देहरादूनः आज आधुनिकता के दौर में हाईटेक मशीनों से मिनटों में एक से बढ़कर एक कलाकृतियों की वस्तुएं तैयार हो जाती हैं. लेकिन गुज़रे जमाने से चली आ रही हाथ की बेमिसाल कारीगरी का कोई जवाब नहीं. राजा- महाराजाओं के वक्त से लेकर ब्रिटिश शासनकाल तक हस्तशिल्प के कारीगरों ने हर किसी को अपनी अद्भुत कलाकारी से दीवाना बनाया. 1954 में अपनी नायाब हस्तकला की विरासत को पाकिस्तान से देहरादून लेकर पहुंचे एक परिवार से मिला ईटीवी भारत. ये परिवार ब्रिटिश काल से आज तक देश की सभी सेनाओं के साथ-साथ इराक व ब्रितानिया जैसे राष्ट्रों के सैन्य प्रतीक चिन्ह और मोमेंटो जैसे साजो-सामान को अपने हाथ की बेमिसाल कलाकारी से निर्मित कर रहा है.
अविभाज्य भारत के वक्त ये परिवार पाकिस्तान में रहता था. लेकिन, बंटवारें के बाद 1954 में अपना सबकुछ खोने के बाद देहरादून पहुंचे सरदार जसवीर सिंह के पिता स्वर्गीय जोध सिंह. हस्तशिल्प की कारीगरी में जोध सिंह इतने माहिर थे कि इनकी कारीगरी के दीवानों में एक नाम इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन का भी था. अंग्रेजी ब्रितानिया फौज से लेकर रंगून की सेना तक भी उनकी हाथ की कला की दीवानी थी. आज 70 वर्षीय जसवीर सिंह अपने पिता की इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. देश की तीनों सेनाओं का प्रतीक चिन्ह, मोमेंटो, सोने-चांदी के वस्तुएं, खुखरी और तलवार आदि को अपनी हस्तकला से तैयार करते हैं.
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आईएमए की ऐतिहासिक चेटवुड बिल्डिंग में क्रॉफ्ट कलाकारी
हस्तशिल्प कारीगरी में उस्ताद सरदार जसवीर सिंह के पिता स्वर्गीय जोध सिंह ने ही देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) की ऐतिहासिक चेटवुड बिल्डिंग हॉल के अंदर क्रॉफ्ट कलाकारी की थी. गौरवान्वित महसूस करने वाले अलग-अलग युद्ध के सैन्य प्रतीक चिन्ह और मोमेंटो को हस्तकला कारीगरी से तैयार कर कई वस्तुओं से सुशोभित किया. इतना ही नहीं आईएमए पासिंग आउट परेड में पीओपी के दौरान बेस्ट कैडेट को मिलने वाली स्वार्ड ऑफ ऑनर के रूप में मिलने वाली तलवार भी जोध सिंह एंड संस की हस्तकला से की तैयार किया जाता है.
सद्दाम हुसैन की नायाब स्मृतियां भी तैयार की
हस्तकला के माहिर सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक, उनके पिता जोध सिह द्वारा इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन की इराकी डैगर के साथ पीतल व चांदी की म्यान तैयार की गई थी. इस कार्य से सद्दाम इतना खुश हुआ कि उसने अपने लिए सोने की बंदूक भी जोध सिह से स्पेशल डिमांड देकर बनवाई.
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सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक ब्रिटिश काल में ब्रिटेन गई 5/GR के ज्यादातर फौजी साजो-सामान काफी समय तक उनकी ही फर्म द्वारा तैयार किए जाते रहे. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए अपनी हस्तशिल्पी धरोहर को आगे बढ़ा रहे 70 साल के जसवीर सिंह ने बताया कि आज भी हाथ की कारीगरी के कद्रदान देश-विदेश में तीनों अंगों की सेनाओं के साथ-साथ कई ऐसी संस्थाएं हैं जो उनसे हस्तशिल्प वस्तुएं तैयार करवा कर उनकी सेवाएं ले रही हैं.