देहरादून: विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले धामी सरकार ने देवस्थानम बोर्ड पर रोल बैक कर लिया है. तीर्थ पुरोहितों के जबरदस्त विरोध के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Chief Minister Pushkar Singh Dhami) ने देवस्थानम बोर्ड भंग (Devasthanam Board dissolved) करने का ऐलान कर दिया है. आइए जानते हैं कि आखिर ये पूरा विवाद क्या रहा और आखिर क्यों सरकारी हस्तक्षेप से पुरोहित समाज इतना व्यथित हुआ कि उन्हें आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरना पड़ा.
2019 में हुआ था बोर्ड का गठन: उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के अन्य 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया. बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे थे. बावजूद इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तीर्थ पुरोहितों के विरोध को दरकिनार करते हुए चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लागू किया.
सरकार का पक्ष: उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है जिसकी मुख्य वजह ये है कि उत्तराखंड के कण-कण में भगवान वास करते हैं. यही नहीं, उत्तराखंड में चारधाम भी मौजूद हैं, जिसमें बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम शामिल हैं. इन धामों में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. ऐसे में धामों की व्यवस्थाओं को व्यवस्थित करने के लिए साल 1939 में बदरी-केदार मंदिर समिति के लिए अधिनियम लाया गया था, ताकि बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की व्यवस्थाओं को व्यवस्थित रखने के साथ ही आने वाले यात्रियों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें. लेकिन साल 2020 में उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के अस्तित्व में आने के बाद ही करीब 80 साल पुराना बीकेटीसी निरस्त हो गया.
1939 का बीकेटीसी अधिनियम: संयुक्त उत्तर प्रदेश में साल 1939 में बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अधिनियम (Badrinath-Kedarnath Temple Committee Act) लाया गया था. इसके तहत गठित बदरी-केदार मंदिर समिति (बीकेटीसी) तब से बदरीनाथ और केदारनाथ की व्यवस्थाएं देखती आ रही थी. इनमें बदरीनाथ से जुड़े 29 और केदारनाथ से जुड़े 14 मंदिर भी शामिल थे. इस तरह कुल 45 मंदिरों का जिम्मा बीकेटीसी के पास था.
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साल 1939 से साल 2020 बदरी-केदार मंदिर समिति का अधिनियम चल रहा था, लेकिन यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के लिए कोई अधिनियम नहीं था. इस वजह से यमुनोत्री और गंगोत्री धाम की यात्रा के संचालन के लिए अलग से व्यवस्था करनी पड़ती थी. लेकिन उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड प्रभावी होने के बाद से ही चारों धाम समेत 51 मंदिर एक बोर्ड के अधीन आ गए और 80 साल से चली रही बदरी-केदार मंदिर समिति की परम्परा समाप्त हो गयी.
क्यों शुरू हुई बोर्ड बनाने की कवायद: बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की अपनी एक अलग ही मान्यता है, यही वजह है कि हर साल इन दोनों धामों में ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. यह दोनों ही धाम पर्वतीय क्षेत्रों में मौजूद हैं, जहां सुख सुविधाएं विकसित करना पहाड़ जैसी चुनौती है. क्योंकि पहले से ही बदरी और केदार धाम के लिए मौजूद बीकेटीसी के माध्यम से तमाम व्यवस्थाएं मुकम्मल नहीं हो पा रही थीं, इसके अतिरिक्त गंगोत्री धाम के लिए अलग गंगोत्री मंदिर समिति और यमुनोत्री धाम के लिए अलग यमुनोत्री मंदिर समिति कार्य कर रही थीं.
इन सभी चीजों को देखते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने साल 2019 में यह निर्णय लिया कि वैष्णो देवी में मौजूद श्राइन बोर्ड की तर्ज पर उत्तराखंड राज्य में भी एक बोर्ड का गठन किया जाए, जिसके अधीन सभी मुख्य मंदिरों को शामिल किया जाएगा.
क्यों पड़ी बोर्ड की जरूरत: बदरी-केदार हो या गंगोत्री-यमुनोत्री, ये मंदिर प्राइवेट नहीं हैं. यह लोगों ने बनवाए हैं. यहां बेशुमार पैसे के अलावा चांदी-सोना भी चढ़ता है. लेकिन उस पैसे का कोई हिसाब नहीं होता. यही सब पहले वैष्णो देवी मंदिर में भी होता था लेकिन जब उसे श्राइन बोर्ड बना दिया गया तो सब बदल गया. अब वहां मंदिर के पैसे से ही स्कूल चल रहे हैं, अस्पताल चल रहे हैं. धर्मशालाएं बनाई गई हैं और यूनिवर्सिटी भी बना दी है. उत्तराखंड सरकार भी अपनी यही मंशा बता रही है.
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बोर्ड गठन को लेकर कब-कब क्या हुआ: साल 2017 में बीजेपी सत्ता में आई. इसके बाद वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी बोर्ड की तर्ज पर यहां भी चारधाम के लिए बोर्ड बनाने की कसरत हुई. चारधाम समेत प्रदेश के 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर साल 2019 में प्रस्ताव तैयार किया गया था. 27 नवंबर 2019 को सचिवालय में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में जम्मू-कश्मीर में बने श्राइन एक्ट की तर्ज पर उत्तराखंड चारधाम बोर्ड विधेयक-2019 को मंजूरी दी गयी.
इस विधेयक को 5 दिसंबर 2019 में हुए सत्र के दौरान सदन के भीतर पारित कर दिया गया. इसके बाद 14 जनवरी 2020 को देवस्थानम विधेयक राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद एक्ट के रूप में प्रभावी हो गया. 24 फरवरी 2020 को चारधाम देवस्थानम बोर्ड का सीईओ नियुक्त किया गया था. बोर्ड के सीईओ पद पर मंडलायुक्त रविनाथ रमन को जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है.
इस बोर्ड से 80 साल पुराना अधिनियम हुआ निष्क्रिय: 23 फरवरी को देवस्थानम बोर्ड के गठन का नोटिफिकेशन जारी होते ही बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति का अस्तित्व स्वतः समाप्त हो गया. क्योंकि, उत्तराखंड चारधाम यात्रा में साल 2020 तक संचालित परंपरा करीब 80 साल पुरानी थी.
बोर्ड में कौन होगा शामिल: बोर्ड के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे. संस्कृति मामलों के मंत्री बोर्ड के उपाध्यक्ष रहेंगे जबकि मुख्य सचिव, सचिव पर्यटन, सचिव वित्त व संस्कृति विभाग भारत सरकार के संयुक्त सचिव स्तर तक के अधिकारी पदेन सदस्य होंगे. इसके अलावा टिहरी रियासत के राजपरिवार के एक सदस्य, हिंदू धर्म का अनुसरण करने वाले तीन सांसद, हिंदू धर्म का अनुसरण करने वाले छह विधायक, राज्य सरकार द्वारा चार दानदाता, हिंदू धर्म के धार्मिक मामलों का अनुभव रखने वाले व्यक्ति, पुजारियों, वंशानुगत पुजारियों के तीन प्रतिनिधि इसमें शामिल होंगे.
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क्या था सरकार का मकसद: राज्य सरकार का कहना है कि चारधाम देवस्थानम अधिनियम गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ और उनके आसपास के मंदिरों की व्यवस्था में सुधार के लिए है, जिसका मकसद यह है कि यहां आने वाले यात्रियों का ठीक से स्वागत हो और उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल सकें. इसके साथ ही बोर्ड भविष्य की जरूरतों को भी पूरा कर सकेगा.
लगातार हो रहा विरोध: साल 2019 में जब देवस्थानम बोर्ड बनाने के प्रस्ताव पर जब कैबिनेट में मुहर लगी थी, उसके बाद से ही तीर्थ पुरोहितों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था. शुरुआती दौर में तीर्थ पुरोहितों के विरोध करने की मुख्य वजह यह थी कि राज्य सरकार ने बोर्ड का नाम वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड के नाम पर रखा था. बोर्ड बनाने का जो प्रस्ताव तैयार किया गया था उसमें पहले इस बोर्ड का नाम उत्तराखंड चारधाम श्राइन बोर्ड रखा गया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने साल 2020 में उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड रख दिया. बावजूद इसके तीर्थ पुरोहितों ने अपना विरोध जारी रखा.
तीर्थ पुरोहित लगातार देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग करते रहे. पुरोहितों का कहना था कि, सरकार ने एक्ट बनाने से पहले वहां से जुड़े तीर्थ पुरोहितों, हक हकूकधारी समाज व स्थानीय जनता से किसी प्रकार का संवाद तक नहीं बनाया, जो किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए सही नहीं है. तीर्थ पुरोहितों ने यह तर्क दिया था कि चारों धामों की पूजा पद्धति एक दूसरे से अलग है, ऐसे में इन सभी धामों एक बोर्ड के अधीन नहीं लाया जा सकता. क्योंकि, इस बोर्ड के आ जाने से चारों धामों की पारंपरिक व्यवस्था टूट जाएगी, जो कि सनातन धर्म पर कुठाराघात होगा. यही नहीं, तीर्थ पुरोहितों ने इस बात का भी जिक्र किया कि सदियों से ही चारों धामों की जो परंपरा चली आ रही है इस बोर्ड के आने के बाद वह परंपरा बदल जाएगी. साथ ही चारों धामों से जुड़े जो तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी हैं उनके अधिकारों का हनन किया जाएगा.
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क्या अरबों का चढ़ावा है विरोध की वजह: एक मुख्य वजह यह भी बताई जा रही है कि हर साल धामों में अरबों रुपए का चढ़ावा चढ़ता है ऐसे में अब इस चढ़ावे का पूरा हिसाब किताब रखा जाएगा यानी जो चढ़ावा चढ़ता है उसकी बंदरबांट नहीं हो पाएगी. जिसके चलते भी तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी बोर्ड का विरोध कर रहे हैं.
धामों के नाम ही रहेंगी संपत्तियां, बोर्ड करेगा रखरखाव: उत्तराखंड के कई जिलों सहित अन्य प्रांतों के कई स्थानों पर कुल 60 ऐसे स्थान हैं, जहां पर बाबा केदारनाथ और बदरीनाथ के नाम भू-सम्पत्तियां दस्तावेजों में दर्ज हैं. हालांकि इन संपत्तियों का रखरखाव अभी तक बदरी-केदार मंदिर समिति करती थी लेकिन बोर्ड बन जाने के बाद इन संपत्तियों का रखरखाव देवस्थानम बोर्ड कर रहा था.
बोर्ड के सीईओ रविनाथ रमन ने बताया था कि, जो मंदिर की संपत्ति है, वह मंदिर की ही रहेगी और बोर्ड भी इस बात को मानता है कि जो भू संपत्तियां मंदिर के नाम हैं वह मंदिर के ही नाम रहेंगी, न कि इस बोर्ड के नाम होंगी. हालांकि, भू-संपत्तियों के मामले में बोर्ड का मकसद सिर्फ और सिर्फ भू संपत्तियों का रखरखाव मेंटेनेंस और संरक्षण करना है.
तीर्थ पुरोहितों के पक्ष में स्वामी: 21 जुलाई 2020 को उत्तराखंड हाईकोर्ट से त्रिवेंद्र रावत सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए ‘चारधाम देवस्थानम एक्ट’ को चुनौती देने वाली भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका को खारिज कर दिया गया था. सुब्रमण्यम स्वामी ने इस जनहित याचिका में तर्क दिया था कि सरकार और अधिकारियों का काम अर्थव्यवस्था, कानून-व्यवस्था की देखरेख करना है न कि मंदिर चलाना. स्वामी का कहना था कि मंदिर को भक्त या फिर उनके लोग ही चला सकते हैं, जिस कारण सरकार के एक्ट को निरस्त किया जाना चाहिए.
राज्य सरकार ने इस याचिका के विरुद्ध नैनीताल हाईकोर्ट में अपने पक्ष में कहा कि सरकार ने इस एक्ट को बड़ी पारदर्शिता से बनाया है और इसमें मंदिर में चढ़ने वाले चढ़ावे का पूरा रिकॉर्ड रखा जा रहा है और इससे संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 32 का भी उल्लंघन नहीं होता है.
मुख्यमंत्री बदले लेकिन नहीं निकला कोई निष्कर्ष: त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद तीर्थ-पुरोहितों ने उनके बाद बने मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत के आगे भी अपनी मांग रखी थी. तीरथ सिंह रावत ने भी मुख्यमंत्री बनते ही 51 मंदिरों को देवस्थानम बोर्ड से बाहर करने की बात कही थी, लेकिन उसपर आगे कोई फैसला होता उससे पहले ही मुख्यमंत्री ही बदल गए. वर्तमान धामी सरकार देवस्थानम बोर्ड के पक्ष में थी और उसी के अनुरूप कार्य करते हुए नाराज तीर्थपुरोहितों को मनाने का प्रयास कर रही थी.
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महाराज को दी गई तीर्थ पुरोहितों को मनाने की जिम्मेदारी: उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड का विरोध कर रहे तीर्थ पुरोहितों को मनाने की कवायद में राज्य सरकार जुटी रही. इसके लिए बोर्ड के उपाध्यक्ष सतपाल महाराज को तीर्थ पुरोहितों को मनाने का काम सौंपा गया. सतपाल महाराज ने तीर्थ पुरोहितों से मुलाकात की और उन्हें बोर्ड के एक्ट संबंधी जानकारियां दी लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा.
देवस्थानम बोर्ड में ये-ये सदस्य हैं शामिल: उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड में सबसे पहले बोर्ड के सीईओ के रूप में गढ़वाल कमिश्नर रविनाथ रमन को नियुक्त किया गया. इसके बाद से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बतौर अध्यक्ष, धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज बतौर उपाध्यक्ष शामिल थे. इसके अतिरिक्त मुख्य सचिव सुखबीर सिंह संधू, सचिव पर्यटन दिलीप जावलकर, सचिव वित्त अमित नेगी, के साथ ही भारत सरकार के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी इस बोर्ड के सदस्य बनाए गये थे. यही नहीं, टिहरी रियासत के राज परिवार का एक सदस्य भी शामिल किया गया था. इन सबके बाद जून 2021 में बोर्ड ने हिंदू धार्मिक मामलों में विशेष रुचि रखने वाले दान दाता की श्रेणी में उद्योगपति अनंत अंबानी, सज्जन जिंदल और महेंद्र शर्मा को सदस्य नामित किया गया था.
इसके साथ ही उत्तराखंड चारधाम देवस्थान प्रबंधन बोर्ड में पुजारियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए बदरी, केदार, यमुनोत्री, गंगोत्री एवं अनुसूची में वर्णित धार्मिक व्यवस्थालयों में किसी अधिकार को धारण करने वाले व्यक्तियों की श्रेणी में आशुतोष डिमरी, श्रीनिवास पोशती, कृपाराम सेमवाल, जय प्रकाश उनियाल और गोविंद सिंह पवार भी सदस्य के रूप में काम कर रहे हैं.
बदरी-केदार मंदिर समिति के नाम मुख्य भू-सम्पतियां
- बदरीनाथ में मंदिर समिति के नाम 217 नाली और 3 मुखवा भू-संपत्ति दर्ज है.
- बदरीनाथ के माणा गांव में मंदिर समिति के नाम 133 नाली भू-संपत्ति दर्ज है.
- मौजा बामणी राजस्व ग्राम में मंदिर समिति के नाम 239 नाली भू-संपत्ति दर्ज है.
- जोशीमठ में मंदिर समिति के नाम 169 नाली भू-संपत्ति दर्ज है.
- ग्राम अणीमठ में 43 नाली भूमि मंदिर समिति के नाम दर्ज है.
- अलियागढ़ (बसुली सेरा) राजस्व क्षेत्र में 186 नाली मंदिर समिति के नाम दर्ज है.
- पनेरगाव राजस्व क्षेत्र में 70 नाली भूमि मंदिर समिति के नाम दर्ज है.
- जनपद देहरादून के डोभालवाला क्षेत्र में 21.74 एकड़ भूमि नान जेड ए में मंदिर समिति के नाम दर्ज है.
- उत्तर प्रदेश के लखनऊ में 11020 वर्ग फीट भूमि मंदिर समिति के नाम दर्ज है.
- हसुवा फतेपुर में 5 बीघा भूमि मंदिर समिति के नाम दर्ज है.
- महाराष्ट्र के बुल्ढाना क्षेत्र में 17 एकड़ भूमि श्री बदरी नारायण संस्थान के नाम दर्ज है.
- श्री केदारनाथ धाम क्षेत्र में 41 नाली भूमि श्री केदारनाथ के नाम दर्ज है.
- ऊखीमठ क्षेत्र में 38 नाली भूमि श्री केदारनाथ के नाम दर्ज है.
- संसारी क्षेत्र में 28 नाली भूमि श्री केदारनाथ के नाम दर्ज है.