देहरादून: सनातन धर्म में सावन का महीना भगवान शिव को प्रिय होने के कारण इसका विशेष महत्व माना जाता है. हिंदू धर्म के लोग भगवान शंकर की पूजा अर्चना करते हैं. साथ ही जनमान्यता है कि सावन महीने में ही कांवड़ यात्रा निकालने से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी हो जाती है. इसके लिए श्रद्धालु पैदल यात्रा कर बाबा भोले के लिए जल भरकर लाते हैं. साथ ही भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.
सावन का महीना शिव भक्तों के लिए बेहद खास होने कारण हर साल सावन महीने में लाखों श्रद्धालु अलग-अलग जगहों से हरिद्वार आते हैं. हरिद्वार पहुंचकर अपने कांवड़ में गंगाजल भर कर पैदल यात्रा शुरू करते हैं. कांवड़िये पैदल यात्रा कर चतुर्दशी के दिन उसी जल से भगवान शिव पर अभिषेक करते हैं. इस साल सावन महीने की शुरूआत 17 जुलाई से शुरू हो रही है.
कांवड़ यात्रा की मान्यता
कांवड़ यात्रा को लेकर कई मान्यताएं हैं, लेकिन माना जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने ही गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल भरकर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया था. इसी परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों कांवड़िये भगवान शिव पर चढ़ाते हैं. इसके साथ ही पौराणिक मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान राम ने भी भगवान शंकर को कांवड़ियां बनकर जल चढ़ाया था.
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17 जुलाई से 15 अगस्त तक है सावन का महीना
17 जुलाई से शुरू हो रहे सावन के महीने का अंतिम दिन 15 अगस्त है. ये सावन का महीना बेहद ही शुभ माना जा रहा है, क्योंकि इस सावन महीने में चार सोमवार और चार मंगलवार पड़ रहे हैं. लिहाजा सोमवार के दिन व्रत रखने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं और मनचाहा आशीर्वाद देते हैं. साथ ही मंगलवार का दिन माता पार्वती को समर्पित है और इस दिन पूजा करने से जीवन में कल्याण और मंगल की प्राप्ति होती है.
भगवान शंकर को जल प्रिय है
भगवान शिव को जल अत्यंत ही प्रिय है. साथ ही ये आम जनजीवन में भी खासा महत्व रखता है. साथ ही धर्माचार्य ने बताया कि हरिद्वार जल लेने के लिए बहुत आसान और सुव्यवस्थित है, इसलिए यहां लाखों की संख्या में कांवड़िये जल भरने के लिए आते हैं. पुण्य और धर्म तभी स्थिर रह सकता है जब इसमें बहुत सारी बंदिशे न लगाई जाएं.
जल चढ़ाकर मारकंडे को मिला था वरदान
धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि भगवान शिव के कुछ विशेष भक्तों में शामिल भद्रयु और मारकंडे ने विषम परिस्थितियों में भी भगवान भोले को जल चढ़ाया था. साथ ही मारकंडे नाम के भक्त ने भगवान शंकर की आराधना की और अपने जीवन को 16 वर्ष में समाप्त होने के श्राप को वरदान के रूप में प्राप्त किया.
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धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि कांवड़ की व्यवस्था प्राचीन काल से चली आ रही है और इसका बहुत ही पौराणिक इतिहास रहा है. त्रेतायुग के समय पर भी इसकी व्यवस्था थी, जिसका मुख्य उद्देश्य था कि तीर्थों से जल को लाकर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया जाए. साथ ही भगवान शिव से राज्य सुरक्षित की प्रार्थना की जाए.
कांवड़ियों के लिए पुख्ता इंतजाम- सीएम
कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तराखंड में भारी तादात में कांवड़िये आते हैं. प्रशासन ने सुरक्षा के लिहाज से अपनी सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि सभी लोग शांतिपूर्वक यात्रा में भाग लें और किसी को किसी तरह से दुख तकलीफ न हो इसका सभी लोग ध्यान रखें. साथ ही बताया कि सरकार ने सभी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद कर ली हैं. कांवड़ यात्रियों की रात्रि में ठहरने के लिए भी इंतजाम किए गए हैं.