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पहले राजनीति और अब कोरोना काल का शिकार हुआ नए जिलों का सपना !

उत्तराखंड राज्य गठन के साथ ही प्रदेश में छोटी इकाइयों के गठन को लेकर मांग उठती रही है. प्रदेश में नए जिलों की मांग को लेकर सियासी पार्टियां राजनीति करती तो हैं, लेकिन धरातल पर कहीं कोई काम होता नहीं दिख रहा है. देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

नए जिलों का सपना
नए जिलों का सपना
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Published : Sep 16, 2020, 10:04 AM IST

Updated : Sep 16, 2020, 2:07 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गठन की मांग समय-समय पर उठती रही है. बावजूद, इसके करीब 20 साल का लंबा समय बीत जाने के बाद भी धरातल पर कोई कार्य नहीं हो पाया है. विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस पहाड़ी प्रदेश के नए जिलों के गठन का मामला जहां हर बार सियासत की भेंट चढ़ता रहा वहीं, अब कोरोना संकट काल के भी भेंट चढ़ गया है. आखिर क्या है प्रदेश में नए जिले बनाये जाने की वास्तविक तस्वीर? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

नए जिलों का सपना अभी रहेगा अधूरा

उत्तराखंड में नए जिले गठन की मांग

उत्तराखंड में नए जिले गठन की मांग के पीछे की मुख्य वजह यह है कि प्रदेश के 10 पर्वतीय जिलों में विकास और मूलभूत जरूरतों की अलग-अलग मांग रही है. इसे देखते हुए राज्य गठन के दौरान ही छोटी-छोटी इकाइयां बनाने की मांग की गई. जिससे ना सिर्फ प्रशासनिक ढांचा जन जन तक पहुंच सके, बल्कि प्रदेश के विकास की अवधारणा के सपने को भी साकार किया जा सके. दरअसल सूबे में कोटद्वार सहित रानीखेत, प्रतापनगर, नरेन्द्र नगर, चकराता, डीडीहाट, खटीमा, रुड़की और पुरोला ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें जिला बनाये जाने की मांग की जा रही है. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि कई सामाजिक संगठनों के साथ ही राजनैतिक दल भी इस आवाज को बुलंद करते रहे हैं.

निशंक के शासनकाल में शुरू हुई थी नए जिलों की कवायत

साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 4 जिले बनाये जाने की घोषणा की थी. इसमें गढ़वाल मंडल में 2 जिले (कोटद्वार, यमुनोत्री) और कुमाऊं मंडल में 2 जिले (रानीखेत, डीडीहाट) बनाने की बात कही थी. लेकिन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के पद से हटते ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला. यही नहीं, इसके बाद विजय बहुगुणा की सरकार ने इस मामले को अध्यक्ष राजस्व परिषद की अध्यक्षता में नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन संबंधी आयोग के हवाले कर दिया, लेकिन साल 2016 में मुख्यमंत्री बदलने के बाद हरीश रावत सत्ता पर काबिज हुए और उन्होंने एक बार फिर 8 नए जिले बनाने की कवायत शुरू कर एक सियासी दांव खेला. नए 8 जिलों (डीडीहाट, रानीखेत, रामनगर, काशीपुर, कोटद्वार, यमुनोत्री, रुड़की, ऋषिकेश) को बनाने का खाका भी तैयार कर लिया गया था.

कॉर्पस फंड बनाने का हो चुका था फैसला

इसके साथ ही हरीश रावत के शासनकाल में सरकार ने जनवरी 2017 को नए जिलों के गठन के लिए एक हजार करोड़ की धनराशि से कॉर्पस फंड बनाने का फैसला तक कर दिया था. लेकिन मार्च 2017 में सत्ता पर काबिज हुई त्रिवेंद्र सरकार ने पिछली सरकार द्वारा अध्यक्ष राजस्व परिषद की अध्यक्षता में आयोग का गठन और नए जिलों के निर्माण के लिए एक हजार करोड़ के कॉर्पस फंड की स्थापना के बाद भी इस दिशा में कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया. सरकार ने नए जिलों के गठन का पूरा मामला जिला पुनर्गठन आयोग पर ही छोड़ दिया कि जिला पुनर्गठन आयोग ही तय करेगा कि कितने जिले और कब बनाए जाने हैं.

एक जिले के निर्माण में 150 से 200 करोड़ के व्यय का आकलन

साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के शासनकाल में नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग ने एक नए जिले के निर्माण में करीब 150 से 200 करोड़ रुपए के व्यय का आकलन किया था. यानी उस दौरान 4 नए जिले बनाने की बात चल रही थी. लिहाजा उस दौरान चार नए जिले बनाए जाते तो राज्य पर करीब 600 से 800 करोड़ तक का अतिरिक्त भार पड़ता. ऐसे में अब जब इस बात को 4 साल का समय बीत गया है. अगर अब 4 नए जिलों का गठन किया जाता है तो ऐसे में साल 2016 में अनुमानित व्यय से अधिक खर्च आना लाजमी है.

नए जिलों के गठन से बढ़ेगा करोड़ों का अतिरिक्त भार

अगर नए जिले बनाए जाते हैं तो उसमें जिलाधिकारी, कप्तान के साथ ही इनका पूरा तंत्र और ऑफिस, गाड़ी समेत तमाम खर्चों का व्यय बढ़ जाएगा. यही नहीं जिला स्तर के सभी विभागों में पद भी सृजित किये जाएंगे, जिसके बाद उनके कार्यालय समेत अन्य खर्चों का अतिरिक्त भार सरकार को झेलना पड़ेगा. जिससे सालाना करोड़ों रुपए का खर्च बढ़ जाएगा. लेकिन वर्तमान राज्य की हालात देखें तो सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए बाजार से कर्ज उठाना पड़ रहा है. अगर कर्ज लेकर घी पीने जैसी नीति रही तो यह भविष्य में नुकसानदेह भी साबित हो सकती है.

ये भी पढ़ें: BJP सेवा सप्ताह के रूप में मना रही PM मोदी का जन्मदिन, किया पौधारोपण

कोरोना काल में आर्थिक संकट से जूझ रहा है राज्य

वैश्विक महामारी कोरोना और लॉकडाउन का ना सिर्फ आम आदमी पर आर्थिक असर पड़ा है, बल्कि राज्य की आर्थिकी पर भी इसका सीधा असर देखा जा सकता है. ऐसे में जहां एक ओर राज्य सरकार ऋण लेने को मजबूर है, तो वहीं ऐसे में इस कोरोना काल के बीच 4 जिलों का गठन होना नामुमकिन है. सरकार का भी यही मानना है कि अभी फिलहाल कोरोना संक्रमण से लड़ना है. इसके बाद जिलों के बारे में सोचा जाएगा. सरकार का यह बयान इस ओर इशारा कर रहा है कि अभी फिलहाल भाजपा सरकार के सवा साल का समय बचा है, ऐसे में इस कोरोना काल और इस सरकार के कार्यालय के दौरान 4 नए जिलों का गठन होना सपना ही रहने वाला है.

उत्तराखंड राज्य गठन का उदेश्य

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि उत्तराखंड राज्य का गठन इसलिए किया गया था, ताकि लोगों की जरूरतों को समझने के साथ ही शासन-प्रशासन लोगों के करीब पहुंच सके. राज्य गठन से पहले हेमवती नंदन बहुगुणा इस बात पर जोर दे रहे थे कि अलग राज्य पर जोर ना देकर जिलों को बढ़ाया जाए. ताकि जब प्रशासनिक इकाइयां बढ़ेंगी, तब इस क्षेत्र की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को समझते हुए धरातल पर विकास के काम किए जा सकेंगे. वर्तमान भाजपा सरकार ने अपने मेनिफेस्टो में चार जिले बनाने का जिक्र किया था, लेकिन अब वह लगभग गायब ही नजर आ रहा है.

नए जिलों का प्रस्ताव फिलहाल नहीं

भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने बताया कि प्रदेश के भीतर 4 नए जिले बनाने का प्रस्ताव अभी फिलहाल ना ही संगठन के पास है और ना ही राज्य सरकार के सामने है. वर्तमान समय में राज्य सरकार वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से लड़ने में जुटी हुई है. यही नहीं राज्य सरकार का पूरा ध्यान प्रदेश के विकास और लोगों के हितों पर है. ऐसे में नए जिले बनाने को लेकर कोई चिंतन नहीं हो रहा है. ना ही अभी इसकी कोई संभावना है. वहीं, भाजपा के प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार ने बताया कि पार्टी मेनिफेस्टो में 4 नए जिले बनाने का जिक्र किया गया है और इस मामले पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी गंभीर हैं. लिहाजा एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट लेने के बाद चार जिले बनाने पर निर्णय लिया जाएगा.

जिलों के गठन को लेकर कांग्रेस का बीजेपी पर वार

वहीं, कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि उत्तराखंड राज्य इसलिए बना था ताकि सत्ता का विकेंद्रीकरण किया जा सके. शुरू से यही मांग उठती रही है कि राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार प्रशासनिक इकाइयां छोटी हों ताकि, प्रशासनिक इकाइयों तक जनता की पहुंच आसान हो सके. हालांकि, भाजपा सरकार ने सत्ता में काबिज होने से पहले अपने मेनिफेस्टो में 4 नए जिले बनाने की बात कही थी, लेकिन वह इस बात को भूल गई है. अब राज्य सरकार के पास समय भी नहीं बचा है. उन्होंने राज्य सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि जब राज्य सरकार कोरोना से नहीं लड़ पा रही है और उधार लेकर कर्मचारियों को वेतन दे रही है तो ऐसे में कहां से नए जिले बना पाएगी.

देहरादून: उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गठन की मांग समय-समय पर उठती रही है. बावजूद, इसके करीब 20 साल का लंबा समय बीत जाने के बाद भी धरातल पर कोई कार्य नहीं हो पाया है. विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस पहाड़ी प्रदेश के नए जिलों के गठन का मामला जहां हर बार सियासत की भेंट चढ़ता रहा वहीं, अब कोरोना संकट काल के भी भेंट चढ़ गया है. आखिर क्या है प्रदेश में नए जिले बनाये जाने की वास्तविक तस्वीर? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

नए जिलों का सपना अभी रहेगा अधूरा

उत्तराखंड में नए जिले गठन की मांग

उत्तराखंड में नए जिले गठन की मांग के पीछे की मुख्य वजह यह है कि प्रदेश के 10 पर्वतीय जिलों में विकास और मूलभूत जरूरतों की अलग-अलग मांग रही है. इसे देखते हुए राज्य गठन के दौरान ही छोटी-छोटी इकाइयां बनाने की मांग की गई. जिससे ना सिर्फ प्रशासनिक ढांचा जन जन तक पहुंच सके, बल्कि प्रदेश के विकास की अवधारणा के सपने को भी साकार किया जा सके. दरअसल सूबे में कोटद्वार सहित रानीखेत, प्रतापनगर, नरेन्द्र नगर, चकराता, डीडीहाट, खटीमा, रुड़की और पुरोला ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें जिला बनाये जाने की मांग की जा रही है. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि कई सामाजिक संगठनों के साथ ही राजनैतिक दल भी इस आवाज को बुलंद करते रहे हैं.

निशंक के शासनकाल में शुरू हुई थी नए जिलों की कवायत

साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 4 जिले बनाये जाने की घोषणा की थी. इसमें गढ़वाल मंडल में 2 जिले (कोटद्वार, यमुनोत्री) और कुमाऊं मंडल में 2 जिले (रानीखेत, डीडीहाट) बनाने की बात कही थी. लेकिन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के पद से हटते ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला. यही नहीं, इसके बाद विजय बहुगुणा की सरकार ने इस मामले को अध्यक्ष राजस्व परिषद की अध्यक्षता में नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन संबंधी आयोग के हवाले कर दिया, लेकिन साल 2016 में मुख्यमंत्री बदलने के बाद हरीश रावत सत्ता पर काबिज हुए और उन्होंने एक बार फिर 8 नए जिले बनाने की कवायत शुरू कर एक सियासी दांव खेला. नए 8 जिलों (डीडीहाट, रानीखेत, रामनगर, काशीपुर, कोटद्वार, यमुनोत्री, रुड़की, ऋषिकेश) को बनाने का खाका भी तैयार कर लिया गया था.

कॉर्पस फंड बनाने का हो चुका था फैसला

इसके साथ ही हरीश रावत के शासनकाल में सरकार ने जनवरी 2017 को नए जिलों के गठन के लिए एक हजार करोड़ की धनराशि से कॉर्पस फंड बनाने का फैसला तक कर दिया था. लेकिन मार्च 2017 में सत्ता पर काबिज हुई त्रिवेंद्र सरकार ने पिछली सरकार द्वारा अध्यक्ष राजस्व परिषद की अध्यक्षता में आयोग का गठन और नए जिलों के निर्माण के लिए एक हजार करोड़ के कॉर्पस फंड की स्थापना के बाद भी इस दिशा में कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया. सरकार ने नए जिलों के गठन का पूरा मामला जिला पुनर्गठन आयोग पर ही छोड़ दिया कि जिला पुनर्गठन आयोग ही तय करेगा कि कितने जिले और कब बनाए जाने हैं.

एक जिले के निर्माण में 150 से 200 करोड़ के व्यय का आकलन

साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के शासनकाल में नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग ने एक नए जिले के निर्माण में करीब 150 से 200 करोड़ रुपए के व्यय का आकलन किया था. यानी उस दौरान 4 नए जिले बनाने की बात चल रही थी. लिहाजा उस दौरान चार नए जिले बनाए जाते तो राज्य पर करीब 600 से 800 करोड़ तक का अतिरिक्त भार पड़ता. ऐसे में अब जब इस बात को 4 साल का समय बीत गया है. अगर अब 4 नए जिलों का गठन किया जाता है तो ऐसे में साल 2016 में अनुमानित व्यय से अधिक खर्च आना लाजमी है.

नए जिलों के गठन से बढ़ेगा करोड़ों का अतिरिक्त भार

अगर नए जिले बनाए जाते हैं तो उसमें जिलाधिकारी, कप्तान के साथ ही इनका पूरा तंत्र और ऑफिस, गाड़ी समेत तमाम खर्चों का व्यय बढ़ जाएगा. यही नहीं जिला स्तर के सभी विभागों में पद भी सृजित किये जाएंगे, जिसके बाद उनके कार्यालय समेत अन्य खर्चों का अतिरिक्त भार सरकार को झेलना पड़ेगा. जिससे सालाना करोड़ों रुपए का खर्च बढ़ जाएगा. लेकिन वर्तमान राज्य की हालात देखें तो सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए बाजार से कर्ज उठाना पड़ रहा है. अगर कर्ज लेकर घी पीने जैसी नीति रही तो यह भविष्य में नुकसानदेह भी साबित हो सकती है.

ये भी पढ़ें: BJP सेवा सप्ताह के रूप में मना रही PM मोदी का जन्मदिन, किया पौधारोपण

कोरोना काल में आर्थिक संकट से जूझ रहा है राज्य

वैश्विक महामारी कोरोना और लॉकडाउन का ना सिर्फ आम आदमी पर आर्थिक असर पड़ा है, बल्कि राज्य की आर्थिकी पर भी इसका सीधा असर देखा जा सकता है. ऐसे में जहां एक ओर राज्य सरकार ऋण लेने को मजबूर है, तो वहीं ऐसे में इस कोरोना काल के बीच 4 जिलों का गठन होना नामुमकिन है. सरकार का भी यही मानना है कि अभी फिलहाल कोरोना संक्रमण से लड़ना है. इसके बाद जिलों के बारे में सोचा जाएगा. सरकार का यह बयान इस ओर इशारा कर रहा है कि अभी फिलहाल भाजपा सरकार के सवा साल का समय बचा है, ऐसे में इस कोरोना काल और इस सरकार के कार्यालय के दौरान 4 नए जिलों का गठन होना सपना ही रहने वाला है.

उत्तराखंड राज्य गठन का उदेश्य

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि उत्तराखंड राज्य का गठन इसलिए किया गया था, ताकि लोगों की जरूरतों को समझने के साथ ही शासन-प्रशासन लोगों के करीब पहुंच सके. राज्य गठन से पहले हेमवती नंदन बहुगुणा इस बात पर जोर दे रहे थे कि अलग राज्य पर जोर ना देकर जिलों को बढ़ाया जाए. ताकि जब प्रशासनिक इकाइयां बढ़ेंगी, तब इस क्षेत्र की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को समझते हुए धरातल पर विकास के काम किए जा सकेंगे. वर्तमान भाजपा सरकार ने अपने मेनिफेस्टो में चार जिले बनाने का जिक्र किया था, लेकिन अब वह लगभग गायब ही नजर आ रहा है.

नए जिलों का प्रस्ताव फिलहाल नहीं

भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने बताया कि प्रदेश के भीतर 4 नए जिले बनाने का प्रस्ताव अभी फिलहाल ना ही संगठन के पास है और ना ही राज्य सरकार के सामने है. वर्तमान समय में राज्य सरकार वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से लड़ने में जुटी हुई है. यही नहीं राज्य सरकार का पूरा ध्यान प्रदेश के विकास और लोगों के हितों पर है. ऐसे में नए जिले बनाने को लेकर कोई चिंतन नहीं हो रहा है. ना ही अभी इसकी कोई संभावना है. वहीं, भाजपा के प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार ने बताया कि पार्टी मेनिफेस्टो में 4 नए जिले बनाने का जिक्र किया गया है और इस मामले पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी गंभीर हैं. लिहाजा एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट लेने के बाद चार जिले बनाने पर निर्णय लिया जाएगा.

जिलों के गठन को लेकर कांग्रेस का बीजेपी पर वार

वहीं, कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि उत्तराखंड राज्य इसलिए बना था ताकि सत्ता का विकेंद्रीकरण किया जा सके. शुरू से यही मांग उठती रही है कि राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार प्रशासनिक इकाइयां छोटी हों ताकि, प्रशासनिक इकाइयों तक जनता की पहुंच आसान हो सके. हालांकि, भाजपा सरकार ने सत्ता में काबिज होने से पहले अपने मेनिफेस्टो में 4 नए जिले बनाने की बात कही थी, लेकिन वह इस बात को भूल गई है. अब राज्य सरकार के पास समय भी नहीं बचा है. उन्होंने राज्य सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि जब राज्य सरकार कोरोना से नहीं लड़ पा रही है और उधार लेकर कर्मचारियों को वेतन दे रही है तो ऐसे में कहां से नए जिले बना पाएगी.

Last Updated : Sep 16, 2020, 2:07 PM IST
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