देहरादून: उत्तराखंड राज्य का गठन हुए 22 साल हो चुके हैं, लेकिन इन सालों ने यहां की आम जनता का विकास हुआ या नहीं. लेकिन, प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत में चुनकर गए माननीयों ने अपना जमकर विकास किया है. विधायकों के वेतन-भत्तों में पिछले 21 वर्षों में 15 से 30 गुना तक की बढ़ोत्तरी हुई है. उसके बाद भी इन्हें प्रदेश और जनता के विकास से कोई सरोकार नहीं है.
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि इन 21 सालों में आमजन के लिए तो कई खास सुविधाएं नहीं बढ़ी, लेकिन विधानसभा में चुनकर गए विधायकों की सुविधाओं और वेतन भत्ते लगातार बढ़ते गए. उनकी सुविधाओं में भी कोई कमी नहीं आई. आज स्थिति ये है कि प्रदेश का युवा सड़कों पर बेरोजगार घूम रहा है और जनता के द्वारा सदन में चुनकर भेजे गए विधायक का सैलरी 30 से 40 प्रतिशत बढ़ गई, लेकिन फिर भी ये अपने क्षेत्र और प्रदेश की जनता के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं. ये बात आपको सुनने में थोड़ा अजीब लगेगी, लेकिन सच्चाई यही है.
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत के मुताबिक नियमानुसार प्रदेश की विधानसभा में होने वाले साल भर के सभी सत्रों और अन्य समितियों की कुल 60 बैठकें होनी चाहिए, लेकिन इसे उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि यहां साल में 20 बैठकें भी नहीं हो रही हैं. इस बैठकों का उद्देश्य यही होता है कि यहां पर चर्चा करके विधायक और मंत्री अपने अपने क्षेत्र व प्रदेश की विकास योजनाओं की रूपरेखा तैयार कर सकें, ताकि उन पर अमलीजामा पहनाया जा सके.
रावत कहते हैं कि बजट सत्र जैसा अहम सत्र भी बिना बहस के ही ध्वनि मत से पारित कर दिया जाता है. आज सिर्फ और सिर्फ विधायक निधियों को बढ़ाकर भ्रष्टाचार को बढ़ाया दिया जा रहा है. विधायक भी त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों के कार्यक्षेत्र में दखलअंदाजी करने तक ही सीमित रह गए हैं. विधायकों के वेतन भत्तों की बात करें, तो जहां राज्य गठन के समय विधायकों का वेतन 2000 था तो आज वह 30 हजार प्रतिमाह हो गए हैं.
वहीं, निर्वाचन भत्ते 5 हजार से बढ़ाकर डेढ़ लाख कर दिया गया है. चालक भत्ता भी 3 हजार से बढ़ाकर 12 हजार तो सचिव का भत्ता 1 हजार से बढ़ाकर 12 हजार कर दिया गया. इसके अलावा जनसेवा भत्ता भी 200 से बढ़ाकर 2 हजार तक कर दिया गया है. यानी उत्तराखंड में विकास हो रहा है तो सिर्फ और सिर्फ माननीयों न की उन्हें सदन में भेजने वाले आम वोटर्स का.