देहरादून: उत्तराखंड के अधिकांश जिले पर्वतीय क्षेत्रों में आते हैं. जहां जिला मुख्यालय पर दमकल विभाग तैनात तो हैं, लेकिन विषम भौगोलिक परिस्थिति के कारण दमकल विभाग सफेद हाथी ही साबित होता रहा है. क्योंकि पर्वतीय जिलों के तहसील मुख्यालय और उससे लगे क्षेत्रों की जिला मुख्यालय से काफी दूरी होती है. जिससे आग लगने की घटना के बाद दमकल विभाग को सूचित करने के बाद भी समय से पहुंचना मुश्किल हो जाता है. वहीं अधिकांश घटनाओं में या तो लोगों की जान चली जाती है या लोग पारंपरिक तरीके से ही आग को बुझाने की कोशिश में लगे दिखाई देते हैं.
उत्तराखंड में फायर से जुड़ी आपातकालीन सेवा शहरों तक ही सीमित दिखाई देती है. हालांकि जनसंख्या और घटनाओं के लिहाज से इसकी जरूरत भी शहरी क्षेत्रों में ही सबसे ज्यादा है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में फायर स्टेशन या फायर यूनिट का पूरी तरह नदारद होना त्यूणी जैसी घटनाओं के समय बेहद खलता है. देहरादून जिले के त्यूणी क्षेत्र में एक घर का आग की भेंट चढ़ना एक दर्दनाक हादसे की वजह बन गया. इस घर में 4 बच्चों के आग की भेंट चढ़ने के बाद अब प्रदेश में फायर सिस्टम के हालातों पर बहस तेज हो गई है. दरअसल, राज्य में फायर सर्विस की व्यवस्थाएं बहुत ज्यादा बेहतरीन नहीं हैं. स्थिति यह है कि राज्य भर में गिने-चुने फायर स्टेशन मौजूद हैं और कुछ जगहों पर फायर सर्विस के रूप में यूनिट भी स्थापित की गई है.
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इसके बावजूद सैकड़ों किलोमीटर के क्षेत्र को फायर सर्विस के जरिए कवर कर पाना बेहद मुश्किल होता है. खास तौर पर इसलिए भी क्योंकि फायर सर्विस एक आपातकालीन सेवा है और इसकी जरूरत त्वरित रूप से दिखाई देती है. बताया गया है कि त्यूणी क्षेत्र में जिस फायर सर्विस की गाड़ी को रखा गया था, उसकी पानी की क्षमता 2000 लीटर थी. जिससे बड़ी आग को काबू कर पाना मुश्किल होता है. एक यूनिट होने के कारण पानी खत्म होने के बाद इसके उपयोग के लिए दोबारा पानी भरने और फिर आग बुझाने की प्रक्रिया का समय काफी ज्यादा रहता है. लिहाजा इस घटना में फायर ब्रिगेड की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने की कमी दिखाई दी. हालांकि इस मामले में जांच चल रही है, आपको बताते हैं कि पूरे प्रदेश में फायर ब्रिगेड को लेकर क्या स्थिति है.
फायर सर्विस स्टेशन को लेकर मिली जानकारी के अनुसार राज्य भर में कुल 33 फायर स्टेशन मौजूद हैं. जिसमें से 18 गढ़वाल मंडल तो 15 कुमाऊं मंडल में मौजूद हैं. देहरादून जैसे जिले की सैकड़ों किलोमीटर की सीमा में केवल पांच फायर स्टेशन ही मौजूद हैं. उधर गढ़वाल मंडल में टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी और चमोली जैसे बड़े जिलों में केवल दो-दो फायर स्टेशन ही मौजूद हैं. उधर रुद्रप्रयाग जिले में केवल एक ही फायर स्टेशन है. इसी तरह कुमाऊं मंडल में देखें तो पर्वतीय जिले चंपावत, अल्मोड़ा में केवल दो-दो फायर स्टेशन ही हैं. बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिलों में केवल एक-एक स्टेशन ही मौजूद हैं. इसके अलावा कुछ जगहों पर कुछ यूनिट भी रखी गई हैं, लेकिन यह यूनिट केवल कामचलाऊ व्यवस्था के तहत ही दिखाई देती हैं.
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वहीं त्यूणी क्षेत्र में ऐसी यूनिट कैसे बेकार साबित होती है, यह सभी ने देखा है. राज्य में फायर स्टेशन की कमी और गाड़ियों की कमी के साथ कर्मचारियों की भी काफी कमी है. राजधानी देहरादून जिले में ही इस कमी को पूरा नहीं किया जा सका है. देहरादून जिले में फायर सर्विस के 56 सिपाहियों की जरूरत हैं. जिसमें से केवल 23 कॉन्स्टेबल ही सीधे तौर पर इस सर्विस के लिए जिले में मौजूद हैं. हालांकि इनकी संख्या 39 है, लेकिन करीब 16 सिपाही दूसरी ड्यूटी में भी तैनात होते हैं.