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पहाड़ी युवक की मदद से रुका पलायन, जापानी फर्म के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स पहुंच रहे विदेश

ईटीवी भारत की पलायन सीरीज में पहाड़ी युवक राकेश सिंह की कहानी जानें. राकेश ने जापान की टेक्सटाइल डिजाइनर की मदद से देहरादून से 20 किमी दूर भोगपुर जैसे दूरस्थ इलाके में फर्म स्थापित करने में मदद की है. इस फर्म से भोगपुर के करीब 50 ग्रामीणों को रोजगार मिल रहा है.

पहाड़ी युवक राकेश सिंह की मदद से रुका पलायन.
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Published : Jun 28, 2019, 11:26 AM IST

Updated : Jun 28, 2019, 6:15 PM IST

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड से पलायन रोकने को लेकर शुरू की गई ईटीवी भारत की मुहिम 'आ अब लौटें' को प्रदेशभर से काफी सराहना मिल रही है. हमारी कोशिश है कि पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आ सके. कुछ ऐसी ही पहल पौड़ी निवासी एक युवक ने भी की है. अपनी पलायन सीरीज में आज हम युवा राकेश सिंह की कहानी सामने लेकर आए हैं. राकेश की पहल से पहाड़ के दूसरे युवा प्रेरणा ले सकते हैं और अपने प्रदेश में ही रोजगार के अच्छे साधन खोज सकते हैं. ये कहानी एक फर्म की है जिसकी बदौलत रिवर्स माइग्रेशन की दिशा में काम किया जा रहा है.

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टेक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी.

दरअसल, जापान निवासी टेक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी ने देहरादून से लगभग 20 किलोमीटर दूर भोगपुर में एक खास तरह का टेक्सटाइल फर्म शुरू किया है. यहां कपड़ा बनाने के लिए तरह-तरह के रंगबिरंगे धागों को प्राकृतिक तरीके से तैयार किए जाते हैं. भोगपुर स्थित इस टेक्सटाइल फर्म को देहरादून में स्थापित करने के पीछे उत्तराखंड पौड़ी के राकेश सिंह का काफी बड़ा योगदान है. राकेश फर्म में बतौर निदेशक काम कर रहे हैं.

जापानी फर्म दून में बना रही ऑर्गेनिक उत्पाद.

राकेश ने जापान में काम करने वाले टेक्सटाइल डिजाइनर को अपने गांव में फर्म खोलने का न्योता दिया, जिससे इस गांव से बदस्तूर हो रहे पलायन को रोकने में मदद मिली. साथ ही स्थानीय लोगों को गांव में ही रोजगार मिल गया. राकेश का ये कदम नजीर बना हुआ है. प्रदेश के स्थानीय युवा द्वारा उठाये गए कदम को अन्य लोगों तक पहुंचाने के लिये ईटीवी भारत की टीम ने इस टेक्सटाइल फर्म का जायजा लिया.

ईटीवी भारत की मुहिम को सपोर्ट करते फर्म के निदेशक राकेश सिंह.

फर्म के निदेशक राकेश सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि इस फर्म को मुख्य शहर में स्थापित करने के बजाय भोगपुर जैसे दूरस्थ इलाके में स्थापित करने का कारण यहां के स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ना है. उन्होंने बताया कि फर्म में भोगपुर और आस-पास के लगभग 50 से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं और पुरुष काम रहे हैं. पलायन के खिलाफ ईटीवी भारत द्वारा चलाई जा रही मुहिम का जिक्र करते हुए राकेश ने कहा कि यदि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों के दुरुस्त ग्रामीण इलाकों में भी इस तरह से छोटी टेक्सटाइल फैक्ट्रियां या कोई अन्य छोटा व्यापार शुरू किया जाए तो पलायन पर निश्चित तौर पर लगाम लगेगी.

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फर्म के काम को प्रदर्शित करती चियाकी माकी.

ईटीवी भारत ने जब फर्म का दौरा किया तो पाया कि यहां कड़ी मेहनत से धागों विभिन्न रंगों के धागों को हाथों से ही तैयार किया जाता है. यहां कोकून, रुई, और देश के विभिन्न राज्यों से आने वाली तरह-तरह की ऊन के धागे तैयार होते हैं. इन धागों को फर्म के ही बगीचे में उगाए गये विभिन्न फलों और उनके रस को तेज आंच में पकाकर प्राकृतिक तरीके से रंगा जाता है.

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फर्म में बने कपड़े.

पढ़ें- बुजुर्ग मां को बेटों ने किया 'अनाथ', भटकते हुए मिला बेटी का साथ

टेक्सटाइल फर्म के संस्थापक चियाकी माकी यहां इन धागों से तरह-तरह के कपड़ों को भी बनाते हैं. यह कपड़े तैयार होने के बाद सीधे जापान की राजधानी टोकियो भेजे जाते हैं. टेक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी बताती हैं कि जापान में भारत में प्राकृतिक तरह से तैयार किए जा रहे इन कपड़ों की काफी ज्यादा डिमांज है.

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फर्म के कपड़ों को प्रदर्शित करतीं संस्थापक चियाकी माकी.

पढ़ें- ऊर्जा के क्षेत्र में उतरा इंडियन ऑयल, 64 लाख की लागत से लगाया सोलर प्लांट

ईटीवी भारत से खास बातचीत में जापानी टैक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी ने बताया कि उन्हें हमेशा ही प्राकृतिक तरह से तैयार की गई चीजें पसन्द आती हैं. इसलिए, बतौर एक टेक्सटाइल डिजाइनर उन्होंने इस फर्म में प्राकृतिक धागों और कपाड़ों को बनाना शुरू किया. उन्होंने बताया कि इस कार्य में उनकी मदद उत्तराखंड पौड़ी के राकेश सिंह ने की.

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फर्म में काम करती स्थानीय महिला.

पढ़ें- केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग में दिखा दुर्लभ प्रजाति का बाघ, कैमरे में कैद हुईं तस्वीरें

बता दें कि देहरादून के भोगपुर स्थित इस टेक्सटाइल फर्म की शुरुआत साल 2017 में हुई थी. इस पूरे टेक्सटाइल फॉर्म को पुराने वास्तुकला के आधार पर तैयार किया गया है. इसे तैयार करने में ज्यादा से ज्यादा गीली मिट्टी, बांस, पहाड़ी पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है.

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फर्म में काम करती स्थानीय महिला.

नोट: ईटीवी भारत की मुहिम 'आ अब लौटें' एक सच्ची कोशिश है कि लगातार पलायन से खाली हो रहे पहाड़ पर फिर से खुशहाली लौटे. पहाड़ों की बंद चौखटों फिर से खुल सकें. अपने गांव को छोड़कर जा चुके लोग फिर से राह तकती गलियों में लौट सकें. हमारी कोशिश को चाहिये आपका साथ. जुड़ें हमारी मुहिम से- आ अब लौटें.

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड से पलायन रोकने को लेकर शुरू की गई ईटीवी भारत की मुहिम 'आ अब लौटें' को प्रदेशभर से काफी सराहना मिल रही है. हमारी कोशिश है कि पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आ सके. कुछ ऐसी ही पहल पौड़ी निवासी एक युवक ने भी की है. अपनी पलायन सीरीज में आज हम युवा राकेश सिंह की कहानी सामने लेकर आए हैं. राकेश की पहल से पहाड़ के दूसरे युवा प्रेरणा ले सकते हैं और अपने प्रदेश में ही रोजगार के अच्छे साधन खोज सकते हैं. ये कहानी एक फर्म की है जिसकी बदौलत रिवर्स माइग्रेशन की दिशा में काम किया जा रहा है.

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टेक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी.

दरअसल, जापान निवासी टेक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी ने देहरादून से लगभग 20 किलोमीटर दूर भोगपुर में एक खास तरह का टेक्सटाइल फर्म शुरू किया है. यहां कपड़ा बनाने के लिए तरह-तरह के रंगबिरंगे धागों को प्राकृतिक तरीके से तैयार किए जाते हैं. भोगपुर स्थित इस टेक्सटाइल फर्म को देहरादून में स्थापित करने के पीछे उत्तराखंड पौड़ी के राकेश सिंह का काफी बड़ा योगदान है. राकेश फर्म में बतौर निदेशक काम कर रहे हैं.

जापानी फर्म दून में बना रही ऑर्गेनिक उत्पाद.

राकेश ने जापान में काम करने वाले टेक्सटाइल डिजाइनर को अपने गांव में फर्म खोलने का न्योता दिया, जिससे इस गांव से बदस्तूर हो रहे पलायन को रोकने में मदद मिली. साथ ही स्थानीय लोगों को गांव में ही रोजगार मिल गया. राकेश का ये कदम नजीर बना हुआ है. प्रदेश के स्थानीय युवा द्वारा उठाये गए कदम को अन्य लोगों तक पहुंचाने के लिये ईटीवी भारत की टीम ने इस टेक्सटाइल फर्म का जायजा लिया.

ईटीवी भारत की मुहिम को सपोर्ट करते फर्म के निदेशक राकेश सिंह.

फर्म के निदेशक राकेश सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि इस फर्म को मुख्य शहर में स्थापित करने के बजाय भोगपुर जैसे दूरस्थ इलाके में स्थापित करने का कारण यहां के स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ना है. उन्होंने बताया कि फर्म में भोगपुर और आस-पास के लगभग 50 से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं और पुरुष काम रहे हैं. पलायन के खिलाफ ईटीवी भारत द्वारा चलाई जा रही मुहिम का जिक्र करते हुए राकेश ने कहा कि यदि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों के दुरुस्त ग्रामीण इलाकों में भी इस तरह से छोटी टेक्सटाइल फैक्ट्रियां या कोई अन्य छोटा व्यापार शुरू किया जाए तो पलायन पर निश्चित तौर पर लगाम लगेगी.

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फर्म के काम को प्रदर्शित करती चियाकी माकी.

ईटीवी भारत ने जब फर्म का दौरा किया तो पाया कि यहां कड़ी मेहनत से धागों विभिन्न रंगों के धागों को हाथों से ही तैयार किया जाता है. यहां कोकून, रुई, और देश के विभिन्न राज्यों से आने वाली तरह-तरह की ऊन के धागे तैयार होते हैं. इन धागों को फर्म के ही बगीचे में उगाए गये विभिन्न फलों और उनके रस को तेज आंच में पकाकर प्राकृतिक तरीके से रंगा जाता है.

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फर्म में बने कपड़े.

पढ़ें- बुजुर्ग मां को बेटों ने किया 'अनाथ', भटकते हुए मिला बेटी का साथ

टेक्सटाइल फर्म के संस्थापक चियाकी माकी यहां इन धागों से तरह-तरह के कपड़ों को भी बनाते हैं. यह कपड़े तैयार होने के बाद सीधे जापान की राजधानी टोकियो भेजे जाते हैं. टेक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी बताती हैं कि जापान में भारत में प्राकृतिक तरह से तैयार किए जा रहे इन कपड़ों की काफी ज्यादा डिमांज है.

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फर्म के कपड़ों को प्रदर्शित करतीं संस्थापक चियाकी माकी.

पढ़ें- ऊर्जा के क्षेत्र में उतरा इंडियन ऑयल, 64 लाख की लागत से लगाया सोलर प्लांट

ईटीवी भारत से खास बातचीत में जापानी टैक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी ने बताया कि उन्हें हमेशा ही प्राकृतिक तरह से तैयार की गई चीजें पसन्द आती हैं. इसलिए, बतौर एक टेक्सटाइल डिजाइनर उन्होंने इस फर्म में प्राकृतिक धागों और कपाड़ों को बनाना शुरू किया. उन्होंने बताया कि इस कार्य में उनकी मदद उत्तराखंड पौड़ी के राकेश सिंह ने की.

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फर्म में काम करती स्थानीय महिला.

पढ़ें- केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग में दिखा दुर्लभ प्रजाति का बाघ, कैमरे में कैद हुईं तस्वीरें

बता दें कि देहरादून के भोगपुर स्थित इस टेक्सटाइल फर्म की शुरुआत साल 2017 में हुई थी. इस पूरे टेक्सटाइल फॉर्म को पुराने वास्तुकला के आधार पर तैयार किया गया है. इसे तैयार करने में ज्यादा से ज्यादा गीली मिट्टी, बांस, पहाड़ी पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है.

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फर्म में काम करती स्थानीय महिला.

नोट: ईटीवी भारत की मुहिम 'आ अब लौटें' एक सच्ची कोशिश है कि लगातार पलायन से खाली हो रहे पहाड़ पर फिर से खुशहाली लौटे. पहाड़ों की बंद चौखटों फिर से खुल सकें. अपने गांव को छोड़कर जा चुके लोग फिर से राह तकती गलियों में लौट सकें. हमारी कोशिश को चाहिये आपका साथ. जुड़ें हमारी मुहिम से- आ अब लौटें.

Intro: File send from Live U folder Name- Textile Firm देहरादून- जापान की रहने वाली एक टेक्सटाइल डिज़ाइनर ने राजधानी देहरादून से लगभग 20 किलोमीटर दूर भोगपुर में एक खास तरह का टेक्सटाइल फर्म शुरू किया है । जहां कपड़ें के साथ ही कपड़ा बनाने में काम आने वाले तरह-तरह के रंगबिरंगे धागे प्राकृतिक तरह से तैयार किए जाते हैं । बता दें कि भोगपुर स्थित इस टेक्सटाइल फर्म के संस्थापक जापान की रहने वाली चियाकी माकी और परवा तनाका हैं । वहीं इस फर्म के निर्देशक उत्तराखंड के पौड़ी जनपद से ताहलुक रखने वाले राकेश सिंह है ।


Body: ईटीवी भारत की टीम जब खुद इस टेक्सटाइल फर्म का जायज़ा लेने पहुँची तो हम भी यहां कड़ी मेहनत से हाथों से तैयार किए जा रहे धागों के कार्य को देखकर दंग रह गए । यहां कोकून, रुई, और देश के विभिन्न राज्यों से आने वाली तरह तरह की उन्न के धागे तैयार किए जाते हैं । वहीं इन धागों को फर्म के अपने बगीचे में उगाए जाने वाले विभिन्न फलों और फूलों के रस को तेज़ आंच में पकाकर प्राकृतिक तरह से रंगा जाता है । byte- चियाकी माकी संस्थापक टेक्सटाइल फर्म वहीं यहां मौजूद हैंडलूम में ही इन धागों से तरह -तरह के कपड़ों की बनाई भी की जाती है । यह कपड़े तैयार होने के बाद सीधे जापान की राजधानी टोकियो भेज दिए जाते है । टेक्सटाइल डिज़ाइनर चियाकी माकी बताती हैं कि जापान में भारत में प्राकृतिक तरह से तैयार किए जा रहे इन कपड़ों की काफी ज्यादा मांग है । वहां के स्थानिय निवासी इन्हें खरीदना बहुत पसंद करते हैं । ईटीवी भारत से खास बातचीत में जापानी टैक्सटाइल डिजाइनर चियाकि माकी ने बताया कि उन्हें हमेशा ही प्राकृतिक तरह से तैयार की चीजें पसन्द आती है । इसलिए बतौर एक टेक्सटाइल डिज़ाइनर उन्होंने सोचा कि क्यों न एक ऐसा टेक्सटाइल फर्म शुरू किया जाए जहां धागे से लेकर कपड़े तक को प्राकृतिक तरह से हाथों से बनाया जाए। जिसमें उनकी मदद उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के रहने वाले राकेश सिंह ने करी । note - please attach the one to one here बता दें कि देहरादून के भोगपुर स्थित इस टेक्सटाइल फर्म की शुरुआत साल 2017 में हुई थी । इस पूरे टेक्सटाइल फॉर्म को पुराने वास्तुकला के आधार पर तैयार किया गया है । इसे तैयार करने में ज्यादा से ज्यादा गीली मिट्टी, बांस , पहाड़ी पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है ।


Conclusion:फर्म के निदेशक राकेश सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि इस फॉर्म को मुख्य शहर में स्थापित करने के बजाय भोगपुर जैसे दूरस्थ इलाके में स्थापित करने का एक बहुत बड़ा कारण यहां के स्थानीय ग्रामीणों को उनके अपने की गांव में रोजगार मुहैया कराना भी है । वर्तमान में उनके फर्म में भोगपुर और आस-पास के लगभग 50 से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं और पुरुष काम रहे हैं । बाइट- राकेश सिंह निदेशक पलायन के खिलाफ ईटीवी भारत द्वारा चलाई जा रही मुहिम का जिक्र करते हुए राकेश का कहना था कि यदि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों के दुरुस्त ग्रामीण इलाकों में भी इस तरह से छोटी टेक्सटाइल फैक्ट्रियां या कोई अन्य छोटा व्यापार शुरू किया जाए तो पलायन पर निश्चित तौर पर लगाम लग सकेगी । बहरहाल इस टेक्सटाइल फर्म में आकर हमे बड़े ही स्पष्ट तौर पर इस बात का एहसास जरूर हुआ कि जिन कपड़ों का इस्तेमाल हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं । आखिर वह कपड़े कितनी कड़ी मेहनत से बनाए जाते हैं ।
Last Updated : Jun 28, 2019, 6:15 PM IST
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