता है. एक कन्या की कुएं में गिरकर मौत हो गई थी तो दूसरी कन्या ने ग्रामीणों के आरोपों से क्षुब्ध कुएं में जान दे दी थी. मान्यता है कि पाइंता पर्व पर दोनों परिवार में एक ही दिन दो कन्याओं का जन्म होगा, उसी दिन यह परंपरा भी समाप्त होगी. जानिए क्यों कन्या ने अपनी जान दी...

Pyanta Festival Jaunsar
पाइंता पर्व जौनसार
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 24, 2023, 6:26 PM IST

Updated : Oct 24, 2023, 6:40 PM IST

जौनसार में गागली युद्ध

विकासनगरः जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर अपनी पौराणिक रीति रिवाज, पारंपरिक पर्व और तीज त्योहार के लिए मशहूर है. इन्हीं में एक पाइंता पर्व भी शामिल है, जो विजयादशमी या दशहरा पर मनाया जाता है. इस दिन दो गांव कुरौली और उदपाल्टा के बीच गागली यानी अरबी के डंठलों से युद्ध किया जाता है. जिसमें एक दूसरे पर गागली के डंठलों से वार किया जाता है, लेकिन खास बात ये है कि इस युद्ध में न तो किसी की हार होती है न ही जीत.

Painta Festival Celebration Chakrata
जौनसार में पाइंता पर्व की धूम

बेहद मार्मिक है कहानी, कन्याओं के कुएं में मौत से जुड़ी है कथाः लोक कथाओं के अनुसार, सैकड़ों साल पहले गांव की दो कन्याएं रानी और मुन्नी पानी लेने कुएं के पास गई थी. दोनों में काफी गहरी दोस्ती थी, लेकिन पानी भरते समय एक कन्या का पांव फिसलने से वो कुएं में गिर गई, जिससे उसकी मौत हो गई. इसके बाद दूसरी कन्या रोते हुए घर पहुंची और पूरा वाक्या ग्रामीणों को बताया, लेकिन ग्रामीणों ने उसी पर ही दूसरी कन्या की मौत का इल्जाम लगा दिया. जिससे वो क्षुब्ध हो गई और उसी कुएं कूद कर जान दे दी. ऐसे में ग्रामीणों को दो कन्याओं का पाप लगा.

Painta Festival Celebration Chakrata
रानी और मुन्नी की प्रतिमाओं का विसर्जन

इसके पश्चाताप में कुरौली और उदपाल्टा के ग्रामीण दोनों कन्याओं की घास फूस की प्रतिमाएं बनाते हैं. जिसे ग्रामीण अष्टमी के दिन तैयार करते हैं और दशहरे तक घरों में पूजन करते हैं. दशहरे के दिन पाइंता के रूप में पर्व मनाते हैं. इस दौरान ग्रामीण पंचायती आंगन में एकत्रित होकर प्रतिमाओं को हाथ में लेकर नाचते गाते हुए कुएं के पास पहुंचते हैं. जहां पर कन्याओं की प्रतिमाओं को वो विसर्जित करते हैं. उसके बाद ग्रामीण देवदार के जंगलों के बीच स्थित कियाणी नामक स्थान पर पहुंचते हैं.
ये भी पढ़ेंः जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में पाइंता पर्व की धूम, सिरगुल और विजट देवता के दर्शनों के लिए उमड़ा सैलाब

गागली युद्ध में किसी जीत और हार नहीं होतीः कियाणी में दोनों गांव के लोगों के बीच गागली के डंठलों से युद्ध होता है. आधे घंटे तक यह युद्ध चलता है. जिसमें न तो किसी की हार होती है न ही किसी की जीत होती है. बल्कि, एक दूसरे को गले लगाकर पाइंता पर्व की बधाई देते हैं. उसके बाद ग्रामीण पंचायत आंगन में सामूहिक लोक नृत्य करते हैं. जहां जौनसारी संस्कृति का अनूठा समागम देखने को मिलता है.

Painta Festival Celebration Chakrata
गागली युद्ध

जौनसारी वेशभूषा में नजर आई महिलाएं, रासो तांदी-झैंता-हारुल पर झूमे लोगः वहीं, पाइंता पर्व के दौरान गागली युद्ध को देखने के लिए दूर दराज से काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं. इस बार भी पाइंता पर्व की धूम रही. जहां महिलाएं जौनसारी वेशभूषा में सजी नजर आईं. जबकि, उदपाल्टा गांव के पंचायती आंगन पर ढोल दमाऊ की थाप पर ग्रामीणों रासो तांदी, झैंता, हारुल पर समां बांधा.

Painta Festival Celebration Chakrata
लोक नृत्य करतीं महिलाएं

ऐसे मिलेगी ग्रामीणों को श्राप से मुक्तिः स्थानीय निवासी महेंद्र सिंह और कश्मीरी सिंह ने बताया कि उस समय पानी की स्रोत नहीं थे तो गांव से थोड़ी दूरी पर कुएं से पानी भरना पड़ता था. जहां पर कन्याओं के मौत की किवदंती है. यह पर्व कन्याओं के श्राप के पश्चाताप के लिए मनाया जाता है. मान्यता है कि जिस दिन पाइंता पर्व पर दोनों गांव में से किसी परिवार दो कन्याएं जन्म लेगी, उसी दिन इस श्राप से ग्रामीणों को मुक्ति मिलेगी और सदियों से चली आ रही यह परंपरा समाप्त होगी.
ये भी पढ़ेंः तस्वीरों में देखिए, जौनसार बावर के पाइंता पर्व की झलकियां

जौनसार में गागली युद्ध

विकासनगरः जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर अपनी पौराणिक रीति रिवाज, पारंपरिक पर्व और तीज त्योहार के लिए मशहूर है. इन्हीं में एक पाइंता पर्व भी शामिल है, जो विजयादशमी या दशहरा पर मनाया जाता है. इस दिन दो गांव कुरौली और उदपाल्टा के बीच गागली यानी अरबी के डंठलों से युद्ध किया जाता है. जिसमें एक दूसरे पर गागली के डंठलों से वार किया जाता है, लेकिन खास बात ये है कि इस युद्ध में न तो किसी की हार होती है न ही जीत.

Painta Festival Celebration Chakrata
जौनसार में पाइंता पर्व की धूम

बेहद मार्मिक है कहानी, कन्याओं के कुएं में मौत से जुड़ी है कथाः लोक कथाओं के अनुसार, सैकड़ों साल पहले गांव की दो कन्याएं रानी और मुन्नी पानी लेने कुएं के पास गई थी. दोनों में काफी गहरी दोस्ती थी, लेकिन पानी भरते समय एक कन्या का पांव फिसलने से वो कुएं में गिर गई, जिससे उसकी मौत हो गई. इसके बाद दूसरी कन्या रोते हुए घर पहुंची और पूरा वाक्या ग्रामीणों को बताया, लेकिन ग्रामीणों ने उसी पर ही दूसरी कन्या की मौत का इल्जाम लगा दिया. जिससे वो क्षुब्ध हो गई और उसी कुएं कूद कर जान दे दी. ऐसे में ग्रामीणों को दो कन्याओं का पाप लगा.

Painta Festival Celebration Chakrata
रानी और मुन्नी की प्रतिमाओं का विसर्जन

इसके पश्चाताप में कुरौली और उदपाल्टा के ग्रामीण दोनों कन्याओं की घास फूस की प्रतिमाएं बनाते हैं. जिसे ग्रामीण अष्टमी के दिन तैयार करते हैं और दशहरे तक घरों में पूजन करते हैं. दशहरे के दिन पाइंता के रूप में पर्व मनाते हैं. इस दौरान ग्रामीण पंचायती आंगन में एकत्रित होकर प्रतिमाओं को हाथ में लेकर नाचते गाते हुए कुएं के पास पहुंचते हैं. जहां पर कन्याओं की प्रतिमाओं को वो विसर्जित करते हैं. उसके बाद ग्रामीण देवदार के जंगलों के बीच स्थित कियाणी नामक स्थान पर पहुंचते हैं.
ये भी पढ़ेंः जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में पाइंता पर्व की धूम, सिरगुल और विजट देवता के दर्शनों के लिए उमड़ा सैलाब

गागली युद्ध में किसी जीत और हार नहीं होतीः कियाणी में दोनों गांव के लोगों के बीच गागली के डंठलों से युद्ध होता है. आधे घंटे तक यह युद्ध चलता है. जिसमें न तो किसी की हार होती है न ही किसी की जीत होती है. बल्कि, एक दूसरे को गले लगाकर पाइंता पर्व की बधाई देते हैं. उसके बाद ग्रामीण पंचायत आंगन में सामूहिक लोक नृत्य करते हैं. जहां जौनसारी संस्कृति का अनूठा समागम देखने को मिलता है.

Painta Festival Celebration Chakrata
गागली युद्ध

जौनसारी वेशभूषा में नजर आई महिलाएं, रासो तांदी-झैंता-हारुल पर झूमे लोगः वहीं, पाइंता पर्व के दौरान गागली युद्ध को देखने के लिए दूर दराज से काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं. इस बार भी पाइंता पर्व की धूम रही. जहां महिलाएं जौनसारी वेशभूषा में सजी नजर आईं. जबकि, उदपाल्टा गांव के पंचायती आंगन पर ढोल दमाऊ की थाप पर ग्रामीणों रासो तांदी, झैंता, हारुल पर समां बांधा.

Painta Festival Celebration Chakrata
लोक नृत्य करतीं महिलाएं

ऐसे मिलेगी ग्रामीणों को श्राप से मुक्तिः स्थानीय निवासी महेंद्र सिंह और कश्मीरी सिंह ने बताया कि उस समय पानी की स्रोत नहीं थे तो गांव से थोड़ी दूरी पर कुएं से पानी भरना पड़ता था. जहां पर कन्याओं के मौत की किवदंती है. यह पर्व कन्याओं के श्राप के पश्चाताप के लिए मनाया जाता है. मान्यता है कि जिस दिन पाइंता पर्व पर दोनों गांव में से किसी परिवार दो कन्याएं जन्म लेगी, उसी दिन इस श्राप से ग्रामीणों को मुक्ति मिलेगी और सदियों से चली आ रही यह परंपरा समाप्त होगी.
ये भी पढ़ेंः तस्वीरों में देखिए, जौनसार बावर के पाइंता पर्व की झलकियां

Last Updated : Oct 24, 2023, 6:40 PM IST
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