देहरादून: आज महाशिवरात्रि है. फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है. भगवान शिव की उपासना के लिए इसे सबसे उत्तम दिन माना गया है. देहरादून के टपकेश्वर महादेव मंदिर में एक मार्च यानी आज से एक सप्ताह तक चलने वाले शिवरात्रि पावन उत्सव का आगाज हो गया है. रात 12.30 बजे टपकेश्वर महादेव शिवलिंग के कपाट खोल दिए गए हैं.
देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शिवरात्रि पर निर्जला व्रत रख जलाभिषेक के लिए टपकेश्वर महादेव मंदिर पहुंचने शुरू हो गए हैं. पिछले दो साल से कोरोना महामारी के चलते महाशिवरात्रि पर्व का आगाज नहीं हो सका था, लेकिन इस बार उत्तराखंड शासन के आदेश पर महाशिवरात्रि धार्मिक मेले का आयोजन किया जा रहा है.
टपकेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता: टपकेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी दिगंबर भरत गिरि महाराज ने ईटीवी भारत को बताया कि यहां की धार्मिक मान्यता यह है कि तमसा नदी के किनारे देवी-देवता भगवान शंकर की आराधना करते थे. द्वापर कालखंड में द्रोणाचार्य भी इस स्थान पर अपनी पत्नी के साथ भगवान शिव की आराधना करने आए थे. बताया जाता है कि भगवान शिव ने प्रसन्न होकर द्रोणाचार्य को शस्त्र अस्त्र का अद्भुत ज्ञान भी दिया था. यही कारण रहा कि द्रोणाचार्य ने महाभारत काल में कौरव और पांडवों को शस्त्र-अस्त्र विद्या का ऐसा ज्ञान दिया जो हमेशा का इतिहास बन गया.
महेंद्र गिरि के मुताबिक अनादि काल में ही देहरादून का नाम द्रोणाचार्य के नाम से द्रोणनगरी पड़ा था. यही कारण है कि द्रोणाचार्य की याद के अनुसार परंपरा को आगे बढ़ाते हुए देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) में सेना के ऑफसरों को अस्त्र-शस्त्र विद्या देकर देश सेवा के लिए तैयार किया जाता है.
भरत गिरि के अनुसार टपकेश्वर महादेव जिसका पूर्व में नाम दूधेश्वर था, उसे द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है. ऐसा बताया जाता है कि द्वापर काल में इस स्थान पर द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी रहा करते थे. भगवान शिव की आराधना के करते-करते उनके पुत्र अश्वत्थामा का यहां जन्म हुआ. अश्वत्थामा को अपनी मां का दूध नहीं मिल सका, जिसके चलते उन्होंने बाल्यकाल में ही भगवान शिव की घोर तपस्या की.
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शात्रों के अनुसार लंबी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पृथ्वी पर अजर-अमर रहने के साथ ही इच्छा अनुसार वरदान देते हुए पहाड़ी की गुफा के एक कोने से दूध की धारा प्रवाहित की, ताकि उनकी दूध पीने की इच्छा पूरी हो सके. ऐसी मान्यता है कि द्वापर काल के बाद कलियुग के समय आते ही जिस गुफा की धारा से दूध का प्रवाह होता था. वह जल के रूप में परिवर्तित हो गई. तभी से इस तपस्थली का नाम दूधेश्वर की जगह टपकेश्वर महादेव का मंदिर हो गया. यही वजह है कि आज जहां शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है. वहां गुफा की ऊपरी सतह से जल की धारा टपकती है. इसी कारण है इसे अब टपकेश्वर महादेव मंदिर नाम से जाना जाता है.
महाशिवरात्रि के मौके पर लाखों श्रद्धालु देश विदेश से टपकेश्वर महादेव के मंदिर पर जलाभिषेक करने के साथ ही निर्जल व्रत रखकर पूजा अर्चना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती के विवाह के दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. टपकेश्वर महादेव मंदिर पहुंचे श्रद्धालुओं की मानें तो भगवान शिव को जलाभिषेक करने और उनकी आराधना करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है.
मंदिर में पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था: टपकेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 200 से अधिक पुलिस जवानों की तैनाती की गई है. इसके साथ ही एक अस्थाई पुलिस चौकी भी स्थापित की गई है. फायर सर्विस, बम स्क्वाड टीम, क्विक रिस्पांस टीम, पीएससी की कंपनियां और स्थानीय पुलिस जैसे सुरक्षा दल महाशिवरात्रि आयोजन को शांतिपूर्वक संपन्न कराने के लिए तैनात किए गए हैं.