देहरादून: कहते हैं कि विकास और विनाश साथ-साथ चलते हैं यानी विकास के नाम पर अनियोजित निर्माण या कार्य विनाश को दावत देते हैं. प्राकृतिक रूप से कुछ ऐसे ही अनुभव उत्तराखंड में हो रहे बदलावों से किया जा सकता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रदेश में लगातार भूस्खलन की घटनाओं में बढ़ोतरी होने का आंकलन किया जा रहा है. राज्य में पहली बार हुए लैंडस्लाइड जोन के सर्वे में जो रिपोर्ट सामने आई है, वो चौंकाने वाली है.
दरअसल, उत्तराखंड में 6300 भूस्खलन जोन चिन्हित किए गए हैं. यह आंकलन किसी और ने नहीं बल्कि उत्तराखंड के ही आपदा प्रबंधन विभाग (disaster management department) की तरफ से की गई रिसर्च के बाद किया गया है. आपको बता दें कि उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग और वर्ल्ड बैंक साल 2018 से एक खास प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इसके तहत पूरे प्रदेश में लैंडस्लाइड क्षेत्रों को चिन्हित किया गया और जब यह आंकड़ा सामने आया, तो वर्ल्ड बैंक के अधिकारियों के साथ ही आपदा प्रबंधन विभाग के वैज्ञानिक भी हैरत में पड़ गए हैं.
भूस्खलन जोन को लेकर वैसे तो यह पहली बार सर्वे किया गया था लेकिन माना जा रहा है कि प्रदेश में विकास कार्यों को लेकर बड़ी मानवीय गतिविधियों ने इसे बल दिया. आपको बता दें कि इस समय उत्तराखंड में हजारों करोड़ के बड़े प्रोजेक्ट गतिमान हैं. वहीं, तौर पर बड़े प्रोजेक्ट का असर पहाड़ों पर भी पड़ रहा है. इससे नए भूस्खलन जोन तैयार हो रहे हैं. राज्य में बड़े प्रोजेक्ट की बात करें तो ऑलवेदर रोड के अलावा ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन और कई छोटी-बड़ी जल विद्युत परियोजना तैयार की जा रही हैं.
यह सभी जानते हैं कि हिमालय को वैज्ञानिक न्यूबोर्न पर्वत श्रृंखला के रूप में बताते हैं, जिसमें तेजी से प्राकृतिक बदलाव हो रहा है, जबकि बड़े स्तर पर हो रही कंस्ट्रक्शन के चलते कच्चे पहाड़ भरभरा कर गिर रहे हैं. इसके साथ ही नए भूस्खलन जोन तैयार हो रहे हैं. वैसे तो भूस्खलन को प्राकृतिक घटना कहा जा सकता है लेकिन इनके बढ़ने के पीछे मानवीय दखलअंदाजी बड़ी वजह है.
लैंडस्लाइड जोन वैसे तो गढ़वाल और कुमाऊं दोनों ही मंडलों में बढ़ते हुए दिखाई दिए हैं, लेकिन गढ़वाल जोन में ज्यादा सक्रिय लैंडस्लाइड जोन रिकॉर्ड किए गए हैं. खास बात यह है कि ऋषिकेश के पास ही कौड़ियाला से भूस्खलन के जोन मिलने लगते हैं. इसके बाद तोताघाटी, तीनधारा और देवप्रयाग तक कई बड़े भूस्खलन क्षेत्र दिखाई देते हैं. उधर, कुमाऊं में भी पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चंपावत के साथ ही बागेश्वर समेत दूसरे जिलों में भी लैंडस्लाइड के जोन मौजूद हैं.
बरसात के पैटर्न में बदलाव ने बढ़ाई चिंता: वैसे उत्तराखंड के लिए चिंता का सबब बस मानवीय गतिविधियों के कारण भूस्खलन जोन का बढ़ना ही नहीं है बल्कि बारिश के पैटर्न में हुए भारी बदलाव ने भी भूस्खलन जोन को बढ़ाने का काम किया है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में भले ही बारिश को अनुपातिक रुप से कम रिकॉर्ड किया जा रहा हो लेकिन जिस तरह बारिश के स्वरूप ने बदलाव लेते हुए सभी क्षेत्रों को प्रभावित करने के बजाए कुछ क्षेत्रों में सूखा तो कुछ क्षेत्रों में अचानक भारी से अति भारी बारिश होने का पैटर्न अपनाया है. वह बेहद खतरनाक संकेत दे रहा है.
पर्यावरण विद एसपी सती कहते हैं कि पिछले कुछ समय में बारिश कुछ क्षेत्रों में अचानक बेहद ज्यादा होना रिकॉर्ड किया जा रहा है. यह आवरण के लिहाज से खतरनाक है. क्योंकि इस पैटर्न से एक तरफ कई क्षेत्रों में बारिश नहीं होने की स्थिति पैदा हो रही है. तो दूसरी तरफ जिस क्षेत्र में अचानक भारी बारिश होती है, वहां पर नुकसान भी ज्यादा रिकॉर्ड किया जा रहा है. खास तौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन जैसी घटनाओं का ऐसी स्थिति में ज्यादा होना लाजमी है.
आपदा प्रबंधन विभाग वर्ल्ड बैंक के साथ सेंसर लगाने का बना रहा प्रोजेक्ट: जिस तरह राज्य में भूस्खलन जोन बड़े हैं और इससे स्थानीय लोगों की परेशानियां बढ़ने के साथ पहाड़ों पर जाने वाले पर्यटकों के लिए भी खतरा बढ़ गया है. उससे इस बात पर चिंतन किया जाने लगा है कि कैसे इन स्थितियों को संभाला जाए? इसका जवाब आपदा प्रबंधन विभाग और वर्ल्ड बैंक का वह प्रस्ताव है, जो सेंसर टेक्नोलॉजी से जुड़ा हुआ है.
दरअसल, आपदा प्रबंधन विभाग भूस्खलन जोन की बड़ी संख्या होने के बावजूद कुछ ऐसे बंदोबस्त करने की तैयारी कर रहा है, जिससे ऐसे जोन में भूस्खलन होने की स्थिति में फौरन प्रशासन के साथ लोगों को भी जानकारी दी जा सके. ऐसे में अब आपदा प्रबंधन विभाग वर्ल्ड बैंक के साथ मिलकर ऐसे बड़े लैंडस्लाइड जोन में सेंसर लगाने का प्लान कर रहा है. इससे आपदा प्रबंधन विभाग के कंट्रोल रूम को सेंसर वाली जगह से किसी भी हलचल की स्थिति में फौरन जानकारी मिल जाएगी.
ऐसी स्थिति में यहां भूस्खलन से बचाव के साथ मार्ग को जल्द से जल्द खोलने के काम को भी पूरा किया जा सकेगा. इससे न केवल इंसानी जान के खतरे को भी कम किया जा सकेगा, बल्कि सड़क मार्ग बाधित होने की स्थिति में उस पर फौरन काम भी किया जा सकेगा.