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उत्तराखंडः सिस्टम ही बढ़ा रहा अपराधियों का मनोबल, चिंता का सबब बने फर्जी आदेश

उत्तराखंड सचिवालय में फर्जी आदेशों से हड़कंप मचा है. राज्य में ऐसे एक-दो नहीं बल्कि कई मामले हैं, जब झूठे आदेशों से भ्रम की स्थिति बन गयी और सचिवालय के आदेश पर मुकदमे भी कराए गए. लेकिन आजतक ऐसे मामलों का पूरी तरह से खुलासा नहीं हो पाया. जानिए उत्तराखंड सचिवालय में कैसे बढ़ रहा धंधेबाजों का मनोबल.

उत्तराखंड सचिवालय
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Published : Jun 29, 2020, 9:10 PM IST

Updated : Jun 30, 2020, 3:07 PM IST

देहरादूनः शासन से जारी आदेश को वायरल होने में देर नहीं लगती. लेकिन, आदेश फर्जी या झूठा हो तो सोचिए उसका क्या असर होगा? जी हां ये बात हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि उत्तराखंड में फर्जी आदेश के मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं. कभी तबादलों का फर्जी आदेश तो कभी किसी को नियुक्ति देने का झूठा पत्र. यही नहीं सचिवालय में कर्मचारियों की छुट्टी से जुड़ा फर्जी आदेश भी वायरल हो चुका है.

चिंता बढ़ा रहे फर्जी आदेश

दरअसल, शासन में समय-समय पर कई बड़े अधिकारियों के हस्ताक्षर से झूठे आदेश सामने आए हैं. आदेश की कॉपी के वायरल होने के बाद पता चला कि वो आदेश झूठे थे. ऐसे में शासन स्तर से ऐसे आदेशों को लेकर मुकदमा दर्ज कराए जाने तक की प्रक्रिया चलाई गयी. लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि आज तक किसी भी मामले में कोई खुलासा सामने नहीं हो पाया.

चलिए पहले जानते हैं वे बड़े मामले, जो फर्जी आदेशों को लेकर सामने आएः

2 जून 2018 को सचिवालय में नौकरी के नाम पर फर्जी नियुक्ति पत्र का मामला सामने आया. जिसमें कुछ युवकों को सचिवालय के बाहर से ही पकड़ लिया गया. लेकिन बाद में सचिवालय सुरक्षा ने इन युवकों को छोड़ दिया. पता चला कि पांच युवकों से 60-60 हजार रुपये लेकर उन्हें सीआईडी में सचिव और अपर सचिव के लेटर हेड पर फर्जी नियुक्ति पत्र दिया गया था. हालांकि मामले में किसकी गिरफ्तारी हुई और क्या कोई गिरोह के पीछे काम करता था, इन बातों को लेकर कोई खुलासा नहीं हो पाया.

7 नवंबर 2019 को इगास जोकि उत्तराखंड का पर्व है, उसकी छुट्टी का एक फर्जी आदेश सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. अपर मुख्य सचिव कार्मिक राधा रतूड़ी के हस्ताक्षर वाले इस पत्र में इगास पर्व का सार्वजनिक अवकाश होने का आदेश दिखाया गया. जिस पर अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने साइबर थाने में मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए, लेकिन आज तक इसमें भी कोई प्रगति नहीं हो पाई.

इसी साल जून में सरकार में मंत्री रेखा आर्य ने भी अपने लेटर हेड और फर्जी साइन पर चार युवकों को नियुक्ति के लिए सिफारिश करने वाले आदेश को फर्जी बताया. जिस पर भी जांच की जा रही है.

पढ़ेंः बीजेपी विधायक बने 'चमार साहब', एक साल पहले का विवाद है वजह

26 जून को परिवहन सचिव शैलेश बगोली के हस्ताक्षर वाला एक आदेश जारी हुआ. जिसमें देहरादून आरटीओ दिनेश पठोई की जगह सुधांशु गर्ग को चार्ज दिए जाने के आदेश दिखाए गए. इस पर भी आरटीओ ने देहरादून कोतवाली में मुकदमा दर्ज करवाया है.

दिलचस्प बात ये है कि सभी मामलों में आईटी एक्ट और तमाम दूसरी धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करवाया गया. लेकिन फर्जी आदेशों के पीछे की साजिश आज तक उजागर नहीं हो पाई. शायद यही कारण है कि सरकार और शासन के फर्जी आदेशों की ऐसी कारगुजारी करने वाले लोगों का मनोबल बढ़ रहा है.

उत्तराखंड सचिवालय संघ के महामंत्री राकेश जोशी बताते हैं कि संघ भी सचिवालय से फर्जी आदेश के कारण हो रही फजीहत को लेकर परेशान हैं, इसीलिए उन्होंने पिछले दिनों ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई की मांग भी की थी, लेकिन दुर्भाग्य है कि ऐसे मामलों में कोई भी कानूनी कार्रवाई अंतिम चरण तक नहीं पहुंच पाती.

ऐसे मामलों में कानून की ढीली पकड़ सवाल खड़े करती है कि क्या कुछ खास लोगों को बचाने के लिए ऐसे मामलों को अंतिम चरण तक नहीं पहुंचाया जाता. बहरहाल ये तो तय है कि यदि सरकार और शासन की तरफ से ऐसे मामलों पर भी ढुलमुल रवैया अपनाया गया और गलत काम करने वालों को उनके अंजाम तक नहीं पहुंचाया गया तो आने वाले दिनों में ऐसे मामले और भी ज्यादा तेजी से बढ़ सकते हैं.

देहरादूनः शासन से जारी आदेश को वायरल होने में देर नहीं लगती. लेकिन, आदेश फर्जी या झूठा हो तो सोचिए उसका क्या असर होगा? जी हां ये बात हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि उत्तराखंड में फर्जी आदेश के मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं. कभी तबादलों का फर्जी आदेश तो कभी किसी को नियुक्ति देने का झूठा पत्र. यही नहीं सचिवालय में कर्मचारियों की छुट्टी से जुड़ा फर्जी आदेश भी वायरल हो चुका है.

चिंता बढ़ा रहे फर्जी आदेश

दरअसल, शासन में समय-समय पर कई बड़े अधिकारियों के हस्ताक्षर से झूठे आदेश सामने आए हैं. आदेश की कॉपी के वायरल होने के बाद पता चला कि वो आदेश झूठे थे. ऐसे में शासन स्तर से ऐसे आदेशों को लेकर मुकदमा दर्ज कराए जाने तक की प्रक्रिया चलाई गयी. लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि आज तक किसी भी मामले में कोई खुलासा सामने नहीं हो पाया.

चलिए पहले जानते हैं वे बड़े मामले, जो फर्जी आदेशों को लेकर सामने आएः

2 जून 2018 को सचिवालय में नौकरी के नाम पर फर्जी नियुक्ति पत्र का मामला सामने आया. जिसमें कुछ युवकों को सचिवालय के बाहर से ही पकड़ लिया गया. लेकिन बाद में सचिवालय सुरक्षा ने इन युवकों को छोड़ दिया. पता चला कि पांच युवकों से 60-60 हजार रुपये लेकर उन्हें सीआईडी में सचिव और अपर सचिव के लेटर हेड पर फर्जी नियुक्ति पत्र दिया गया था. हालांकि मामले में किसकी गिरफ्तारी हुई और क्या कोई गिरोह के पीछे काम करता था, इन बातों को लेकर कोई खुलासा नहीं हो पाया.

7 नवंबर 2019 को इगास जोकि उत्तराखंड का पर्व है, उसकी छुट्टी का एक फर्जी आदेश सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. अपर मुख्य सचिव कार्मिक राधा रतूड़ी के हस्ताक्षर वाले इस पत्र में इगास पर्व का सार्वजनिक अवकाश होने का आदेश दिखाया गया. जिस पर अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने साइबर थाने में मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए, लेकिन आज तक इसमें भी कोई प्रगति नहीं हो पाई.

इसी साल जून में सरकार में मंत्री रेखा आर्य ने भी अपने लेटर हेड और फर्जी साइन पर चार युवकों को नियुक्ति के लिए सिफारिश करने वाले आदेश को फर्जी बताया. जिस पर भी जांच की जा रही है.

पढ़ेंः बीजेपी विधायक बने 'चमार साहब', एक साल पहले का विवाद है वजह

26 जून को परिवहन सचिव शैलेश बगोली के हस्ताक्षर वाला एक आदेश जारी हुआ. जिसमें देहरादून आरटीओ दिनेश पठोई की जगह सुधांशु गर्ग को चार्ज दिए जाने के आदेश दिखाए गए. इस पर भी आरटीओ ने देहरादून कोतवाली में मुकदमा दर्ज करवाया है.

दिलचस्प बात ये है कि सभी मामलों में आईटी एक्ट और तमाम दूसरी धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करवाया गया. लेकिन फर्जी आदेशों के पीछे की साजिश आज तक उजागर नहीं हो पाई. शायद यही कारण है कि सरकार और शासन के फर्जी आदेशों की ऐसी कारगुजारी करने वाले लोगों का मनोबल बढ़ रहा है.

उत्तराखंड सचिवालय संघ के महामंत्री राकेश जोशी बताते हैं कि संघ भी सचिवालय से फर्जी आदेश के कारण हो रही फजीहत को लेकर परेशान हैं, इसीलिए उन्होंने पिछले दिनों ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई की मांग भी की थी, लेकिन दुर्भाग्य है कि ऐसे मामलों में कोई भी कानूनी कार्रवाई अंतिम चरण तक नहीं पहुंच पाती.

ऐसे मामलों में कानून की ढीली पकड़ सवाल खड़े करती है कि क्या कुछ खास लोगों को बचाने के लिए ऐसे मामलों को अंतिम चरण तक नहीं पहुंचाया जाता. बहरहाल ये तो तय है कि यदि सरकार और शासन की तरफ से ऐसे मामलों पर भी ढुलमुल रवैया अपनाया गया और गलत काम करने वालों को उनके अंजाम तक नहीं पहुंचाया गया तो आने वाले दिनों में ऐसे मामले और भी ज्यादा तेजी से बढ़ सकते हैं.

Last Updated : Jun 30, 2020, 3:07 PM IST
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