मसूरी: पहाड़ों की रानी मसूरी में देश की स्वतंत्रता से जुड़ी कई यादें मौजूद हैं. स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेज मसूरी के गांधी चौक पर झंडा फहराते थे. आज इसी चौक पर आजादी का जश्न धूमधाम से मनाया जाता है. मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि मसूरी गांधी, नेहरू के साथ कई नेताओं की पसंदीदा जगह थी. स्वतंत्रता से पूर्व इन सभी का यहां आना-जाना लगा रहता था. मसूरी के बंद कमरों में देश को आजाद करने के लिये रणनीति बनाई जाती थीं. मसूरी के सिल्वर्टन ग्राउंड में कई सभाएं आयोजित की जाती थीं.
जब जगन्नाथ शर्मा ने फहराया तिरंगा: स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ शर्मा का जिक्र करते हुए गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि 1942 में मसूरी के धनानन्द इंटर कॉलेज से शिक्षा ग्रहण करने के दौरान गांधी और नेहरू से प्रेरित होकर उन्होंने स्कूल परिसर में राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया था, जो उस समय अद्भुत और विस्मयकारी घटना थी. इसको लेकर जगन्नाथ शर्मा को यातनाएं भी झेलनी पड़ी थी.
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आजादी के बाद लगा कर्फ्यू: गोपाल भारद्वाज ने बताया कि 1947 में जब देश आजाद हुआ तो मसूरी में असामाजिक तत्वों द्वारा कई दुकानों में लूट की गई. जिससे मसूरी में कर्फ्यू लगा दिया गया था. तब अंग्रेजों ने मसूरी के गांधी चौक पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराने दिया था. जिसके बाद मसूरी में कुछ नेताओं ने मसूरी के सेवॉय होटल और मसूरी क्लब में गुपचुप तरीके से राष्ट्रीय ध्वज लहराकर आजादी की खुशी मनाई थी.
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बनाई जाती थी आजादी की रणनीतियां: उन्होंने बताया मसूरी गांधी, नेहरू के साथ कई नेताओं की पसंदीदा जगह थी. स्वतंत्रता से पूर्व इन सभी का यहां आना-जाना लगा रहता था. मसूरी के बंद कमरों में देश को आजाद करने के लिये रणनीति बनाई जाती थी. मसूरी के सिल्वर्टन ग्राउंड में सभाएं आयोजित की जाती थी.
1825 में हुई मसूरी की खोज: गोपाल भारद्वाज ने बताया कि 1825 में मसूरी की खोज में अंग्रेज फौज के कैप्टन यंग और मिस्टर शोरे ने शिकार के दौरान की थी. तब उन्होंने यहां मसूरी के क्षेत्र को एक छोटे शहर में विकसित किया. जिसके बाद में अंग्रेजों ने इसे अपनी ऐशगाह और घायल अधिकारियों, सैनिकों के इलाज व आराम के लिये इस्तेमाल किया. आज भी मसूरी में इतिहास से जुड़े कई प्रमाण मौजूद हैं.
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गोपाल भारद्वाज ने बताया उनके पिता प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य ऋषि भारद्वाज को लेने के लिए गांधी जी उनके आवास पर रिक्शा भिजवाते थे. उन्होंने बताया कि देश के बड़े नेताओं से उनके पिता का सीधा संवाद होता था. समय-समय पर पत्राचारों के माध्यम से आजादी के साथ मसूरी के विकास के लिये भी वे वार्ता करते रहते थे.