मसूरी: पहाड़ों की रानी मसूरी में अंग्रेजों के शासनकाल में सवॉय होटल और लंढौर बाजार में बनाये गये उप-डाकघरों को पिछले दिनों बंद करने को लेकर ईटीवी भारत ने प्रमुखता से खबर दिखाई थी. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने इन ऐतिहासिक उप-डाकघरों को बंद करने की बजाय संरक्षित करने की मांग उठाई थी. स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए सरकार ने इन दोनों डाकघरों को बंद करने के प्रस्ताव पर रोक लगा दिया है.
देहरादून के वरिष्ठ अधीक्षक डाकघर अनुसूया प्रसाद ने बताया कि अब इन दोनों ही उप-डाकघरों को बंद नहीं किया जायेगा. उन्होंने बताया कि सवॉय पोस्ट ऑफिस पहले की तरह संचालित होगा. लेकिन लंढौर पोस्ट ऑफिस कुछ समय के लिये आसपास के क्षेत्र में स्थानांतरित किया जायेगा. क्योंकि मकान मालिक ने पोस्ट ऑफिस के साथ पुराने भवन के जीर्णोद्धार के लिए परिसर खाली करने को कहा है. जीर्णोद्धार के बाद दोबारा पोस्ट ऑफिस उसी स्थान पर संचालित किया जायेगा.
बता दें कि पूर्व में दोनों पोस्ट ऑफिसों को बंद करने के निर्देश दिये गए थे. जिसके बाद स्थानीय विधायक गणेश जोशी, मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड, लेखक गणेश सैली, पालिका के सभासदों और समाजिक कार्यकर्ताओं सहित स्थानीय लोगों ने इस फैसले का विरोध किया था.
प्रसिद्ध लेखक रस्किन बॉन्ड ने ऐतिहासिक पोस्ट ऑफिसों को बंद करने पर दुख जताया था. क्योंकि वो साल 1964 से इस पोस्ट ऑफिस का उपयोग कर रहे हैं. उनकी कई कहानियों में भी इस पोस्ट ऑफिस का जिक्र है. ईटीवी भारत ने भी इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित कर लोगों को भावनाओं को सरकार तक पहुंचाया था, जिसका असर देखने को मिला है.
मसूरी के इन दोनों उप-डाकधरों का पुराना इतिहास है. लंढौर स्थित डाकघर का जिक्र रस्किन बॉन्ड की कई कहानियों और किस्सों में मिलता है. वहीं, दूसरा उप-डाकघर सवॉय सब-पोस्ट ऑफिस है. जहां प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट के पिता पोस्टमास्टर के तौर पर कार्यरत थे. मसूरी के दोनों उप-डाकघरों का समृद्ध इतिहास रहा है. 1837 में जब पोस्ट ऑफिस एक्ट लागू किया गया था. तब मसूरी के संस्थापक कैप्टन यंग ने लंढौर सब-पोस्ट ऑफिस स्थापित किया था. लंढौर में पोस्ट ऑफिस शुरू होने से पहले डाकघर को 1909 में मॉल रोड पर रोर्लटन हाउस में शिफ्ट किया गया था. जिसके बाद मसूरी के लंढौर, लाइब्रेरी, चार्लीविली, बार्लोगंज और झड़ी पानी में उप-डाकघरों के आसपास विकसित किया गया था.
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मसूरी के लंढौर सब-पोस्ट ऑफिस को न केवल मसूरी लैंग्वेज स्कूल और वुडस्टाक स्कूल से अंतरराष्ट्रीय क्लाइंट प्रयोग कर रहे हैं. बल्कि 26 देशों के छात्रों के इन उप डाकघरों में खाते हैं. ये उप डाकघर मसूरी के किमोटी, कोल्टी, कांडा, मथोली, मौद, खतापानी, तुनेता, जूडी, सैंजी, लुदुर, गिन्सी और कई अन्य दूरस्थ गांव के लोगों को सेवाएं दे रहा है.
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वहीं, सवॉय सब-पोस्ट ऑफिस 1902 से ऐतिहासिक होटल सवॉय से जुड़ा हुआ है. प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट के पिता ने पोस्टमास्टर के तौर पर यहां काम किया था. मसूरी में लंढौर और सवॉय स्थित डाकघर करीब 125 साल से स्थानीय निवासियों को सेवाएं देता आ रहे हैं. ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने इन्हें अपनी सुविधा के लिए शुरू किया था.
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विधायक गणेश जोशी ने डाकघरों को बंद करने का फैसला वापस लिये जाने पर आभार व्यक्त करते हुए कहा कि कहा इन उप-डाकघरों के ऐतिहासिक महत्व है, ऐसे में इनको संरक्षित कर इनमें वर्तमान परिपेक्ष के अनुसार ग्राहकों के लिये अन्य सुविधाएं जुटाने के लिये भी काम किया जाना चाहिये.