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जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उत्तराखंड धर्मांतरण कानून को SC में दी चुनौती, कही ये बात

उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में लागू धर्मांतरण विरोध कानून को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने आपत्ति जताई है. वहीं, जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से धर्मांतरण विरोध कानून के खिलाफ याचिका दायर की गई है. जिसमें कहा गया है कि धर्मांतरण विरोधी कानून अंतर धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को परेशान करने और उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाने का एक साधन है.

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Published : Jan 5, 2023, 9:35 PM IST

Updated : Jan 5, 2023, 9:43 PM IST

देहरादून: जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. मामले में धर्मांतरण विरोधी कानून के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने एक जनहित याचिका दायर की है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से दायर याचिका में उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021, उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2018, हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2019, मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021 और गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 का विरोध किया गया है. अधिवक्ता एजाज मकबूल द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि धर्मांतरण विरोधी कानून अंतर धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को परेशान करने और उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाने का एक साधन है.

जनहित याचिका में कहा गया है कि सभी पांच अधिनियमों के प्रावधान एक व्यक्ति को अपने विश्वास का खुलासा करने के लिए मजबूर करते हैं और इस तरह किसी व्यक्ति की निजता पर आक्रमण करते हैं. किसी के धर्म का किसी भी रूप में खुलासा करना, उसके विश्वास को प्रकट करने के अधिकार का उल्लंघन है. क्योंकि उक्त अधिकार में किसी के विश्वास को प्रकट नहीं करने का अधिकार शामिल है.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में धर्मांतरण ना बन जाए नासूर, सरकार को इस दिशा में भी देना होगा ध्यान

इसके अलावा, पांच अधिनियमों के प्रावधान अंतर-धार्मिक विवाह में करने वाले व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों को एफआईआर दर्ज करने का अधिकार देते हैं. वस्तुतः उन्हें धर्मांतरित को परेशान करने के लिए एक नया उपकरण प्रदान करते हैं. ऐसे में अंतर धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों के असंतुष्ट परिवार के सदस्यों द्वारा अधिनियमों का दुरुपयोग किया जा रहा है.

बता दें कि पिछले दिनों उत्तराखंड सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून 2018 को संशोधित कर नया धर्मांतरण विरोधी कानून लाया है. जिसके तहत अनैतिक तरीके से किसी भी व्यक्ति या लोगों का धर्म परिवर्तन करने पर दोषियों को 10 साल की सजा और 50 हजार रुपये तक के जुर्माना का प्रावधान है.

सख्त है ये धर्मांतरण कानून: इस धर्मांतरण कानून में सख्त संशोधन किए गए हैं. जिसके तहत अब से जबरन धर्म परिवर्तन संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) होगा. नए कानून में जबरन धर्मांतरण कराने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है. विधेयक के ड्राफ्ट में कहा गया है, 'कोई भी व्यक्ति, सीधे या अन्यथा, किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से परिवर्तित नहीं करेगा. कोई भी व्यक्ति इस तरह के धर्म परिवर्तन को बढ़ावा नहीं देगा या साजिश नहीं करेगा'.

गौर हो कि उत्तराखंड में वर्ष 2018 में धर्मांतरण कानून (Anti Conversion Law) अस्तित्व में आया था लेकिन, उस वक्त इसे लचीला कहा जा रहा था. क्योंकि अब तक यह एक जमानती अपराध था. लेकिन, 16 नवंबर 2022 को उत्तराखंड की धामी सरकार की कैबिनेट बैठक में इसे यूपी में लागू धर्मांतरण कानून की तर्ज पर कठोर बनाने की मंजूरी दे दी गई. इसके बाद विधानसभा सत्र के पहले दिन धर्मांतरण कानून को लेकर संशोधन भी किया गया है. कानून में संशोधन के बाद जबरन धर्मांतरण करने पर अब दो से सात साल की सजा हो सकती है. पहले एक से पांच साल की सजा का प्रावधान था. उत्तराखंड धर्मांतरण कानून में संशोधन कर सामूहिक धर्म परिवर्तन पर भी अब अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान कर दिया गया है.

देहरादून: जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. मामले में धर्मांतरण विरोधी कानून के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने एक जनहित याचिका दायर की है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से दायर याचिका में उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021, उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2018, हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2019, मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021 और गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 का विरोध किया गया है. अधिवक्ता एजाज मकबूल द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि धर्मांतरण विरोधी कानून अंतर धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को परेशान करने और उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाने का एक साधन है.

जनहित याचिका में कहा गया है कि सभी पांच अधिनियमों के प्रावधान एक व्यक्ति को अपने विश्वास का खुलासा करने के लिए मजबूर करते हैं और इस तरह किसी व्यक्ति की निजता पर आक्रमण करते हैं. किसी के धर्म का किसी भी रूप में खुलासा करना, उसके विश्वास को प्रकट करने के अधिकार का उल्लंघन है. क्योंकि उक्त अधिकार में किसी के विश्वास को प्रकट नहीं करने का अधिकार शामिल है.
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इसके अलावा, पांच अधिनियमों के प्रावधान अंतर-धार्मिक विवाह में करने वाले व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों को एफआईआर दर्ज करने का अधिकार देते हैं. वस्तुतः उन्हें धर्मांतरित को परेशान करने के लिए एक नया उपकरण प्रदान करते हैं. ऐसे में अंतर धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों के असंतुष्ट परिवार के सदस्यों द्वारा अधिनियमों का दुरुपयोग किया जा रहा है.

बता दें कि पिछले दिनों उत्तराखंड सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून 2018 को संशोधित कर नया धर्मांतरण विरोधी कानून लाया है. जिसके तहत अनैतिक तरीके से किसी भी व्यक्ति या लोगों का धर्म परिवर्तन करने पर दोषियों को 10 साल की सजा और 50 हजार रुपये तक के जुर्माना का प्रावधान है.

सख्त है ये धर्मांतरण कानून: इस धर्मांतरण कानून में सख्त संशोधन किए गए हैं. जिसके तहत अब से जबरन धर्म परिवर्तन संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) होगा. नए कानून में जबरन धर्मांतरण कराने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है. विधेयक के ड्राफ्ट में कहा गया है, 'कोई भी व्यक्ति, सीधे या अन्यथा, किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से परिवर्तित नहीं करेगा. कोई भी व्यक्ति इस तरह के धर्म परिवर्तन को बढ़ावा नहीं देगा या साजिश नहीं करेगा'.

गौर हो कि उत्तराखंड में वर्ष 2018 में धर्मांतरण कानून (Anti Conversion Law) अस्तित्व में आया था लेकिन, उस वक्त इसे लचीला कहा जा रहा था. क्योंकि अब तक यह एक जमानती अपराध था. लेकिन, 16 नवंबर 2022 को उत्तराखंड की धामी सरकार की कैबिनेट बैठक में इसे यूपी में लागू धर्मांतरण कानून की तर्ज पर कठोर बनाने की मंजूरी दे दी गई. इसके बाद विधानसभा सत्र के पहले दिन धर्मांतरण कानून को लेकर संशोधन भी किया गया है. कानून में संशोधन के बाद जबरन धर्मांतरण करने पर अब दो से सात साल की सजा हो सकती है. पहले एक से पांच साल की सजा का प्रावधान था. उत्तराखंड धर्मांतरण कानून में संशोधन कर सामूहिक धर्म परिवर्तन पर भी अब अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान कर दिया गया है.

Last Updated : Jan 5, 2023, 9:43 PM IST

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