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ब्रिटिशकाल से सेना के प्रतीक चिन्ह बना रहा ये परिवार, सद्दाम हुसैन भी थे मुरीद - देहरादून न्यूज

ब्रिटिश काल से सैन्य के प्रतीक चिह्न को ये परिवार हस्तकला से निर्मित कर रहा है. विभाजन के बाद देहरादून बसा ये परिवार अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहा है. इराक के शासक सद्दाम हुसैन भी इस परिवार के हस्तशिल्प का कायल थे.

सरदार जसवीर सिंह
सरदार जसवीर सिंह
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Published : Jan 11, 2020, 9:57 PM IST

Updated : Jan 11, 2020, 11:53 PM IST

देहरादूनः आज आधुनिकता के दौर में हाईटेक मशीनों से मिनटों में एक से बढ़कर एक कलाकृतियों की वस्तुएं तैयार हो जाती हैं. लेकिन गुज़रे जमाने से चली आ रही हाथ की बेमिसाल कारीगरी का कोई जवाब नहीं. राजा- महाराजाओं के वक्त से लेकर ब्रिटिश शासनकाल तक हस्तशिल्प के कारीगरों ने हर किसी को अपनी अद्भुत कलाकारी से दीवाना बनाया. 1954 में अपनी नायाब हस्तकला की विरासत को पाकिस्तान से देहरादून लेकर पहुंचे एक परिवार से मिला ईटीवी भारत. ये परिवार ब्रिटिश काल से आज तक देश की सभी सेनाओं के साथ-साथ इराक व ब्रितानिया जैसे राष्ट्रों के सैन्य प्रतीक चिन्ह और मोमेंटो जैसे साजो-सामान को अपने हाथ की बेमिसाल कलाकारी से निर्मित कर रहा है.

ब्रिटिशकाल से सेना के प्रतीक चिन्ह बना रहा ये परिवार

अविभाज्य भारत के वक्त ये परिवार पाकिस्तान में रहता था. लेकिन, बंटवारें के बाद 1954 में अपना सबकुछ खोने के बाद देहरादून पहुंचे सरदार जसवीर सिंह के पिता स्वर्गीय जोध सिंह. हस्तशिल्प की कारीगरी में जोध सिंह इतने माहिर थे कि इनकी कारीगरी के दीवानों में एक नाम इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन का भी था. अंग्रेजी ब्रितानिया फौज से लेकर रंगून की सेना तक भी उनकी हाथ की कला की दीवानी थी. आज 70 वर्षीय जसवीर सिंह अपने पिता की इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. देश की तीनों सेनाओं का प्रतीक चिन्ह, मोमेंटो, सोने-चांदी के वस्तुएं, खुखरी और तलवार आदि को अपनी हस्तकला से तैयार करते हैं.

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पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं सरदार जसवीर सिंह.

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आईएमए की ऐतिहासिक चेटवुड बिल्डिंग में क्रॉफ्ट कलाकारी
हस्तशिल्प कारीगरी में उस्ताद सरदार जसवीर सिंह के पिता स्वर्गीय जोध सिंह ने ही देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) की ऐतिहासिक चेटवुड बिल्डिंग हॉल के अंदर क्रॉफ्ट कलाकारी की थी. गौरवान्वित महसूस करने वाले अलग-अलग युद्ध के सैन्य प्रतीक चिन्ह और मोमेंटो को हस्तकला कारीगरी से तैयार कर कई वस्तुओं से सुशोभित किया. इतना ही नहीं आईएमए पासिंग आउट परेड में पीओपी के दौरान बेस्ट कैडेट को मिलने वाली स्वार्ड ऑफ ऑनर के रूप में मिलने वाली तलवार भी जोध सिंह एंड संस की हस्तकला से की तैयार किया जाता है.


सद्दाम हुसैन की नायाब स्मृतियां भी तैयार की
हस्तकला के माहिर सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक, उनके पिता जोध सिह द्वारा इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन की इराकी डैगर के साथ पीतल व चांदी की म्यान तैयार की गई थी. इस कार्य से सद्दाम इतना खुश हुआ कि उसने अपने लिए सोने की बंदूक भी जोध सिह से स्पेशल डिमांड देकर बनवाई.

पढ़ेंः बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ: एक साल में 150 गांवों तक पहुंची मुहिम

सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक ब्रिटिश काल में ब्रिटेन गई 5/GR के ज्यादातर फौजी साजो-सामान काफी समय तक उनकी ही फर्म द्वारा तैयार किए जाते रहे. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए अपनी हस्तशिल्पी धरोहर को आगे बढ़ा रहे 70 साल के जसवीर सिंह ने बताया कि आज भी हाथ की कारीगरी के कद्रदान देश-विदेश में तीनों अंगों की सेनाओं के साथ-साथ कई ऐसी संस्थाएं हैं जो उनसे हस्तशिल्प वस्तुएं तैयार करवा कर उनकी सेवाएं ले रही हैं.

देहरादूनः आज आधुनिकता के दौर में हाईटेक मशीनों से मिनटों में एक से बढ़कर एक कलाकृतियों की वस्तुएं तैयार हो जाती हैं. लेकिन गुज़रे जमाने से चली आ रही हाथ की बेमिसाल कारीगरी का कोई जवाब नहीं. राजा- महाराजाओं के वक्त से लेकर ब्रिटिश शासनकाल तक हस्तशिल्प के कारीगरों ने हर किसी को अपनी अद्भुत कलाकारी से दीवाना बनाया. 1954 में अपनी नायाब हस्तकला की विरासत को पाकिस्तान से देहरादून लेकर पहुंचे एक परिवार से मिला ईटीवी भारत. ये परिवार ब्रिटिश काल से आज तक देश की सभी सेनाओं के साथ-साथ इराक व ब्रितानिया जैसे राष्ट्रों के सैन्य प्रतीक चिन्ह और मोमेंटो जैसे साजो-सामान को अपने हाथ की बेमिसाल कलाकारी से निर्मित कर रहा है.

ब्रिटिशकाल से सेना के प्रतीक चिन्ह बना रहा ये परिवार

अविभाज्य भारत के वक्त ये परिवार पाकिस्तान में रहता था. लेकिन, बंटवारें के बाद 1954 में अपना सबकुछ खोने के बाद देहरादून पहुंचे सरदार जसवीर सिंह के पिता स्वर्गीय जोध सिंह. हस्तशिल्प की कारीगरी में जोध सिंह इतने माहिर थे कि इनकी कारीगरी के दीवानों में एक नाम इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन का भी था. अंग्रेजी ब्रितानिया फौज से लेकर रंगून की सेना तक भी उनकी हाथ की कला की दीवानी थी. आज 70 वर्षीय जसवीर सिंह अपने पिता की इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. देश की तीनों सेनाओं का प्रतीक चिन्ह, मोमेंटो, सोने-चांदी के वस्तुएं, खुखरी और तलवार आदि को अपनी हस्तकला से तैयार करते हैं.

jodh-singh-and-sons
पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं सरदार जसवीर सिंह.

पढ़ेंः DIGITAL INDIA मुहिम को लग रहा पलीता, नेपाल के नेटवर्क के सहारे भारत से सटे गांव

आईएमए की ऐतिहासिक चेटवुड बिल्डिंग में क्रॉफ्ट कलाकारी
हस्तशिल्प कारीगरी में उस्ताद सरदार जसवीर सिंह के पिता स्वर्गीय जोध सिंह ने ही देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) की ऐतिहासिक चेटवुड बिल्डिंग हॉल के अंदर क्रॉफ्ट कलाकारी की थी. गौरवान्वित महसूस करने वाले अलग-अलग युद्ध के सैन्य प्रतीक चिन्ह और मोमेंटो को हस्तकला कारीगरी से तैयार कर कई वस्तुओं से सुशोभित किया. इतना ही नहीं आईएमए पासिंग आउट परेड में पीओपी के दौरान बेस्ट कैडेट को मिलने वाली स्वार्ड ऑफ ऑनर के रूप में मिलने वाली तलवार भी जोध सिंह एंड संस की हस्तकला से की तैयार किया जाता है.


सद्दाम हुसैन की नायाब स्मृतियां भी तैयार की
हस्तकला के माहिर सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक, उनके पिता जोध सिह द्वारा इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन की इराकी डैगर के साथ पीतल व चांदी की म्यान तैयार की गई थी. इस कार्य से सद्दाम इतना खुश हुआ कि उसने अपने लिए सोने की बंदूक भी जोध सिह से स्पेशल डिमांड देकर बनवाई.

पढ़ेंः बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ: एक साल में 150 गांवों तक पहुंची मुहिम

सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक ब्रिटिश काल में ब्रिटेन गई 5/GR के ज्यादातर फौजी साजो-सामान काफी समय तक उनकी ही फर्म द्वारा तैयार किए जाते रहे. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए अपनी हस्तशिल्पी धरोहर को आगे बढ़ा रहे 70 साल के जसवीर सिंह ने बताया कि आज भी हाथ की कारीगरी के कद्रदान देश-विदेश में तीनों अंगों की सेनाओं के साथ-साथ कई ऐसी संस्थाएं हैं जो उनसे हस्तशिल्प वस्तुएं तैयार करवा कर उनकी सेवाएं ले रही हैं.

Intro:pls नोट डेस्क- महोदय इस स्पेशल स्टोरी के विसुअल, one to one live U 08 से भेजी गई हैं। फोल्डर -"military momento handicraft"

summary-ब्रिटिश काल से सैन्य के प्रतीक चिह्न को हस्तकला से निर्मित करता ये परिवार... 1947 में पाकिस्तान से उजड़ कर देहरादून परिवार अपनी विरासत को आगे बढ़ाता, इराक़ शासक सदद्दाम हुसैन थे इस परिवार के हस्तशिल्प के क़ायल।


आज के आधुनिक समय मे भले ही हाईटेक मशीनों से मिनटों में एक से बढ़कर एक कला कृतियों की वस्तुएं तैयार होती हो, लेकिन गुज़रे ज़माने में हाथ की बेमिसाल कारीगर का कोई जवाब नहीं हैं। राजा महाराजा के वक्त से लेकर ब्रिटिश शासनकाल तक हस्तशिल्प के कारीगरों ने हर किसी को अपनी अद्भुत कलाकारी से दीवाना बनाया।
ईटीवी भारत ने इसी परिदृश्य में 1954 में पाकिस्तान से अपनी नायाब हस्तकला को विरासत में लेकर देहरादून आए एक ऐसे परिवार की जानकारी हासिल की, जो ब्रिटिश काल से आज तक देश की तीनों सेनाओं के साथ-साथ इराक व ब्रितानिया जैसे राष्ट्रों के सैन्य प्रतीक चिन्ह और मोमेंटो जैसे साजो सामान को अपने हाथ की बेमिशाल कलाकारी की विरासत को आगे बढ़ा रहा है।
देश के बंटवारें के समय 1954 में अपना सबकुछ उजड़ कर देहरादून आये सरदार जसवीर सिंह के पिता स्वर्गीय जोध सिंह हस्तशिल्प की वो कारीगरी में इतने माहिर थे उनके कला कृति के दीवाने इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन,अंग्रेजी ब्रितानिया फ़ौज से लेकर रंगून की सेना तक भी उनकी हाथ की कला की दीवानी थी। आज 70 वर्षीय जसवीर सिंह अपने पिता के द्वारा मिली हस्तकला को विरासत के रूप में संजोय हुए देश की तीनों सेनाओं का प्रतीक चिन्ह,मैमेंटो, सोने चांदी के वस्तुएं खुखरी, तलवार फौज के सभी साजों सामान हस्तकला के माध्यम से तैयार करते हैं।


Body:आईएमए की ऐतिहासिक चेटवुड बिल्डिंग में क्रॉफ्ट कलाकारी से लेकर पास आउट अफसरों

विरासत में मिली हस्तशिल्पी कारीगरी में उस्ताद सरदार जसवीर सिंह के पिता स्वर्गीय जोध सिंह द्वारा ही देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी ( IMA) की ऐतिहासिक चेटवुड बिल्डिंग हाल के अंदर कई ऐतिहासिक गौरवान्वित महसूस करने वाले अलग अलग युद्ध के सैन्य प्रतीक चिन्ह,मैमेंटो के अलावा tomatoes को हस्तकला कारीगरी से तैयार कर कई वस्तुओं से सुशोभित किया गया हैं। इतना ही नहीं भारतीय सैन्य अकादमी ( IMA) में होने वाली पासिंग आउट परेड POP) के दौरान बेस्ट कैडेट्स को मिलने वाला Soward's (तलवार) को भी जोध सिंह एंड संस की हस्तकला द्वारा ही आज तक तैयार किया जाता रहा हैं।

विसुअल - जसवीर सिंह द्वारा बताते हुए


इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन की नायाब स्मृतियां भी तैयार की

वही हाथ कला के माहिर सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक उनके पिता स्वर्गीय जोध सिह द्वारा ही इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन की इराक़ी डैगर के साथ पीतल व चाँदी की म्यान भी तैयार की गई थी। इस कार्य से इराक़ के पूर्व शासक सद्दाम इतने खुश हुए कि उन्होंने अपने लिए सोने की बंदूक भी जोध सिह से स्पेशल डिमांड बनवाई।
सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक ब्रिटिश काल में ब्रिटेन गई 5/GR के ज्यादातर फौजी साजो सामान काफी समय तक उनकी ही फर्म द्वारा तैयार किए जाते रहे. पुश्तैनी हस्तकला की धरोहर को विरासत के रूप में संजोकर पिछले 50 सालों से हस्तशिल्पी के माहिर जसवीर सिंह के मुताबिक सन 1945 से 1956 के बीच उनके पिता जोध सिंह द्वारा ब्रिटिश आर्मी रॉयल मिलिट्री अकादमी जो उस वक्त पाकिस्तान के एबटाबाद में थी सेना की सभी एक से बढ़कर एक नायाब साजो सामान तैयार किए जाते थे। देश की आजादी और उसके बाद बंटवारा होने के बाद अपना सब कुछ गवा कर जोध सिंह ने अपने परिवार देहरादून के पलटन बाजार पहुंचा जहां से उन्होंने सड़क किनारे बैठकर अपना फिर से हाथ का हुनर का कार्य शुरू किया।


विसुअल - जसवीर सिंह द्वारा बताते हुए


Conclusion:ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए अपनी हस्तशिल्पी धरोहर को आगे बढ़ा रहे 70 वर्षीय जसवीर सिंह ने बताया कि, आज भी हाथ की कारीगरी के कद्रदान देश-विदेश में तीनों अंगों की सेनाओं के साथ साथ कई ऐसी संस्थाएं हैं जो उनसे हस्तशिल्पी वस्तुएं तैयार करवा कर उनकी सेवाएं ले रही है।

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सरदार जसवीर सिंह
Last Updated : Jan 11, 2020, 11:53 PM IST
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