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जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली की धूम, आकर्षण का केंद्र रहा हिरण नृत्य, पारंपरिक परिधानों में नजर आये ग्रामीण

old Diwali celebrated in Jaunsar Bawar बूढ़ी दीपावली पर किसी गांव में हाथी तो किसी गांव में हिरण नृत्य के बाद बूढ़ी दीपावली का समापन किया गया. इसी दौरान पंचायती आंगन में जौनसारी लोक संस्कृति देखने को मिली. लोगों ने पारंपरिक वेशभूषा में ढोल-दमाऊ के साथ रासो, तांदी और जैंता नृत्य किया.

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जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली की धूम
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 15, 2023, 5:39 PM IST

Updated : Dec 15, 2023, 8:16 PM IST

जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली की धूम

विकासनगर/मसूरी: उत्तराखंड का जौनसार बावर इलाका मेहनतकश और परंपराओं को सहेज कर रखने वाले लोगों का इलाका है. यहां मुख्य दीपावली के एक महीने बाद बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है. आज जौनसार बावर के सैकड़ों गांवों में पौराणिक दिवाली का जश्न अलग ही अंदाज में देखने को मिला. जश्न में पारंपरिक वेशभूषा में महिला और पुरुषों ने हारूल, तांदी नृत्य किया. इसके बाद धूमधाम से बूढ़ी दीपावली मनाई गई. वहीं, कोरूवा गांव की बूढ़ी दिवाली में काठ का हिरन नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा. जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचे.

old Diwali celebrated in Jaunsar Bawar
बूढ़ी दिवाली पर पारंपरिक वेशभूषा में लोगों ने किया हिरण नृत्य

जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में चार से पांच दिनों तक मनाई जाने वाली बूढ़ी दीपावली का आज समापन हो गया है. इस दौरान जौनसार बावर के सैकड़ों गांवों में पौराणिक दिवाली का जश्न मनाया गया. पंचायती आंगनों में पारम्परिक वेशभूषा में महिलाओं एवं पुरुषों ने हारूल, तांदी गीत नृत्य कर दीपावली की खुशियां बांटी.जौनसार के कोरूवा गांव की दीवाली मे काठ के हिरन नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा. जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग कोरूवा गांव पंहुचे. इस दौरान ग्रामीणों ने महासू देवता के दर्शन कर सुख समृद्वि की कामना की.

old Diwali celebrated in Jaunsar Bawar
लोगों ने ढोल-दमाऊ के साथ रासो, तांदी और जैंता नृत्य किया
हिरण पर स्यांणा होता है विराजमान: खत पट्टी के स्यांणा (मुखिया) बुद्व सिंह तोमर ने कहा कि कोरूवा गांव में बूढ़ी दिवाली बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाने की परंपरा है. इस दिवाली में गांव के सरकारी सेवा में तैनात कर्मचारी छुट्टी लेकर गांव आते हैं और बूढ़ी दिवाली में पौराणिक परंपराओं का निर्वहन कर अपनी लोक संस्कृति में शरीक होते हैं. उन्होंने कहा कि सभी महिला और पुरूष पंचायती आंगन में सामूहिक लोक नृत्य के साथ-साथ दिवाली और इतिहास से जुड़े गीत गाते हैं. हिरण नृत्य महासू देवता को समर्पित होता है. हिरण पर स्याणा विराजमान होता है.

मसूरी में भी बूढ़ी दिवाली की धूम, जैंता नृत्य देखकर दर्शक हुए मंत्रमुग्ध: मसूरी में कैंपटी रोड जीरो प्वाइंट के निकट अगलाड़-यमुना घाटी विकास मंच की ओर से बग्वाल (बूढ़ी दीपावली) का आयोजन किया गया. जिसमें लोगों ने पारंपरिक वेशभूषा पहनकर ढोल-दमाऊ के साथ रासो, तांदी और जैंता नृत्य कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम में मसूरी में रहने वाले रवांई, जौनपुर और जौनसार के लोगों ने हिस्सा लिया.

old Diwali celebrated in Jaunsar Bawar
बूढ़ी दीपावली पर रस्साकशी का भी होता है आयोजन

बूढ़ी दिवाली में रस्साकशी का भी होता है आयोजन: स्थानीय निवासी ने बताया कि लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए रवांई-जौनपुर और जौनसार का बड़ा योगदान है. सबसे पहले डिमसा पूजन और होल्डे दहन किया गया. इसके बाद होलियात नृत्य, सराय नृत्य, भीरुड़ी, अखरोट वितरण और रस्साकशी का आयोजन भी किया गया. उन्होंने बताया कि लोक नृत्य देखने के लिए काफी पर्यटक भी गांव पहुंचे हैं.

ये भी पढ़े: उत्तरकाशी में तीन दिवसीय मंगसीर बग्वाल मेला संपन्न, सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने मन मोहा, रस्साकसी में आईटीबीपी जीती

मशालों के साथ गांवों में प्रवेश करता है एक दल: विकास मंच के अध्यक्ष शूरवीर सिंह रावत ने कहा कि प्रकाश उत्सव के प्रतीक के तौर पर यहां पर मशालें जलाई जाती हैं. पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर लोग झूम उठते हैं. उन्होंने कहा कि पहले दिन निरमंड में रात भर इस पर्व को मनाते हैं, दूसरे दिन कौरव और पांडव के प्रतीक के तौर पर दो दल रस्साकशी करते हैं. इसके अलावा रात को एक दल गांव में मशालों के साथ प्रवेश करता है.

ये भी पढ़े: उत्तराखंड में आग के गोले से खेलते हुए आज मनाई गई दीपावली, जानिए इगास लोकपर्व का महत्व

जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली की धूम

विकासनगर/मसूरी: उत्तराखंड का जौनसार बावर इलाका मेहनतकश और परंपराओं को सहेज कर रखने वाले लोगों का इलाका है. यहां मुख्य दीपावली के एक महीने बाद बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है. आज जौनसार बावर के सैकड़ों गांवों में पौराणिक दिवाली का जश्न अलग ही अंदाज में देखने को मिला. जश्न में पारंपरिक वेशभूषा में महिला और पुरुषों ने हारूल, तांदी नृत्य किया. इसके बाद धूमधाम से बूढ़ी दीपावली मनाई गई. वहीं, कोरूवा गांव की बूढ़ी दिवाली में काठ का हिरन नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा. जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचे.

old Diwali celebrated in Jaunsar Bawar
बूढ़ी दिवाली पर पारंपरिक वेशभूषा में लोगों ने किया हिरण नृत्य

जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में चार से पांच दिनों तक मनाई जाने वाली बूढ़ी दीपावली का आज समापन हो गया है. इस दौरान जौनसार बावर के सैकड़ों गांवों में पौराणिक दिवाली का जश्न मनाया गया. पंचायती आंगनों में पारम्परिक वेशभूषा में महिलाओं एवं पुरुषों ने हारूल, तांदी गीत नृत्य कर दीपावली की खुशियां बांटी.जौनसार के कोरूवा गांव की दीवाली मे काठ के हिरन नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा. जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग कोरूवा गांव पंहुचे. इस दौरान ग्रामीणों ने महासू देवता के दर्शन कर सुख समृद्वि की कामना की.

old Diwali celebrated in Jaunsar Bawar
लोगों ने ढोल-दमाऊ के साथ रासो, तांदी और जैंता नृत्य किया
हिरण पर स्यांणा होता है विराजमान: खत पट्टी के स्यांणा (मुखिया) बुद्व सिंह तोमर ने कहा कि कोरूवा गांव में बूढ़ी दिवाली बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाने की परंपरा है. इस दिवाली में गांव के सरकारी सेवा में तैनात कर्मचारी छुट्टी लेकर गांव आते हैं और बूढ़ी दिवाली में पौराणिक परंपराओं का निर्वहन कर अपनी लोक संस्कृति में शरीक होते हैं. उन्होंने कहा कि सभी महिला और पुरूष पंचायती आंगन में सामूहिक लोक नृत्य के साथ-साथ दिवाली और इतिहास से जुड़े गीत गाते हैं. हिरण नृत्य महासू देवता को समर्पित होता है. हिरण पर स्याणा विराजमान होता है.

मसूरी में भी बूढ़ी दिवाली की धूम, जैंता नृत्य देखकर दर्शक हुए मंत्रमुग्ध: मसूरी में कैंपटी रोड जीरो प्वाइंट के निकट अगलाड़-यमुना घाटी विकास मंच की ओर से बग्वाल (बूढ़ी दीपावली) का आयोजन किया गया. जिसमें लोगों ने पारंपरिक वेशभूषा पहनकर ढोल-दमाऊ के साथ रासो, तांदी और जैंता नृत्य कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम में मसूरी में रहने वाले रवांई, जौनपुर और जौनसार के लोगों ने हिस्सा लिया.

old Diwali celebrated in Jaunsar Bawar
बूढ़ी दीपावली पर रस्साकशी का भी होता है आयोजन

बूढ़ी दिवाली में रस्साकशी का भी होता है आयोजन: स्थानीय निवासी ने बताया कि लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए रवांई-जौनपुर और जौनसार का बड़ा योगदान है. सबसे पहले डिमसा पूजन और होल्डे दहन किया गया. इसके बाद होलियात नृत्य, सराय नृत्य, भीरुड़ी, अखरोट वितरण और रस्साकशी का आयोजन भी किया गया. उन्होंने बताया कि लोक नृत्य देखने के लिए काफी पर्यटक भी गांव पहुंचे हैं.

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मशालों के साथ गांवों में प्रवेश करता है एक दल: विकास मंच के अध्यक्ष शूरवीर सिंह रावत ने कहा कि प्रकाश उत्सव के प्रतीक के तौर पर यहां पर मशालें जलाई जाती हैं. पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर लोग झूम उठते हैं. उन्होंने कहा कि पहले दिन निरमंड में रात भर इस पर्व को मनाते हैं, दूसरे दिन कौरव और पांडव के प्रतीक के तौर पर दो दल रस्साकशी करते हैं. इसके अलावा रात को एक दल गांव में मशालों के साथ प्रवेश करता है.

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Last Updated : Dec 15, 2023, 8:16 PM IST
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