देहरादून: उत्तराखंड में बिजली कटौती पर सीएम पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) की सख्ती के बाद UPCL (उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड) आलाधिकारियों की नींद उड़ी हुई है. अब यूपीसीएल ने दावा किया है की किल्लत के बावजूद अब चाहे जितनी भी महंगी बिजली बाजार से खरीदनी पड़े, तो खरीदी जाएगी. लेकिन आगे उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति की समस्या निजात दिलाने का भरसक प्रयास किया जाएगा.
UPCL के अनुसार प्रदेश में बिजली आपूर्ति की समस्या से निपटने के लिए नए सिरे से रोड मैप तैयार किया जा रहा है, जिसके आधार पर एक्सचेंज पॉवर (PPA) और बाजार से कितनी बिजली गर्मियों में डिमांड अनुसार खरीदनी है. उसकी प्रतिदिन मॉनिटरिंग कर खरीदारी बढ़ाई जा रही है. यूपीसीएल के वर्तमान में काशीपुर स्थित दोनों गैस थर्मल प्लांट बंद होने से राज्य में 7 मिलियन यूनिट बिजली की कमी आ रही है. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैस और कोयला महंगा होने के चलते बीते सितंबर, 2021 दोनों गैस थर्मल प्लांट बंद पड़े हैं.
यूपीसीएल का कहना है कि गैस थर्मल प्लांट से PPA (power purchase agreement) के तहत 7 मिलियन यूनिट बिजली सीधे तौर खरीदता है. ऐसे में गैस थर्मल प्लांट बंद होने से 7 मिलियन बिजली सीधे तौर पर राज्य को नहीं मिल पा रही है. ऐसे में यूपीसीएल को मुकाबले इस वर्ष गर्मी सीजन में 8 से 10 मिलियन यूनिट बिजली लगभग 7 से 8 रुपये महंगे दामों में खरीदनी पड़ रही हैं.
यूपीसीएल ऑपरेशन डायरेक्टर के मुताबिक बीते साल 2021 में अप्रैल से जून माह में 454.30 मिलियन यूनिट अतिरिक्त बिजली ₹3.34 दर से खरीदी गई थी. लेकिन इस साल अप्रैल माह में बिलजी ₹20 प्रति यूनिट तक पहुंच गई थी. हालांकि, वर्तमान में ₹12 प्रति यूनिट से अधिक दर से बिजली यूपीसीएल खरीद रहा है और इस बिजली को UPCL औसतन साढ़े पांच रुपए की दर से उपभोक्ताओं को बेचा जा रहा है.
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बाजार से महंगी बिजली खरीदने की मजबूरी: उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड प्रोजेक्ट डायरेक्टर के मुताबिक वर्तमान समय में प्रदेश भर में प्रतिदिन 45 मिलियन यूनिट बिजली आज की तारीख में आवश्यकता है, जबकि 31.52 मिलियन यूनिट बिजली उपलब्ध है. हालांकि, बाकी की बिजली खरीदकर आपुर्ति पूरी की जाती हैं.
दरअसल, राज्य के ऊर्जा विभाग को मुख्यतः 3 सोर्सेज से बिजली उपलब्ध होती है. इसमें पहला सोर्स राज्य के सीमित पावर प्रोजेक्ट है, जहां से मात्र 30 फीसदी बिजली प्राप्त होती है. वहीं, दूसरा सोर्स केंद्रीय सेक्टर है. जहां से ऊर्जा विभाग को शेयर अनुसार बिजली मिलती है. तीसरा सोर्स बिजली खरीदने का एक्सचेंज पावर सेक्टर है, जहां से डिमांड अनुसार बिजली खरीदी जाती है.
राज्य की सोर्सेज में पॉवर थर्मल गैस प्लांट से 321 मेगा वाट बिजली प्राप्त होती थी, जिससे 7 मिलियन यूनिट बिजली आपूर्ति में काम आती थी. लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैस की कीमत अधिक होने के चलते थर्मल गैस प्लांट सितंबर, 2021 से बंद पड़े हैं, जिसकी वजह से बाहर से कई गुना दामों बिजली खरीदनी पड़ रही है.
यूपीसीएल प्रोजेक्ट डायरेक्टर अजय कुमार (Project Director Ajay Kumar Agarwal) के मुताबिक गैस और कोयला दामों में भारी उछाल के चलते और एक्सचेंज से भी बिजली उतनी प्राप्त नहीं हो पा रही है, जितनी की डिमांड बढ़ती जा रही है. इसके बावजूद जो बिजली पिछले साल ₹3 रुपये 34 पैसे में खरीदी जा रही थी. जिसमें DAM, TAM और RTM (Real-Time Electricity Market) से बिड लगाकर ₹12 से अधिक प्रति यूनिट दर पर डिमांड बढ़ने से खरीदनी पड़ रही हैं. इसके बावजूद इस तरह का प्रयास किया जा रहा है कि उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति में कोई समस्या ना हो.
राज्य में पावर प्रोजेक्ट की स्थिति: उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (UJVNL) से मिले आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में वर्तमान में कुल 21 जल विद्युत परियोजनाएं संचालित है. इसमें से 17 जल विद्युत परियोजना राज्य सरकार की हैं और 2 पावर प्रोजेक्ट THDC के हैं. 2 पावर प्रोजेक्ट NHPC के हैं और 2 प्राइवेट प्रोजेक्ट हैं, जिसमें एक JP ग्रुप का और दूसरा GVK ग्रुप के हैं. इसके साथ ही राज्य में 24 पावर प्रोजेक्ट बंद पड़े हैं. इसमें से 10 प्रोजेक्ट संचालित करने की अनुमति मिलने वाली है. यह पावर प्रोजेक्ट जाकर गंगा जल से संचालित है. उत्तराखंड ऊर्जा विभाग को राज्य के पावर प्रोजेक्ट सोर्सिंग से लगभग 15 मिलियन यूनिट प्रतिदिन प्राप्त हो रही है, बाकी यूपीसीएल बाहर से खरीदनी है.
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हर साल 600 करोड़ की बिजली खरीद: एक अनुमान के अनुसार प्रदेश हर साल करीब 6000 करोड़ से ज्यादा की बिजली बाहर से खरीदता है. हर साल 1242 मेगावाट बिजली राज्य उत्पादन कर पाता है. ऐसा नहीं है कि प्रदेश में ऊर्जा की इस कदर कमी पहले से ही बनी हुई हो. कई कारण हैं जिसके कारण प्रदेश ऊर्जा संकट की तरफ तेजी से बढ़ रहा है.
60 हजार यूनिट के छोटे उद्योग स्थापित: उत्तराखंड में मध्यम एवं लघु सूक्ष्म उद्योग के रूप में करीब 60 हजार यूनिट स्थापित हैं. उधर, करीब 230 उद्योग ऐसे हैं जो बड़े उद्योगों में माने जाते हैं. बिजली कटौती के दौरान छोटे और सूक्ष्म उद्योगों को लंबे समय तक सरवाइव करना मुश्किल होता है. उद्योगों में उत्पादन कुछ समय तक बंद करने की भी नौबत आ सकती है. हालांकि, मध्यम और बड़े उद्योगों के लिए यह स्थिति नहीं होगी, बल्कि इसमें बिजली की अतिरिक्त व्यवस्था के कारण उत्पादन कॉस्ट में बढ़ोत्तरी होगी.
अघोषित बिजली कटौती से उद्योगपति परेशान: उधर, राज्य में लगातार अघोषित कटौती को लेकर उद्योगपति भी खासा से परेशान है. इंडस्ट्रियल कारोबारियों का कहना है कि अगर बिजली समस्या का समाधान आगे भी नहीं निकला, तो वह दिन दूर नहीं जब राज्य से उद्योग भी पलायन करने पर मजबूर होंगे. उन्होंने कहा कि सरकार को जीएसटी और अन्य तरह के राजस्व इंडस्ट्री से प्राप्त होता है. उसके बावजूद बिजली की उपलब्धता में आए दिन की परेशानी इंडस्ट्री को राज्य से खत्म करने का काम कर रही है.
उत्तराखंड इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट पंकज गुप्ता के मुताबिक प्रतिदिन अघोषित दिल्ली की कटौती से प्रतिदिन 150 से 200 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है. क्योंकि बिजली ना होने से फैक्ट्री में मजदूर व कर्मचारीयों एक एक शिफ्ट खाली बैठना पड़ रहा हैं. अगर मंहगे डीजल खरीद कर 6 से 8 घंटे फैक्ट्री प्रोडक्शन किया जाए, तो प्रोडक्ट उत्पादन में अतिरिक्त खर्चा बढ़ रहा है, किन इसके एवज में प्रोडक्ट की कीमत बाजार में नहीं बढ़ाई जा सकती.
पंकज गुप्ता के मुताबिक बिजली की समस्या से उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिए ऊर्जा विभाग के पास कोई सटीक रोड मैप नहीं है और ना ही कोई ऐसा मैनेजमेंट है, जो दूर की सोच और बिजली की बढ़ती डिमांड अनुसार योजनाबद्ध तरीके से कार्य करें. लाख दावों के बावजूद यूपीसीएल (ऊर्जा विभाग) में लंबे समय से कुप्रबंध (Mismanagement ) के चलते बिजली उपभोक्ताओं को इसका बड़ा खामिया भुगतना पड़ रहा है.
बिजली बिल में सरचार्ज भुगतान का कोई फायदा नहीं: वहीं, दूसरी तरफ कई इंडस्ट्रियल के लोग लगातार बिजली सप्लाई के लिए बिजली बिल भुगतान में अतिरिक्त सरचार्ज सालाना अदा करते हैं. उसके बावजूद भी उन्हें रेगुलर बिजली नहीं मिल पा रही है जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है.