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इस वजह से भगवान शिव को सावन में चढ़ाया जाता है जल, त्रेतायुग से चली आ रही है परंपरा

सावन का महीना शिव भक्तों के लिए बेहद खास होने कारण हर साल सावन महीने में लाखों श्रद्धालु अलग-अलग जगहों से हरिद्वार आते हैं. साथ ही यहां से जल भरकर लोग भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं. वहीं, सीएम ने कांवड़ यात्रा के लिए कांवड़ियों का स्वागत किया है.

जल संरक्षण से जुड़ी है कांवड़ यात्रा.
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Published : Jul 17, 2019, 8:59 AM IST

देहरादून: सनातन धर्म में सावन का महीना भगवान शिव को प्रिय होने के कारण इसका विशेष महत्व माना जाता है. हिंदू धर्म के लोग भगवान शंकर की पूजा अर्चना करते हैं. साथ ही जनमान्यता है कि सावन महीने में ही कांवड़ यात्रा निकालने से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी हो जाती है. इसके लिए श्रद्धालु पैदल यात्रा कर बाबा भोले के लिए जल भरकर लाते हैं. साथ ही भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.

सावन का महीना शिव भक्तों के लिए बेहद खास होने कारण हर साल सावन महीने में लाखों श्रद्धालु अलग-अलग जगहों से हरिद्वार आते हैं. हरिद्वार पहुंचकर अपने कांवड़ में गंगाजल भर कर पैदल यात्रा शुरू करते हैं. कांवड़िये पैदल यात्रा कर चतुर्दशी के दिन उसी जल से भगवान शिव पर अभिषेक करते हैं. इस साल सावन महीने की शुरूआत 17 जुलाई से शुरू हो रही है.

जल संरक्षण से जुड़ी है कांवड़ यात्रा.

कांवड़ यात्रा की मान्यता
कांवड़ यात्रा को लेकर कई मान्यताएं हैं, लेकिन माना जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने ही गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल भरकर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया था. इसी परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों कांवड़िये भगवान शिव पर चढ़ाते हैं. इसके साथ ही पौराणिक मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान राम ने भी भगवान शंकर को कांवड़ियां बनकर जल चढ़ाया था.

ये भी पढ़ें: 27जुलाई से शुरू होगी कांवड़ यात्रा, प्रशासन की अधूरी तैयारी बन सकती है परेशानी का सबब

17 जुलाई से 15 अगस्त तक है सावन का महीना
17 जुलाई से शुरू हो रहे सावन के महीने का अंतिम दिन 15 अगस्त है. ये सावन का महीना बेहद ही शुभ माना जा रहा है, क्योंकि इस सावन महीने में चार सोमवार और चार मंगलवार पड़ रहे हैं. लिहाजा सोमवार के दिन व्रत रखने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं और मनचाहा आशीर्वाद देते हैं. साथ ही मंगलवार का दिन माता पार्वती को समर्पित है और इस दिन पूजा करने से जीवन में कल्याण और मंगल की प्राप्ति होती है.

भगवान शंकर को जल प्रिय है
भगवान शिव को जल अत्यंत ही प्रिय है. साथ ही ये आम जनजीवन में भी खासा महत्व रखता है. साथ ही धर्माचार्य ने बताया कि हरिद्वार जल लेने के लिए बहुत आसान और सुव्यवस्थित है, इसलिए यहां लाखों की संख्या में कांवड़िये जल भरने के लिए आते हैं. पुण्य और धर्म तभी स्थिर रह सकता है जब इसमें बहुत सारी बंदिशे न लगाई जाएं.

जल चढ़ाकर मारकंडे को मिला था वरदान
धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि भगवान शिव के कुछ विशेष भक्तों में शामिल भद्रयु और मारकंडे ने विषम परिस्थितियों में भी भगवान भोले को जल चढ़ाया था. साथ ही मारकंडे नाम के भक्त ने भगवान शंकर की आराधना की और अपने जीवन को 16 वर्ष में समाप्त होने के श्राप को वरदान के रूप में प्राप्त किया.

ये भी पढ़ें: हरिद्वारः 4 बजे की गई गंगा आरती, सभी मंदिरों के कपाट कल सुबह तक के लिए बंद

धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि कांवड़ की व्यवस्था प्राचीन काल से चली आ रही है और इसका बहुत ही पौराणिक इतिहास रहा है. त्रेतायुग के समय पर भी इसकी व्यवस्था थी, जिसका मुख्य उद्देश्य था कि तीर्थों से जल को लाकर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया जाए. साथ ही भगवान शिव से राज्य सुरक्षित की प्रार्थना की जाए.

कांवड़ियों के लिए पुख्ता इंतजाम- सीएम
कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तराखंड में भारी तादात में कांवड़िये आते हैं. प्रशासन ने सुरक्षा के लिहाज से अपनी सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि सभी लोग शांतिपूर्वक यात्रा में भाग लें और किसी को किसी तरह से दुख तकलीफ न हो इसका सभी लोग ध्यान रखें. साथ ही बताया कि सरकार ने सभी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद कर ली हैं. कांवड़ यात्रियों की रात्रि में ठहरने के लिए भी इंतजाम किए गए हैं.

देहरादून: सनातन धर्म में सावन का महीना भगवान शिव को प्रिय होने के कारण इसका विशेष महत्व माना जाता है. हिंदू धर्म के लोग भगवान शंकर की पूजा अर्चना करते हैं. साथ ही जनमान्यता है कि सावन महीने में ही कांवड़ यात्रा निकालने से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी हो जाती है. इसके लिए श्रद्धालु पैदल यात्रा कर बाबा भोले के लिए जल भरकर लाते हैं. साथ ही भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.

सावन का महीना शिव भक्तों के लिए बेहद खास होने कारण हर साल सावन महीने में लाखों श्रद्धालु अलग-अलग जगहों से हरिद्वार आते हैं. हरिद्वार पहुंचकर अपने कांवड़ में गंगाजल भर कर पैदल यात्रा शुरू करते हैं. कांवड़िये पैदल यात्रा कर चतुर्दशी के दिन उसी जल से भगवान शिव पर अभिषेक करते हैं. इस साल सावन महीने की शुरूआत 17 जुलाई से शुरू हो रही है.

जल संरक्षण से जुड़ी है कांवड़ यात्रा.

कांवड़ यात्रा की मान्यता
कांवड़ यात्रा को लेकर कई मान्यताएं हैं, लेकिन माना जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने ही गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल भरकर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया था. इसी परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों कांवड़िये भगवान शिव पर चढ़ाते हैं. इसके साथ ही पौराणिक मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान राम ने भी भगवान शंकर को कांवड़ियां बनकर जल चढ़ाया था.

ये भी पढ़ें: 27जुलाई से शुरू होगी कांवड़ यात्रा, प्रशासन की अधूरी तैयारी बन सकती है परेशानी का सबब

17 जुलाई से 15 अगस्त तक है सावन का महीना
17 जुलाई से शुरू हो रहे सावन के महीने का अंतिम दिन 15 अगस्त है. ये सावन का महीना बेहद ही शुभ माना जा रहा है, क्योंकि इस सावन महीने में चार सोमवार और चार मंगलवार पड़ रहे हैं. लिहाजा सोमवार के दिन व्रत रखने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं और मनचाहा आशीर्वाद देते हैं. साथ ही मंगलवार का दिन माता पार्वती को समर्पित है और इस दिन पूजा करने से जीवन में कल्याण और मंगल की प्राप्ति होती है.

भगवान शंकर को जल प्रिय है
भगवान शिव को जल अत्यंत ही प्रिय है. साथ ही ये आम जनजीवन में भी खासा महत्व रखता है. साथ ही धर्माचार्य ने बताया कि हरिद्वार जल लेने के लिए बहुत आसान और सुव्यवस्थित है, इसलिए यहां लाखों की संख्या में कांवड़िये जल भरने के लिए आते हैं. पुण्य और धर्म तभी स्थिर रह सकता है जब इसमें बहुत सारी बंदिशे न लगाई जाएं.

जल चढ़ाकर मारकंडे को मिला था वरदान
धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि भगवान शिव के कुछ विशेष भक्तों में शामिल भद्रयु और मारकंडे ने विषम परिस्थितियों में भी भगवान भोले को जल चढ़ाया था. साथ ही मारकंडे नाम के भक्त ने भगवान शंकर की आराधना की और अपने जीवन को 16 वर्ष में समाप्त होने के श्राप को वरदान के रूप में प्राप्त किया.

ये भी पढ़ें: हरिद्वारः 4 बजे की गई गंगा आरती, सभी मंदिरों के कपाट कल सुबह तक के लिए बंद

धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि कांवड़ की व्यवस्था प्राचीन काल से चली आ रही है और इसका बहुत ही पौराणिक इतिहास रहा है. त्रेतायुग के समय पर भी इसकी व्यवस्था थी, जिसका मुख्य उद्देश्य था कि तीर्थों से जल को लाकर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया जाए. साथ ही भगवान शिव से राज्य सुरक्षित की प्रार्थना की जाए.

कांवड़ियों के लिए पुख्ता इंतजाम- सीएम
कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तराखंड में भारी तादात में कांवड़िये आते हैं. प्रशासन ने सुरक्षा के लिहाज से अपनी सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि सभी लोग शांतिपूर्वक यात्रा में भाग लें और किसी को किसी तरह से दुख तकलीफ न हो इसका सभी लोग ध्यान रखें. साथ ही बताया कि सरकार ने सभी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद कर ली हैं. कांवड़ यात्रियों की रात्रि में ठहरने के लिए भी इंतजाम किए गए हैं.

Intro:सनातन धर्म में सावन महीने का विशेष महत्व है और सावन महीने को भगवान शंकर का महीना माना जाता है इस दौरान सनातन धर्म के लोग भगवान शंकर की पूजा अर्चना करते हैं, इसके साथ ही सावन महीने में ही कावड़ यात्रा निकलती है। और सावन महीने में कावड़ यात्रा का बहुत महत्व है। यही वजह है कि लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरा करने के लिए पावन यात्रा पर निकलते हैं उस दौरान बाबा भोले के भक्त पैदल यात्रा कर बाबा भोले के लिए जल भरकर लाते हैं और भगवान शंकर का जलाभिषेक करते हैं। आखिर क्या है सावन महीने का महत्व, कब सेे शुरू हुुुई कावड़ यात्रा और क्या है मान्यताए, देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट..........


Body:सावन का महीना शिव भक्तों के लिए बेहद खास होता है और यही वजह है, कि हर साल सावन महीने में लाखों श्रद्धालु अलग-अलग जगहों से हरिद्वार आते हैं। और हरिद्वार पहुंचकर अपने कावड़ में गंगाजल भरते हैं, इसके बाद फिर पैदल यात्रा शुरू कर देते है। कावड़िये पैदल यात्रा कर जो हरिद्वार से अपने कावड़ में जल भरते हैं उसी जल को सावन के चतुर्दशी के दिन भगवान शंकर पर अभिषेक करते हैं। लिहाजा इस साल सावन महीने की शुरूआत 17 जुलाई से शुरू हो रही है और इसी दिन से ही कावड़िए कावड़ यात्रा पर निकल जाएंगे।


.................कावड़ यात्रा की मान्यताए........

कावड़ यात्रा की तमाम मान्यता है लेकिन माना जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने ही गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल भरकर भगवान शंकर का अभिषेक किया था और इसी परंपरा का पालन करते हुए सावन मास में गढ़मुक्तेश्वर से जलाकर लाखों कावड़िए भगवान शंकर पर जल चढ़ाते है। इसके साथ ही पौराणिक मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान राम ने भी भगवान शंकर को कावड़िया बनकर जल चढ़ाया था।


..........17 जुलाई से 15 अगस्त तक है सावन का महीना.......

17 जुलाई से शुरू हो रहे सावन के महीने का आखरी दिन 15 अगस्त है और यह सावन का महीना बेहद ही शुभ माना जा रहा है जिसकी वजह यह है कि इस सावन महीने में चार सोमवार और चार मंगलवार पढ़ रहे हैं लिहाजा सोमवार के दिन व्रत रखने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं और मनचाहा आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही मंगलवार का दिन माता पार्वती को समर्पित है और इस दिन पूजा करने से जीवन में कल्याण और मंगल की प्राप्ति होती है।


..........भगवान शंकर को जल प्रिय है.........

श्रावण कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से और श्रावण कृष्ण चतुर्दशी को कावड़ की यात्रा और व्रत यानी कावड़ियों का लिया हुआ जो संकल्प है वह चतुर्दशी के दिन पूरा हो जाता है। और यह 14 दिवसीय पर्व होता है जिसे महापर्व के रूप में मनाया जाता है इस पर्व में चारो तरफ से तीर्थ यात्री अलग अलग तीर्थों से जलाते हैं और भगवान शंकर पर जल चढ़ाते हैं क्योंकि भगवान शंकर को जल ही प्रिय है, और आम जनजीवन में भी जल का बहुत महत्व है। साथ ही धर्माचार्य ने बताया कि हरिद्वार जल लेने के लिए बहुत आसान और सुव्यवस्थित है इसलिए यहां लाखों की संख्या में कांवड़िए जल भरने आते हैं। पुण्य और धर्म तभी स्थिर रह सकता है जब इसमें बहुत सारी बंदिशे ना लगाई जाएं।


.........जल चढ़ाकर मारकंडे को मिला था वरदान......

धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि भगवान शंकर के कुछ विशेष भक्त हुए जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी भगवान शंकर को जल चढ़ाया था। जो भद्रयु और मारकंडे नाम के भक्त थे, और मारकंडे नाम के भक्त ने भगवान शंकर की आराधना की और अपने जीवन को 16 वर्ष में समाप्त होने के श्राप को वरदान के रूप में प्राप्त किया। और जब तक सृष्टि रहेगी तब तक के लिए मारकंडे चिरंजीवी हो गए थे।


............जल संरक्षण से जुड़ा है कावड़ यात्रा.....

धर्माचार्य सुभाष जोशी ने बताया कि कावड़ की व्यवस्था प्राचीन काल से चली आ रही है और इसका बहुत ही पौराणिक इतिहास रहा है। और त्रेता युग के समय पर भी इसकी व्यवस्था थी। जिसका मुख्य उद्देश्य था कि तीर्थों से जल को लाकर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया जाए और भगवान शंकर से प्रार्थना करें कि हमारा राज्य सुरक्षित रहे। साथ ही शरीर मे रहने वाला 75 से 80 फीसदी जलीय तत्व से अग्नि तत्व प्रभावित हो क्योंकि अग्नि तत्व से ही भूख प्यास लगती हैं और इंसान तेजस्वी होता है। इसी वजह से कावड़ का महत्व रहा है कि जल की सुरक्षा, संरक्षण व संवर्धन हो। 


.........कावड़ियों के लिए पुख्ता इंतज़ामात - सीएम........

कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तराखंड में भारी तादात में कांवड़िए आते हैं। प्रशासन ने सुरक्षा के लिहाज से अपनी सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि सभी लोग शांतिपूर्वक यात्रा में भाग लें और किसी को किसी तरह से दुख तकलीफ ना हो इसका सभी लोग ध्यान रखें। साथ ही बताया कि सरकार ने सभी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद कर ली हैं।कांवड़ यात्रियों की रात्रि में ठहरने के लिए भी इंतजाम किए गए हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से जगह-जगह पर डॉक्टर्स की व्यवस्था की गई है। स्वच्छता की दृष्टि से और जो मूलभूत सुविधाएं हैं उनके लिए सरकार ने इंतजाम किए हैं। साथ ही कहा कि लोग बड़े आनंद के साथ इस कांवड़ यात्रा में भाग लें। 

बाइट - त्रिवेंद्र सिंह रावत, सीएम, उत्तराखण्ड


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