देहरादून: उत्तराखंड में कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक एक तरफ तो बारिश ने लोगों का जीना दुश्वार किया हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ जंगलों से निकल रहे जंगली जानवर इंसानों को अपना निवाला बना रहे हैं. मानसून सीजन में इंसानों पर दोहरी मार पड़ रही है. सबसे अधिक मामले पौड़ी गढ़वाल और नैनीताल जिले में सामने आ रहे हैं. वहीं रिहायशी इलाकों में गुलदारों के घुसने की घटना हरिद्वार जैसे तराई इलाके में बेहद बढ़ गई है.
उत्तराखंड में मानसून की दस्तक के साथ ही गुलदारों और बाघों के हमले भी एकाएक बढ़ गए. पौड़ी जिले में गुलदार का सबसे ज्यादा आतंक देखने को मिल रहा है. पौड़ी जिले की सतलोड़ी गांव में गुलदार ने 15 मई को घर में काम कर रही 45 साल की एक महिला को अपना निवाला बनाया था. इस घटना का एक हफ्ता भी बीता था कि उसी गुलदार ने 23 मई को मोरी गांव में एक महिला पर हमला किया था, लेकिन वो बाल-बाल बच गई थी. इस घटना के कुछ दिनों बाद ही फिर से गुलदार ने 75 साल की बुजुर्ग महिला का शिकार किया. मई के महीने में एक बाद एक हुई इन घटनाओं से लोग काफी डर गए थे.
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जून में जैसे ही बारिश ने रफ्तार पकड़ी तो गुलदार भी रिहायशी इलाकों के आसपास पहले से ज्यादा दिखाई देने लगा. जुलाई में ही गुलदार ने आंगन में खेल रहे एक बच्चे को अपना निवाला बनाया था. मासूम तीन बहनों का इकलौता भाई था. 6 जुलाई को श्रीनगर के एक रिहायशी इलाके में भी लोग उस समय डर गए थे, जब बारिश के बीच गुलदार के गुर्राने की आवाज सुनाई दी. लोगों ने इधर-उधर नजर दौड़ाई तो गुलदार घर के कमरे फंसा हुआ था, जिसे वन विभाग की टीम ने रेस्क्यू किया.
गुलदार को रेस्क्यू किए हुए 15 दिन भी नहीं हुए थे कि उसी इलाके में गुलदार एक बार फिर आ धमका. 26 जुलाई को श्रीनगर में हाईवे पर स्थित एक होटल में गुलदार घुस गया था और पालतू कुत्ते का शिकार किया. ये पूरी घटना वहां लगे एक सीसीटीवी कैमरे में भी कैद हो गई थी. इससे पहले भी श्रीनगर के होटल के बाथरूम में भी गुलदार के घुसने की घटनाएं सामने आई है.
कुमाऊं में भी गुलदार के आतंक से परेशान लोग: ऐसा नहीं है कि गढ़वाल के सिर्फ पौड़ी और हरिद्वार जिले में ही गुलदार का आतंक देखने को मिल रहा है. कुमाऊं के उधमसिंह नगर और नैनीताल जिले में भी गुलदार के आतंक से लोग परेशान है. 27 जुलाई को ही खटीमा के रिहायशी इलाके में बाघिन को अपने बच्चों के साथ सड़क पार करते हुए देखा गया था.
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ऐसे ही तस्वीर हरिद्वार की बिल्केश्वर कॉलोनी से भी सामने आई थी, जब गुलदार ने आवारा कुत्तों को अपना शिकार बनाया था. इसके अलावा नैनीताल जिले के रामनगर में भी गुलदार ने बीते दिनों बाइक पर पीछे बैठे युवक को खींच लिया था. युवक का शव एक हफ्ते बाद मिला था. इसके बाद जुलाई के आखिर में गुलदार ने घास काटने गई महिला को निवाला बनाने की कोशिश की थी, लेकिन किसी तरह महिला की जान बच गई थी.
रामनगर में बीते दो महीनों में बाघ ने 2 लोगों का शिकार किया और दो लोगों को जख्मी किया. अल्मोड़ा जिले में भी गुलदार ने बीते दो महीनों के अंदर जहां एक व्यक्ति को घायल किया तो वहीं चंपावत में दो लोगों को घायल किया. पिथौरागढ़ में भी दो व्यक्तियों पर गुलदार ने हमला किया है. इसके साथ ही दो से तीन घटनाएं कोटद्वार वन प्रभाग क्षेत्र में भी दर्ज की गई है.
चौकाने वाले है आंकड़े: एक आंकड़े पर नजर डालें तो 1 जनवरी 2022 से 31 जुलाई 2022 तक बीते 7 महीनों में उत्तराखंड में 93 बार गुलदार ने हमला किया है, जिसमें 29 लोगों की मौत हुई है. वहीं 64 लोग घायल हुए हैं. गुलदार के हमले में जो 29 लोग मारे गए है, उनमें सबसे अधिक पौड़ी गढ़वाल और रामनगर क्षेत्र के हैं.
जीवन जीने की शैली को बदलना होगा: उत्तराखंड में मानसून सीजन में ही गुलदार इन आक्रमण क्यों हो रहा है, जब इस बारे में मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक समीर सिन्हा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि मानसून के वक्त इस तरह के हमले बढ़ रहे हैं, लेकिन इस बात को लेकर हम लगातार लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं.
दरअसल, होता यह है कि बारिशों के दिनों में उत्तराखंड में जंगली घास अधिक बढ़ जाते हैं. उससे होता यह है कि गुलदार और जंगली जानवरों को छुपने की जगह आसानी से मिल जाती है और यही कारण है कि लोगों को यह जानवर घास या दूसरे पेड़ों के पीछे देख नहीं पाते और अचानक से यह हमलावर हो जाते हैं. लिहाजा वन विभाग अपने कर्मचारियों को लगातार यह ट्रेनिंग दे रहा है कि वह कैसे उत्तराखंड में रहने वाले लोगों को इस बात के लिए तैयार करें.
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समीर सिन्हा कहते हैं कि उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है, जिसमें हमें जानवरों के साथ कैसे जिया जाए और कैसे अपने को सुरक्षित रखा जाए. ऐसे जीने के तरीकों को अपनाना होगा. बहुत सारी जगहों पर हालात बदल रहे हैं, लेकिन जानवर अपने घर अपने जंगल को बखूबी जानता है और जब तक उसको किसी से खतरा ना लगे, तब तक वह हमला नहीं करता.
उत्तराखंड के लोगों के लिए उदाहरण बन सकते है वन गुर्जर: ऐसे में सबसे बड़ा उदाहरण आपके सामने उत्तराखंड के जंगलों में रह रहे वन गुर्जर हैं. समीर सिन्हा बताते हैं कि अगर आप इन आंकड़ों को देखेंगे कि गुलदार ने कहां-कहां पर कितने लोगों पर हमला किया है, कितने भागों ने कहां पर कितने लोगों को मारा है, तो आप पाएंगे कि इनमें सबसे कम अगर संख्या है तो वो उन वन गुर्जरों की है, जो जंगलों में सालों साल से रह रहे हैं.
दरअसल जंगलों में रहने वाले गुर्जर अपनी दिनचर्या और अपने जीवन को जंगल के हिसाब से डाल चुके हैं और यही कारण है कि वो खतरे को पहले भांप जाते हैं. ऐसे ही जीवन जीने की कला उत्तराखंड के लोगों को भी सीखनी पड़ेगी. पहाड़ों में रह रहे लोगों को अपने आसपास ऐसी किसी भी घास को बढ़ने नहीं देना चाहिए, जहां पर कोई भी जंगली जानवर आकर आसानी से छुप सके. उनका कहना है कि वन विभाग इस पर लगातार काम कर रहा है और लोगों को इस बारे में जागरूक भी कर रहा है. मॉनसून से पहले इस तरह की ड्राइव हमारी तरफ से लगातार चलाई जाती हैं.
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डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के सलाहकार वीएस तोमर का अनुभव: वीएस तोमर उत्तराखंड वन विभाग से वॉर्डन पद से रिटायर हुए हैं. वह बताते हैं कि गुलदार और बाघ बहुत ही शर्मीले जानवर हैं. कई लोगों को यह लगता है कि वे अचानक से खूंखार हो जाते हैं, जबकि ऐसा नहीं है. वीएस तोमर के मुताबिक जब ये जानवर 100 बार हमला करते है, तब उन्होंने 10 बार अपना शिकार मिलता है. वरना हर बार इनको मायूसी ही हाथ लगती है.
उत्तराखंड में बढ़े रहे वन्यजीव और मानव संघर्ष के मामलों पर वीएस तोमर का कहना है कि उत्तराखंड का पूरा क्षेत्र जंगली था, अब उनको यहां से निकाला नहीं जा सकता. उनसे ही उत्तराखंड की पहचान है. बशर्ते हमें अपने आस-पास के गांव में लाइट की अच्छी व्यवस्था करनी होगी. जंगली जानवर अंधेरे में ही छिपकर अधिकतर बैठता है.
मानसून सीजन में जानवर रिहायशी इलाकों में इसलिए आ जाते हैं, क्योंकि ऊपरी क्षेत्रों में नदी नाले उफान पर रहते हैं और शिकार ऐसे में इन्हें मिलता नहीं. लिहाजा उस वक्त के नीचे की तरफ उतरते हैं. वह घटना बताते हुए कहते हैं कि इस वक्त वह उत्तर प्रदेश के शामली जिले में वन विभाग की टीम के साथ काम कर रहे हैं. बीते दो दिनों से उत्तराखंड का एक गुलदार यहां के खेतों में दिखाई दे रहा है. हालांकि उसने अब तक किसी को परेशान नहीं किया है, लेकिन आसपास के गांव के लोगों का कहना है कि वह बार-बार इस क्षेत्र में देखा जा रहा है. लिहाजा अब टीम यहां पर आकर उसको यहां से हटाना चाहती है. ताकि किसी तरह की कोई घटना क्षेत्र में ना कर सके.
तोमर इस घटना को बताते हुए कहते हैं कि आप इससे ही अंदाजा लगा सकते हैं गुलदार उत्तराखंड के जंगलों से निकलकर के शामली पहुंचा है या फिर हस्तिनापुर से शामली आया है, हस्तिनापुर से शामली तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन जानवर के लिए नहीं. लेकिन मौजूदा समय में हालात देखकर यही लगता है कि यह गुलदार भी उत्तराखंड के जंगलों से निकलकर ही यहां पहुंचा है.