देहरादून: पहाड़ी जनपदों से हो रहे पलायन को रोकने के लिए राज्य सरकार ने ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग का गठन किया था. ताकि पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहे पलायन की मुख्य वजह को जाना जा सके. आज इसी क्रम में ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डॉ एसएस नेगी ने जिला रुद्रप्रयाग के ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक आर्थिक विकास को व्यवस्थित बनाने और पलायन को कम करने की रिपोर्ट को मुख्यमंत्री को सौंप दिया है.
जिला रुद्रप्रयाग पर ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग द्वारा सौंपे गए रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि कहा कि जनपद के प्रमुख पर्यटक एवं धार्मिक स्थलों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना होगा. जिले में रोजगार को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना जरूरी है. महिलाओं को कौशल विकास से संबंधित प्रशिक्षण के साथ ही महिला स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देने की जरूरत है.
ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों में रुद्रप्रयाग जिले से 316 ग्राम पंचायतों से 22,735 लोगों ने अस्थाई पलायन किया है. यह पलायन जिले के अन्दर ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर हुआ है, जबकि 7,835 व्यक्तियों ने पूर्ण रूप से स्थाई पलायन किया है. जनपद में स्थाई पलायन की तुलना में अस्थाई पलायन अधिक हुआ है. लगभग 40 प्रतिशत पलायन 26 से 35 वर्ष के युवाओं ने किया है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार जिला रुद्रप्रयाग की जनसंख्या 2 लाख 42 हजार 285 है और इस जिले कि 80 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है.
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आयोग की रिपोर्ट के अनुसार रुद्रप्रयाग के विकासखण्ड ऊखीमठ की जनसंख्या में 11 प्रतिशत की वृद्धि और विकासखण्ड अगस्तमुनि की जनसंख्या में 02 प्रतिशत की कमी आयी है. राज्य घरेलू उत्पाद के आधार पर वर्ष 2016-17 के अनुमानों में रुद्रप्रयाग की प्रति व्यक्ति आय अनुमानित 83,521 रूपये है. रुद्रप्रयाग एवं टिहरी जिले की प्रति व्यक्ति आय अन्य पर्वतीय जिलों की तुलना में कम है. रुद्रप्रयाग का मानव विकास सूचकांक अन्य पर्वतीय जिलों से कम है. इस जिले में कुल 688 ग्रामों में से 653 आबाद एवं 35 गैर आबाद ग्राम हैं. तीनों विकासखण्डों में कुल 20 राजस्व ग्राम हैं.
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि पर्यटन विकास योजना तैयार हो, होम स्टे योजना को स्थानीय स्तर पर बढ़ावा दिया जाए, भू-जल पुनर्भरण योजनाओं को प्राथमिकता, पानी के पारम्परिक स्रोतों को पुनर्जीवित करने और ग्रामीण विकास के लिए महिला केंद्रित दृष्टिकोण अपना होगा. जिसमें कृषि आधारित सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों, रेडिमेट वस्त्र, कताई-बुनाई लकड़ी आधारित, होटल एवं अन्य सर्विस ईकाइयों को जनपद के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को मजबूत बनाकर आजीविका प्रदान की जा सकती है.
आयोग की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिले. इसके लिए उद्यमिता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना जरूरी हैं. जिले में फल, नर्सरियों की संख्या बढ़ाने एवं फल रोपण सामग्री, उत्पादन करने के साथ ही निजी क्षेत्र की नर्सरियों को प्रोत्साहित करना होगा. ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन को रोकने के लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना एवं कौशल विकास से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी हैं. साथ ही इस क्षेत्र में कृषि उत्पादन के लिए विशेष क्षेत्र या विकासखण्ड स्तर पर किसान उत्पादक संगठन के गठन पर सिफारिश की गई है.