देहरादून: उत्तराखंड में चुनाव नजदीक आते-आते अब दो निर्दलीय विधायकों की विधायकी खतरे में दिखाई देने लगी है. ये मामला दल बदल कानून का उल्लंघन करने से जुड़ा हुआ है, जिसको लेकर विधानसभा में याचिका देने के बाद विधानसभा भी इन विधायकों को औपचारिकता पूर्ण करने के बाद जल्द नोटिस दे सकती है. इसमें भीमताल से निर्दलीय विधायक राम सिंह कैड़ा और धनोल्टी से विधायक प्रीतम सिंह पंवार का नाम शामिल है.
यह तो सभी जानते हैं कि दल बदल कानून के तहत जब कोई विधायक किसी पार्टी के चिन्ह पर चुनाव लड़कर जीतता है और उसके बाद उसे छोड़कर दूसरी पार्टी का दामन थाम लेता है, तो उसकी विधायकी भी खतरे में पड़ जाती है लेकिन हम बात कर रहे हैं निर्दलीय विधायकों की. ऐसे में निर्दलीय विधायकों को लेकर दल बदल कानून क्या है? यह जानना भी जरूरी है.
क्या है दल बदल कानून: अगर कोई निर्दलीय विधायक भी किसी दल में शामिल होता है तो भी इसे दल बदल कानून में ही माना जाएगा. ऐसी स्थिति में विधानसभा में इसकी शिकायत होने पर उक्त विधायक के खिलाफ भी दल बदल कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है.
यह नियम यूं तो सभी जानते हैं, खास तौर पर राजनीतिक दल के लोग तो जानते ही होंगे. कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तो उत्तराखंड में अपनी सरकार बचाने के लिए संवैधानिक लड़ाई भी लड़ चुके हैं. लिहाजा उन्हें और उनकी पार्टी को तो इसका अच्छी तरह से ज्ञान होगा ही. इसके बावजूद निर्दलीय विधायक राम सिंह कैड़ा और प्रीतम सिंह पंवार के बीजेपी में शामिल होने के बावजूद इस मामले पर हरीश रावत और उनके नेताओं की चुप्पी सवाल खड़े करती है.
धनौल्टी विधानसभा से निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पंवार ने जनता की भावनाओं से हटकर 8 सितंबर, 2021 को दिल्ली में बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री स्मृति ईरानी की मौजूदगी में भाजपा का दामन थामा था. उधर, भीमताल से निर्दलीय विधायक राम सिंह खेड़ा ने भी 8 अक्टूबर, 2021 को केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की मौजूदगी में दिल्ली में बीजेपी ज्वाइन की ली. जाहिर है कि इस जॉइनिंग के बाद से ही इन विधायकों ने अपनी विधायकी के जाने का विचार कर लिया होगा, लेकिन हैरानी इस बात की है कि कांग्रेस ने चुप्पी साधे रखी और विधानसभा में इसके खिलाफ किसी ने शिकायत की ही नहीं.
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हालांकि, काफी समय बीतने के बाद आखिरकार आम आदमी पार्टी नेता अमरेन्द्र सिंह बिष्ट ने निजी तौर पर विधानसभा में इसके खिलाफ शिकायत की. इस दौरान उन्होंने भाजपा और कांग्रेस के दल बदल कानून पर संविधान का मजाक उड़ाते हुए चुप्पी साधने का आरोप भी लगाया.
पुरोला से विधायक राजकुमार ने 12 सितंबर, 2021 को कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था. दिल्ली में धर्मेंद्र प्रधान ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मौजूदगी में राजकुमार को भाजपा की सदस्यता दिलवाई. इस मामले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कुछ दिनों में ही विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर राजकुमार की शिकायत की और उसके बाद विधायक को अपने विधायकी से इस्तीफा भी देना पड़ा, लेकिन इन दो विधायकों के मामले में नियम कानून कांग्रेस क्यों भूल गई यह बड़ा सवाल है ?
उधर, सवाल यह भी है कि करीब 3 लाख से ज्यादा एक विधायक पर होने वाले खर्चे के हिसाब से अबतक विधायक पर दल बदल के बाद जितना खर्च किया गया. उसका हिसाब कैसे होगा? यदि दल बदल के बाद विधायक निधि खर्च की गई तो उसको विधानसभा कैसे देखेगी ? हालांकि, अभी इन दोनों विधायकों की विधायकी नहीं गई है. लिहाजा इन्हें उक्त सुविधाएं और काम करने का भी अधिकार है.
इस मामले पर जब ईटीवी भारत ने विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल से नियमों के बारे में पूछा तो विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि इन दोनों ही विधायकों को लेकर याचिका मिल चुकी है और अब उस पर विचार किया जा रहा है. अगर यह याचिका सही पाई जाती है तो विधायकों को नोटिस देकर उनसे जवाब लिया जाएगा. उसके बाद विधायकों की विधायकी पर फैसला लेने का पूरा अधिकार विधानसभा अध्यक्ष का होगा.