देहरादून: उत्तराखंड में आज 4 सितंबर को बड़ा हादसा हुआ है. उत्तरकाशी जिले में द्रौपदी का डांडा 2 पर्वत चोटी पर एवलॉन्च आ गया. एवलॉन्च में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) उत्तरकाशी के 34 प्रशिक्षु और सात पर्वतारोहण प्रशिक्षक और एक नर्सिंग स्टाफ समेत कुल 42 लोग फंसे गए हैं. इनमें से 7 लोगों के मौत की पुष्टि हो गई हैं. वहीं, 8 लोगों का रेस्क्यू किया गया है. करीब 25 लोगों के फंसे होने की जानकारी है. इस घटना ने एक बार उत्तराखंड से जुड़ी एवलॉन्च की पुरानी कड़वी यादों को ताजा कर दिया है. उत्तराखंड में इस तरह के कई एवलॉन्च आ चुके हैं, जिनमें कई पर्वतारोही अपनी जान गंवा चुके हैं. कइयों के तो अभीतक शव भी नहीं मिल सके हैं.
पर्वतारोहण एक साहसिक जोखिम भरा रोमांच है, जिसमें हर समय पर्वतारोही मौत के साये में रहते हैं. कभी मौसम उनकी जान का दुश्मन बन जाता है तो कभी पर्वतारोहियों की थोड़ी सी गलती भी उनकी जान मुश्किल में डाल देती है. पर्वतारोहियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो मौसम से पार पाने की ही होती है. साल 2019 में भी एक ऐसी ही घटना हुई थी, जिसमें 4 पर्वतारोहियों समेत 8 लोगों की मौत हो गई थी.
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2019 में 8 लोगों की गई थी जान: दरअसल, 13 मई 2019 में जाने माने ब्रिटिश पर्वतारोही मार्टिन मोरान के नेतृत्व में 12 सदस्यीय टीम उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित 7434 मीटर उंची नंदा देवी पूर्व चोटी को फतेह करने निकली थी, लेकिन रास्ते में एवलॉन्च की चपेट में आने से 8 लोग फंस गए थे. इन आठ लोगों में चार ब्रिटिश (जॉन चार्ल्स मैकलारेन, रिचर्ड पायने और रूपर्ट जेम्स व्हेवेल), दो अमेरिकी (एंथनी एडवर्ड सुडेकम और रोनाल्ड इसाक बाइमेल), एक आस्ट्रेलियाई (महिला पर्वतारोही रूथ मारग्रेट मैक केंस) और एक भारतीय नागरिक (भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन के जनसंपर्क अधिकारी चेतन पांडेय) शामिल थे. इनमें कोई बच नहीं पाया था. इन पर्वतारोही के शव निकालने के लिए आईटीबीपी ने ऑपरेशन डेयर डेविल शुरू किया था, करीब एक महीने बाद आईटीबीपी 7 ही शवों को निकाल पाई थी. आज भी पर्वतारोही मार्टिन मोरान का शव वहीं दफन है.
नौसेना के एक पर्वतारोही का शव आजतक नहीं मिला: इसके अलावा करीब एक साल पहले भी एक अक्टूबर 2021 में चमोली जिले में स्थित त्रिशूल चोटी पर एवलॉन्च आ गया था. इसमें हादसे में नौसेना के पांच और एक पोर्टर लापता हो गए थे. रेस्क्यू के दौरान नौसेना के पांच पर्वतारोहियों में से चार के शव बरामद कर लिए गए थे. नौसेना का एक पर्वतारोही और पोर्टर अभी भी लापता है.
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एवलांच क्या होता है?: एवलांच तब आता है जब ऊंची चोटियों पर ज्यादा मात्रा बर्फ जम जाती है और दबाव ज्यादा होने पर बर्फ अपनी जगह से खिसक जाती है. बर्फ की परतें खिसती हैं और तेज बहाव के साथ नीचे की ओर बहने लगती हैं. रास्ते में जो कुछ आता है उसे ये बहा ले जाते हैं.
उत्तराखंड में हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ी: बीते कुछ सालों के अंदर उत्तराखंड में हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं. यह बेहद खतरनाक पैटर्न है जो पहाड़ी भागों में बड़ी चिंता की वजह बना हुआ है. उत्तराखंड में हिमस्खलन एक बड़ा कारण हैंगिंग ग्लेशियर भी है. दरअसल, उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में हैंगिंग ग्लेशियर हैं, जैसे ही बर्फबारी शुरू होती है तो बादलों के कण आसपास के इलाकों में फैलने लगते हैं. उत्तरकाशी और केदारनाथ ऐसे इलाके हैं, जहां बर्फीले तूफान भी आते हैं. ऐसे में यह कई बार विनाशकारी साबित होते हैं. इन्हें व्हाइट डेथ बीते कुछ सालों के अंदर उत्तराखंड में हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं, जो प्रदेश के लिए घातक साबित हो रही है. उत्तराखंड में पहले भी कई पर्वतारोही एवलॉन्च की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं. कई के शव अभी भी पहाड़ियों में दफन है, जिन्हें आज तक कोई ढूंढ़ नहीं पाया है.
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कैसे होता है हिमस्खलन?:
- जिन क्षेत्रों में बड़े-बड़े पर्वतीय ढालान होते हैं, वहां भी हिमस्खलन की घटनाएं ज्यादा होती हैं. जैसे ही बर्फबारी होती है, बर्फ ढलानों से फिसलने लगती है. बर्फ के छोटे-छोटे कण जम नहीं पाते और बड़ा हादसा हो जाता है.
- कई बार बर्फ की बड़ी-बड़ी स्लैब इन्हीं ढलानों पर प्राकृतिक कारणों से गिर जाती हैं. गिरते ही ये तेजी से नीचे की ओर खिसकने लगती हैं, जो देखते-देखते तूफान में बदल जाता है. इसकी वजह से भी बड़ी तबाही मचती है.
- जब पर्वतीय क्षेत्रों में आंधी आ जाती है, तब भी भीषण तबाही मचाही है. दरअसल बर्फ के छोटे-छोटे कण और बर्फ के बड़े स्लैब, मिलकर आकार में बड़े हो जाते हैं. उनके निचले हिस्से में बर्फ और हवा का सघन घनत्व बन जाता है. जब इनमें परिवर्तन होता है तो ढलान पर बेहद तेजी से फिसलने लगते हैं. ऐसे हिमस्खलन भी तबाही मचा सकते हैं.
- जब बर्फ के बड़े-बड़े कई स्लैब एकसाथ किसी उत्परिवर्तन (Mutation) की वजह से खिसकने लगते हैं और अपने-साथ ये मलबा, चट्टान और अवसाद साथ लेकर खिसकते हैं, तब बड़ी त्रासदी मचती है. इनका असर मैदानी भागों तक भी देखने को मिल सकता है. ये बर्फ की सैलाब को जमीन तक लाने में सक्षम होते हैं.
उत्तराखंड में एवलांच की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं-
- 2019 में नंदादेवी के आरोहण के दौरान एवलॉन्च की चपेट में आने से चार विदेशी पर्वतारोही सहित आठ की मौत.
- 2016 में शिवलिंग चोटी पर दो विदेशी पर्वतारोहियों की मौत.
- 2012 में सतोपंथ ग्लेशियर क्रेवास गिरकर ऑस्ट्रेलिया के एक पर्वतारोही की मौत.
- 2012 में वासूकी ताल के पास एवलॉन्च आने से बंगाल के 5 पर्यटकों की मौत.
- 2008 में कालिंदीपास में एवलॉन्चआने के कारण बंगाल के 3 पर्वतारोही और 5 पोर्टर की मौत.
- 2005 में सतोपंथ चोटी पर आरोहण के दौरान एवलॉन्च से सेना के एक पर्वतारोही की मौत.
- 2005 में चौखम्बा में एवलॉन्च से 5 पर्वतारोहियों की मौत.
- 2004 में कालिंदीपास में एवलॉन्च से 4 पर्वतरोहियों की मौत.
- 2004 में गंगोत्री-2 चोटी में एवलॉन्च से बंगाल के 4 पर्वतारोहियों की मौत.
- 1999 में थलयसागर चोटी में आरोहण के दौरान तीन विदेशी पर्वतारोहियों की मौत.
- 1996 में केदारडोम चोटी पर एवलॉन्च से कुमांऊ मंडल के 2 पर्वतारोहियों की मौत.
- 1996 में भागीरथी-टू चोरी पर एवलॉन्च से कोरिया के एक पर्वतारोही की मौत.
- 1990 में केदारडोम चोटी पर एवलॉन्च आने से पांच पर्वतारोहियों की मौत.