देहरादून: देश के अलग-अलग राज्यों में फंसे प्रवासियों के घर लौटने का सिलसिला जारी है. डेढ़ लाख से ज्यादा प्रवासियों ने घर वापसी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है. करीब 20 हजार से ज्यादा लोग उत्तराखंड पहुंच भी चुके हैं. राज्य सरकार ने बसों से उनके गांवों में भेज दिया है, लेकिन प्रवासियों के गांव पहुंचने के साथ ही एक नई समस्या शुरू हो गई है. पहले ही पहाड़ पर रह रहे रैवासी और कई सालों बाद अपने गांव पहुंचे प्रवासियों के बीच संघर्ष होता दिखाई दे रहा है. ये स्थानीय प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है.
ट्रेनों के संचालन के बाद अब उत्तराखंड लौटने वाले प्रवासियों की तादात में एकदम उछाल देखने को मिलेगा. एक अनुमान के मुताबिक अब बेहद ही कम दिनों में तकरीबन दो लाख लोग उत्तराखंड पहुंचेंगे. यह सभी लोग पहाड़ चढ़ेंगे. इनमें से अधिकांश तो ऐसे लोग हैं जो सालों बाद अपने गांव आएंगे. लेकिन इसी बीच सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं जिसमें ग्रामीण प्रवासियों को गांव में न आने की अपील करते हुए दिख रहे हैं.
पढ़ें- लॉकडाउन तोड़ने में ऊधम सिंह नगर जिला अव्वल, कुमाऊं मंडल में 9,005 हुए गिरफ्तार
ग्रामीणों को डर है कि कुछ प्रवासी रेड जोन से गांव में घर आ रहे हैं, जो उनके लिए खतरा बन सकते हैं. वायरल वीडियो में ग्रामीण महिला कहती हुई नजर आ रही है कि प्रवासी समझदार हैं. उन्हें ऐसे समय में गांव में नहीं आना चाहिए.
कुछ ग्रामीणों के मुताबिक प्रधान और गांव में रह रहे कुछ लोग प्रवासियों से ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे कोई अछूत हों. यहां तक कि कुछ गांवों में तो क्वारंटाइन सेंटर में भेदभाव किया जा रहा है.
ग्रामीणों इलाकों में सामने आ रही इस समस्या को लेकर जब भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता विनोद सुयाल से बात कि गई तो उन्होंने कहा कि रैवासियों को प्रवासियों के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए. ये वक्त एक साथ मिल कर लड़ने का है. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि हम देवभूमि के लोग हैं. हमारी यह परंपरा नहीं है. इस तरह की घटनाओं से प्रदेश की साख मिट्टी में मिलाने का काम ना करें.