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हिमालयन कॉन्क्लेवः हिमालयी राज्यों से हो रहा पलायन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा, निर्मला सीतारमण ने जताई चिंता

हिमालयी राज्यों में पलायन न केवल उस प्रदेश बल्कि केंद्र के लिए भी एक बड़ी चिंता बना हुआ है. पहाड़ों की रानी मसूरी में हिमालई राज्यों के कॉन्क्लेव के दौरान निर्मला सीतारमण ने पलायन पर अपनी चिंता जाहिर कर इस बात को राज्यों के साथ साझा किया.

हिमालयन कॉन्क्लेव
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Published : Jul 28, 2019, 9:11 PM IST

Updated : Jul 28, 2019, 9:26 PM IST

देहरादूनः मसूरी में चल रहे हिमालयी राज्यों के कॉन्क्लेव के दौरान पलायन एक बड़ा मुद्दा रहा. इस दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पलायन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर राज्यों की चिंता को बल दिया. उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्य पलायन को लेकर कॉन्क्लेव के दौरान खासे चिंतित दिखाई दिए.
इस दौरान पलायन को रोके जाने के लिए एक सार्थक पहल की जरुरत भी महसूस की गई. खासतौर पर बॉर्डर क्षेत्रों से हो रहे पलायन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ते हुए इसके लिए विशेष पहल किए जाने पर जोर दिया गया. खास बात यह है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस समस्या का प्राथमिकता के साथ हल किए जाने को जरूरी बताया.

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हिमालयन कॉन्क्लेव

आपको बता दें कि उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्य पलायन के गहरे संकट से गुजर रहे हैं. उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश के कई गांव अब पूरी तरह से खाली हो चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट यह साफ कर चुकी है कि प्रदेश में करीब तीन लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं.
पलायन रोकने को केंद्र से विशेष सहायता की दरकार

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हिमालयन कॉन्क्लेव

हिमालयी राज्यों में पलायन को रोकने के लिए केंद्र की विशेष सहायता की जरुरत है. कॉन्क्लेव के दौरान इन जरुरतों पर भी एक लंबी चर्चा की गई. हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्री के माइग्रेशन पर चिंता जाहिर करने के बाद यह उम्मीद जगी है कि हिमालयी राज्यों को पलायन के लिए केंद्र से विशेष तवज्जो मिलने जा रही है.

दरअसल भारत-चीन सीमा से जुड़ी करीब 3,488 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा इन्हीं राज्यों से होकर गुजरती है. जिसमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश राज्य शामिल हैं. ऐसे में बॉर्डर क्षेत्रों में हो रहे पलायन से सीमाओं पर भी खतरा बढ़ गया है. ऐसे में हिमालयी राज्य पलायन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ते हुए इस पर केंद्र का विशेष ध्यान चाहते हैं.

हिमालयी राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों से हो रहे पलायन की मुख्य वजह इन क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का न होना है. कॉन्क्लेव के दौरान इन्हीं मूलभूत सुविधाओं के विकास को लेकर केंद्र सरकार समेत नीति आयोग और 15वें वित्त आयोग के सामने राज्यों ने अपनी बात रखी.

यह भी पढ़ेंः हिमालयन कॉन्क्लेवः ग्रीन बोनस की उठी मांग, पीएम के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में सभी हिमालयी राज्य देंगे योगदान

स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार को पहाड़ी जिलों तक पहुंचाने के लिए केंद्र से विशेष पैकेज की दरकार की गई है. कॉन्क्लेव के दौरान पलायन पर केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों और नीति आयोग समेत वित्त आयोग ने जिस तरह गंभीरता दिखाई है उससे ही उम्मीद की जा सकती है कि हिमालयी राज्यों को पलायन रोकने के लिए विशेष सहायता दी जा सकती है.

हिमालयी राज्यों के कॉन्क्लेव में पलायन पर जिस प्रमुखता के साथ चिंतन किया गया उससे लगता है कि आने वाले समय में खासतौर पर इस क्षेत्र के लिए केंद्र विशेष सहायता या नीति बना सकता है और यदि ऐसा हुआ तो उत्तराखंड और हिमालयी राज्यों की सबसे बड़ी चिंता का समाधान कुछ हद तक हो सकेगा.

देहरादूनः मसूरी में चल रहे हिमालयी राज्यों के कॉन्क्लेव के दौरान पलायन एक बड़ा मुद्दा रहा. इस दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पलायन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर राज्यों की चिंता को बल दिया. उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्य पलायन को लेकर कॉन्क्लेव के दौरान खासे चिंतित दिखाई दिए.
इस दौरान पलायन को रोके जाने के लिए एक सार्थक पहल की जरुरत भी महसूस की गई. खासतौर पर बॉर्डर क्षेत्रों से हो रहे पलायन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ते हुए इसके लिए विशेष पहल किए जाने पर जोर दिया गया. खास बात यह है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस समस्या का प्राथमिकता के साथ हल किए जाने को जरूरी बताया.

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हिमालयन कॉन्क्लेव

आपको बता दें कि उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्य पलायन के गहरे संकट से गुजर रहे हैं. उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश के कई गांव अब पूरी तरह से खाली हो चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट यह साफ कर चुकी है कि प्रदेश में करीब तीन लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं.
पलायन रोकने को केंद्र से विशेष सहायता की दरकार

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हिमालयन कॉन्क्लेव

हिमालयी राज्यों में पलायन को रोकने के लिए केंद्र की विशेष सहायता की जरुरत है. कॉन्क्लेव के दौरान इन जरुरतों पर भी एक लंबी चर्चा की गई. हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्री के माइग्रेशन पर चिंता जाहिर करने के बाद यह उम्मीद जगी है कि हिमालयी राज्यों को पलायन के लिए केंद्र से विशेष तवज्जो मिलने जा रही है.

दरअसल भारत-चीन सीमा से जुड़ी करीब 3,488 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा इन्हीं राज्यों से होकर गुजरती है. जिसमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश राज्य शामिल हैं. ऐसे में बॉर्डर क्षेत्रों में हो रहे पलायन से सीमाओं पर भी खतरा बढ़ गया है. ऐसे में हिमालयी राज्य पलायन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ते हुए इस पर केंद्र का विशेष ध्यान चाहते हैं.

हिमालयी राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों से हो रहे पलायन की मुख्य वजह इन क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का न होना है. कॉन्क्लेव के दौरान इन्हीं मूलभूत सुविधाओं के विकास को लेकर केंद्र सरकार समेत नीति आयोग और 15वें वित्त आयोग के सामने राज्यों ने अपनी बात रखी.

यह भी पढ़ेंः हिमालयन कॉन्क्लेवः ग्रीन बोनस की उठी मांग, पीएम के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में सभी हिमालयी राज्य देंगे योगदान

स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार को पहाड़ी जिलों तक पहुंचाने के लिए केंद्र से विशेष पैकेज की दरकार की गई है. कॉन्क्लेव के दौरान पलायन पर केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों और नीति आयोग समेत वित्त आयोग ने जिस तरह गंभीरता दिखाई है उससे ही उम्मीद की जा सकती है कि हिमालयी राज्यों को पलायन रोकने के लिए विशेष सहायता दी जा सकती है.

हिमालयी राज्यों के कॉन्क्लेव में पलायन पर जिस प्रमुखता के साथ चिंतन किया गया उससे लगता है कि आने वाले समय में खासतौर पर इस क्षेत्र के लिए केंद्र विशेष सहायता या नीति बना सकता है और यदि ऐसा हुआ तो उत्तराखंड और हिमालयी राज्यों की सबसे बड़ी चिंता का समाधान कुछ हद तक हो सकेगा.

Intro:summary-हिमालयी राज्यों में पलायन न केवल उस प्रदेश बल्कि केंद्र के लिए भी एक बड़ी चिंता बना हुआ है। पहाड़ों की रानी मसूरी में हिमालई राज्यों के कॉन्क्लेव के दौरान निर्मला सीतारमण ने पलायन पर अपनी चिंता जाहिर कर इस बात को राज्यों के साथ साझा किया। 


मसूरी में हिमालई राज्यों के कॉन्क्लेव के दौरान पलायन चर्चा का एक बड़ा मुद्दा रहा.. इस दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पलायन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर राज्यों की चिंता को बल दिया। 




Body:उत्तराखंड समेत तमाम हिमालई राज्य पलायन को लेकर कॉन्क्लेव के दौरान खासे चिंतित दिखाई दिए... इस दौरान पलायन को रोके जाने के लिए एक सार्थक पहल की जरूरत भी महसूस की गई... खासतौर पर बॉर्डर क्षेत्रों से हो रहे पलायन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ते हुए इसके लिए विशेष पहल किए जाने पर जोर दिया गया। खास बात यह है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस समस्या का प्राथमिकता के साथ हल किए जाने को जरूरी बताया। आपको बता दें कि उत्तराखंड समेत तमाम हिमालई राज्य पलायन के गहरे संकट से गुजर रहे हैं। उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश के कई गांव अब पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट यह साफ कर चुकी है कि प्रदेश में करीब तीन लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं।


पलायन रोकने को केंद्र से विशेष सहायता की दरकार


हिमालई राज्यों में पलायन को रोकने के लिए केंद्र की विशेष सहायता की जरूरत है कॉन्क्लेव के दौरान इन जरूरतों पर भी एक लंबी चर्चा की गई... हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्री के भी माइग्रेशन पर चिंता जाहिर करने के बाद यह उम्मीद जगी है की हिमालई राज्यों को पलायन के लिए केंद्र से विशेष तवज्जो मिलने जा रही है। दरअसल भारत चीन सीमा से जुड़ी करीब 3488 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा इन्हीं राज्यों से होकर गुजरती है.. जिसमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश राज्य शामिल है। ऐसे में बॉर्डर क्षेत्रों में हो रहे पलायन से सीमाओं पर भी खतरा बढ़ गया है। ऐसे में हिमालयी राज्य पलायन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ते हुए इसपर केंद्र का विशेष ध्यान चाहते हैं।


पलायन के कारणों पर मोदी सरकार करे पहल


हिमालई राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों से हो रहे पलायन की मुख्य वजह इन क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का ना होना है.. कॉन्क्लेव के दौरान इन्हीं मूलभूत सुविधाओं के विकास को लेकर केंद्र सरकार समेत नीति आयोग और 15 वे वित्त आयोग के सामने राज्यों ने अपनी बात रखी... स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार को पहाड़ी जिलों तक पहुंचाने के लिए केंद्र से विशेष पैकेज की दरकार की गई है। कॉन्क्लेव के दौरान पलायन पर केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों और नीति आयोग समेत वित्त आयोग ने जिस तरह गंभीरता दिखाई है उससे ही उम्मीद की जा सकती है कि हिमालई राज्यों को पलायन रोकने के लिए विशेष सहायता दी जा सकती है। 




Conclusion:हिमालई राज्यों के कॉन्क्लेव में पलायन पर जिस प्रमुखता के साथ चिंतन किया गया उससे लगता है कि आने वाले समय में खासतौर पर इस क्षेत्र के लिए केंद्र विशेष सहायता या नीति बना सकता है और यदि ऐसा हुआ तो उत्तराखंड और हिमालई राज्यों की सबसे बड़ी चिंता का समाधान कुछ हद तक हो सकेगा...।
Last Updated : Jul 28, 2019, 9:26 PM IST
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