देहरादूनः तिलाड़ी विद्रोह की 93वीं बरसी पर देहरादून में आम जनों के साथ राज्य के विभिन्न संगठनों और विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों ने सचिवालय कूच किया. प्रदर्शनकारियों ने राज्य सरकार से मांग करते हुए कहा कि सरकार मजदूरों को हक दे. कूच से पहले सभी प्रदर्शनकारी गांधी पार्क में जमा हुए और जुलूस की शक्ल में सचिवालय की ओर बढ़े. हालांकि, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को सचिवालय से पहले ही बैरिकेडिंग लगाकर रोक लिया. इससे नाराज प्रदर्शनकारी सड़क पर ही धरने पर बैठ गए और एक सभा का आयोजन किया.
सभा में विपक्षी नेताओं ने कहा कि एक तरफ प्रदेश सरकार कानून और वन अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ाकर अभियान चला रही है, जिसके तहत प्रदेश भर के लोगों को बेघर करने की आशंका है. जबकि दूसरी तरफ कल्याणकारी योजनाओं और विशेषकर मजदूर कल्याण योजना से लोगों को वंचित किया जा रहा है. वहीं, भाकपा माले के उत्तराखंड सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि वन अधिकार कानून 2006 पर अमल करने से और भू-कानून 2018 के संशोधन को रद्द करने से राज्य की जमीन और प्राकृतिक संसाधन सुरक्षित हो सकते हैं. जबकि, जन हस्तक्षेप संगठन के सदस्य शंकर का कहना है कि गरीब और मजदूरों को बुनियादी अधिकार मिलने चाहिए. हर मजदूर का पंजीकरण होना चाहिए और सालाना सहायता भी दी जानी चाहिए. विपक्षी दलों ने सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन भी सौंपा.
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क्या है तिलाड़ी विद्रोहः तिलाड़ी विद्रोह टिहरी राजशाही की क्रूरता और जंगल से लोगों को बेदखल किए जाने के खिलाफ उत्तराखंड का जंगलात कानूनों के खिलाफ पहला सबसे बड़ा आंदोलन था. भाकपा माले के उत्तराखंड सचिव इंद्रेश मैखुरी लिखते हैं कि, 30 मई 1930 को अपने वन अधिकारों के लिए तिलाड़ी मैदान में जमा हुए सैकड़ों लोगों को तत्कालीन टिहरी रियासत के राजा नरेंद्र शाह की फौज ने तीन तरफ से घेर लिया था. चौथी तरफ यमुना नदी के प्रचंड वेग ने डरा रखा था. इस दौरान बिना किसी चेतावनी के राजा की फौज ने निहत्थे लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं. कुछ गोलियों का शिकार हुए तो कुछ ने बचने के लिए यमुना में छलांग लगा दी. इस तरह राजा नरेंद्र शाह ने रंवाई के तिलाड़ी के मैदान में अपना लोकल 'जलियांवाला बागकांड' रच डाला था.
इंद्रेश मैखुरी आगे लिखते हैं, 'आज 93 साल बाद जब हम उस तिलाड़ी कांड को याद कर रहे हैं तो देख रहे हैं कि जंगल, जमीन, पानी जैसे संसाधन तो आज भी वैसे ही सरकारी चंगुल में हैं और सरकार उनपर अधिकार कायम करने के लिए देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बेच रही है. तिलाड़ी में हमारे बहादुर पुरखों ने जंगलों पर अपने अधिकारों के लिए सैकड़ों की तादाद में शहादत दी. देश आजाद हुआ, राजशाही खत्म हुई लेकिन जंगल, जमीन, पानी पर लोगों का अधिकार अभी भी बहाल नहीं हुआ है'.