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मसूरी के 500 साल पुराने नाग मंदिर में महारुद्र यज्ञ का आयोजन, निकाली गई कलश यात्रा - Lash Yatra of Nag Devta

मसूरी में नागदेवता मंदिर समिति ने 500 साल पुराने नाग मंदिर से कलश यात्रा निकाली. कलश यात्रा में शिव भक्तों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.

Mussoorie
नाग देवता
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Published : Jul 26, 2022, 11:25 AM IST

मसूरी: नाग देवता मंदिर समिति ने हाथी पांव रोड स्थित नाग मंदिर परिसर में 13वां महारुद्र यज्ञ एवं शिव महापुराण कथा का शुभारंभ किया. इससे पहले मसूरी के क्यार कुली भट्टा गांव से कलश यात्रा निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया. महिलाओं ने सर पर कलश रखकर नंगे पैर करीब 10 किलोमीटर का पैदल सफर तय किया.

भक्त पारंपरिक वाद्य यंत्रों की घुन पर झूमते हुए नजर आए. यात्रा के पड़ावों पर पर्यटकों व राहगीरों ने भी भगवान नाग देवता की डोली के दर्शन किए. कलश यात्रा के नाग मंदिर पहुंचने पर महिलाओं ने कलश को श्रीमद भागवत कथा मंडप में स्थापित किए. श्रद्धालुओं ने नाग देवता के दर्शन किए और शिवलिंग पर जलाभिषेक किया. नाग देवता की प्रतिमा पर दुग्धाभिषेक कर परिवार की खुशहाली की कामना की.

नाग देवता की कलश यात्रा

कलश यात्रा से जुड़ी मान्यता: स्थानीय निवासी राकेश रावत ने बताया कि कलश यात्रा के दौरान महिलाएं अपने सिर पर रखे कलश को हटाती नहीं हैं. अगर कलश हट जाये तो यात्रा पूरी नहीं मानी जाती. गांव के बुजुर्गों का मानना है कि यह मंदिर 500 साल पुराना है.
पढ़ें- चंपावत: बनबसा में शारदा तट पर हरिद्वार की तर्ज पर भव्य आरती का आयोजन

यह कहानी भी प्रचलित: कहा जाता है कि वर्षों पहले गाय चरकर शाम के समय अपने गौशाला में पहुंचती थी तो उसके थनों में दूध नहीं पाया जाता था. क्योंकि वह अपना दूध पत्थर पर छोड़ कर आ जाती थी. जिसे नाग देवता पी जाते थे. गाय के मालिक ने चुपके से गाय को पत्थर पर दूध छोड़ते देखा और देखा कि उस दूध को एक नाग पी रहे थे. तभी से इस स्थान पर नाग मंदिर की स्थापना की गई. जिसके बाद क्यार कुली भट्टा गांव के लोग नागदेवता को कुलदेवता मानने लगे. वहीं, यह दिन नागपंचमी के एक सप्ताह पूर्व ढोल नगाड़ों के साथ पारंपरिक वेशभूषा में त्यौहार के रूप में मनाया जाता है.

मसूरी: नाग देवता मंदिर समिति ने हाथी पांव रोड स्थित नाग मंदिर परिसर में 13वां महारुद्र यज्ञ एवं शिव महापुराण कथा का शुभारंभ किया. इससे पहले मसूरी के क्यार कुली भट्टा गांव से कलश यात्रा निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया. महिलाओं ने सर पर कलश रखकर नंगे पैर करीब 10 किलोमीटर का पैदल सफर तय किया.

भक्त पारंपरिक वाद्य यंत्रों की घुन पर झूमते हुए नजर आए. यात्रा के पड़ावों पर पर्यटकों व राहगीरों ने भी भगवान नाग देवता की डोली के दर्शन किए. कलश यात्रा के नाग मंदिर पहुंचने पर महिलाओं ने कलश को श्रीमद भागवत कथा मंडप में स्थापित किए. श्रद्धालुओं ने नाग देवता के दर्शन किए और शिवलिंग पर जलाभिषेक किया. नाग देवता की प्रतिमा पर दुग्धाभिषेक कर परिवार की खुशहाली की कामना की.

नाग देवता की कलश यात्रा

कलश यात्रा से जुड़ी मान्यता: स्थानीय निवासी राकेश रावत ने बताया कि कलश यात्रा के दौरान महिलाएं अपने सिर पर रखे कलश को हटाती नहीं हैं. अगर कलश हट जाये तो यात्रा पूरी नहीं मानी जाती. गांव के बुजुर्गों का मानना है कि यह मंदिर 500 साल पुराना है.
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यह कहानी भी प्रचलित: कहा जाता है कि वर्षों पहले गाय चरकर शाम के समय अपने गौशाला में पहुंचती थी तो उसके थनों में दूध नहीं पाया जाता था. क्योंकि वह अपना दूध पत्थर पर छोड़ कर आ जाती थी. जिसे नाग देवता पी जाते थे. गाय के मालिक ने चुपके से गाय को पत्थर पर दूध छोड़ते देखा और देखा कि उस दूध को एक नाग पी रहे थे. तभी से इस स्थान पर नाग मंदिर की स्थापना की गई. जिसके बाद क्यार कुली भट्टा गांव के लोग नागदेवता को कुलदेवता मानने लगे. वहीं, यह दिन नागपंचमी के एक सप्ताह पूर्व ढोल नगाड़ों के साथ पारंपरिक वेशभूषा में त्यौहार के रूप में मनाया जाता है.

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