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उत्तराखंड में यहां एक महीने बाद मनाई जाएगी दिवाली, जानिए वजह और परंपरा - बग्वाल का पर्व

Diwali Festival 2023 आज पूरे देशभर में दिवाली 2023 की धूम है. सभी लोग दीपावली के त्योहार को धूमधाम से मना रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड के कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां दिवाली अभी एक महीने बाद मनाई जाती है. कुछ इलाकों में 11 दिन बाद भी दिवाली मनाते हैं, इसे बग्वाल कहा जाता है. जबकि, जौनसार बावर में एक महीने बाद दिवाली यानी बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा है. जानिए इसी अनोखी दिवाली और इसके पीछे की रोचक जानकारियां... Budi Diwali in Uttarakhand

budhi diwali in Uttarakhand
बूढ़ी दिवाली
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 12, 2023, 5:19 PM IST

देहरादूनः आज पूरे देशभर में दिवाली 2023 का पर्व पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है, लेकिन अगर कोई किसी कारणवश इस दिवाली को नहीं पाया या फिर वो दोबारे से दीपावली का त्योहार मनाना चाहता है तो वो उत्तराखंड के जौनसार बावर का रुख कर सकता है. जी हां, देहरादून के जनजातीय क्षेत्र में आज से यानी इस दिवाली से ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा है. जहां पारंपरिक लोक संस्कृति का समागम देखने को मिलता है.

Budhi Diwali
जौनसार बावर में बढ़ी दिवाली

जौनसार बावर में एक महीने बाद मनाई जाती है दिवालीः दरअसल, देहरादून जिले के जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में पौराणिक परंपरा आज भी जिंदा है. जहां पर देश दुनिया की दीपावली से अलग हटकर एक महीने बाद दीपावली का पर्व मनाया जाता है. जिसे 'बूढ़ी दिवाली' कहा जाता है. दीपावली पर जहां देश और दुनिया पटाखे के शोर शराबे के बीच दिवाली मनाई जाती है तो वहीं जौनसार बावर में ईको फ्रेंडली और परंपरागत तरीके से दिवाली मनाने की परंपरा है.
ये भी पढ़ेंः आज मनाई जा रही दीपावली, इस शुभ मुहूर्त में करें लक्ष्मी पूजा, अमृत योग का ये है समय

जौनसार बावर में यही बूढ़ी दीपावली कई दिनों तक मनाई जाती है. साख बात ये है कि यह दिवाली काफी खास होती है. क्योंकि, इस दिवाली में पटाखे नहीं छुड़ाए जाते हैं. बल्कि, भीमल की लकड़ी की मशाल जलाकर मनाई जाती है. इस दौरान ग्रामीण पारंपरिक वेशभूषा में सज धज कर गांव के पंचायती आंगन या खलिहान में एकत्रित होते हैं, फिर ढोल दमाऊ की थाप पर मशालें जलाते हैं और रासो तांदी, झैंता, हारुल आदि नृत्य करते हैं. इसे बिरुडी पर्व से भी जाना जाता है.

Budhi Diwali
ग्रामीण पांरपरिक तरीक से मनाते हैं त्योहार

क्यों मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली: बता दें कि जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में आता है. यहां बूढ़ी दिवाली मुख्य दीपावली के ठीक एक महीने के बाद धूमधाम से मनाई जाती है. बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे भी लोगों के कई तर्क हैं. जनजाति क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की सूचना देर से मिली. जिस कारण यहां के लोग एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली मनाते हैं.
ये भी पढ़ेंः बदरीनाथ धाम में दीप पर्व पर तीन दिनों तक होगी भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा, जानिए महत्व

वहीं, कई लोगों का मानना है कि जौनसार बावर कृषि प्रधान क्षेत्र है. जिस वजह से यहां लोग खेती बाड़ी के कामकाज में काफी ज्यादा व्यस्त रहते हैं. ऐसे में यहां लोग ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परंपरागत तरीके से मनाते हैं. ग्रामीणों की मानें दीपावली पर फसलें तैयार होती है. ऐसे में ग्रामीणों को समय पर अपनी फसलों को काटना होता था. साथ ही सर्दियों से पहले सभी कामों को निपटाना होता था.

ग्रामीण जब खेती बाड़ी आदि के काम पूरा कर लेते थे, तब वो दीपावली का पर्व मनाते थे. यह परंपरा आज भी कायम है. ग्रामीण आज भी दीपावली के ठीक एक महीने के बाद 5 दिवसीय बूढ़ी दिवाली मनाते हैं. बूढ़ी दीपावली या दिवाली पर जौनसार बावर का हर गांव गुलजार रहता है. इस दिवाली पर प्रवासी लोग भी अपने घर और गांव लौटते हैं. जिसकी वजह से पूरे जौनसार बावर में अलग ही रौनक देखने को मिलती है.

देहरादूनः आज पूरे देशभर में दिवाली 2023 का पर्व पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है, लेकिन अगर कोई किसी कारणवश इस दिवाली को नहीं पाया या फिर वो दोबारे से दीपावली का त्योहार मनाना चाहता है तो वो उत्तराखंड के जौनसार बावर का रुख कर सकता है. जी हां, देहरादून के जनजातीय क्षेत्र में आज से यानी इस दिवाली से ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा है. जहां पारंपरिक लोक संस्कृति का समागम देखने को मिलता है.

Budhi Diwali
जौनसार बावर में बढ़ी दिवाली

जौनसार बावर में एक महीने बाद मनाई जाती है दिवालीः दरअसल, देहरादून जिले के जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में पौराणिक परंपरा आज भी जिंदा है. जहां पर देश दुनिया की दीपावली से अलग हटकर एक महीने बाद दीपावली का पर्व मनाया जाता है. जिसे 'बूढ़ी दिवाली' कहा जाता है. दीपावली पर जहां देश और दुनिया पटाखे के शोर शराबे के बीच दिवाली मनाई जाती है तो वहीं जौनसार बावर में ईको फ्रेंडली और परंपरागत तरीके से दिवाली मनाने की परंपरा है.
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जौनसार बावर में यही बूढ़ी दीपावली कई दिनों तक मनाई जाती है. साख बात ये है कि यह दिवाली काफी खास होती है. क्योंकि, इस दिवाली में पटाखे नहीं छुड़ाए जाते हैं. बल्कि, भीमल की लकड़ी की मशाल जलाकर मनाई जाती है. इस दौरान ग्रामीण पारंपरिक वेशभूषा में सज धज कर गांव के पंचायती आंगन या खलिहान में एकत्रित होते हैं, फिर ढोल दमाऊ की थाप पर मशालें जलाते हैं और रासो तांदी, झैंता, हारुल आदि नृत्य करते हैं. इसे बिरुडी पर्व से भी जाना जाता है.

Budhi Diwali
ग्रामीण पांरपरिक तरीक से मनाते हैं त्योहार

क्यों मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली: बता दें कि जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में आता है. यहां बूढ़ी दिवाली मुख्य दीपावली के ठीक एक महीने के बाद धूमधाम से मनाई जाती है. बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे भी लोगों के कई तर्क हैं. जनजाति क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की सूचना देर से मिली. जिस कारण यहां के लोग एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली मनाते हैं.
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वहीं, कई लोगों का मानना है कि जौनसार बावर कृषि प्रधान क्षेत्र है. जिस वजह से यहां लोग खेती बाड़ी के कामकाज में काफी ज्यादा व्यस्त रहते हैं. ऐसे में यहां लोग ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परंपरागत तरीके से मनाते हैं. ग्रामीणों की मानें दीपावली पर फसलें तैयार होती है. ऐसे में ग्रामीणों को समय पर अपनी फसलों को काटना होता था. साथ ही सर्दियों से पहले सभी कामों को निपटाना होता था.

ग्रामीण जब खेती बाड़ी आदि के काम पूरा कर लेते थे, तब वो दीपावली का पर्व मनाते थे. यह परंपरा आज भी कायम है. ग्रामीण आज भी दीपावली के ठीक एक महीने के बाद 5 दिवसीय बूढ़ी दिवाली मनाते हैं. बूढ़ी दीपावली या दिवाली पर जौनसार बावर का हर गांव गुलजार रहता है. इस दिवाली पर प्रवासी लोग भी अपने घर और गांव लौटते हैं. जिसकी वजह से पूरे जौनसार बावर में अलग ही रौनक देखने को मिलती है.

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