देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड से पलायन रोकने को लेकर शुरू की गई ईटीवी भारत की मुहिम 'आ अब लौटें' को प्रदेशभर से काफी सराहना मिल रही है. हमारी कोशिश है कि पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आ सके. कुछ ऐसी ही पहल पौड़ी निवासी एक युवक ने भी की है. अपनी पलायन सीरीज में आज हम युवा राकेश सिंह की कहानी सामने लेकर आए हैं. राकेश की पहल से पहाड़ के दूसरे युवा प्रेरणा ले सकते हैं और अपने प्रदेश में ही रोजगार के अच्छे साधन खोज सकते हैं. ये कहानी एक फर्म की है जिसकी बदौलत रिवर्स माइग्रेशन की दिशा में काम किया जा रहा है.
दरअसल, जापान निवासी टेक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी ने देहरादून से लगभग 20 किलोमीटर दूर भोगपुर में एक खास तरह का टेक्सटाइल फर्म शुरू किया है. यहां कपड़ा बनाने के लिए तरह-तरह के रंगबिरंगे धागों को प्राकृतिक तरीके से तैयार किए जाते हैं. भोगपुर स्थित इस टेक्सटाइल फर्म को देहरादून में स्थापित करने के पीछे उत्तराखंड पौड़ी के राकेश सिंह का काफी बड़ा योगदान है. राकेश फर्म में बतौर निदेशक काम कर रहे हैं.
राकेश ने जापान में काम करने वाले टेक्सटाइल डिजाइनर को अपने गांव में फर्म खोलने का न्योता दिया, जिससे इस गांव से बदस्तूर हो रहे पलायन को रोकने में मदद मिली. साथ ही स्थानीय लोगों को गांव में ही रोजगार मिल गया. राकेश का ये कदम नजीर बना हुआ है. प्रदेश के स्थानीय युवा द्वारा उठाये गए कदम को अन्य लोगों तक पहुंचाने के लिये ईटीवी भारत की टीम ने इस टेक्सटाइल फर्म का जायजा लिया.
फर्म के निदेशक राकेश सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि इस फर्म को मुख्य शहर में स्थापित करने के बजाय भोगपुर जैसे दूरस्थ इलाके में स्थापित करने का कारण यहां के स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ना है. उन्होंने बताया कि फर्म में भोगपुर और आस-पास के लगभग 50 से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं और पुरुष काम रहे हैं. पलायन के खिलाफ ईटीवी भारत द्वारा चलाई जा रही मुहिम का जिक्र करते हुए राकेश ने कहा कि यदि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों के दुरुस्त ग्रामीण इलाकों में भी इस तरह से छोटी टेक्सटाइल फैक्ट्रियां या कोई अन्य छोटा व्यापार शुरू किया जाए तो पलायन पर निश्चित तौर पर लगाम लगेगी.
ईटीवी भारत ने जब फर्म का दौरा किया तो पाया कि यहां कड़ी मेहनत से धागों विभिन्न रंगों के धागों को हाथों से ही तैयार किया जाता है. यहां कोकून, रुई, और देश के विभिन्न राज्यों से आने वाली तरह-तरह की ऊन के धागे तैयार होते हैं. इन धागों को फर्म के ही बगीचे में उगाए गये विभिन्न फलों और उनके रस को तेज आंच में पकाकर प्राकृतिक तरीके से रंगा जाता है.
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टेक्सटाइल फर्म के संस्थापक चियाकी माकी यहां इन धागों से तरह-तरह के कपड़ों को भी बनाते हैं. यह कपड़े तैयार होने के बाद सीधे जापान की राजधानी टोकियो भेजे जाते हैं. टेक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी बताती हैं कि जापान में भारत में प्राकृतिक तरह से तैयार किए जा रहे इन कपड़ों की काफी ज्यादा डिमांज है.
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ईटीवी भारत से खास बातचीत में जापानी टैक्सटाइल डिजाइनर चियाकी माकी ने बताया कि उन्हें हमेशा ही प्राकृतिक तरह से तैयार की गई चीजें पसन्द आती हैं. इसलिए, बतौर एक टेक्सटाइल डिजाइनर उन्होंने इस फर्म में प्राकृतिक धागों और कपाड़ों को बनाना शुरू किया. उन्होंने बताया कि इस कार्य में उनकी मदद उत्तराखंड पौड़ी के राकेश सिंह ने की.
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बता दें कि देहरादून के भोगपुर स्थित इस टेक्सटाइल फर्म की शुरुआत साल 2017 में हुई थी. इस पूरे टेक्सटाइल फॉर्म को पुराने वास्तुकला के आधार पर तैयार किया गया है. इसे तैयार करने में ज्यादा से ज्यादा गीली मिट्टी, बांस, पहाड़ी पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है.
नोट: ईटीवी भारत की मुहिम 'आ अब लौटें' एक सच्ची कोशिश है कि लगातार पलायन से खाली हो रहे पहाड़ पर फिर से खुशहाली लौटे. पहाड़ों की बंद चौखटों फिर से खुल सकें. अपने गांव को छोड़कर जा चुके लोग फिर से राह तकती गलियों में लौट सकें. हमारी कोशिश को चाहिये आपका साथ. जुड़ें हमारी मुहिम से- आ अब लौटें.