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दस्तक! जहां न स्वास्थ्य सुविधा, न संसाधन...उन सीमांत गांवों में पहुंची कोरोना की दूसरी लहर - Corona became uncontrolled in the mountainous districts of Uttarakhand

कोरोना संक्रमण पर्वतीय जिलों के दूरस्थ और सीमांत गांवों तक फैल गया है. ये ऐसे इलाके हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर हैं. यहां के लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलकर जिला मुख्यालय या बेस अस्पताल पहुंचना पड़ता है. पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ संसाधनों की भी कमी है, जिसके कारण कोरोना काल में यहां संक्रमण बेलगाम हो गया है.

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सरकार की लापरवाही से पहाड़ों पर बिगड़े हालात
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Published : May 21, 2021, 9:43 PM IST

Updated : May 22, 2021, 9:31 AM IST

देहरादून: कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर पर्वतीय क्षेत्रों पर भारी पड़ती नजर आ रही है. वर्तमान में प्रदेश के दूरस्थ गावों के साथ ही पहाड़ के लगभग सभी इलाकों में कोरोना ने दस्तक दे दी है. राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं. राज्य सरकार भी कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए पर्वतीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता संदेश देने की जरूरत महसूस कर रही है. मगर एक साल से अधिक का वक्त बीतने के बाद भी राज्य सरकार इस और कोई खास कदम नहीं बढ़ा सकी है.

सरकार की लापरवाही से पहाड़ों पर बिगड़े हालात

उत्तराखंड अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. यहां की भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना भी राज्य सरकार के लिए हमेशा ही एक बड़ी चुनौती रहा है. यही कारण है कि आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, जिसका खामियाजा इस कोरोना काल में भुगतना पड़ रहा है.

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सरकार की लापरवाही से पहाड़ों पर बिगड़े हालात

पढ़ें- 'मददगार' राघव जुयाल ने कहा- उत्तराखंड के हालात बेहद खतरनाक, सोनू सूद ने एक कॉल पर दी प्रेरणा

आज के वक्त में कोरोना संक्रमण पर्वतीय जिलों के दूरस्थ और सीमांत गांवों तक फैल गया है. ये ऐसे इलाके हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर हैं. यहां के लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलकर जिला मुख्यालय या बेस अस्पताल पहुंचना पड़ता है. पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ संसाधनों की भी कमी है, जिसके कारण कोरोनाकाल में यहां संक्रमण बेलगाम हो गया है.

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सरकार की लापरवाही से पहाड़ों पर बिगड़े हालात

एक मई के बाद पर्वतीय क्षेत्रों बढ़े संक्रमण के मामले

सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो कोरोना संक्रमण की पहले लहर के दौरान प्रदेश के मैदानी जिले कोरोना के प्रकोप से ज्यादा प्रभावित हुए थे. उस दौरान पर्वतीय क्षेत्रों पर गिने चुने मामले ही देखे गये थे. मगर कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में मैदानों के साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों पर भी हमला बोला है.

एक मई के बाद पर्वतीय क्षेत्रों पर कोरोना संक्रमण के मामलों में बढ़ोत्तरी देखी गई. टेस्टिंग और सैंपलिंग की नाकाफी संख्या भी पहाड़ों में कोरोना के प्रसार का बड़ा कारण बना. इसके अलावा जागरूकता भी इसकी अहम कड़ियों में शामिल हैं. कोरोना संक्रमण के प्रति पर्वतीय क्षेत्रों में जागरूकता की कमी होने के चलते दूरदराज के गांवों में अधिकांश लोग जांच कराने से डर रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग जो ग्रामीण क्षेत्रों में सैंपलिंग के लिए शिविर लगा रहा है वहां भी बहुत कम संख्या में लोग सैंपल देने पहुंच रहे हैं. यह स्थिति किसी एक गांव में नहीं बल्कि प्रदेश के लगभग सभी पर्वतीय जिलों की है.

चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत, उत्तरकाशी आदि जिलों से इसी तरह की सूचना मिल रही है. इसके पीछे वजह यह भी है प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की ओर से ग्रामीण इलाकों में शिविर से पहले जागरूकता कैंपेन का न चलाया जाना है.

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सरकार की लापरवाही से पहाड़ों पर बिगड़े हालात

पढ़ें- राहत: शुक्रवार को 8731 लोग हुए स्वस्थ, मिले 3626 नए संक्रमित, 70 मरीजों की मौत

स्वास्थ्य महानिदेशक तृप्ति बहुगुणा भी इस बात को मान रही हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी जागरूकता लाने की जरूरत है. इसके लिए गांव के प्रधान और उन क्षेत्रों के आशा वर्कर्स को इस बाबत निर्देश भी दिए हैं कि वह अपने अपने क्षेत्रों के लोगों को कोरोनावायरस के प्रति जागरूक करें, ताकि लोग अधिक से अधिक संख्या में सैंपल और टेस्ट कराएं.

शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों के ग्रामीण बुखार को बहुत सामान्य प्रक्रिया में ले रहे हैं. यही वजह है कि वह लोग टेस्ट नहीं करा रहे हैं. तमाम क्षेत्रों में स्वास्थ्य की टीम भेजी गई थी लेकिन ग्रामीणों ने टेस्ट के लिए सैंपल नहीं दिए. जिसके चलते स्वास्थ्य टीम वापस आ गई. ऐसे में ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए प्रधानों को कोविड-19 का अध्यक्ष बनाया गया है ताकि स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों को जागरूक किया जा सके.

कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार पहले गांव संक्रमित नहीं थे, लेकिन अब गांव पूरी तरह से संक्रमित हो गए हैं. इसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग को भी निर्देश दिए गए हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में दवाइयां पहुंचाई जाए. इस समय ग्रामीण क्षेत्रों में वायरल फीवर भी फैला है. ऐसे में लोग अपने आपको वायरस फीवर इनफेक्टेड बता रहे हैं. ऐसे में राज्य सरकार लगातार ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों से अपील कर रही है कि वह टेस्टिंग जरूर कराए.

पर्वतीय जिलो में बढ़ रहे हैं नए मामले

  1. रुद्रप्रयाग जिले में अभी तक 84,472 सैंपल्स टेस्ट किये गये हैं. जिसमें से 7,132 लोग पॉजिटिव पाये गये हैं. यानी यहां 8.44 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही यहां 62 लोगों की मौत हो चुकी है.
  2. टिहरी जिले में अभी तक 1,62,397 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 13,609 लोग पॉजिटिव मिले हैं. यानी 8.38 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 56 लोगों की मौत हो चुकी है.
  3. अल्मोड़ा जिले में अभी तक 1,34,490 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 9,564 लोग पॉजिटिव मिले हैं. यानी 7.11 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही यहां 107 लोगों की मौत हो चुकी है.
  4. चमोली जिले में अभी तक 1,38,838 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 9,771 लोग पॉजिटिव पाये गये हैं. यानी 7.03 फीसदी लोग पॉजिटिव हुए. यहां 41 लोगों की मौत हो चुकी है.
  5. पौड़ी जिले में अभी तक 2,35,736 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 15,423 लोग पॉजिटिव पाये गये हैं. यानी 6.83 फीसदी लोग पॉजिटिव हो रहे हैं. यहां 234 लोगों की मौत हो चुकी है.
  6. पिथौरागढ़ जिले में अभी तक 1,13,352 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 7,528 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 6.64 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही 97 लोगों की मौत हो चुकी है.
  7. उत्तरकाशी जिले में अभी तक 1,81,768 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 11,058 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 6.08 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 65 लोगों की मौत हो चुकी है.
  8. चंपावत जिले में अभी तक 1,34,209 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 6,675 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 4.97 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 32 लोगों की मौत हो चुकी है.
  9. बागेश्वर जिले में अभी तक 97,615 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 4,646 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 4.76 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही 43 लोगों की मौत हो चुकी है.

आंकड़ों पर गौर किया जाये तो इसमें कोई दो राय नहीं की उत्तराखंड के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्र पूरी तरह से कोरोना से संक्रमित हो गए हैं. हर दिन प्रदेश के पर्वतीय जिलों में कोरोना से कई मौतें हो रही हैं. आये दिन संक्रमण के पहाड़ों से सामने आ रहे आंकड़े डरा रहे हैं. सरकार और स्वास्थ्य विभाग भी देर से जागते हुए कोरोना संक्रमण की रफ्तार पर ब्रेक लगाने के लिए सैंपलिंग, टेस्टिंग और जागरूकता संदेश फैलाने का काम कर रहा है. आइये एक नजर डालते हैं उन चीजों पर जिनके कारण पर्वतीय और ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना का प्रसार हुआ.

शुरुआत से नहीं उठाये गये प्रभावी कदम

कोरोना की दूसरी लहर के शुरुआती दौर में ही सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने लापरवाही बरती. ये लापरवाही न केवल पहाड़ी क्षेत्रों में बरती गई बल्कि मैदानी क्षेत्रों में भी इसका असर साफ तौर पर देखा गया. शुरुआती दिनों में सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने ऐसी कोई एहतियाती तैयारी नहीं की थी जिससे कोरोना की दूसरी लहर से निपटा जा सके. पहाड़ी जिलों में न स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाया गया, न जरूरी उपकरणों के लिए तैयारी की गयी. यहीं नहीं पहाड़ों में बीमार पड़ चुके अस्पतालों के हालातों को सुधारने के लिए भी कोई काम नहीं किया गया.

प्रवासियों की निगरानी पर भी कोई खास ध्यान नहीं

कोरोना की पहली लहर से निपटने के बाद पहाड़ी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में प्रवासियों की निगरानी पर भी कोई खास ध्यान नहीं दिया गया. क्वारंटीन सेंटर, आइसोलेशन की व्यवस्था पर भी सरकार ढिलाई करती दिखी. पहली लहर में जो सख्ती सरकार ने दिखाई अगर वो जारी रहती तो हो सकता था कि पहाड़ी जिलों में कोरोना के असर को कम किया जा सकता था.

ग्राम प्रधानों को दूसरी लहर में नहीं मिली जल्दी जिम्मेदारी

कोरोना की दूसरी लहर में पहाड़ों में प्रधानों को शुरुआत से ही बैकडोर पर रखा गया. कोरोना की दूसरी लहर में ग्राम प्रधान फ्रंटफुट पर आकर काफी हद तक कोरोना संक्रमण को रोकने में मददगार साबित हो सकते थे. मगर सरकार की लेटलतीफी के कारण ये भी नहीं हुआ. ग्राम प्रधानों को हालात बिगड़ने के बाद जिम्मेदारी दी गई, जो कि सरकार की एक और बड़ी नाकामी है.

नहीं लगाये गये शिविर, जागरूकता कैंपेन

कोरोना की पहली लहर से लोगों में कोरोना की जानकारियों को लेकर कमी देखी गई. इसके बेसिक, उपाय, रहन-सहन और बचाव को लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं फैलाई गई. हां, दो गज की दूरी, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क को लेकर अखबारों, टीवी चैनलों पर विज्ञापन दिये गये, मगर पहाड़ गावों में बसता है. गांवों में अखबारों, टीवी चैनलों की सुविधाएं हैं मगर कम. ऐसे में सरकार को चाहिए था कि जागरूकता के कार्यक्रमों को प्रमुखता से गांवों में लोगों के बीच जाकर चलाया जाये. इसके लिए शिविर लगाये जायें, मगर ऐसा हुआ नहीं, जिसके कारण लोगों में जानकारी का अभाव रहा.

आंकड़ों पर गौर किया जाये तो इसमें कोई दो राय नहीं कि उत्तराखंड के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्र पूरी तरह से कोरोना से संक्रमित हो गए हैं. हर दिन प्रदेश के पर्वतीय जिलों में कोरोना से कई मौतें हो रही हैं. आये दिन संक्रमण के पहाड़ों से सामने आ रहे संक्रमण के आंकड़े डरा रहे हैं. सरकार और स्वास्थ्य विभाग भी देर से जागते हुए कोरोना संक्रमण की रफ्तार पर ब्रेक लगाने के लिए सैंपलिंग, टेस्टिंग और जागरूकता संदेश फैलाने का काम कर रहा है.

मैदानी जिलों में कोरोना के नए मामलों की स्थिति

  1. देहरादून जिले में अभी तक 8,76,291 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 1,03,615 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 11.82 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही 2,774 लोगों की मौत हो चुकी है.
  2. नैनीताल जिले में अभी तक 3,40,710 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 35,037 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 10.28 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 799 लोगों की मौत हो चुकी है.
  3. उधमसिंह नगर जिले में अभी तक 5,41,225 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 33,432 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 6.17 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही यहां 536 लोगों की मौत हो चुकी है.
  4. हरिद्वार जिले में अभी तक 13,70,398 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 47,450 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 3.38 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 638 लोगों की मौत हो चुकी है.

मैदानी और पहाड़ी दोनों ही जगह कोरोना कहर बरपा रहा है. कोरोनाकाल को एक साल से भी ज्यादा का समय होने वाला है, मगर राज्य सरकार आज तक ऐसा ठोस कदम नहीं उठा पाई है जिससे राज्य के ग्रामीण और मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को संक्रमण के बचाया जा सके. जागरूकता को लेकर भी सरकार कोई खास चिंतित नहीं दिखती है.

देहरादून: कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर पर्वतीय क्षेत्रों पर भारी पड़ती नजर आ रही है. वर्तमान में प्रदेश के दूरस्थ गावों के साथ ही पहाड़ के लगभग सभी इलाकों में कोरोना ने दस्तक दे दी है. राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं. राज्य सरकार भी कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए पर्वतीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता संदेश देने की जरूरत महसूस कर रही है. मगर एक साल से अधिक का वक्त बीतने के बाद भी राज्य सरकार इस और कोई खास कदम नहीं बढ़ा सकी है.

सरकार की लापरवाही से पहाड़ों पर बिगड़े हालात

उत्तराखंड अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. यहां की भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना भी राज्य सरकार के लिए हमेशा ही एक बड़ी चुनौती रहा है. यही कारण है कि आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, जिसका खामियाजा इस कोरोना काल में भुगतना पड़ रहा है.

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सरकार की लापरवाही से पहाड़ों पर बिगड़े हालात

पढ़ें- 'मददगार' राघव जुयाल ने कहा- उत्तराखंड के हालात बेहद खतरनाक, सोनू सूद ने एक कॉल पर दी प्रेरणा

आज के वक्त में कोरोना संक्रमण पर्वतीय जिलों के दूरस्थ और सीमांत गांवों तक फैल गया है. ये ऐसे इलाके हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर हैं. यहां के लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलकर जिला मुख्यालय या बेस अस्पताल पहुंचना पड़ता है. पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ संसाधनों की भी कमी है, जिसके कारण कोरोनाकाल में यहां संक्रमण बेलगाम हो गया है.

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सरकार की लापरवाही से पहाड़ों पर बिगड़े हालात

एक मई के बाद पर्वतीय क्षेत्रों बढ़े संक्रमण के मामले

सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो कोरोना संक्रमण की पहले लहर के दौरान प्रदेश के मैदानी जिले कोरोना के प्रकोप से ज्यादा प्रभावित हुए थे. उस दौरान पर्वतीय क्षेत्रों पर गिने चुने मामले ही देखे गये थे. मगर कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में मैदानों के साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों पर भी हमला बोला है.

एक मई के बाद पर्वतीय क्षेत्रों पर कोरोना संक्रमण के मामलों में बढ़ोत्तरी देखी गई. टेस्टिंग और सैंपलिंग की नाकाफी संख्या भी पहाड़ों में कोरोना के प्रसार का बड़ा कारण बना. इसके अलावा जागरूकता भी इसकी अहम कड़ियों में शामिल हैं. कोरोना संक्रमण के प्रति पर्वतीय क्षेत्रों में जागरूकता की कमी होने के चलते दूरदराज के गांवों में अधिकांश लोग जांच कराने से डर रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग जो ग्रामीण क्षेत्रों में सैंपलिंग के लिए शिविर लगा रहा है वहां भी बहुत कम संख्या में लोग सैंपल देने पहुंच रहे हैं. यह स्थिति किसी एक गांव में नहीं बल्कि प्रदेश के लगभग सभी पर्वतीय जिलों की है.

चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत, उत्तरकाशी आदि जिलों से इसी तरह की सूचना मिल रही है. इसके पीछे वजह यह भी है प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की ओर से ग्रामीण इलाकों में शिविर से पहले जागरूकता कैंपेन का न चलाया जाना है.

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सरकार की लापरवाही से पहाड़ों पर बिगड़े हालात

पढ़ें- राहत: शुक्रवार को 8731 लोग हुए स्वस्थ, मिले 3626 नए संक्रमित, 70 मरीजों की मौत

स्वास्थ्य महानिदेशक तृप्ति बहुगुणा भी इस बात को मान रही हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी जागरूकता लाने की जरूरत है. इसके लिए गांव के प्रधान और उन क्षेत्रों के आशा वर्कर्स को इस बाबत निर्देश भी दिए हैं कि वह अपने अपने क्षेत्रों के लोगों को कोरोनावायरस के प्रति जागरूक करें, ताकि लोग अधिक से अधिक संख्या में सैंपल और टेस्ट कराएं.

शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों के ग्रामीण बुखार को बहुत सामान्य प्रक्रिया में ले रहे हैं. यही वजह है कि वह लोग टेस्ट नहीं करा रहे हैं. तमाम क्षेत्रों में स्वास्थ्य की टीम भेजी गई थी लेकिन ग्रामीणों ने टेस्ट के लिए सैंपल नहीं दिए. जिसके चलते स्वास्थ्य टीम वापस आ गई. ऐसे में ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए प्रधानों को कोविड-19 का अध्यक्ष बनाया गया है ताकि स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों को जागरूक किया जा सके.

कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार पहले गांव संक्रमित नहीं थे, लेकिन अब गांव पूरी तरह से संक्रमित हो गए हैं. इसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग को भी निर्देश दिए गए हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में दवाइयां पहुंचाई जाए. इस समय ग्रामीण क्षेत्रों में वायरल फीवर भी फैला है. ऐसे में लोग अपने आपको वायरस फीवर इनफेक्टेड बता रहे हैं. ऐसे में राज्य सरकार लगातार ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों से अपील कर रही है कि वह टेस्टिंग जरूर कराए.

पर्वतीय जिलो में बढ़ रहे हैं नए मामले

  1. रुद्रप्रयाग जिले में अभी तक 84,472 सैंपल्स टेस्ट किये गये हैं. जिसमें से 7,132 लोग पॉजिटिव पाये गये हैं. यानी यहां 8.44 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही यहां 62 लोगों की मौत हो चुकी है.
  2. टिहरी जिले में अभी तक 1,62,397 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 13,609 लोग पॉजिटिव मिले हैं. यानी 8.38 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 56 लोगों की मौत हो चुकी है.
  3. अल्मोड़ा जिले में अभी तक 1,34,490 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 9,564 लोग पॉजिटिव मिले हैं. यानी 7.11 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही यहां 107 लोगों की मौत हो चुकी है.
  4. चमोली जिले में अभी तक 1,38,838 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 9,771 लोग पॉजिटिव पाये गये हैं. यानी 7.03 फीसदी लोग पॉजिटिव हुए. यहां 41 लोगों की मौत हो चुकी है.
  5. पौड़ी जिले में अभी तक 2,35,736 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 15,423 लोग पॉजिटिव पाये गये हैं. यानी 6.83 फीसदी लोग पॉजिटिव हो रहे हैं. यहां 234 लोगों की मौत हो चुकी है.
  6. पिथौरागढ़ जिले में अभी तक 1,13,352 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 7,528 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 6.64 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही 97 लोगों की मौत हो चुकी है.
  7. उत्तरकाशी जिले में अभी तक 1,81,768 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 11,058 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 6.08 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 65 लोगों की मौत हो चुकी है.
  8. चंपावत जिले में अभी तक 1,34,209 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 6,675 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 4.97 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 32 लोगों की मौत हो चुकी है.
  9. बागेश्वर जिले में अभी तक 97,615 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 4,646 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 4.76 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही 43 लोगों की मौत हो चुकी है.

आंकड़ों पर गौर किया जाये तो इसमें कोई दो राय नहीं की उत्तराखंड के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्र पूरी तरह से कोरोना से संक्रमित हो गए हैं. हर दिन प्रदेश के पर्वतीय जिलों में कोरोना से कई मौतें हो रही हैं. आये दिन संक्रमण के पहाड़ों से सामने आ रहे आंकड़े डरा रहे हैं. सरकार और स्वास्थ्य विभाग भी देर से जागते हुए कोरोना संक्रमण की रफ्तार पर ब्रेक लगाने के लिए सैंपलिंग, टेस्टिंग और जागरूकता संदेश फैलाने का काम कर रहा है. आइये एक नजर डालते हैं उन चीजों पर जिनके कारण पर्वतीय और ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना का प्रसार हुआ.

शुरुआत से नहीं उठाये गये प्रभावी कदम

कोरोना की दूसरी लहर के शुरुआती दौर में ही सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने लापरवाही बरती. ये लापरवाही न केवल पहाड़ी क्षेत्रों में बरती गई बल्कि मैदानी क्षेत्रों में भी इसका असर साफ तौर पर देखा गया. शुरुआती दिनों में सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने ऐसी कोई एहतियाती तैयारी नहीं की थी जिससे कोरोना की दूसरी लहर से निपटा जा सके. पहाड़ी जिलों में न स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाया गया, न जरूरी उपकरणों के लिए तैयारी की गयी. यहीं नहीं पहाड़ों में बीमार पड़ चुके अस्पतालों के हालातों को सुधारने के लिए भी कोई काम नहीं किया गया.

प्रवासियों की निगरानी पर भी कोई खास ध्यान नहीं

कोरोना की पहली लहर से निपटने के बाद पहाड़ी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में प्रवासियों की निगरानी पर भी कोई खास ध्यान नहीं दिया गया. क्वारंटीन सेंटर, आइसोलेशन की व्यवस्था पर भी सरकार ढिलाई करती दिखी. पहली लहर में जो सख्ती सरकार ने दिखाई अगर वो जारी रहती तो हो सकता था कि पहाड़ी जिलों में कोरोना के असर को कम किया जा सकता था.

ग्राम प्रधानों को दूसरी लहर में नहीं मिली जल्दी जिम्मेदारी

कोरोना की दूसरी लहर में पहाड़ों में प्रधानों को शुरुआत से ही बैकडोर पर रखा गया. कोरोना की दूसरी लहर में ग्राम प्रधान फ्रंटफुट पर आकर काफी हद तक कोरोना संक्रमण को रोकने में मददगार साबित हो सकते थे. मगर सरकार की लेटलतीफी के कारण ये भी नहीं हुआ. ग्राम प्रधानों को हालात बिगड़ने के बाद जिम्मेदारी दी गई, जो कि सरकार की एक और बड़ी नाकामी है.

नहीं लगाये गये शिविर, जागरूकता कैंपेन

कोरोना की पहली लहर से लोगों में कोरोना की जानकारियों को लेकर कमी देखी गई. इसके बेसिक, उपाय, रहन-सहन और बचाव को लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं फैलाई गई. हां, दो गज की दूरी, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क को लेकर अखबारों, टीवी चैनलों पर विज्ञापन दिये गये, मगर पहाड़ गावों में बसता है. गांवों में अखबारों, टीवी चैनलों की सुविधाएं हैं मगर कम. ऐसे में सरकार को चाहिए था कि जागरूकता के कार्यक्रमों को प्रमुखता से गांवों में लोगों के बीच जाकर चलाया जाये. इसके लिए शिविर लगाये जायें, मगर ऐसा हुआ नहीं, जिसके कारण लोगों में जानकारी का अभाव रहा.

आंकड़ों पर गौर किया जाये तो इसमें कोई दो राय नहीं कि उत्तराखंड के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्र पूरी तरह से कोरोना से संक्रमित हो गए हैं. हर दिन प्रदेश के पर्वतीय जिलों में कोरोना से कई मौतें हो रही हैं. आये दिन संक्रमण के पहाड़ों से सामने आ रहे संक्रमण के आंकड़े डरा रहे हैं. सरकार और स्वास्थ्य विभाग भी देर से जागते हुए कोरोना संक्रमण की रफ्तार पर ब्रेक लगाने के लिए सैंपलिंग, टेस्टिंग और जागरूकता संदेश फैलाने का काम कर रहा है.

मैदानी जिलों में कोरोना के नए मामलों की स्थिति

  1. देहरादून जिले में अभी तक 8,76,291 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 1,03,615 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 11.82 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही 2,774 लोगों की मौत हो चुकी है.
  2. नैनीताल जिले में अभी तक 3,40,710 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 35,037 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 10.28 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 799 लोगों की मौत हो चुकी है.
  3. उधमसिंह नगर जिले में अभी तक 5,41,225 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 33,432 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 6.17 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके साथ ही यहां 536 लोगों की मौत हो चुकी है.
  4. हरिद्वार जिले में अभी तक 13,70,398 सैंपल्स लिये गये हैं. जिसमें से 47,450 लोग पॉजिटिव मिले हैं, यानी 3.38 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. यहां 638 लोगों की मौत हो चुकी है.

मैदानी और पहाड़ी दोनों ही जगह कोरोना कहर बरपा रहा है. कोरोनाकाल को एक साल से भी ज्यादा का समय होने वाला है, मगर राज्य सरकार आज तक ऐसा ठोस कदम नहीं उठा पाई है जिससे राज्य के ग्रामीण और मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को संक्रमण के बचाया जा सके. जागरूकता को लेकर भी सरकार कोई खास चिंतित नहीं दिखती है.

Last Updated : May 22, 2021, 9:31 AM IST
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